लोकपाल बिल क्या है, भारत के पहले लोकपाल कौन हैं (What is Lokpal Bill, Who is The First Lokpal of India in Hindi)
भ्रष्टाचार एक ऐसी अपराधिक गतिविधि है, जोकि दीमक की तरह हैं और देश को खोखला करती जा रही है. इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सरकार द्वारा एवं अन्य ईमानदार लोगों द्वारा कई सारे तरीके अपनाये जाते रहे हैं. उन्हीं में से एक लोकपाल बिल हैं. जिसे कुछ साल पहले पास किया गया है, और इस साल मार्च महीने में पहले लोकपाल की घोषणा भी की गई है. लोकपाल बिल क्या है और इसकी पूरी जानकारी जानने के लिए हमारे इस लेख में नजर डालें.
लोकपाल बिल पर निबंध
लोकपाल बिल क्या है ? (What is Lokpal Bill ?)
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भारत में कोई ऐसी जाँच एजेंसी नहीं हैं, जो सरकार से ऊपर हो, जैसे कि सीबीआई गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है, आयकर विभाग वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है और आईबी पीएमओ के तहत आता है. इस तरह से भारत में जितनी भी जाँच एजेंसी हैं, वे किसी ना किसी मंत्रालय के तहत आती ही है ऐसे में कोई भी एजेंसी अपने ऊपर के विभाग की जाँच नहीं कर सकती है. इसलिए हमेशा एक ऐसी एजेंसी बनाने की मांग की जा रही थी, जो सरकार और मंत्रालयों दोनों से ऊपर हो. अतः भ्रष्टाचार से निपटने के लिए ऐसी अवधारणा बनाई गई, जो सभी सरकारी विभागों से भी ऊपर हो. और इसे ही लोकपाल बिल कहा गया.
लोकपाल बिल का इतिहास (History of Lokpal Bill)
भारत में लोकपाल शब्द की उत्पत्ति स्वर्गीय कांग्रेस राजनेता श्री लक्ष्मण सिंघवी जी द्वारा सन 1963 में की गई थी. किन्तु यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके पहले से ही मौजूद था, जिसे लोग ‘ओम्बड्समैन’ के नाम से जानते हैं. इस कांसेप्ट की शुरुआत सबसे पहले स्वीडन में हुई थी. स्वीडन में सबसे पहले यह आईडिया भ्रष्टाचार से निपटने के लिए निकाला गया था, जोकि वहां की जनता के हित में बनाया गया था. दरअसल उनका मानना था, कि कई बार भ्रष्टाचार में जनता की सेवा करने वाले लोग भी शामिल हो जाते हैं, तब हम इससे निपटने के हर समय न्यायपालिका के पास नहीं जा सकते हैं, इसलिए उन्होंने एक अलग प्राधिकरण को शुरू करने के लिए इसकी उत्पत्ति की. स्वीडन में इसकी उत्पत्ति सन 1809 में की गई थी. फिर एक के बाद एक दुनिया के कई सारे देशों में इसे अलग – अलग नाम से शुरू किया गया. हालाँकि सभी का उद्देश्य एक ही है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना.
भारत में इस कांसेप्ट को लाने का विचार ‘लोकपाल’ के नाम से सन 1963 में आया था. इसके बाद इसके बारे में कई बार बात की गई. सन 1966 में एक प्रशासनिक सुधार आयोग, उस दौरान जिसके प्रमुख मोरारजी देसाई जी थे, उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें लिखा था, कि अगर हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी है और जनता को इससे राहत देनी है, तो भारत में एक लोकपाल कांसेप्ट को लाना आवश्यक है. इस रिपोर्ट में उन्होंने यह भी कहा कि ‘लोकपाल’ केन्द्रीय स्तर के लिए होना चाहिए और राज्य स्तर पर इसके लिए कार्य करने के लिए ‘लोकायुक्ता’ होना चाहिए. किन्तु उस दौरान भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया. इसके बाद सन 1968 में इस बिल को संसद में पेश किया गया था, वहां भी इसे पास नहीं किया गया. फिर तब से लेकर सन 2011 तक 8 बार इस बिल को पास किये जाने के बारे में बात होती रही. किन्तु जनता को इसके बारे में सही से जानकारी नहीं होने की वजह से इसे पास नहीं किया गया और सरकार द्वारा भी अधिक महत्वता नहीं दी गई. सन 2002 में बात उठी, की लोकपाल बिल पास होना चाहिए और इसमें प्रधानमंत्री को इससे दूर रहना चाहिये, क्योंकि उनके ऊपर काफी सारी जिम्मेदारी होती है. सन 2005 में फिर से इसे पेश किये जाने के बारे में बात की गई, किन्तु इस बार भी इस बिल को पास नहीं किया जा सका.
