इंदिरा गाँधी की जीवनी, पर निबंध, जीवन परिचय [जन्म तारीख, मृत्यु, पॉलिटिक्स करियर, पति, बच्चे, परिवार, शिक्षा ] ( Indira Gandhi biography in hindi) date of birth, death, politics career, husband, children, family, education
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पहचान रखने वाली इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय काफी रोचक हैं. उनका इंदु से लेकर इंदिरा और फिर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर ना केवल प्रेरणादायी हैं, बल्कि भारत में महिला सशक्तिकरण के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय भी हैं. उन्होंने 1966 से लेकर 1977 तक और 1980 से लेकर मृत्यू तक देश के प्रधानमंत्री का पदभार सम्भाला था.
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इंदिरा गाँधी जन्म और परिवार (Birth and Family)
जन्मदिन (Birth date) | 19 नवंबर 1917 |
जन्मस्थान (Birth place) | इलाहबाद,उत्तर प्रदेश |
पिता (Father) | जवाहरलाल नेहरु |
माता (Mother) | कमला नेहरु |
पति (Husband) | फ़िरोज़ गांधी |
पुत्र (Sons) | राजीव गांधी और संजय गांधी |
पुत्र वधुएँ (Son-in-law) | सोनिया गांधी और मेनका गांधी |
पौत्र (Grand sons) | राहुल गांधी और वरुण गांधी |
पौत्री (Grand daughter) | प्रियंका गांधी |
इंदिरा का जन्म देश की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले मोतीलाल नेहरु के परिवार में हुआ था. इंदिरा के पिता जवाहरलाल एक सुशिक्षित वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय सदस्य थे. वो नेहरूजी की इकलौती सन्तान थी, इंदिरा अपने पिता के बाद दूसरी सर्वाधिक कार्यकाल के लिए कार्यरत रहने वाली प्रधानमंत्री हैं. इंदिरा में बचपन से ही देशभक्ति भावना थी, उस समय भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन की एक रणनीति में विदेशी ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करना भी शामिल था. और उस छोटी सी उम्र में, इंदिरा ने विदेशी वस्तुओं की होली जलते देखी थी, जिससे प्रेरित होकर 5 वर्षीय इंदिरा ने भी अपनी प्यारी गुड़िया जलाने का फैसला किया, क्योंकि उनकी वह गुडिया भी इंग्लैंड में बनाई गई थी.
इंदिरा गाँधी ने बनाई थी वानर सेना (Indira Gandhi Vanar Sena)
जब इंदिरा गाँधी 12 वर्ष की थीं, तो उन्होंने कुछ बच्चों के साथ वानर सेना बनाई और उसका नेतृत्व किया. इसका नाम बंदर ब्रिगेड रखा गया था जो कि बंदर सेना से प्रेरित था, जिसने महाकाव्य रामायण में भगवान राम की सहायता की थी. उन्होंने बच्चों के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाद में इस समूह में 60,000 युवा क्रांतिकारियों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने बहुत से आम-लोगों को संबोधित किया, झंडे बनाए, संदेश दिए और प्रदर्शनों के बारे में जानकारी आम-जनता तक पहुचाई. ब्रिटिश शासन के होते हुए ये सब करना एक जोखिम भरा उपक्रम था, लेकिन इंदिरा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने से खुश थी.
इंदिरा गाँधी की शिक्षा (Indira Gandhi education)
इंदिरा ने पुणे विश्वविद्यालय से मेट्रिक पास कर दिया और पश्चिम बंगाल में शांतिनिकेतन से भी थोड़ी शिक्षा हासिल की, इसके बाद वह स्विट्जरलैंड और लंदन में सोमेरविल्ले कॉलेज,ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करने गई.
1936 में, उनकी मां कमला नेहरू तपेदिक से बीमार हो गयी थी, पढाई के दिनों में ही इंदिरा ने स्विट्जरलैंड में कुछ महीने अपनी बीमार मां के साथ बिताये थे, कमला की मृत्यु के समय जवाहरलाल नेहरू भारतीय जेल में थे.
