भारत में श्वेत क्रांति इतिहास क्या है | White Revolution in India history in hindi

श्वेत क्रांति क्या है, दुग्ध क्रांति के लाभ व भारत में सफ़ेद क्रांति का इतिहास (White Revolution in India definition, benefits , history in hindi)

देश की स्वतन्त्रता के बाद हरित क्रांति और श्वेत क्रांति ही वो दो क्रांतियाँ थी, जिनके कारण  भारत  की आर्थिक स्थिति में बड़े परिवर्तन आये. देश में श्वेत क्रान्ति 1970 में शुरू हुई थी, इससे डेयरी  इंडस्ट्री में काफी बदलाव आये और  गरीब किसानों को रोजगार मिला. इस कार्यक्रम के कारण देश में स्वस्थ जानवरों की संख्या बढ़ गई, दुग्ध उत्पादन के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी किया जाने लगा. वास्तव में इस क्रान्ति का उद्देश्य भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाले देशों की श्रेणी में लाना था. और इसी प्रोग्राम ने एक समय तक दूध की कमी से जूझने वाले भारत को दुनिया में दुग्ध उत्पादन में अग्रणी बनाया.

White Revolution

श्वेत क्रांति क्या है

क्रान्ति का नाम (Revolution name)श्वेत क्रांति/ दुग्ध क्रांति/ सफेद क्रांति
अन्य नाम (other names of Revolution)ओपरेशन फ्लड
क्रान्ति के जनक (Father of Revolution)वर्गिस कुरियन
शुरुआत (Inauguration of Revolution)1970
समापन (Ending of Revolution)1996
चरण (Total number of Phases)3
प्रथम चरण (First Phase)1970-1980
द्वीतीय चरण(Second Phase)1980-1985
तृतीय चरण (Third Phase)1985-1996

श्वेत क्रांति क्यों और किसने शुरू की थी? (Who started or Father of White Revolution)

वर्गीज कुरियन श्वेत क्रान्ति की जनक थे. उन्होंने देश में दुग्ध उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी कम्पनी अमूल की स्थापना की. अमूल के चेयरमेन वर्गीज कुरियन के एक्सपेरिमेंटल पैटर्न पर यह ऑपरेशन फ्लड आधारित था. इस कारण  इन्हें ही एनडीडीबी (NDDB) का चेयरमेन भी बनाया गया था. इन्हे ऑपरेशन फ्लड के आर्किटेक्ट के तौर पर भी जाना जाता हैं. उस समय तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में कई अन्य कम्पनियों ने और अमूल के इंफ्रास्ट्रक्चर एरेंजमेंट और रिसोर्स के मनेजमेंट के साथ नेशनल डेयरी  डेवलपमेंट बोर्ड को शुरू किया. कुरियन के साथ उनके मित्र एच.एम.डालया ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर बनाने और कंडेंसड मिल्क बनाने की तकनीक के आविष्कार में योगदान दिया.

श्वेत क्रांति की शुरुआत का कारण क्या हैं ? (Reason of the Whit Revolution)

स्वतन्त्रता के बाद देश के ग्रामीण क्षेत्रों का  विकास बहुत महत्वपूर्ण हो गया था, क्युकी तब ना केवल फसल उत्पादन एक समस्या थी, बल्कि दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भी देश पिछड़ रहा था. दूध और डेयरी के उत्पादों को बाहर से आयात करने से देश पर आर्थिक भार बढ़ने लगा था. 1950 और 1960 में भले दुग्ध उत्पादन बढ़ा था, लेकिन  एनुअल प्रोडक्शन ग्रोथ इन सालों में नेगेटिव रह रही थी. देश की स्वतन्त्रता के बाद पहले दशक में एनुअल कम्पाउंड ग्रोथ 1.64 प्रतिशत थी, जो की 1960 के अंत तक 1.15 प्रतिशत ही रह गयी. इस कारण भारत सरकार ने डेयरी सेक्टर में नीतियों में बड़े परिवर्तन करते हुए दुग्ध उत्पादन में आत्म-निर्भर होने का प्रयास किया.

श्री लाल बहादुर शास्त्री ने 31 अक्टूबर 1946 को कंजरी में अमूल की कैटेल फीड फैक्ट्री का उद्घाटन किया.  उन्हें ना केवल इस प्रोजेक्ट के आवश्यकता की समझ थी, बल्कि इसकी सफलता में भी बहुत रूचि थी. इसीलिए उन्होंने गाँवों में किसानों के साथ एक रात बिताई और कुरियन के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में बसे किसानों के आर्थिक तरक्की और समस्यायों के  बारे में डिटेल में बात की. इस यात्रा के परिणाम स्वरूप ही नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का गठन  हुआ.