सन 2011 में, सरकार ने प्रणब मुखर्जी जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के एक समूह का गठन किया. उसमे यह चर्चा हुई, कि किस तरह से भ्रष्टाचार से निपटा जा सकता है. और तभी से इस बिल को पास करने के बारे में बेहतर तरीके से चर्चाएँ शुरू हो गई. इसमें भारत के एक समाज सुधारक एवं कार्यकर्ता अन्ना हजारे जी का बहुत बड़ा हाथ था. उन्होंने आन्दोलन कर जन लोकपाल बिल पास करने के लिए भारत की सरकार के ऊपर दबाव डाला.
अन्ना हजारे का ‘जन लोकपाल बिल आन्दोलन’ (Anna Hajare’s Jan Lokpal Bill Movement)
समाज सुधारक एवं कार्यकर्ता अन्ना हजारे जी ने लोकपाल बिल को भारत में पास कराने के लिए सन 2011 में ‘जन लोकपाल बिल आन्दोलन’ शुरू किया. इस आन्दोलन को शुरू करने का अन्ना हजारे जी का भी एक मात्र उद्देश्य था, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए बेहतर तरीके अपनाना और उसे लागू करना. उनका कहना था, कि देश में राजनेताओं और सरकारी सेवकों द्वारा यदि भ्रष्टाचार किया जाता है, तो सरकार की अनुमति के बिना उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की शक्ति किसी एक व्यक्ति के ऊपर होनी चाहिए, जोकि सरकार से भी ऊपर हो. इसके लिए लोकपाल की नियुक्ति आवश्यक हैं और इसके अंडर में निष्पक्ष हो कर सभी जाँच की जायें. इस तरह से इस आन्दोलन के दौरान अन्ना हजारे जी ने देश की जनता को इससे अवगत कराया, कि असल में यह होता क्या है और इससे क्या फायदा है. इससे जनता को इसके बारे में सभी जानकारी प्राप्त हुई. हालाँकि यह किस तरह से काम करता है, यह जानकारी जनता को नहीं दी गई, किन्तु उन्होंने जनता को इस कांसेप्ट को बेहतर तरीके से समझाया. अन्ना हजारे जी द्वारा किये गए आन्दोलन में अन्ना ने दिल्ली के रामलीला मैदान में 3 दिन का अनशन किया था. हालाँकि उन्होंने इस बिल को पास कराने के लिए आमरण अनशन करने की बात की थी, किन्तु उस दौरान इस बिल को पास करने के लिए सरकार द्वारा मंजूरी दे दी गई थी.
इस आन्दोलन में अन्ना हजारे जी के साथ रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश, श्री श्री रविशंकर, मल्लिका साराभई, सुप्रीमकोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश जस्टिस संतोष हेगड़े और आरटीआई कार्यकर्त्ता एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल आदि लोग भी शामिल थे. यह न सिर्फ एक जन लोकपाल बिल आन्दोलन था, बल्कि इसे ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ भी कहा जाता है. इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत के लोगों के सामूहिक क्रोध की अभिव्यक्ति के रूप में वर्णित किया जाता है. इस तरह से अन्ना हजारे जी का इस लोकपाल बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण योगदान रहा था.
लोकपाल कौन होता है और भारत के पहले लोकपाल कौन हैं ? (Who are The Lokpal and Who is The First Lokpal of India ?)