विवाह और पारिवारिक जीवन (Marriage & Family Life)
इंदिरा जब इंडियन नेशनल कांग्रेस की सदस्य बनी, तो उनकी मुलाक़ात फिरोज गांधी से हुई. फिरोज गाँधी तब एक पत्रकार और यूथ कांग्रेस के महत्वपूर्ण सदस्य थे. 1941 में अपने पिता की असहमति के बावजूद भी इंदिरा ने फिरोज गांधी से विवाह कर लिया था. इंदिरा ने पहले राजीव गांधी और उसके 2 साल बाद संजय गांधी को जन्म दिया.
इंदिरा का विवाह फिरोज गान्धी से जरुर हुआ था, लेकिन फिरोज और महात्मा गांधी में कोई रिश्ता नहीं था. फिरोज उनके साथ स्वतंत्रता के संघर्ष में साथ थे, लेकिन वो पारसी थे, जबकि इंदिरा हिन्दू. और उस समय अंतरजातीय विवाह इतना आम नहीं था. दरअसल, इस जोड़ी को सार्वजनिक रूप से पसंद नहीं किया जा रहा था, ऐसे में महात्मा गांधी ने इस जोड़ी को समर्थन दिया और ये सार्वजनिक बयान दिया, जिसमें उनका मीडिया से अनुरोध भी शामिल था “मैं अपमानजनक पत्रों के लेखकों को अपने गुस्से को कम करने के लिए इस शादी में आकर नवयुगल को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करता हूं” और कहा जाता हैं कि महात्मा गांधी ने ही राजनीतिक छवि बनाये रखने के लिए फिरोज और इंदिरा को गाँधी लगाने का सुझाव दिया था.
स्वतंत्रता के बाद इंदिरा गांधी के पिता जवाहर लाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे, तब इंदिरा अपने पिता के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गयी थी. उनके दोनों बेटे उनके साथ लेकिन फिरोज ने तब इलाहबाद रुकने का ही निर्णय किया था, क्योंकि फिरोज तब दी नेशनल हेरल्ड में एडिटर का कम कर रहे थे, इस न्यूज़ पेपर को मोतीलाल नेहरु ने शुरू कीया था.
इंदिरा का राजनीतिक करियर (Political Career)
नेहरु परिवार वैसे भी भारत के केंद्र सरकार में मुख्य परिवार थे, इसलिए इंदिरा का राजनीति में आना ज्यादा मुश्किल और आश्चर्यजनक नहीं था. उन्होंने बचपन से ही महात्मा गांधी को अपने इलाहाबाद वाले घर में आते-जाते देखा था, इसलिए उनकी देश और यहाँ की राजनीति में रूचि थी.
1951-52 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए बहुत सी चुनावी सभाएं आयोजित की और उनके समर्थन में चलने वाले चुनावी अभियान का नेतृत्व किया. उस समय फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे. जल्द ही फिरोज सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा चेहरा बन गए. उन्होंने बहुत से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का पर्दा फाश किया,जिसमे बीमा कम्पनी और वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का नाम शामिल था. वित्त मंत्री को तब जवाहर लाल नेहरु का करीबी माना जाता था.
इस तरह फिरोज राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की मुख्य धारा में सामने आये, और अपने थोड़े से समर्थकों के साथ उन्होंने केंद्र सरकार के साथ अपना संघर्ष ज़ारी रखा, लेकिन 8 सितम्बर 1960 को फिरोज की हृदयघात से मृत्यु हो गई.
कांग्रेस प्रेसिडेंट के रूप में इंदिरा (Indira as Congress President)
1959 में इंदिरा को इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी का प्रेसिडेंट चुना गया था. वो जवाहर लाल नेहरु की प्रमुख एडवाइजर टीम में शामिल थी. 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु के बाद इंदिरा ने चुनाव लड़ने का निश्चय किया और वो जीत भी गयी. उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इनफार्मेशन एंड ब्राडकास्टिंग मंत्रालय दिया गया.
प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार (First Term as Prime Minister of India)
11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में देहांत के बाद अंतरिम चुनावों में उन्होंने बहुमत से विजय हासिल की,और प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला.
प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियां प्रिंसी पर्स के उन्मूलन के लिए प्रिंसिपल राज्यों के पूर्व शासकों और चार प्रीमियम तेल कंपनियों के साथ भारत के चौदह सबसे बड़े बैंकों के 1969 राष्ट्रीयकरण के प्रस्तावों को पास करवाना था. उन्होंने देश में खाद्य सामग्री को दूर करने में रचनात्मक कदम उठाए और देश को परमाणु युग में 1974 में भारत के पहले भूमिगत विस्फोट के साथ नेतृत्व किया.
