जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय | Jayaprakash Narayan Biography in hindi

जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय | Jayaprakash Narayan  (Lok Nayak) Biography in hindi

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ की सुन्दरता यहाँ की भिन्नता में है. जब जब यहाँ के लोकतंत्र पर किसी तरह का ख़तरा आता है, क्रांतियाँ होती है और लोकतंत्र को फिर से मुक्त कराया जाता है. इंदिरा गाँधी द्वारा जारी किया आपातकाल इसी तरह का एक लोकतान्त्रिक खतरा था. इस समय जयप्रकाश नारायण ने सरकार के इस फैसले के विरुद्ध अपना प्रखर विरोध जताया था. इनका नाम भारतीय राजनीति में क्रान्ति का नाम है. इन्हें लोग जेपी भी कहते हैं. इन्हीं के नाम पर बिहार के पटना हवाई अड्डे का नाम रखा गया है. यहाँ पर इनके जीवन से सम्बंधित विशेष बातों का वर्णन किया जा रहा है.

जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय

पूरा नाम जयप्रकाश नारायण
जन्म तारिक 11 अक्टूबर सन 1903
जन्म स्थान बिहार
मृत्यु 8 अक्टूबर 1979
पिताहरसू दयाल श्रीवास्तव
माता फूल रानी देवी
पत्नी प्रभावती देवी
नागरिकता भारतीय
पार्टीभारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, जनता पार्टी
जेल यात्रा 7 मार्च सन 1940
पुरस्कार भारत रत्न, रेमन मेग्सेसे

जयप्रकाश नारायण का आराम्भिक जीवन (Jayaprakash Narayan Early Life)

इनका जन्म 11 अक्टूबर सन 1903 में बिहार के तात्कालिक सारण जिले के सिताबदियारा में हुआ था. इनका घर लाला टोला के घाघरा नदी के किनारे पर स्थित था, जहाँ पर आये दिन बाढ़ आते रहते हैं. इस वजह से इनका घर आये दिन किसी न किसी तरह से बाढ़ से प्रभावित होता है. इस वजह से बचपन में ही इनका परिवार इस स्थान से हट कर कहीं कुछ किलोमीटर आगे चला गया, यह तात्कालिक स्थान अब उत्तरप्रदेश में पड़ता है. इनका जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम हरशु दयाला और माता का नाम फूल रानी देवी था. इनके पिता स्टेट गवर्नमेंट के कैनल विभाग में कार्यरत थे.

Jay Prakash Narayan

जयप्रकाश नारायण की शिक्षा (Jayaprakash Narayan Education)

जिस समय ये 9 वर्ष के थे, उसी समय वे पटना आ गये और सातवीं कक्षा में अपना नामांकन कराया. अपने स्कूली दिनों के दौरान ही उन्होंने सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढ़ना शुरू कर दिया. इसी समय उन्होंने भारत भारती जैसी पुस्तक पढ़ ली. उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे बड़े लेखकों की रचनाओं को पढ़ना शुरू किया, जिसमे कई राजपूत वीरों के वीर गाथाओं का वर्णन हुआ करता था. उन्होंने इसी समय श्रीमदभगवदगीता श्री कृष्ण के अनमोल वचन का अध्ययन किया. इससे इनकी बौद्धिक क्षमता में बहुत अधिक विकास हुआ और इन्होने ‘द प्रेजेंट स्टेट ऑफ़ हिन्ची इन बिहार’ शीर्षक से एक निबंध लिखा. इस निबंध को एक निबंध प्रतियोगिता में ‘बेस्ट एसे अवार्ड’ प्राप्त हुआ था. स्कूली दिनों में इनका बहुत अच्छा विकास हुआ और वर्ष 1918 में उन्होंने अपना स्कूली प्रशिक्षण समाप्त किया और इन्हें ‘स्टेट पब्लिक मैट्रिकुलेशन एग्जामिनेशन’ का सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ.