‘लोकपाल’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘लोपाला’ से हुई है, जिसका मतलब होता है ‘लोगों की देखभाल करने वाला’. अतः लोकपाल शब्द से ही पता चलता है, कि यह जनता के हित के लिए होता है. दरअसल लोकपाल एक भ्रष्टाचार – विरोधी प्राधिकरण है, जो भारत के गणतंत्र में जनहित का प्रतिनिधित्व करता है.
भारत में हालही में मार्च 2019 में पहले लोकपाल अध्यक्ष की घोषणा की गई है. भारत के पहले लोकपाल सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष जी है.
लोकपाल एवं उसके सदस्य के लिए पात्रता मापदंड (Eligibility Criteria for Lokpal and Members)
लोकपाल एक बॉडी है, जिसमें एक चेयरपर्सन यानि अध्यक्ष होता है और इसके अलावा इसमें 8 अन्य सदस्य भी होते हैं. लोकपाल अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों के चयन के लिए निम्न पात्रता निर्धारित की गई है –
- लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए यह आवश्यक है लोकपाल या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए या सुप्रीम कोर्ट का पूर्व न्यायाधीश होना चाहिए.
- इसके अलावा उन लोगों को भी लोकपाल का अध्यक्ष बनाया जा सकता है, जो एक निर्दोष, ईमानदार और बेहतरीन योग्यता वाले एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हो. साथ ही उन्हें कुछ विशेष श्रेणियों में न्यूनतम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान और उसमें विशेषज्ञता होनी भी आवश्यक है. वे व्यक्ति लोकपाल के अध्यक्ष बनने के लिए पात्र होंगे. वे कुछ विशेष श्रेणी भ्रष्टाचार – विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, बीमा और बैंकिंग सहित वित्त एवं कानून और प्रबंधन से सम्बंधित हो सकती है.
- लोकपाल के सदस्यों को 2 श्रेणी में बांटा गया है, जिनमें से 50 % न्यायिक सदस्य और 50 % सदस्य एससी / एसटी / ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलायें होती है. लोकपाल के जो न्यायिक सदस्य हैं, वह या तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश या एक हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ही हो सकते हैं. इसके अलावा जो अन्य सदस्य हैं, उनके लिए वहीँ पात्रता मापदंड हैं, जोकि लोकपाल अध्यक्ष के लिए हैं.
- एक लोकपाल की अधिकतम उम्र 70 साल होनी चाहिए, इससे ऊपर के किसी भी उम्मीदवार को लोकपाल के रूप में नियुक्ति नहीं की जा सकती है.
लोकपाल का चयन कैसे किया जाता है ? (How are The Lokpal Selected ?)
लोकपाल का चयन लोकपाल चयन समिति द्वारा किया गया था. इस समिति में 5 लोग होते हैं, और देश के प्रधानमंत्री इसके प्रमुख होते हैं. लोकपाल चयन समिति में शामिल होने वाले 5 लोगों में पहले देश के प्रधानमंत्री होते हैं, दूसरे लोकसभा अध्यक्ष होते हैं, तीसरे भारत के मुख्य न्यायधीश, चौथे विपक्ष के अध्यक्ष और पांचवें एवं अंतिम राष्ट्रपति द्वारा चयनित एक प्रसिद्ध न्यायविद आदि होते हैं. इस समिति द्वारा ही लोकपाल का चयन होता है.
इस साल देश के पहले लोकपाल का चयन किया गया है, जोकि पिनाकी चंद्र घोष जी है. इनका चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जी, मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई जी एवं प्रसिद्ध न्यायविद पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी आदि की एक समिति द्वारा किया गया है. इस समिति में विपक्ष के अध्यक्ष शामिल नहीं थे. क्योंकि समिति में शामिल होने के लिए विपक्षी दल के पास लोकसभा में कम से कम 10 % से अधिक सीटें होनी चाहिए. जोकि इस साल के लोकपाल के चयन के दौरान किसी भी विपक्षी दल के पास नहीं थी. इसलिए इसमें उन्हें शामिल नहीं किया गया था.