भारत-पकिस्तान युद्ध 1971 में इंदिरा गाँधी की भूमिका (Indo-Pakistan War in 1971)
वास्तव में 1971 में इंदिरा को बहुत बडे संकट का सामना करना पड़ा. युद्ध की शुरुआत तब हुयी थी,जब पश्चिम पाकिस्तान की सेनाएं अपनी स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बंगाली पूर्वी पाकिस्तान में गईं. उन्होंने 31 मार्च को भयानक हिंसा के खिलाफ बात की, लेकिन प्रतिरोध जारी रहा और लाखों शरणार्थियों ने पड़ोसी देश भारत में प्रवेश करना शुरू कर दिया.
इन शरणार्थियों की देखभाल में भारत में संसाधनों का संकट होने लगा, इस कारण देश के भीतर भी तनाव काफी बढ गया. हालांकि भारत ने वहाँ के लिए संघर्षरत स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन कीया. स्थिति तब और भी जटिल हो गई, जब अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चाहा, कि संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो, जबकि इधर चीन पहले से पाकिस्तान को हथियार दे रहा था, और भारत ने सोवियत संघ के साथ “शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि” पर हस्ताक्षर किए थे.
पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आम-जन पर अत्यचार करने शुरू कर दिए, जिनमें हिन्दुओं को मुख्य रूप से लक्षित किया गया, नतीजतन, लगभग 10 मिलियन पूर्व पाकिस्तानी नागरिक देश से भाग गए और भारत में शरण मांगी. भारी संख्या में शरणार्थी होने की स्थिति ने इंदिरा गांधी को पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ आजामी लीग के स्वतंत्रता के संघर्ष को समर्थन देने के लिए प्रेरित किया.
भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की और पश्चिम पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने के लिए सैनिकों को भी भेजा. 3 दिसम्बर को पाकिस्तान ने जब भारत के बेस पर बमबारी की तब युद्ध शुरू हुआ, तब इंदिरा ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के महत्व को समझा,और वहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों को शरण देने एवं बांग्लादेश के निर्माण को समर्थन देने की घोषणा की. 9 दिसम्बर को निक्सन ने यूएस के जलपोतों को भारत की तरफ रवाना करने का आदेश दिया, लेकिन 16 दिसम्बर को पाकिस्तान ने आत्म-समर्पण कर दिया.
अंतत:16 दिसंबर 1971 को ढाका में पश्चिमी पाकिस्तान बनाम पूर्वी पाकिस्तान का युद्ध समाप्त हुआ. पश्चिमी पाकिस्तानी सशस्त्र बल ने भारत के सामने आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर किए, जिससे एक नए देश का जन्म हुआ, जिसका नाम बांग्लादेश रखा गया. पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की जीत ने इंदिरा गांधी की लोकप्रियता को एक चतुर राजनीतिक नेता के रूप में पहचान दिलाई. इस युद्ध में पाकिस्तान का घुटने टेकना ना केवल बांग्लादेश और भारत के लिए, बल्कि इंदिरा के लिए भी एक जीत थी. इस कारण ही युद्ध की समाप्ति के बाद इंदिरा ने घोषणा की कि मैं ऐसी इंसान नहीं हूँ, जो किसी भी दबाव में काम करे, फिर चाहे कोई व्यक्ति हो या कोई देश.
आपातकाल लागू करना (Imposition of Emergency)
1975 में, विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ती मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति और अनियंत्रित भ्रष्टाचार पर इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के खिलाफ बहुत प्रदर्शन किया.
उसी वर्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया, कि इंदिरा गांधी ने पिछले चुनाव के दौरान अवैध तरीके का इस्तेमाल किया था और मौजूदा राजनीतिक परिस्थियों में इस बात ने आग का काम किया. इस फैसले में इंदिरा को तुरंत अपनी सीट खाली करने का आदेश दिया गया. इस कारण लोगों में उनके प्रति क्रोध भी बढ़ गया. श्रीमती गांधी ने 26 जून, 1975 के दिन इस्तीफा देने के बजाय “देश में अशांत राजनीतिक स्थिति के कारण” आपातकाल घोषित कर दिया.