जयप्रकाश नारायण का निजी जीवन  परिचय (Jayaprakash Narayan Personal Life Biography in hindi)

अक्टूबर 1920 में इनका विवाह ब्रज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती देवी से हुआ. उनके विवाह के समय इनकी आयु 18 वर्ष की और प्रभावती देवी की आयु 14 वर्ष की थी. यह आयु इस समय विवाह के लिए आम मानी जाती थी. विवाह के बाद चूँकि ये पटना में कार्यकर थे, अतः पत्नी के साथ उनका रहना संभव नहीं था. इस समय महात्मा गाँधी के न्योते पर इनकी पत्नी ने महात्मा गाँधी के आश्रम में सेवारत हो गयीं. इसी समय महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी किये रोलट एक्ट के ख़िलाफ़ असहयोग आन्दोलन कर रहे थे. इस आन्दोलन में मौलाना आज़ाद के भाषण सुनने वालों में ये भी शामिल हुए. इस भाषण में मौलाना आज़ाद ने लोगों से अंग्रेजी हुकूमत की शिक्षा को त्यागने की बात कही थी. मौलाना के तर्कों से जयप्रकाश नारायण बहुत प्रभावित हुए और पटना लौट कर परीक्षा के 20 दिन पहले ही इन्होने कॉलेज छोड़ दिया. इसके बाद इन्होने डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित कॉलेज बिहार विद्यापीठ में अपना नामांकन कराया और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा के पहले विद्यार्थियों में एक हुए.

जयप्रकाश नारायण की संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में उच्च शिक्षा (Jayaprakash Narayan Education in USA)

ये शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक उत्साहित रहते थे. इन्होने विद्यापीठ में अपने कोर्स को पूरा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की योजना बनायी. इसके उपरान्त महज 20 वर्षों की उम्रवास्था में ही उन्होंने जानूस नाम के अमेरिका जाने वाली एक कार्गो शीप से अमेरिका के लिए रवाना हो गये. इस समय प्रभावती देवी साबरमती में ही महात्मा गाँधी के आश्रम में थीं. जयप्रकाश 8 अक्टूबर 1922 को कैलिफ़ोर्निया पहुँच गये. इसके उपरान्त जनवरी 1923 में इन्हें बर्कले में दाखिला प्राप्त हुआ. इस समय इन्हें कहीं से भी किसी तरह की आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं थी, अतः इस समय अपनी शिक्षा की फीस भरने के लिये इन्होने कभी किसी मिल फैक्ट्री में तो कभी होटलों में बर्तन धोने का काम, कभी गैरेज में गाड़ी बनाने का कार्य किया. इसके बाद भी इनकी शिक्षा में कठिनाईयां आयीं. बर्कली की फीस दुगुनी कर दी गयी और इन्हें यह विश्व विद्यालय छोड़ कर ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ लोया’ में अपना दाखिला करना पड़ा. इन्हें इसके बाद भी कई विभिन्न विश्वविद्यालयों में समय समय पर अपना दाखिला पैसे की कमी की वजह से कराना पड़ा. इन्होने अपनी शिक्षा के दौरान सोशियोलॉजी की पढाई की, जो कि इनका सबसे पसंदीदा विषय था. इस अध्ययन के समय इन्हे प्रोफेसर एडवर्ड रोस से काफ़ी सहायता प्राप्त हुई.

विस्कॉन्सिन में पढाई करते समय इन्हें कार्ल माक्स के ‘Das Kapital’ पढने का मौक़ा मिला. इसी समय रूस क्रान्ति की सफलताओं की खबर से सन 1917 में ये मार्क्सवाद से बहुत अधिक प्रभावित हुए. इसके बाद इन्होने भारतीय कम्युनिस्टो से भी मार्क्सवाद पर विवेचना की. अपने अध्ययन के समय जब इन्होने अपना सोशियोलॉजी पेपर ‘सोशल वेरिएशन’ लिखा, तो वह इस विषय पर वर्ष का सबसे अच्छा पेपर साबित हुआ.