भारत में लोकपाल बिल की मंजूरी के बाद लोकपाल की नियुक्ति
लोकपाल बिल को सन 2013 में लोकपाल और लोकायुक्त, दोनों के रूप में संसद के दोनों सदनों में पास कराया गया. इसके बाद सन 2016 में लोकसभा ने लोकपाल अधिनियम में संशोधन करने पर सहमति व्यक्त की और इस बिल की समीक्षा के लिए इसे एक स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा गया. इस बिल के पास होने के 6 साल बाद यदि इस साल 2019 को जाकर भारत में पहला लोकपाल नियुक्त हुआ. नियुक्त किये गए लोकपाल का कार्यकाल आने वाले 5 सालों तक के लिए रहेगा.
इस तरह से भारत में लोकपाल बिल को मंजूरी मिली एवं पहले लोकपाल की नियुक्ति की गई.
लोकपाल बिल की मुख्य विशेषताएं (Lokpal Bill Silent Features)
- भ्रष्टाचार के विरोध में पास किये गए इस बिल में यह बताया गया है, कि केंद्रीय स्तर पर इसके लिए लोकपाल नियुक्त होंगे और राज्य स्तर पर इसके लिए लोकायुक्ता की नियुक्ति होगी.
- राज्य स्तर में राज्यों को इस अधिनियम के शुरूआत में एक साल के अंदर लोकायुक्त का गठन करना होता है.
- लोकपाल द्वारा संदर्भित मामलों में परिक्षण करने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जायेगा.
- लोकपाल प्रधानमंत्री सहित सभी प्रकार के लोक सेवकों को कवर करता है. यदि उन्हें पता लगता है, कि उनके खिलाफ कहीं पर भ्रष्टाचार हो रहा है, तो लोकपाल इसके लिए अपनी जाँच शुरू कर सकते हैं. इसके लिए भले ही अन्य एजेंसी द्वारा जाँच की जा रही हो, फिर भी वे खुद से अपनी तरफ से जाँच शुरू कर सकते है. सशस्त्र बल लोकपाल के दायरे में नहीं आते हैं.
- हालांकि लोकपाल बिल में प्रधानमंत्री जी को कुछ छूट दी गई है. दरअसल जब प्रधानमंत्री के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगता है, तो लोकपाल कार्यवाही कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए लोकपाल के अन्य 8 सदस्यों की सहमति भी होना आवश्यक होती है. इसमें एक चीज यह भी है, कि कुछ चीजों में लोकपाल प्रधानमंत्री जी को इसमें शामिल नहीं कर सकते हैं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से जुड़े मामलों में, आंतरिक या बाहरी सुरक्षा, पब्लिक ऑर्डर, एटॉमिक एनर्जी और स्पेस आदि में. इन सभी मामलों में प्रधानमंत्री जी को छूट दी गई है. इससे यह समझ आता है, कि हालही में राफेल हेलीकॉप्टर का मुद्दा सामने आ रहा हैं, तो इस मामलें की जाँच करने की शक्ति लोकपाल के पास नहीं होगी.
- इसके अलावा यदि लोकपाल या लोकायुक्त के किसी अधिकारी के खिलाफ किसी भी शिकायत की जाँच आती है और वह आरोप सही पाया जाता है, तो अधिकारी 2 महीने के अंदर बर्खास्त कर दिया जाएगा.
- लोकपाल बिल में यह अनिवार्य किया गया है, कि जो भी लोक सेवक होंगे, उन्हें अपने पूरे परिवार, जमीन – जायदाद और उनकी देनदारियों की घोषणा पहले से करनी होगी.
- इस अधिनियम में यह भी सुनिश्चित किया गया है, कि सार्वजिनक कर्मचारी जो विस्सल ब्लोअर के रूप में कार्य करते हैं, वे इसमें सुरक्षित हैं. यानि यदि कोई नागरिक का सरकारी काम या अन्य इस तरह का कोई काम निर्धारित समय में नहीं किया जाता है, तो वह लोकपाल से इसकी शिकायत कर सकता है. जिससे किसी भी सरकारी कार्यालय में लोकपाल दोषी अधिकारीयों पर वित्तीय जुर्माना लगा सकते हैं और शिकायत करने वाले को यह मुआवजें के रूप में प्रदान कर सकते हैं. साथ ही उनकी सुरक्षा का पूरा दामोदार भी लोकपाल अपने सिर लेते हैं. इस तरह से इसके लिए एक अलग विस्सल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम पारित किया गया है.