जुलाई 1970 में यूनाईटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) और फ़ूड एंड एग्रीकल्चर (FAO) के टेक्निकल असिस्टेंस में ओपरेशन फ्लड को लांच किया गया.

भारत में श्वेत क्रांति का इतिहास (History of White Revolution in India)

श्वेत क्रान्ति को ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता हैं. इसे 1970 में लांच किया गया था, इसकी शुरुआत भारत के नेशनल डेयरी  डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) ने की थी, जो कि कालान्तर में  दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी  प्रोग्राम सिद्ध हुआ.

डॉक्टर वर्गीज कुरियन द्वारा ही एक अलग से एजेंसी “इंडियन डेयरी कोरोपोरेशन” (IDC) बनाई गयी, जिससे ओपरेशन फ्लड को ग्रांट मिल सके. और इस तरह से मिल्क प्रोडक्शन जो कि योजना की शुरुआत में 22,000 टन था वो 1989 तक मिल्क पाउडर प्रोडक्शन 1,40000 टन तक पहुच गया.

जब अमूल ने शुरू किया था, तब मार्केट में बहुत से प्रतिद्वंदी जैसे पोलसन और अन्य विदेशी कंपनियां थी, लेकिन अमूल ने ना केवल इन सबको कड़ी टक्कर दी, बल्कि यह बहुत जल्द भारत की सबसे पसंदिता डेयरी  कंपनी भी बन गयी. वास्तव में इस श्वेत क्रान्ति के कारण 1950-51 में जहाँ दुग्ध उत्पादन 17 मिलियन टन था वो 2001 -02 तक 84.6 मिलियन टन तक पहुँच गया.

श्वेत क्रांति के चरण (Phases of White Revolution)

ये क्रान्ति कोई छोटी सी पंच वर्षीय योजना नहीं थी, बल्कि सरकार द्वारा बनाई गयी सुनियोजित 3 चरणों में होने वाली दीर्घकालीन योजना थी.

  • पहला चरण (Phase 1):

यह चरण जुलाई 1970 में शुरू हुआ था, जो कि 1980 तक चला था. इसका उद्देश्य 10 राज्यों में 18 मिल्क शेड्स लगाना था. ये सभी मिल्क शेड्स 4 बड़े शहर  (दिल्ली,मुंबई,कोलकाता और चेन्नई) मार्केट से जुड़े थे. इस चरण के अंत तक 1981 में 13,000 गाँवों में डेयरी  को आपरेटिव विकसित हो चुके थे, जिनमें से 15,000 किसान शामिल थे. पहले चरण में यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी द्वारा गिफ्ट दिए गये स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर की सेल की गई थी और इससे ही आर्थिक सहायता मिली थी. NDDB ने ये प्रोग्राम प्लान किया था और यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी( EEC) की मदद से इसकी डिटेल्स निर्धारित की  थी.

  • दुसरा चरण  (Phase 2):  

1981 से 1985 तक चले इस चरण का  उद्देश्य पहले चरण को ही आगे बढाते हुए कर्नाटक,राजस्थान और मध्य-प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी डेयरी  डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाना था. 1985 में इस चरण के अंत तक 136 मिल्क शेड्स बन गए, जो की 34,500 गाँवों तक फैले थे और 43000 गाँवों में 4.25 मिलियन तक दूध का उत्पादन होने लगा. 1989 तक घरेलू दुग्ध उत्पादन भी 22000 टन हो गया, इन सबमे इसी का गिफ्ट और वर्ल्ड बैंक लोन ने बहुत मदद की. ऑपरेशन फ्लड को यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी,वर्ल्ड बैंक और भारत के नेशनल डेयरी  डेवलपमेंट  द्वारा संयुक्त रूप से स्पोंसर किया जा रहा था.

यूएनडीपी भी विदेश एक्सपर्ट्स,कंसलटेंट और उपकरण  को भेजकर सहायता  उपलब्ध करवा रहा था. वर्ल्ड बैंक और इसके सहयोगीयों  ने भी  एग्रीकल्चर एक्सटेंशन,बारिश आधारित फिश फार्म,स्टोरेज और मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में देश का सपोर्ट किया.