आपातकाल के दौरान उन्होंने अपने सभी राजनीतिक दुश्मनों को कैद करवा दिया, उस समय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को रद्द कर दिया गया, और प्रेस को भी सख्त सेंसरशिप के तहत रखा गया था. गांधीवादी समाजवादी जया प्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने भारतीय समाज को बदलने के लिए ‘कुल अहिंसक क्रांति’ में छात्रों, किसानों और श्रम संगठनों को एकजुट करने की मांग की. बाद में नारायण को भी गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेजा दिया गया.
1977 के प्रारम्भ में आपातकाल को हटाते हुए इंदिरा ने चुनावों की घोषणा की, उस समय जनता ने अपातकाल और नसबंदी अभियान के बदले में इंदिरा का समर्थन नहीं किया.
सत्ता का छीनना और विपक्ष की भूमिका में आना
माना जाता हैं कि आपात स्थिति के दौरान, उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने देश को पूर्ण अधिकार के साथ चलाने की कोशिश की और झोपड़पट्टी के घरों को सख्ती से हटाने का आदेश दिया, और एक बेहद अलोकप्रिय नसबंदी कार्यक्रम ने इंदिरा को विपक्ष में कर दिया था. लेकिन फिर भी 1977 में, इंदिरा ने आत्मविश्वास से कहा, कि उन्होंने विपक्ष को तोड़ दिया है, उन्होंने चुनाव की मांग की. मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में उभरते जनता दल गठबंधन ने उन्हें हराया था. पिछली लोकसभा में 350 सीटों की तुलना में कांग्रेस केवल 153 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही.
प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल (Second Term as Prime Minister of India)
जनता पार्टी के सहयोगियों के मध्य के आंतरिक संघर्ष का इंदिरा ने फायदा उठाया था. उस दौरान इंदिरा गांधी को संसद से निष्कासित करने के प्रयास में, जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था. हालांकि, उनकी ये रणनीति उन लोगों के लिए विनाशकारी सिद्ध रही और इससे इंदिरा गांधी को सहानुभूति मिली. और आखिर में 1980 के चुनावों में, कांग्रेस एक विशाल बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई और इंदिरा गांधी एक बार फिर भारत के प्रधान मंत्री बन गयी. वास्तव में जनता पार्टी उस समय स्थिर अवस्था में भी नहीं थी,जिसका पूरा फायदा कांग्रेस और इंदिरा को मिला था.
1981 के सितम्बर महीने में एक सिख आतंकवादी समूह “खालिस्तान” की मांग कर रहा था,और इसी आतंकवादी समूह ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश किया था. मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति के बावजूद, इंदिरा गांधी ने सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने के लिए पवित्र मंदिर में जाने का आदेश दे दिया. सेना ने टैंक और भारी तोपखाने का सहारा लिया, हालांकि सरकार ने इस तरह आतंकवादी खतरे को कम करने की बात की थी, लेकिन इससे कई निर्दोष नागरिकों का जीवन छीन गया. इस ऑपरेशन को भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक अद्वितीय त्रासदी के रूप में देखा गया था. हमले के प्रभाव ने देश में सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि की. कई सिखों ने विरोध में सशस्त्र और नागरिक प्रशासनिक कार्यालय से इस्तीफा दे दिया और कुछ ने अपने सरकारी पुरस्कार भी वापस लौटा दिए. इस पूरे घटनाक्रम से तात्कालिक परिस्थितयों में इंदिरा गांधी की राजनीतिक छवि भी खराब हो गई थी.
इंदिरा गाँधी हत्या (Assassination)
31 अक्टूबर 1984 को गांधी के बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बिंत सिंह ने सवर्ण मंदिर में हुए नरसंहार के बदले में कुल 31 बुलेट मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी. ये घटना सफदरगंज रोड नयी दिल्ली में हुई थी.
इंदिरा गाँधी से जुडी रोचक बातें
- ये माना जाता हैं कि इंदिरा गांधी अपनी इमेज बनाए रखने पर काफी ध्यान देती थी. 1965 के दौरान भारत-पाकिस्तान के युध्द के समय वो श्रीनगर में छुट्टियाँ मना रही थी. सुरक्षा अधिकारी के ये बताने पर कि पाकिस्तान उनके होटल के काफी करीब आ गये हैं, वो ये जानने के बावजूद भी वो वही रुकी रही. गांधी ने वहाँ से हटने से मना कर दिया, इस बात ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खीचा, जिससे विश्व पटल पर उनकी पहचान वो भारत की सशक्त महिला के रूप में बनी.