जयप्रकाश नारायण का राजनैतिक योगदान (Jayaprakash Narayan Politician)

भारतीय राजनीति में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. ये वर्ष 1929 में अपनी उच्च शिक्षा समाप्त कर अमेरिका से भारत आये. इनकी विचारधारा पूरी तरह से मार्क्सवादी हो चुकी थी. भारत आकर ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो गये. इस समय कांग्रेस में महात्मा गाँधी इनके गुरु बने और ये लगातार राजनैतिक गुण सीखते रहे. पटना के कदमकुआँ में ये अपने ख़ास दोस्त गंगा शरण सिंह के साथ एक ही घर में रहे. इन दोनो में बहुत अधिक दोस्ती थी. वर्ष 1932 के दौरान ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें जेल में डाल दिया. ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें नासिक जेल में रखा जहाँ पर इनकी मुलाक़ात राम मनोहर लोहिया, मीनू मस्तानी, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, बसवोन सिन्हा, युसूफ देसाई, सी के नारायणस्वामी तथा अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से हुई. इन सबसे मिलने से कांग्रेस में वामपंथी दल का निर्माण हुआ, जिसे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कहा गया. इस पार्टी के अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव और महासचिव जयप्रकाश नारायण हुए.

वर्ष 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय जब इन नेताओं को पुनः गिरफ्तार किया गया तो हजारीबाग जेल में रखा गया था. इस समय ये अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों जैसे योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह, गुलाब छंद गुप्ता, रामनंदन मिश्र, शालिग्राम सिंह आदि के साथ मिलकर जेल के अन्दर ही आज़ादी के आन्दोलनों की योजनायें बनाने लगे. भारत छोडो आन्दोलन के समय उन्होंने आदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था जिससे उन्हें लोगो में प्रसिद्धि प्राप्त होने लगी. भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद इन्हें ‘आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन’ का अध्यक्ष बनाया गया. ये दल भारत का सबसे बड़ा श्रमिक दल है. इस पद पर ये वर्ष 1947 से 1953 तक कार्यरत रहे.

जयप्रकाश नारायण की बिहार संपूर्ण क्रान्ति (Jayaprakash Narayan Bihar Movement)

वर्ष 1960 के समय उन्होंने भारत की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए पुनः राजनीति में आने का निर्णय किया. वर्ष 1974 में देश में स्थिति बहुत अधिक खराब हो गयी थी. लोगों को रोज़गार नहीं प्राप्त हो रहा था, आवश्यकता की वस्तुएं नहीं प्राप्त हो पा रही थीं सरकार पूरी तरह से निरस्त हो चूकी थी. ऐसे समय में देश को एक नयी क्रान्ति की आवश्यकता थी. जयप्रकाश नारायण ने इसी समय गुजरात में होने वाले नवनिर्माण आन्दोलन की बागडोर संभाली. 72 वर्ष की उम्रवास्था में इन्होने 8 अप्रैल 1974 पटना में मौन जुलूस का आग़ाज़ किया. इस जुलूस में सरकार ने लाठियां बरसाई थी. इसके बाद 5 जून को इन्होने पटना के गाँधी मैदान में एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया. इस सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एक क्रान्ति है, हम लोग यहाँ केवल तात्कालिक विधानसभा के विलय देखने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं, बल्कि यह हमारे रास्ते का पहला पड़ाव है.

भारत की आज़ादी के 27 वर्षों के बाद भी देश की जनता महंगाई, भुखमरी, भ्रष्टाचार आदि से ग्रसित और परेशान है. देश में कहीं भी न्याय नहीं हो रहा है. इस समय देश को सम्पूर्ण क्रान्ति की आवश्यकता है. वर्ष 1974 में इन्होने बिहार के छात्रो के साथ मिलकर छात्र आन्दोलन की शुरुआत की. यह आन्दोलन लगातार बढ़ता गया और छात्रों के अलावा आम लोग भी इससे जुड़ने लगे. यही आन्दोलन कालांतर में बिहार आन्दोलन कहलाया. इन महत्वपूर्ण आन्दोलन को जयप्रकाश नारायण ने ‘शांतिपूर्ण सम्पूर्ण क्रान्ति’ का नाम दिया.