  • तीसरा  चरण  (Phase 3): 

तीसरे चरण ने सफेद क्रान्ति को और मजबूत और विकसित किया, इस दौरान दुग्ध उत्पादन बढ़ा,और इंफ्रास्ट्रक्चर में भी सुधार हुआ. कॉपरेटिव सदस्यों के लिए वेटरनरी फर्स्ट एंड हेल्थ केयर सर्विसेज,फीड एंड आर्टिफिशयल इनसेमिनेशन सर्विसेज दी गई. इस चरण के दौरान 30,000 नए डेयरी कॉपरेटिव जोड़े गये. 1988-1989 में तो मिल्क शेड्स की संख्या भी बढ़कर 173 हो गयी, इसकी एक विशेषता यह भी थी कि इसमें महिला सदस्यों की संख्या भी बढ़ने लगी थी. 1995 में  तो वुमन डेयरी  कोऑपरेटिव लीडरशिप प्रोग्राम (WDCLP) को एक पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर भी  लांच किया गया. जिसका उद्देश्य डेयरी  कॉपरेटिव मूवमेंट में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना था. गांवों में मुख्य स्ट्रेटेजी लोकल महिलाओं को ट्रेनिंग देना और उनका लेटेन्ट पोटेंशियल बढ़ाना था.इस चरण में ज्यादा महत्व जानवरों को पोषण युक्त भोजन देने, नए इनोवेशन जैसे  थिलेरिओइसिस(theileriosis) के लिए  वैक्सीन बनाने,प्रोटीन फीड बाईपासिंग और दुधारों जानवरों की संख्या बढ़ाने पर दिया.

यह चरण जब 1996 में समाप्त हुआ और तब तक 9.4 मिलियन किसानों के बीच में 73,300 डेयरी  को ऑपरेटिव बन चुके थे. इस चरण के अंत तक हालांकि प्राइवेट एजेंसी कोऑपरेटिव गाँवों से दूध उत्पादन नहीं कर पाए, लेकिन फिर भी इस चरण ने अपने तय किये गए लक्ष्य से ज्यादा हासिल कर लिया था.

उस समय ऐसी स्थिति और प्लान बना लिए गये थे, जिनसे लम्बे समय तक इसका लाभ प्राप्त किये जा सके. जैसे कच्चे दूध  के लिए एक मार्केट बनाया गया, जिसके साथ कई टेक्निकल सर्विसेज भी विकसित की गयी, मवेशिओं का खाना, इमरजेंसी हेल्थ सर्विस जैसी कई सुविधाओं के कारण दुग्ध उत्पादन बढ़ गया. 3 स्टेट ऑफ़ दी आर्ट डेयरी बनाई गयी, जिससे घरेलु और एक्सपोर्ट मार्केट के लिए क्वालिटी प्रोडक्ट बनाया जा सके.

ऑपरेशन फ्लड के दौरान जहाँ दूध की डिमांड बढ़ रही थी,  तब भी कुल मवेशियों की संख्या नियत थी.   गाय और भैंस की ब्रीड्स को भी अपग्रेड किया गया.  गैर-विवरण वाली गायों को एक्सोटिक सीमेन से ब्रीड करवाके उनकी भी प्रोडक्टिविटी बढाई गयी.  एनीमल हसबेंडरी में भी रिसर्च और विकास हुआ. 1998 में वर्ल्ड बैंक ने एक रिपोर्ट पब्लिश की, जिसमें डेयरी  डेवलपमेंट और इसके प्रभाव का भारत में प्रभाव दिखाया गया. इस ऑडिट में बताया गया कि  वर्ल्ड बैंक ने इस ऑपरेशन फ्लड में  200 करोड़ रूपये इन्वेस्ट किये,और अगले 10 सालों में ग्रामीण क्षेत्रों से प्रति वर्ष लगभग 24,000 करोड़ रूपये की आर्थिक प्रगति हुयी,जो किसी भी और डेयरी  प्रोग्राम ने हासिल नहीं की थी.

श्वेत क्रांति के लाभ (Benefits of White Revolution)

  • देश में दुग्ध उत्पादन बढ़ा मात्र 40 वर्ष में 20 मिलियन मैट्रिक टन से 100 मिलियन मैट्रिक टन हो गया. और ये सिर्फ इस डेयरी कोपरेटिव मूवमेंट  के कारण सम्भव हुआ.
  • इस क्रान्ति ने देश के किसानों को ज्यादा से ज्यादा जानवर रखने को प्रोत्साहित किया, जिसके कारण देश में 500 मिलियन तक भैंसे और मवेशी हो गए. जो की दुनिया में सबसे ज्यादा हैं.
  • डेयरी कोपरेटिव मूवमेंट देश के सभी हिस्सों में हुआ जिसका फायदा 22 राज्यों के 180 जिलों के 125000 गांवों को मिला. यह मूवमेंट अपने विकसित उपलब्धियों और राज्यों और जिलों के सपोर्टिव सिस्टम के कारण बहुत सफल रहा,

नीचे दी गयी सारिणी से श्वेत क्रान्ति के पहले से लेकर बाद तक एनुअल ग्रोथ रेट में आये परिवर्तन को समझ सकते हैं.

