उर्स क्या होता है?, (उर्स मेला कब है?, डेट 2024 ) , Urs meaning in Hindi
ताज महल, जो कि विश्व धरोहरों में से एक है, में मुगल सम्राट शाहजहां की स्मृति में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले ‘उर्स’ के कार्यक्रम पर इस बार विवाद का मामला उठा है। ‘उर्स’ क्या है, इसे समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि यह एक वार्षिक धार्मिक कार्यक्रम है जो शाहजहां के सम्मान में ताज महल में मनाया जाता है। हाल ही में, एक हिंदू संगठन ने इस आयोजन को चुनौती देते हुए आगरा सिविल कोर्ट में इसके आयोजन पर रोक लगाने की मांग की है। इस संगठन का कहना है कि उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जानकारी मांगी थी कि क्या इस आयोजन के लिए किसी भी सरकारी एजेंसी से अनुमति प्राप्त की गई थी या नहीं। जवाब में, एएसआई ने सूचित किया कि ऐसी कोई अनुमति दी गई नहीं है, जिसके बाद इस संगठन ने इस प्रथा को चुनौती देने के लिए कोर्ट का रुख किया है।
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उर्स क्या होता है? What is Urs?
दक्षिण एशिया में ‘उर्स’ शब्द का अर्थ है एक विशेष प्रकार का उत्सव जो आमतौर पर किसी सूफी संत की पुण्यतिथि पर उनकी दरगाह में मनाया जाता है। यह उत्सव उस संत के जीवन और उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं को सम्मानित करने का एक तरीका है। ‘उर्स’ शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘शादी’ से लिया गया है, जो संत के अल्लाह से मिलने की आध्यात्मिक अवस्था को दर्शाता है। इस दौरान, विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिसमें हम्द, नाट और कव्वाली जैसे संगीत कार्यक्रम शामिल होते हैं। यह उत्सव न केवल एक धार्मिक अवसर है बल्कि सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक विरासत को भी प्रदर्शित करता है, जिसमें दरगाह के आसपास मेले और बाज़ार लगते हैं।
उर्स कैसे मनाया जाता है ? How is Urs celebrated?
इस प्रकार के उत्सव मुख्य रूप से चिश्तिया सूफी संतों की दरगाहों में मनाए जाते हैं, जिन्हें अल्लाह के प्रेमी के रूप में माना जाता है। इन उत्सवों में शामिल रस्मों को दरगाह के संरक्षक या उस सिलसिले के मौजूदा शेख द्वारा निभाया जाता है। उर्स के समारोहों में संगीत और काव्य का गहरा महत्व है, जहां कव्वाली और काफ़ी जैसी संगीत शैलियाँ लोगों को आध्यात्मिक भावनाओं से जोड़ती हैं। ये उत्सव न केवल धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करते हैं बल्कि सांस्कृतिक एकता और समृद्धि का भी प्रतीक हैं।
विशेष रूप से, अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाले उर्स में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं, जो इसकी व्यापक लोकप्रियता और महत्व को दर्शाता है। इस प्रकार, ‘उर्स’ दक्षिण एशिया में सूफीवाद के प्रसार और इसके आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
उर्स क्यों मनाया जाता है Why is Urs celebrated?
‘उर्स’ मनाए जाने के पीछे कई आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं। मुख्यतः, यह उत्सव सूफी संतों की पुण्यतिथि पर उनकी दरगाह में मनाया जाता है, जो उनके द्वारा दिखाई गई आध्यात्मिक राह और सिखावों को सम्मानित करने का एक तरीका है। ‘उर्स’ अरबी शब्द से आया है, जिसका मतलब है ‘शादी’। इसके माध्यम से, भक्त इस विचार को व्यक्त करते हैं कि संत की मृत्यु उनके और परमेश्वर के मिलन का समय है।
उर्स कैसे मनाया जाता है How is Urs celebrated?
उर्स के आयोजन में धार्मिक अनुष्ठान, जैसे कि फातिहा पढ़ना, कुरान की तिलावत, और दरगाह पर चादर चढ़ाना, साथ ही संगीतमय कार्यक्रम जैसे कव्वाली और नात शामिल होते हैं, जो संत की शिक्षाओं और उनके जीवन के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसके अलावा, ‘उर्स’ सामाजिक समरसता और एकता को बढ़ावा देने का भी एक माध्यम है, जहां विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग एक साथ आते हैं और आपसी सौहार्द और भाईचारे का परिचय देते हैं।
उर्स कितने दिन चलता है? How many days is Urs celebrated?