जयप्रकाश नारायण का आपातकाल के दौरान (Jayaprakash Narayan in Emergency)

आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी को इलाहाबाद कोर्ट ने एल्क्टोरल कानून के तोड़ने के अंतर्गत दोषी माना. इस पर इन्होने इंदिरा गाँधी तथा अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे की मांग की. इन्होने मिलिट्री और पुलिस को सरकार के अनैतिक और असंवैधानिक निर्णयों को न मानने की अपील की. 25 जून 1975 के दिन इंदिरा गाँधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा की. इस समय देश भर में नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति के आयोजन चल रहे थे. इसी दिन इन्हें और इस आन्दोलन से जुड़े मुख्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय यहाँ पढ़ें.

उन्होंने इसके उपरान्त सरकार के विरोध में रामलीला मैदान में 1,00,000 लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की कई आवृत्तियाँ की. इसके बाद इन्हें सरकार द्वारा पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और चंडीगढ़ में रखा गया. इस समय बिहार में बाढ़ आई हुई थी. इन्होने सरकार से 1 माह के पैरोल की मांग की ताकि बाढ़ का जायजा ले सकें, किन्तु ऐसा हो न सका. इस बीच उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. 24 अक्टूबर को अचानक इनकी तबीयत खराब हो गयी. इसके बाद 12 नवम्बर को इन्हें रिहा किया गया, जहाँ से उन्हें डायग्नोसिस के लिए जसलोक अस्पताल में ले जाया गया. यहाँ पर पता चला कि इन्हे किडनी सम्बंधित परेशानी हो गयी है और बाक़ी के जीवन में इन्हें हमेशा डायग्नोसिस का सहारा लेना पड़ेगा.  

इसके उपरान्त उनितेस किंगडम में सुरूर होडा ने ‘फ्री जेपी’ कैम्पेन जारी किया. इस कैम्पेन का नेतृत्व नोबल पुरस्कार प्राप्त नोएल बेकर ने किया, जिसका उद्देश्य जयप्रकाश नारायण को जेल से रिहा कराना था. इंदिरा गाँधी ने लगभग 2 वर्ष के बाद 18 जनवरी 1977 को देश से इमरजेंसी हटा दी और चुनाव की घोषणा की गयी. इस चुनाव के समय इनके नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया और चुनाव में विजय भी प्राप्त किया. देश में पहली बार ऐसा होने वाला था कि केंद्र में एक ग़ैरकांग्रेसी सरकार आई. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस समय देश भर के युवा वर्ग भी राजनीति की तरफ जागृत हुए और कई युवाओं ने स्वयं को जयप्रकाश के इस आन्दोलन से जोड़ा.

जयप्रकाश नारायण की मृत्यु (Jayaprakash Narayan Death)

इनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1979 में इनके जन्मदिन के ठीक तीन दिन पहले हुई. इनकी मृत्यु का मुख्य कारण डायबिटीज और ह्रदय सम्बंधित विकार थे. इस समय इनकी आयु 77 वर्ष की थी.

जयप्रकाश नारायण को प्राप्त पुरस्कार (Jayaprakash Narayan Awards)

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का व्यक्तित्व किसी तरह के पुरस्कार की मोहताज नहीं हैं. किन्तु इन्होने देश सेवा में अपना समस्त जीवन दे दिया है. इन्हें विश्व स्तर पर पुरस्कार प्राप्त हुए, यहाँ पर इन्हें प्राप्त पुरस्कार का विवरण दिया जा रहा है.

  • वर्ष 1999 में भारत सरकार की तरफ से इन्हें भारत रत्न अवार्ड से नवाज़ा गया.
  • इन्हें एफ़आईई फाउंडेशन की तरफ से राष्ट्रभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया.
  • इनकी प्रतिभा भारत के लोगों के पहले ही विदेशियों ने पहचान लिया था. इस वजह से लोक सेवा करने के कारण इन्हें वर्ष 1965 में रामोन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया.

अतः भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन हो या राजनैतिक आन्दोलन जयप्रकाश नारायण ने देश सेवा में हमेशा अपना योगदान दिया. इस कारण इन्हें कई यातनाएं सहनी पड़ी, किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी. आज भी कई राजनेता इनके नाम का प्रयोग अपने भाषणों में करते हैं. भारतीय राजनीति को सदैव ही ऐसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व वाले लोगों की आवश्यकता रही है. देश का युवा वर्ग आज भी इनसे प्रेरणा लेकर भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका दर्ज कराने की कोशिश करता है.

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