देश में महत्वपूर्ण पशुधन की एनुअल ग्रोथ रेट(%)  

अवधिदूधअंडेवूल
1950-51 से 1960-19611.644.630.38
1960-61 से 1973-741.157.910.34
1973-1974 से 1980-19814.513.790.77
1980-81 से 1990-915.687.82.32
1990-91 से 2000 -014.214.462.01


1975-76 से लेकर 2001 -02 तक पंचवर्षीय प्लान के हिसाब से एनुअल ग्रोथ रेट

प्लानवर्षदूधअंडेवूल
पांचवा पंचवर्षीय प्लान1975-76 से 1979-802.913.51.49
छठा पंचार्शीय प्लान1980-81 से 1984-856.428.42.67
सातवाँ पंच वर्षीय प्लान1985-86 से 1989-904.377.231.88
आठवां पंचवर्षीय प्लान1992-93 से 1996-974.414.580.8
नौवा पंचवर्षीय प्लान1997-98 से 2001-024.134.342.14

स्त्रोत: बेसिक एनिमल बेसिक हजबेंडरी स्टेटिस्टिक्स 2002, डिपार्टमेंट ऑफ़ एनीमल हजबेंडरी एंड डेरिंग, मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर

श्वेत क्रांति की हानियाँ (Disadvantages of White Revolution )

श्वेत क्रान्ति की सफलता को देखकर समझा जा सकता हैं कि इसकी हानियाँ बहुत कम थी, लेकिन हाँ कुछ मुश्किलें थी, जिनका सामना दुग्ध उत्पादकों और किसानों करना पड़ा था. जैसे विदेशी नस्ल के जानवर दूध तो ज्यादा देते,  लेकिन उनका यहाँ की परिस्थिति में सर्वाइव करना मुश्किल था. इस कारण उनका भोजन और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी आम ग्रामीणों और प्राइवेट सेक्टर की छोटी कम्पनियों पर  आर्थिक बोझ बढ़ जाता था. इस दौरान प्राप्त किये जाने वाले दूध में सभी पोषक तत्व नहीं होते थे,जिससे स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड सकता था.

आज जानवरों की ब्रीडिंग में 3 महत्वपूर्ण क्षेत्र है आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन एंड क्वांटीटेटिव जेनेटिक टेक्निक,एम्ब्रियो ट्रान्सफर और एम्ब्रियो माइक्रो मेनिप्युलेशन टेक्निक एंड बायोटेक्नोलॉजी एंड जेनेटिक इन्जिनीरिंग, जो कि निश्चित रूप से श्वेत क्रांति की ही देन हैं. आज लगभग 22 राज्यों में 12 मिलियन किसान के पास लगभग 250 डेयरी  प्लांट्स हैं,जिससे लगभग 20 मिलियन लीटर दूध का उत्पादन प्रति दिन किया जाता हैं.1955 में हमारे यहाँ लगभग 500 टन बटर प्रति वर्ष आयात किया जाता था,आज देश में कोऑपरेटिव सेक्टर से ही 1200 टन बटर बनाया जाता  हैं. हम 1955 मे जहाँ 3000 टन बेबी फ़ूड इम्पोर्ट करते थे,वही अब हमारे यहाँ 38000 टन बेबी फ़ूड बनाया जाता हैं. वास्तव में दुग्ध क्रांति के कारण ही 1975 तक सभी दूध और दूध से बने उत्पाद का आयात बंद हो गया था,जो कि उस समय की बड़ी सफलता थी,तो आज की स्थिति से तो इस क्रांति की सफलता से मिले फायदे का अंदाजा लगाया जा सकता हैं.

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अंकिता दीपावली की डिजाईन, डेवलपमेंट और आर्टिकल के सर्च इंजन की विशेषग्य है| ये इस साईट की एडमिन है| इनको वेबसाइट ऑप्टिमाइज़ और कभी कभी आर्टिकल लिखना पसंद है|

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