- यदि लोकपाल की उनके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है या वे अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं, तो उनके स्थान पर लोकपाल के सबसे वरिष्ठ सदस्य को अगले लोकपाल की नियुक्ति तक पदभार संभालने के लिए कहा जाता है. इसके अलावा यदि लोकपाल किसी कार्य के चलते उपस्थित नहीं होते हैं, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी जगह भी लोकपाल के सबसे वरिष्ठ सदस्य को दी जाती है.
लोकपाल की शक्तियाँ क्या है ? (What are The Powers of The Lokpal ?)
- लोकपाल के पास केंद्र सरकार पर उनके सार्वजनिक अधिकारीयों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने और उससे जुड़े मामलों से निपटने का अधिकार होता है.
- लोकपाल के पास सीबीआई सहित किसी भी जाँच एजेंसी का अधिकार होता है. यदि सीबीआई ने किसी भ्रष्टाचार के आरोपी की जाँच की है और यदि उसमें कुछ गडबड लगती है, तो लोकपाल उस एजेंसी द्वारा की गई जाँच की भी जाँच कर सकता है. साथ ही लोकपाल की अनुमति के बिना वह कहीं और स्थानांतरित नहीं हो सकते हैं.
- भ्रष्टाचार के खिलाफ मामले में जाँच के लिए 6 महीने की अवधि तय की गई हैं. 6 महीने के अंदर जाँच एवं परिक्षण पूरा किया जायेगा, ताकि कोई भी भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी या न्यायधीश को जल्द से जल्द जेल भेज दिया जाये. हालांकि लोकपाल या लोकायुक्त एक बार में 6 महीने के एक्स्टेंशन की अनुमति दे सकते हैं. लेकिन इस तरह के एक्सटेंशन की जरुरत के लिए लिखित आवेदन देना होगा.
- लोकपाल के पास यह भी शक्ति होती हैं, कि यदि उनके पास कोई गलत शिकायत आती है, जोकि पूरी तरह से बेबुनियाद हैं, तो लोकपाल शिकायत करने वाले व्यक्ति या संगठन पर 2 लाख रूपये तक का जुर्माना भी लगा सकते हैं.
- इस अधिनियम के तहत यदि किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है और प्रॉसिक्यूशन पेंडिंग है, तो उस व्यक्ति की संपत्ति को जब्त भी किया जा सकता है.
इस तरह से लोकपाल के पास यह सारी शक्तियां होती है. जिसका उपयोग वे भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दों से निपटने के लिए करते हैं.
लोकपाल का वेतन (Lokpal’s Salary)
लोकपाल एवं उसके सदस्यों को वेतन ‘कंसोलिडेटेड फण्ड ऑफ़ इंडिया’ के माध्यम से दिया जाता है. चूकी लोकपाल या उसके सदस्य भारत के मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ही होते हैं, इसलिए उनकी पेंशन निर्धारित होती है. तो जब वे लोकपाल के रूप में नियुक्त होते हैं, तो उनके वेतन से उनकी पेंशन की राशि काट ली जाएगी. और बाकी बचे वेतन को उन्हें प्रदान कर दिया जायेगा.
इस तरह से भारत में भी अब भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए लोकपाल जैसी एजेंसी का निर्माण कर दिया गया हैं. अब हमारे देश में यह किस तरह से काम करता हैं और कौन – कौन से घोटालें सामने आते हैं यह देखना दिलचस्प होगा.
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इतने महत्वपूर्ण विषय को आसान शब्दों में समझने के लिए आपका बहुत बहुत आभार…🙏🙂
बहुत ही अच्छा लेख है । धन्यवाद आदरणीय कर्णिका जी। मै समाजिक व राजनितिक विषयों पर एक किताब लिख रहा हूँ जिसमे यह काफी लाभदायक रहा ।