Places of worship act 1991 – क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991? कानून उल्लंघन पर क्या मिलेगी सजा ?

प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 (क्या है,मुख्य धराए, आलोचना, क्यों बनाया गया, पेनाल्टी/सजा) What is the Places of Worship Act 1991 in Hindi?(main points, criticism, why was it made, penalty/punishment, latest news) kya hai Places of Worship Act 1991

 प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट साल 1991 मे नरसिम्हा राव की सरकार के टाइम बनाया गया था। राम मंदिर विवाद हो या ज्ञान व्यापी मुद्दा इस एक्ट की चर्चा बहुत होती है। परंतु अभी हाल ही मे यह चर्चा मे इसलिए आया है राज्यसभा सांसद हरनाथ सिह यादव ने प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट को बंद करने की मांग की है वही कुछ नेताओ का कहना है की इसका पालन किया जाना चाहिए। आज अपने इस आर्टिक्ल मे हम इस एक्ट को पूरी तरह से समझेंगे।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991? कानून उल्लंघन पर क्या मेलेगी सजा ?
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991? कानून उल्लंघन पर क्या मेलेगी सजा ?

Places of Worship Act 1991 in Hindi

विशेषताविवरण
एक्ट केए नाम  प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट1991
लागू होने का वर्ष1991
पेनल्टीअधिकतम तीन साल की सजा और जुर्माना
अपवादप्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक, पुरातात्विक स्थल और अवशेष जो 1958 के अधिनियम द्वारा संरक्षित हैं
प्रधानमंत्री के कार्यकाल में लागूपीवी नरसिम्हा राव

 प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है? (What is the Places of Worship Act 1991?)

1991 में लागू प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (पूजा स्थल अधिनियम) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 15 अगस्त, 1947 को जैसी स्थिति में सभी धार्मिक स्थल थे, वैसी ही उनकी स्थिति बनी रहे। इसमें मस्जिदें, मंदिर, चर्च और अन्य सभी प्रकार के सार्वजनिक उपासना स्थल शामिल हैं, जो अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा के अनुसार अपरिवर्तित बने रहेंगे। इस अधिनियम के तहत, न तो किसी अदालत और न ही सरकार इन धार्मिक स्थलों की पहचान या चरित्र में कोई बदलाव कर सकती है।

संसद ने यह भी स्पष्ट किया था कि इतिहास की गलतियों को वर्तमान या भविष्य में सुधारने की कोशिश नहीं की जा सकती। इस अधिनियम की महत्वपूर्णता 2019 के अयोध्या फैसले के दौरान भी सामने आई, जब सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने इसकी प्रासंगिकता और महत्व की पुष्टि की।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की मुख्य धाराए (Main sections of Places of Worship Act 1991)

  • रूपांतरण का निषेध (धारा 3): यह किसी भी धार्मिक स्थल के रूपांतरण को, चाहे वह पूर्ण रूप से हो या आंशिक, एक धार्मिक समुदाय से दूसरे में या उसी समुदाय के भीतर रोकता है।
  • धार्मिक चरित्र का रख-रखाव (धारा 4(1)): यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक स्थल का धार्मिक पहचान 15 अगस्त, 1947 को जैसी थी, वैसी ही बनी रहे।
  • लंबित मामलों का निपटान (धारा 4(2)): यह घोषित करता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले के धार्मिक स्थलों के रूपांतरण से संबंधित कोई भी विधिक प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी और कोई नया मामला शुरू नहीं किया जा सकेगा।
  • अपवाद (धारा 5): यह अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों पर लागू नहीं होता है जो कि प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित हैं।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की आलोचना (Criticism of the Places of Worship Act 1991)

  • न्यायिक समीक्षा पर प्रतिबंध: आलोचकों का कहना है कि यह अधिनियम संविधान के मूल तत्वों में से एक, न्यायिक समीक्षा को रोकता है।
  • मनमानी पूर्वव्यापी कटऑफ तारीख: इस अधिनियम को 1947 की स्वतंत्रता दिवस की तारीख का उपयोग करके धार्मिक स्थलों की स्थिति निर्धारित करने के लिए मनमाना माना जाता है।
  • धर्म के अधिकार का उल्लंघन: आलोचकों का दावा है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनों, बौद्धों, और सिखों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन: विरोधियों का कहना है कि यह अधिनियम संविधान के मूल तत्व, धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रति सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक स्थल अधिनियम को भारतीय संविधान के मूलभूत तत्व, धर्मनिरपेक्षता की प्रतिबद्धता को बनाए रखने के लिए एक विधायी हस्तक्षेप के रूप में देखा है।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्यों बनाया गया था? (Why was the Places of Worship Act 1991 enacted?)

1991 में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की शुरुआत उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार द्वारा की गई थी, जब राम मंदिर आंदोलन अपने उच्चतम बिंदु पर था। इस दौरान, लालकृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रथ यात्रा, उनकी बिहार में गिरफ्तारी, और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर हुई गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव को काफी बढ़ा दिया था।

इस कानून को संसद में पेश करते समय, तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चव्हाण ने स्पष्ट किया था कि धार्मिक स्थलों के रूपांतरण को लेकर समय-समय पर उभरने वाले विवादों और सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने वाली गतिविधियों के मद्देनजर इस तरह के उपायों का लागू करना जरूरी था। हालांकि, उस समय के मुख्य विपक्षी दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया था।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991के तहत पेनल्टी/सजा का प्रावधान

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के अनुसार, इस कानून की शर्तों का उल्लंघन करने पर समान रूप से कठोर दंड का प्रावधान है। इस एक्ट के अंतर्गत, जो कोई भी इसके प्रावधानों का उल्लंघन करता है, उसे अधिकतम तीन साल तक की सजा और साथ ही जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार, यह एक्ट धार्मिक स्थलों की संरक्षित स्थिति को बनाए रखने और उनके चरित्र में अनधिकृत परिवर्तन को रोकने के लिए सख्त दंडात्मक उपाय प्रदान करता है।

धार्मिक स्थल अधिनियम की आलोचनाओं और कमियों को संबोधित करने के लिए इसकी गहन समीक्षा आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना चाहिए किअधिनियम न्यायिक समीक्षा को सीमित न करे और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का सम्मान करते हुए धार्मिक चरित्र को संरक्षित करने में संतुलन बनाए रखे।

FAQ –

प्रश्न 1: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट कब लागू हुआ था?

उत्तर: 1991 में।

प्रश्न 2: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: यह एक्ट 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति को जमींदोज करने और उनके धार्मिक चरित्र के रूपांतरण को रोकने के लिए बनाया गया था

प्रश्न 3: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के अंतर्गत पेनल्टी क्या है?

उत्तर: इस एक्ट का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

प्रश्न 4: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत किन स्थलों पर यह लागू नहीं होता?

उत्तर: यह एक्ट प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों पर लागू नहीं होता जो कि प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित हैं।

प्रश्न 5: किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू किया गया था?

उत्तर: पीवी नरसिम्हा राव।

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