भारत में हरित क्रांति का अर्थ क्या है, भारतीय अर्थव्यवस्था पर हरित क्रांति के प्रभाव, लाभ, समस्या (Green Revolution in India impact, importance, benefits in hindi)
शुरुआत से ही भारत की अधिकतर जनसंख्या या कह सकते है, लगभग 80 प्रतिशत जनता अपने जीवन निर्वाह के लिए केवल कृषि पर निर्भर करती थी, परंतु फिर भी भारतीय जनसंख्या के निर्वाह के लिए अनाज को बाहर से आयात करना पड़ता था. भारतीय स्वतंत्रता के बाद जब हिंदुस्तान की कार्यप्रणाली अपनी गति से चलने लगी तो भारतीय कृषि और खाद्यान की समस्या पर ध्यान दिया गया. भारतीय खाद्यान की समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए हरित क्रांति का सूत्रपाद किया गया.
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई (When green revolution started in India)
हमारे देश में हरित क्रांति की शुरुआत सन 1966-67 में हुई और भारत में इसे लाने का श्रेय एम एस स्वामीनाथन को जाता है. हरित क्रांति के फलस्वरूप भारतीय कृषि प्रणाली और सिंचित किए जाने वाले बीजों की गुणवत्ता में कई परिवर्तन किए गए, जिससे अचानक से कृषि उत्पादन में बहुत सुधार हुए. हरित क्रांति के फलस्वरूप मुख्य रूप से खेती में तकनीकी सुधार किए गए, जिसका मूल उद्देश्य केवल और केवल कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना था. खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य से 60 के दशक में भारत में हरितक्रांति का आगाज किया गया और इसके परिणाम भी सकारात्मक थे, जिससे कृषि उत्पादन में काफी कम समय में काफी अधिक वृद्धि देखने के लिए मिली.
हरित क्रांति के घटक (Components Of Green Revolutions) –
हरित क्रांति में जो नई कृषि रणनीति अपनाई गई उसके घटक निम्न है-
- अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग (Use of High-Yeilding Variety (HYV) Seeds) – हरित क्रांति में मुख्य रूप से अधिक उपज देने वाले विशेष प्रकार के बीजों का प्रयोग किया गया था. इन बीजों की मुख्य विशेषता यह थी, कि यह कम समय में परिपक्व हो जाते है. अब तक इस प्रकार के बीजों का प्रयोग गेंहू, बाजरा, धान और मक्का जैसी फसलों पर किया गया, परंतु गेंहू एक ऐसी फसल है, जिसमें इसके द्वारा सबसे अधिक सफलता प्राप्त की गई.
- कृषि उत्पादन में उर्वरक, खाद और रसायन का प्रयोग (Application of Manures and Chemicals in Agriculture Production) – हरित क्रांति के बाद देश में रासायनिक खाद और उर्वरकों का प्रयोग खेती को उन्नत बनाने के लिए किया जाने लगा. रसायनों के प्रयोग से फसलों के खराब हो जाने से होने वाले नुकसान से बचना संभव हुआ. शुरुआत में जहां प्रति हेक्टेयर केवल 2 किलोग्राम रसायन का छिड़काव किया जाता था, वह आज के समय में कई गुना बढ़ चुका है, जो कि हानिकारक है. परंतु खेती में उर्वरक, खाद और रसायन के प्रयोग खेती और उत्पादन को उन्नत बनाते चले गए.
- कई फसलों का उत्पादन (Multiple Cropping Patterns) – हरित क्रांति के फल्स्वरूप प्रयोग किए जाने वाले बीज जल्दी परिपक्व हो जाते थे, जिससे एक खेत में एक साल में एक से अधिक फसल लेना संभव हुआ. इससे कुल उत्पादन में वृद्धि आई.
- खेती में तकनीकों का प्रयोग (Mechanisation of farming ) – अब से खेती में नवीन मशीनों जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर पंप आदि का प्रयोग किया जाने लगा. इस तरह से खेती का स्तर बढ़ा और कम समय में अधिक भूमि पर उत्पादन करना संभव हुआ.
- बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाएं (Better Infrastructure facilities) – हरित क्रांति के फलस्वरूप खेती के लिए बेहतर परिवहन, सिंचाई और भंडारण की सुविधाओं का प्रयोग होने लगा. गांवो में बेहतर विद्युत सुविधाएं देने का भी प्रयास इसी दौरान शुरू किया गया.
- मूल्य प्रोत्साहन (Price Incentives) – विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान भी इसी समय शुरू किया गया. इसी कदम के फल्स्वरूप किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलना संभव हो सका. किसानों को दिये जाने वाले इस मूल्य प्रोत्साहन से वे नई कृषि तकनीको को अपनाने में सक्षम बने.
- बेहतर वित्तीय सहायता (Better Financial Assistance) – किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया. इसके लिए विभिन्न कमर्शियल बैंक, कोऑप्रेटिव बैंक और नेशनल बैंको के माध्यम से किसानों को क्रेडिट सुविधाएं दी जाने लगी, बेहतर वित्तीय सुविधाओं के चलते किसान खेती में बेहतर तकनिकों का प्रयोग करने लगें.
- सिंचाई की सुविधाओ का विकास (Better Irrigation Facility) – कृषि क्षेत्र में नवीनतम विकास निधि के अंतर्गत बेहतर सिंचाई सुविधाओं का विकास किया गया. इसके फलस्वरूप देश में लगातार सिंचाई सुविधाओं के साथ साथ कुल सिंचित भूमि में भी बढ़ोतरी होने लगी, फलस्वरूप उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई.
- कृषि सेवा केन्द्रो की स्थापना की गई (Establishment of Agriculture Service Centers) – किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए और उनकी हर समस्या का तुरंत निदान करने के लिए कृषि सेवा केन्द्रो की स्थापना की गई. इसका एक अन्य उद्देश्य किसानों में व्यवसायिक साहस को विकसित करना भी था. इस उद्देश्य के लिए पहले किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया और फिर उन्हे बैंको से वित्तीय सहायता देकर इस तरह के सेंटर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन दिया गया. अब तक देश में स्थित कुल कृषि सेवा केन्द्रो की संख्या 1 हजार से उपर है.
- कृषि उद्योग निगम की स्थापना (Establishment of Agro Industry Corporation) – भारत में कुल 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगम सेंटर स्थापित है. इन केन्द्रो का मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती के लिए विभिन्न कृषि उपकरणों और मशीनरी की पूर्ति करना और कृषि उपज के भंडारण को प्रोत्साहन देना है. अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन सेंटरो से कृषि के विभिन्न उपकरणों जैसे ट्रेक्टर, पंपसेट और अन्य को किसानों के लिए किराए पर उपलब्ध कराया जाता है, जिससे हर किसान इनका उपयोग कर सके और अपनी खेती को उन्नत बना सके.
हरित क्रांति के प्रभाव और लाभ (Impact or benefits Of Green Revolution) – हरित क्रांति के फलस्वरूप भारत में कृषि के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास संभव हुए. कृषि में फसलों के उत्पादन में वृद्धि के चलते देश में कृषि क्षेत्र से बड़े और सकारात्मक परिवर्तन देखने के लिए मिले. खेती के आधुनिक तरीको को अपनाया गया, जिससे फसलों की गुणवत्ता में भी परिवर्तन देखने के लिए मिले. देश में हरितक्रांति के फलस्वरूप हुए प्रभाव निम्न है –
- कृषि उत्पादन में वृद्धि (Increase In Agriculture Production) – भारत में हरित क्रांति के चलते खाद्यानों के उत्पादन में असीमित वृद्धि हुई जिससे खाद्यानों के आयात की जरूरत समाप्त हो गई और देश खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना. साल 1966 तक भारत खाद्यान के क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा आयात करने वाला देश था और 80 के दशक के अंत में और 90 के दशक की शुरुआत में बाढ़, सूखा और मानसून संबंधित अन्य बाधाओ के बाद भी देश में कोई खाद्यान आयात नहीं किया गया और यही हरित क्रांति की सबसे बड़ी सफलता थी.