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की याद में आयोजित उर्स उत्सव छह दिनों तक चलता है, वहीं अन्य सभी दरगाहों में यह उत्सव केवल एक या दो दिन के लिए ही संपन्न होता है।
अजमेर उर्स Ajmer Urs
दक्षिण एशिया में ‘उर्स’ को सूफ़ी संतों की पुण्यतिथि पर उनकी दरगाह पर मनाए जाने वाले एक वार्षिक उत्सव के रूप में जाना जाता है। इसे विशेष रूप से चिश्तिया सम्प्रदाय के संतों के लिए मनाया जाता है, जिन्हें परमेश्वर के प्रेमी माना जाता है। ‘उर्स’ को ‘विसाल’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है प्रेमियों का मिलाप।
अजमेर शहर की दरगाह में मनाए जाने वाले ‘अजमेर उर्स’ की विश्वभर में प्रसिद्धि है, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता और विश्वशांति का प्रतीक है। यहां आपसी भाईचारे की भावना सबसे मजबूत नजर आती है। दरगाह में चढ़ाए जाने वाले फूल पुष्कर से आते हैं, और पुष्कर में चढ़ाई जाने वाली पूजा सामग्री दरगाह बाज़ार से जाती है, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक बेहतरीन मिसाल प्रस्तुत करती है।
अजमेर की यह दरगाह कौमी एकता का प्रतीक मानी जाती है। यहां हर साल लाखों यात्री आते हैं, और उर्स के दौरान यह स्थान और भी जीवंत हो उठता है। उर्स के आगाज़ में ‘जन्नती दरवाज़ा’ खोला जाता है, जिससे गुजरना हर जायरीन की ख्वाहिश होती है। यह दरवाज़ा ख़्वाजा ग़रीब नवाज के दर से भाईचारे का संदेश प्रसारित करता है, जहां हर धर्म और समुदाय के लोग अपनी अकीदत लेकर पहुंचते हैं। उर्स के दिनोंमें जायरीन के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो।
2024 में अजमेर शरीफ का उर्स कब है? When is Urs of Ajmer Sharif in 2024?
2024 में अजमेर शरीफ का उर्स 18 जनवरी को, जो कि जुमेरात (गुरुवार) के दिन पड़ेगा, मनाया जाएगा। यह तारीख इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 6 रजब को आती है।
ताजमहल में उर्स के आयोजन के खिलाफ याचिका Petition against organizing Urs in Taj Mahal
याचिका में हिंदू महासभा के संभागीय अध्यक्ष मीना दिवाकर और जिला अध्यक्ष सौरभ शर्मा ने आरोप लगाया है कि जब ऐतिहासिक स्मारकों के अंदर किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं है, तो ताज महल में ‘उर्स’ का आयोजन अवैध है। वे ताज महल परिसर के सर्वेक्षण की मांग कर रहे हैं, जैसा कि काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि मामलों में किया गया था।
इसके विपरीत, ‘उर्स’ आयोजन समिति के अध्यक्ष सैयद इब्राहिम जैदी का कहना है कि एएसआई हर साल इस आयोजन के लिए अनुमति देता है और इस वर्ष भी अनुमति दी गई है। उन्होंने बताया कि ‘उर्स’ की व्यवस्था पर चर्चा के लिए हाल ही में एएसआई कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गई थी। जैदी ने यह भी बताया कि ताज महल में शाहजहां का ‘उर्स’ सदियों से मनाया जा रहा है, और इसे अवैध बताना गलत है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार और उसके बाद भारतीय सरकार ने भी ‘उर्स’ के आयोजन के लिए हमेशा अनुमति दी है। हाजी ताहिर उद्दीन ताहिर, खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के अध्यक्ष, ने कहा कि ‘उर्स’ के दौरान शाहजहां की कब्र पर 1,507 मीटर लंबी ‘चादर’ चढ़ाई जाएगी और इस अवसर पर ताज महल में प्रवेश निःशुल्क होगा।
FAQ –
उत्तर: उर्स एक इस्लामिक उत्सव है जो सूफी संतों की पुण्यतिथि पर उनकी दरगाह में मनाया जाता है। यह उनके जीवन, शिक्षाओं और आध्यात्मिक विचारों को याद करने का अवसर होता है।
उत्तर: उर्स के दौरान धार्मिक अनुष्ठान, जैसे फातिहा पढ़ना, कुरान की तिलावत, दरगाह पर चादर चढ़ाना, साथ ही कव्वाली और नात जैसे संगीतमय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
उत्तर: ‘चादर चढ़ाना’ उर्स में एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें श्रद्धालु संत की मजार पर चादर चढ़ाकर अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करते हैं। यह कृत्य आशीर्वाद और संतों के प्रति भक्ति की भावना को दर्शाता है।
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