क्या होती है जौहर, साका और इसका इतिहास | What was Jauhar, Saka Pratha history and why it started in hindi
जौहर क्या है और इसके शुरू होने का कारण? (What was Jauhar Pratha and why it started)
जौहर का जिक्र अधिकतर हिन्दू राजपूतों के गौरवशाली इतिहास में मिलता है. जौहर राजपूत रानिओं एवं राजपूत घरानो की महिलाओं द्वारा दुश्मनों से आत्मरक्षा एवं स्वाभिमान के लिए की जाने वाली प्रथा है, इसका उल्लेख अधिकतर राजस्थान के राजपूतों की शौर्य गाथाओं में मिलता है. इस प्रथा में राज परिवार की महिलाएं दुल्हन की तरह सज कर एक साथ अपने आप को आग के हवाले कर देती थी. इतना ही नहीं कुछ लोगो का मानना है की इसमें बच्चे भी शामिल होते थे. जौहर से होने वाली पीड़ा से बचने के लिए महिलायें श्लोक एवं अपनी कुलदेवी के नाम का उच्चारण करते हुए आग में कूदती थी, जिससे इनके दर्द से निकलने वाली ये आवाजें “जय भवानी ” जैसे नारों में दब जाती थी. कौशिक रॉय के अनुसार इस प्रथा को सिर्फ मुस्लिम राजाओं के आक्रमण के समय किया गया था. जबकि हिंदू राजाओं के मध्य युध्य के दौरान इसका कोई इतिहास नहीं है. इसका उल्लेख अधिकतर दिल्ली सल्तनत के इस्लामिक इतिहासकारों की किताबो में मिलता है.
साका क्या है? (What is Saka)
साका, जौहर होने के एक दिन बाद किया जाता था. साका एक राजपूत योद्धाओं द्वारा मृत्यु से निडर होकर दुश्मनों के खिलाफ युद्ध करते हुए अपने राष्ट्र के लिए बलिदान होने की प्रथा है. कहा जाता है राजपूत जब तक जिन्दा रहते थे, दुश्मनों को अधिक से अधिक नुकसान एवं मौत के घाट उतारने के लिए साका करते थे. इस प्रथा में साका करने वाले सभी योद्धा अपने सिर पर केशरिया रंग की पगड़ी पहनकर मैदान में उतरते थे, जो भारतीय संस्कृति में बलिदान का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि इसमें कुछ महिलाएं भी शामिल होती थी, जो युद्ध करने में सक्षम होती थी. यह किसी भी दुश्मन को बहुत डराने वाला मंजर होता था, क्योंकि इसको करने वाले योद्धा को मौत का डर बिलकुल भी नहीं होता था, और वो उस समय बहुत ज्यादा खतरनाक एवं शक्तिशाली योद्धा साबित होता था.
जौहर एवं साका करने के कारण (Difference between Jauhar Pratha and Saka in hindi)
- दोनों प्रथाएं एक साथ जुड़ी हुई है, इतिहास विशेषज्ञों के अनुसार जौहर एवं साका दुश्मनों का मनोबल कम करने एवं उनके उद्देश्य को नाकाम बनाने के लिए किया जाता था. मुस्लिम शासकों के आक्रमण दौरान हिन्दू राजाओं के राज्य में आने वाला खाने पीने का सामान किले के अंदर नहीं जाने दिया जाता था. जिससे राजा किले का दरवाजा खोलने पर विवश हो जाते थे, जब युद्ध में दुश्मन से हारना लगभग तय हो जाता था, उसी समय जौहर और साका करने का निर्णय लिया जाता था.
- जौहर करने से पहले राजपूत महिलायें अपने पतियों को युद्ध में दुश्मन का सर्वनाश करने के लिए प्रोत्साहित करती थी. यह अधिकतर मध्य रात्रि के दौरान किया जाता था, जिससे दुश्मन को पता चल जाये कि कल साका होने वाला है. जिसको किसी भी दुश्मनों के लिए सहन करना बहुत भयानक होता था, क्योंकि साका करने वाले योद्धा को किसी चीज से मोह या डर नहीं होता था. जिससे दुश्मन के इरादे कमजोर हो जाते थे और राजपूत योद्धा निर्भीक होकर अधिक से अधिक दुश्मनों को मौत के घाट उतारने के बाद ही वीरगति को प्राप्त होते थे.
- इतना नहीं जौहर में महिलायें राज्य की धन संपत्ति एवं खुद को जलाकर राख कर लेती थी, जिससे आक्रमण करने वालो को ना तो शोषण करने के लिए महिलायें बचती थी और ना ही लूटने के लिए धन दौलत. सीधे तौर पर हारकर भी जीतने वाली इस रणनीति को जौहर और साका नाम दिया गया. जो कि भारतीय राजपूतों के अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान एवं वीरता की निशानी है.