- केथरीन फ्रैंक ने अपनी किताब “दी लाइफ ऑफ़ इंदिरा नेहरु गाँधी” में लिखा हैं कि इंदिरा का पहला प्यार शान्ति निकेतन में उनके जर्मन टीचर थे, उसके बाद जवाहर लाल नेहरु के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई ( O. Mathai) से उनके निकट-संबंध रहे. उसके बाद उनका नाम योग के अध्यापक धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और आखिर में कांग्रेस नेता दिनेश सिंह के साथ भी जोड़ा गया. लेकिन इन सबसे भी इंदिरा के विरोधी उनकी राजनीतिक छवि को नुक्सान नही पहुंचा सके,और उनके आगे बढने का मार्ग नही रोक सके.
- 1980 में संजय की प्लेन क्रैश में मृत्यु के बाद गांधी परिवार में तनाव बढ़ गया था और 1982 तक आते आते इंदिरा और मेनका गांधी के मध्य कडवाहट काफी बढ़ गयी. इस कारण इंदिरा ने मेनका को घर छोड़ने का कह दिया, लेकिन मेनका ने भी बैग के साथ अपने घर छोडकर जाते समय की फोटो मीडिया में दे दी. और जनता के समाने ये घोषणा भी की, उन्हें नहीं पता कि उन्हें घर से क्यों निकाला जा रहा हैं. वो अपनी माँ से भी ज्यादा अपनी सास इंदिरा को मानती रही हैं. मेनका अपने साथ अपना पुत्र वरुण भी लेकर गयी थी और इंदिरा के लिए अपने पोते से दूर होना काफी मुश्किल रहा था.
- 20 वी शताब्दी में महिला नेताओं की संख्या कम थी, जिनमें इंदिरा का नाम शामिल था. लेकिन फिर भी इंदिरा की एक मित्र थी मार्गरेट थैचर. ये दोनों 1976 में मिली थी. और ये जानते हुए भी की इंदिरा पर आपतकाल के दौरान तानाशाही का इल्जाम हैं और वो अगला चुनाव हार गयी हैं, मार्गरेट ने इंदिरा का साथ नही छोड़ा. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर इंदिरा की समस्याओं को अच्छे से समझती थी. थैचर भी इंदिरा की तरह ही बहादुर एवं सशक्त प्रधानमंत्री थी, जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि आतंकी हमले की आशंका होते हुए भी वो इंदिरा के अंतिम-संस्कार में आई थी. उन्होंने इंदिरा की आसामयिक मृत्यु पर राजीव को संवेदनशील पत्र भी लिखा था.
- इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने पर कांग्रेस में ही एक वर्ग था, जो किसी महिला के हाथ में शक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकता था, फिर भी इंदिरा ने ऐसे सभी व्यक्तियों और पारम्परिक सोच के कारण राजनीति में आने वाली समस्त बाधाओं का डटकर सामना किया.
- इंदिरा ने देश में कृषि के क्षेत्र में काफी सराहनीय काम किये थे, इसके लिए उन्होंने बहुत सी नई योजनाएं बनाई और कृषि सम्बंधित कार्यक्रम आयोजित किए. इसमें विविध फसलें उगाना और खाध्य सामग्री को निर्यात करना जैसे मुख्य उद्देश्य शामिल थे. उनका लक्ष्य देश में रोजगार सम्बंधित समस्या को कम करना और अनाज उत्पादन में आत्म-निर्भर बनना था. इन सबसे ही हरित-क्रान्ति की शुरुआत हुई थी.
- इंदिरा गांधी ने भारत को आर्थिक और औद्योगिक सक्षम राष्ट्र बनाया था, इसके अलावा उनके कार्यकाल में ही विज्ञान और रिसर्च में भी भारत ने बहुत प्रगति की थी. उस दौरान ही पहली बार एक भारतीय ने चाँद पर कदम रखा था,जो कि देश के लिए काफी गर्व का विषय था.
इंदिरा गांधी के नाम पर धरोहर
नई दिल्ली में उनके घर को म्यूजियम बनाया गया हैं, जिसे इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूजियम के नाम से जाना जाता हैं. इसके अलावा उनके नाम पर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल भी हैं.