- उत्पादकता में सुधार (Improvement in Productivity) – कृषि क्षेत्र में सुधार के चलते उत्पादन में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुए. हरित क्रांति के पहले उत्पादकता बहुत कम हुआ करती थी. शुरुआत में गेंहू और चावल की फसलों पर विशेष ध्यान दिया गया और इसमें उत्पादकता में वृद्धि नोटिस की गई, परंतु बाद में इसे सभी फसलों पर अप्लाई किया गया.
- रोजगार में वृद्धि (Increase In Employment) – हरित क्रांति के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर खेती की जाने लगी, खेतों में नवीनीकरण के चलते विभिन्न टेकनोंलॉजी और मशीनों का प्रयोग होने लगा, इन सबके फलस्वरूप इस क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ्ने लगे. इसी के साथ इसके फलस्वरूप कृषि से संबंधित गैर-कृषि क्षेत्रों जैसे मिलिंग, मार्केटिंग, वेयरहाउसिंग आदि में भी रोजगार के अवसर बढ़ने लगे.
- अनाज की कीमत में स्थिरता (Food Grain Price Stability) – कृषि में नई प्रोद्योगिकी के चलते उत्पादन में असीमित वृद्धि नोटिस की गई, जिसके चलते अनाज की कीमतों में स्थिरता आई .
- उद्योगों के साथ संबंध स्थापना (Linkages With Industry) – कृषि द्वारा तैयार माल को उद्योगों में कच्चे माल की तरह उपयोग में लिया जाने लगा और इस तरह एक इनपुट के रूप में कृषि संसाधनो का उपयोग उद्योगों में संभव हुआ. इसके अलावा कृषि में उन्नत तकनिकों का प्रयोग किया जाने लगा, इससे इसमें उद्योगों द्वारा निर्मित संसाधनों की मांग बढ्ने लगी.
हरित क्रांति में होने वाली समस्याएं (Problems With Green Revolutions) – नई कृषि तकनिकों के चलते उत्पादकता में वृद्धि तो हुई, इसी के साथ किसानों की आय में भी अच्छा खासा परिवर्तन देखने के लिए मिला. इसके चलते ग्रामीण एरिया में गरीबी के स्तर में अच्छा खासा परिवर्तन आय. हरित क्रांति के फलस्वरूप आय में तो वृद्धि हुई ही, परंतु इससे पारस्परिक और क्षेत्रीय असमानता भी बड़ी और इसके चलते आसमान संपत्ति का वितरण भी देखने के लिए मिला. हरित क्रांति से कई लाभ तो हुए, परंतु इसके चलते कई समस्याओं का भी जन्म हुआ जो कि निम्न है–
- ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत असमानताओ का जन्म –
हरित क्रांति के चलते गांवो में गरीबो और अमीरों के बीच का अंतर बढ़ने लगा, जिसके निम्न कारण थे–
- बड़े किसान जिनके पास सिंचाई, जल, उर्वरक और बीज की अच्छी उपलब्धता थी और जो ऋण की सुविधाओं का आसानी से लाभ ले सकते थे, उन्होने नई तकनिकों को जल्दी और बिना किसी दिक्कत के प्रयोग में लिया. अगर हम इसे अन्य अर्थो में समझने की कोशिश करे, तो जटिल कृषि की तकनीक और उसमें लगने वाली धनराशि के कारण हरित क्रांति का फायदा केवल बड़े किसान ले पाये. इस तरह छोटे किसान बड़े किसानों से पिछड़ते चले गए, क्योंकि वे अब भी कृषि के परंपरागत और पुराने तरिकों का प्रयोग कर रहें थे. और फिर बड़े किसान जो पहले से ही बेहतर हालात में थे, उनके पास हरित क्रांति के चलते और अधिक धन आता गया और गरीब और अमीर के बीच का अंतर और अधिक बढ़ता चला गया.
- हरित क्रांति के फलस्वरूप खेतों में लगने वाली लागत बढ़ गई और उत्पाद का मूल्य अपेक्षाकृत कम हो गया. इसके चलते जमीन के मालिक मजदूरो को खेतों से बेदखल करने लगे और गरीबो के पास आजीविका का कोई साधन नहीं रह गया और उनकी हालत और अधिक खराब होते गई.
- कृषि में मशीनीकरण के चलते अकुशल श्रीमिकों के लिए रोजगार के अवसर खतम होते चले गए, जिससे उनकी हालत खराब हो गई और गरीब और अधिक गरीब होते चले गए.