- मुस्लिम शासको द्वारा किले को एकदम चारों तरफ से बंद करने के कारण राजपूत योद्धा कमजोर होने लगते थे, क्योंकि खाने का सामान पहुँच ही नहीं पाता था. इसलिए जौहर और साका सबसे अच्छी रणनीति माना जाता था. इससे दुश्मन के अंदर भी खौफ बन जाता था, और जीतने पर कुछ भी नहीं मिल पाता था.
सती प्रथा एवं जौहर में अंतर (Difference between Sati Pratha and Jauhar)
- जौहर और सती प्रथा सिर्फ बाहर से देखने में एक जैसे लगती है, क्योंकि दोनों में ही महिलायें दुल्हन की तरह सज कर खुद को आग के हवाले करती थी. लेकिन इन दोनों के उद्देश्य में बहुत फर्क है.
- जहाँ सती प्रथा में महिलाएं अपने पति के मरने के बाद अपने पति के साथ आग में बैठती थी, वहीँ दूसरी तरफ जौहर में महिलायें पति के जिन्दा रहते ही आग में कूद जाती थी.
- सती प्रथा समाज के द्वारा बनाई गयी कुप्रथा थी, जिसमे कई बार जबरदस्ती महिलाओं को आग में डाल दिया जाता था, लेकिन जौहर में महिलाएं अपनी खुद की मर्जी से आग में कूदती थी.
- सती प्रथा में एक महिला खुद ही अपने पति के प्रेम या सामाजिक दबाव में अपने आप को आग के हवाले करती थी, जबकि जौहर का मुख्य उद्देश्य अपनी गरिमा एवं स्वाभिमान और मातृभूमि के लिए बलिदान देना होता था.
- सती एवं जौहर प्रथा, दोनों में ही दूसरे मर्दो के हाथों से अपनी इज्ज़त सुरक्षित करने का उद्देश्य मिलता जुलता है, हालांकि जौहर में दुश्मनों के हाथ आने से अच्छा राजपूत महिलाएं खुद को जलाना बेहतर मानती थी, जबकि सती प्रथा सामाजिक डर ही सबसे बड़ा कारण था.
- सती प्रथा में एक बार में एक ही महिला आग में कुर्बानी देती थी, जबकि जौहर में एक साथ राजपूत रानियां एवं महिलाएं आग के कुंड में कूदती थी.
जौहर एवं साका का इतिहास (Jauhar Pratha and Saka history)
अलेक्जेंडर के समय में (336 से 323 ईसा पूर्व)
भारत में सबसे पहले जौहर अलेक्जेंडर दी ग्रेट के समय 336 और 323 इसा पूर्व के बीच में किया गया था. इसका उल्लेख ‘द अनाबैसिस ऑफ अलेक्जेंडर’ नामक छठवीं किताब में मिलता है, किताब के अनुसार अलेक्जेंडर ने भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया था. जहाँ पर अगालसुसी नामक जनजाति निवास करती थी. अगालसुसी जनजाति के करीब बीस हजार महिलाओं और बच्चों ने अलेक्जेंडर की सेना की क्रूरता से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया था.
सिंध का जौहर (मोहम्मद बिन कासिम सन् 721)
मोहम्मद बिन कासिम ने सन् 712 में सिंध (जो की अब पाकिस्तान में है) में आक्रमण किया था, उस समय वहाँ राजा दाहिर का शासन था. कासिम ने 4 बार आक्रमण किया, जिसके चलते वह चौथी बार में सफल हुआ. राजा के मरने के बाद वहां की रानी एवं महिलाओं ने कई महीनों तक युद्ध किया, लेकिन अंत में बिन कासिम के अत्याचार एवं जबरन धर्म परिवर्तन से बचने के लिए जौहर किया.
रणथम्भौर का जौहर
रणथंभौर किले के जौहर से जुड़ी जानकारी दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी अमीर खुसरो द्वारा फारसी भाषा में लिखी गई एक किताब में मिलती है. 1301 में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर किले पर हमला कर दिया था, राजा हम्मीर देव बहुत प्रभावशाली एवं बहादुर राजा थे, उन्होंने खिलजी की सेना को लौटने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन अलाउद्दीन ने झूठी मित्रता वाले प्रस्ताव और छल कपट से उस किले के राजा हम्मीरदेव को हरा दिया, उसके बाद उनके मंत्री ने जौहर एवं साका करने की सलाह दी और उनकी पत्नी, बेटियों और अन्य रिश्तेदारों ने जौहर किया.