बहुत सी यूनिवर्सिटी जैसे इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू), इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी (अमरकंटक), इंदिरा गांधी टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वीमेन, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (रायपुर) हैं. इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट रिसर्च(मुम्बई), इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, इंदिरा गाँधी ट्रेनिंग कॉलेज, इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस, इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेंटल साइंस इत्यादि कई शैक्षिक संस्थाएं हैं.
देश की राजधानी दिल्ली के इंटरनेशनल एअरपोर्ट का नाम भी इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एअरपोर्ट हैं. देश का सबसे मशहूर समुद्री ब्रिज पंबन ब्रिज का नाम भी इंदिरा गाँधी रोड ब्रिज हैं. इसके अलावा देश भर के कई शहरों में बहुत सी सडकों और चौराहों का नाम भी उनके नाम पर हैं.
इंदिरा गाँधी के अवार्ड्स (Awards)
इंदिरा गांधी को 1971 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. 1972 में उन्हें बांग्लादेश को आज़ाद करवाने के लिए मेक्सिकन अवार्ड से नवाजा गया. फिर 1973 में सेकंड एनुअल मेडल एफएओ (2nd Annual Medal, FAO) और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी में साहित्य वाचस्पति का अवार्ड दिया गया.
इंदिरा को 1953 में यूएसए में मदर्स अवार्ड भी दिया गया, इसके अलावा डिप्लोमेसी के साथ बेहतर कार्य करने के लिए इसल्बेला डी’एस्टे अवार्ड ऑफ़ इटली (Islbella d’Este Award of Italy) मिला. उन्हें येल यूनिवर्सिटी के होलैंड मेमोरियल प्राइज से भी सम्मानित गया.
1967 और 1968 में फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के पोल (Poll) के अनुसार वो फ्रेंच लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली महिला राजनेता थी.
1971 में यूएसए के विशेष गेलप पोल सर्वे (Gallup Poll Survey ) के अनुसार वो दुनिया की सबसे ज्यादा सम्मानीय महिला थी. इसी वर्ष जानवरों की रक्षा के लिए अर्जेंटाइन सोसाइटी ने उन्हें डिप्लोमा ऑफ़ ऑनर से भी सम्मानित किया.
इंदिरा गाँधी का जीवन विश्व में भारत की महिला को एक सशक्त महिला के रूप में पहचान दिलाने वाला रहा हैं. हालांकि उनके व्यक्तित्व को दो पक्षों से समझा जाता रहा हैं और उनके समर्थकों के साथ ही विरोधियों की भी संख्या काफी हैं. उनके लिए गये कई राजनीतिक और सामाजिक फैसले भी अक्सर चर्चा का विषय बने रहते हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत ने विकास के कई आयाम स्थापित किये थे,और उन्होंने विश्व पटल पर भारत की छवि को बदलकर रख दिया था.
इंदिरा और फिरोज का रिश्ता कैसा था
इंदिरा गांधी की बायोग्राफी में हमें लिखा हुआ मिलता है की इंदिरा और फिरोज का रिश्ता काफी अच्छा नहीं था. उनके मतभेद इतने बढ़ गये थे की इंदिरा और फिरोज अलग रहने लग गये थे. यहाँ तक की फिरोज एक मुस्लिम महिला के प्यार में भी पड़ गये थे. उस समय इंदिरा दूसरी बार गर्भवती थी. लेकिन फिरोज के अंतिम समय में इंदिरा उनके काफी नजदीक थी और दोनों का रिश्ता लड़ते-झगड़ते गुजरा. उनके राजनैतिक मतभेद के बारें में अनेक जगहों एंव किताबों में लिखा हुआ मिलता है.
FAQ
Ans- इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के प्रायगराज में हुआ।
Ans- इंदिरा गांधी का राजनीतिक सफर 1951 से शुरू हुआ।
Ans- ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण सिख गार्ड ने मारी थी इंदिरा गांधी को गोली।
Ans- 31 अक्टूबर 1984 को हुई इंदिरा गांधी की हत्या।
Ans- इंदिरा गांधी की मृत्यृ के बाद राजीव गांधी को बनाया गया प्रधानमंत्री।
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