- क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि – हरित क्रांति मुखी रूप से सिंचित भूमि और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो में फैली. ऐसे गाँव जहां पर्याप्त पानी की सुविधा नहीं थी, वहाँ हरित क्रांति को स्वीकार नहीं किया गया. इस प्रकार से ऐसे क्षेत्र जहां हरित क्रांति को अपनाया गया और जहां इसे नहीं अपनाया गया, उसके बीच का अंतर बढ़ता चला गया. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य
थे, जहां हरित क्रांति का प्रभाव तेजी से देखने के लिए मिला, जबकि अन्य राज्य पिछड़ते चले गए. - पर्यावरण को नुकसान – उर्वरको और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से प्रदूषण का स्तर बढ्ने लगा, जल प्रदूषण के चलते जलीय जीवों और जंगली जानवरो के जीवन पर प्रभाव पड़ा. इसके चलते मिट्टी का साल में अधिक से अधिक उपयोग किया जाने लगा जिससे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट होने लगे, बड़े पैमाने पर सिंचाई की तकनिकों के चलते मिट्टी का क्षरण होना प्रारंभ हो गया. अत्यधिक उपयोग के चलते भूमिगत जल का स्तर कम होने लगा. किसान कुछ विशेष फसलों पर निर्भर होते चले गए जिससे जैव विविधता को भी नुकसान हुआ. इन सब समस्याओं का मुख्य कारण उर्वरको और रसायनिक पदार्थो के प्रयोग को लेकर किसानों को कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई थी न ही उन्हे इसका किसी तरह का कोई ज्ञान था.
- यह तकनीक केवल और केवल कुछ फसलों तक सीमित थी – उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग पर आधारित यह कृषि की नई तकनीक केवल कुछ विशेष फसलों जैसे गेंहू, मक्का और बाजरा तक सीमित थी, अन्य भारतीय प्रमुख फसल धान के लिए भी इसे बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया. अन्य प्रमुख फसलों जैसे तिलहन, जुट आदि के लिए इसकी प्रगति बहुत ही धीरे थी. इसके कारण लोगो ने इन फसलों के उत्पादन को कम कर दिया और गेंहू, मक्का और बाजरा का उत्पादन अधिक होने लगा. 1960 के दौर में भारत में कृषि उत्पादन की क्षमता बहुत ही कम थी जिसके चलते भारत में बाहर से अनाज का आयात करना पड़ा. यही कारण था कि भारत में हरित क्रांति को तुरंत प्रयोग में लाया गया परंतु जल्दबाज़ी में यह केवल कुछ प्रमुख फसलों के लिए प्रयोग में लाई जा सकी, परंतु इससे संपूर्ण कृषि फसलों का उत्पादन अप्रभावित रहा. इसके लिए यह आवश्यक था कि हरित क्रांति को सभी फसलों पर लागू किया जाए.
भारत में हरित क्रांति के जनक (Father Of Green Revolution) – एम एस स्वामीनाथन वह व्यक्ति है, जिन्हे भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है. यह मुख्य रूप से पौधे के जेनेटिक वैज्ञानिक है. इन्होने मैक्सिको के बीजों को पंजाब के घरेलू किस्म के बीजों के साथ मिश्रित किया और गेंहू कि फसल के लिए उच्च उत्पादन क्षमता वाले बीज निर्मित किए. ये वह व्यक्ति है, जिन्हे इनके कार्यो के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.
इस तरह से हम कह सकते है, कि हरित क्रांति भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जिसके चलते भारत को खाद्यान के क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त हुई. इसमें देश में उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तकनिकों का प्रयोग किया गया. इसके चलते ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ने लगे और अनाज के भरपूर उत्पादन के कारण गरीबों को अनाज कम कीमतों पर मिलने लगा. हालाँकि जो लोग इस तकनीक को अपनाने में विफल हो गए, वे पिछड़ भी गए ,इस प्रकार से इसके कई दुष्परिणाम भी हुये, परंतु अगर हम इस संपूर्ण प्रक्रिया पर गौर करे, तो इससे देश का विकास ही हुआ है.
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