चित्तौड़गढ़ का पहला जौहर
चित्तौड़ का पहला जौहर रानी पद्मावती के द्वारा अपने राज्य की महिलाओं के साथ किया गया था. रानी पद्मिनी के द्वारा यह जौहर सन् 1303 में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन के आक्रमण के समय किया गया था, उस समय चित्तोड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह थे. खिलजी ने धोखा दिया और किले पर आक्रमण कर दिया, सेना के हारने के आसार को देखते हुए राजपूत रानी पद्मिनी ने जौहर किया था. इसका जिक्र मालिक मुहम्मद जायसी की बहुचर्चित रचना “पद्मावत” में ही मिलता है, जो कि लगभग 200 वर्ष बाद लिखी गयी थी.
उत्तरी कर्नाटक के कंपिली राज्य में जौहर
दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की सेनाओं द्वारा सन् 1327 में कम्पिली राज्य में किए गए हमले में हिन्दू सेना की हार हुई. जिसके फलस्वरूप उत्तरी कर्नाटक के कंपिली राज्य की हिंदू महिलाओं ने अत्याचार और दुर्व्यवहार से बचने के लिए भारी संख्या में जौहर किया था.
खानवा के युद्ध में मध्य प्रदेश में जौहर
सन् 1528 में मुगल साम्राज्य के पहले शासक बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा के युद्ध में मध्य प्रदेश में चंदेरी के शासक मदीनी राव ने राणा की मदद की थी. राणा सांगा की हार के बाद बाबर की सेना ने राव के राज्य पर हमला किया, जिसमें उनकी हार हुई, बाबर की सेना क्रूरता से रक्षा करने के लिए महिलाओं और बच्चों ने जौहर किया. जिसके बाद यहां के राजपूतों ने केशरिया रंग की पगड़ी पहनकर बाबर की सेना को भारी नुकसान पहुंचाया और इसको साका कहा गया. बाबर का इतिहास जानने के लिए पढ़े.
रानी कर्णावती द्वारा जौहर
राणा सांगा की पत्नी कर्णा ने मेवाड़ और चित्तौड़गढ़ का राज्य सन् 1528 में अपने पति की मृत्यु के बाद राज्य संभाला. गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह द्वारा चित्तोड़ पर आक्रमण किया गया, महारानी ने मदद के लिए हुमायूँ को राखी भेजी. लेकिन जब तक हुमायूँ मदद करने के चित्तोड़ पहुँचा, तब तक बहादुर शाह किले को तहस नहस कर चुका था, और रानी कर्णावती 13000 हिन्दू महिलाओं के साथ जौहर कर चुकीं थी.
अकबर के आक्रमण के दौरान चित्तोड़गढ़ का तीसरा जौहर
मुगल सम्राट अकबर के समय चित्तौड़गढ़ में राजपूत महिलाओं द्वारा तीसरा जौहर हुआ था. अकबर की सेना ने सितंबर 1568 में चित्तौड़ के किले को घेर कर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की. जिसके बाद हिंदू महिलाओं ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर का सहारा लिया, जिसके बाद राजपूत सैनिको द्वारा साका किया गया, डेविड स्मिथ के अनुसार अकबर को लगभग एक साल बाद किले में प्रवेश करने का मौका मिला था. चित्तोड़गढ़ में अकबर को बस राख ही मिली थी.
हुमायुँ के समय जौहर
हुमायूँ के समय में तीन जौहर हुए, पहला रानी चंदेरी के द्वारा 1528 में, दूसरा सन् 1532 में रानी दुर्गावती एवं 700 महिलाओं द्वारा एवं तीसरा रत्नावली के द्वारा 1543 किया गया था. इनके बाद साका भी किया गया था, सभी जौहर अत्याचार से बचने एवं आत्मसम्मान बनाये रखने के लिए किये गए. इसके बाद प्रथा के अनुसार साका करते हुए राजपूत वीरों ने मातृभूमि को अपने खून से रंगा, और शत्रुओं को अपना दमखम दिखाया था.
औरंगजेब के दौरान बुंदेलखंड में जौहर
औरंगजेब के आक्रमण के दौरान बुंदेलखंड में दिसंबर सन् 1634 में जौहर किया गया था, जो कि औरंगजेब के द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराने के विरोध में किया गया. इतिहास के अनुसार औरंगजेब सबसे क्रूर मुग़ल शासक था. यह इतिहास में वर्णित अंतिम जौहर है.
निष्कर्ष
यह एक बहुत बड़े बलिदान एवं बहादुरी को साबित करने वाली प्रथा थी, जो आज भी राजस्थान में लोकगीतों एवं गाथाओं में सुनने को मिलती है, एवं राजपूतों की वीरता का सच्चा एवं बेजोड़ उदाहरण है, “जौहर एवं साका”
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