एसटी एसी एक्ट| SC ST Act In Hindi

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम (एसटी एसी एक्ट) – Scheduled Castes And Scheduled Tribes [Prevention Of Atrocities] SC/ST Act In Hindi

एससी / एसटी अधिनियम सन 1989 में लागू किया गया था. इसके तहत निम्न जाति के लोगों पर उच्च जाति के लोगों द्वारा अत्याचार करने पर उन्हें बिना किसी चेतावनी के जेल में डाल दिया जाता था और उसके बाद उन पर सुनवाई होती थी. इस अधिनियम से उच्च जाति के लोग काफी नाराज थे, किन्तु यह अधिनियम काफी पुराना है जिससे उनकी आवाज को दबा दिया गया था.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम

हालही में सुप्रीमकोर्ट ने इस अधिनियम पर सवाल उठाते हुए कहा, कि इस पर सुनवाई होनी चाहिए. बिना किसी सुनवाई के सजा सुनाना गलत है, और उन्होंने इस कानून को अमान्य कर दिया. इससे एससी / एसटी यानि निम्न जाति के लोग अपने अधिकार जाने के डर से परेशान हो गये. इसके चलते नरेंद्र मोदी सरकार ने एक नियम लागू करने का फैसला लिया, जिसकी अवधि केवल 6 माह की ही है, क्योकि इसके लिए अब तक कोई बिल पास नहीं हुआ है. इस नियम के तहत यह कहा गया, कि एससी / एसटी अधिनियम 1989 में कोई बदलाव नहीं किया जायेगा और इसे पुराने नियमानुसार ही लागू रहने दिया जायेगा. इससे सुप्रीमकोर्ट की बात अमान्य कर दी गई. इस नियम के लागू होने से उच्च जाति के लोग बीजेपी सरकार से काफी नाराज हो गए हैं. इससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है.

दरअसल भारत में बीजेपी की पार्टी का जन्म उच्च जाति के लोगों के कारण ही हुआ है. वे उनके प्रमुख वोटर हैं. हालही में बीजेपी सरकार ने निम्न जाति से वोट पाने के लिए इस नियम को शुरू किया. इससे उच्च जाति के लोगों का नाराज होना स्वाभाविक है. उच्च जाति के लोगों का कहना है कि ‘सरकार को सुप्रीम कोर्ट की बात माननी चाहिए, और नियम में बदलाव करने चाहिए’. इसलिए वे इसके लिए प्रदर्शन भी कर रहे हैं. इस बिल को उस समय कांग्रेस सरकार द्वारा पास किया गया था और अब बीजेपी के इस नियम के लागू करने के कारण उच्च जाति के लोगों ने आने वाले लोक सभा चुनाव में किसी भी पार्टी को समर्थन देने से इनकार कर दिया है और मतदान चिन्ह नोटा को वोट देने का फैसला किया है. चूकि उच्च जाति के लोग बीजेपी के मुख्य वोटर हैं, तो इससे चुनाव में बीजेपी को काफी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.

कुछ साल पहले तीन तलाक पर शाह बानो केस में मुस्लिम वोटर को खुश करने के लिए कांग्रेस ने सुप्रीमकोर्ट के फैसले को वापस कर दिया था, जिससे हिन्दू उनसे नाराज हो गये थे. उस समय इसका फायदा बीजेपी पार्टी ने उठाया और उन्होंने कांग्रेस को मुस्लिमों का साथ देने वाली हिन्दू विरोधी पार्टी कहा, जिससे बीजेपी को हिन्दुओं के वोट मिले और उन्हें सत्ता में आने का मौका मिला. उस समय कांग्रेस हिन्दूओं और मुस्लिमों के बीच फस गई थी. इसी प्रकार अब बीजेपी भी निम्न जाति और उच्च जाति के लोगों के बीच में फस गई है. बीजेपी अब ऐसी स्थिति में है कि यदि वे इस नियम को जारी रखते हैं तो उनके प्रमुख वोटर उनसे नाराज हो जायेंगे, और यदि वे इस नियम को रद्द कर देते हैं तो इससे निम्न जाति के लोग उनसे नाराज होंगे. इसका पूरा असर आने वाले चुनाव में बीजेपी पर पड़ेगा. इस तरह से यह अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है.

वहीं आज हम आपको बताने जा रहे है कि आखिर क्या है SC/ST एक्ट क्या है और क्या फैसला सुनाया था कोर्ट ने इस एक्ट पर, जिसके चलते इस जाति से ताल्लुक रखने वाले लोगों को ये कदम उठाना पड़ा.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम  1989 क्या कहता है, (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Act, 1989 Details)

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 को बनाने का सबसे बड़ा मकसद इस जाति से नाता रखने वाले लोगों को सम्मान अधिकार देने था और इन लोगों के साथ होने वाले अन्याय को रोका था. वहीं नीचे हमने इस एक्ट के बनने से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रखी हैं.

  • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम को हमारे देश की छोटी जाति के लोगों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. ये एक्ट साल 1989 में हमारे देश की संसद ने पास हुआ था.
  • ये एक्ट साल 1995 में हमारे देश के हर हिस्से में लागू हो गया था. लेकिन इस एक्ट के दायरे में जम्मू-कश्मीर राज्य को नहीं रखा गया था.
  • इस एक्ट के लागू होते ही उन लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करने का कानून बन गया था, जो कि छोटी जाति के लोगों के साथ उत्पीड़न किया करते थे.
  • इस एक्ट से छोटी जाति के लोगों को सरकार द्वारा एक तरह की सुरक्षा दी जाती है, कि उन लोगों के साथ देश में किसी भी तरह का कोई भेदभाव और उत्पीड़न नहीं किया जाएगा.
  • ये एक्ट अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक नहीं रखने वाले हर व्यक्ति पर लागू होता है. यानी आप अगर किसी और जाति के हैं, तो आप इस एक्ट के दायरे में आते हैं.
  • इस एक्ट की धारा 14 के तहत विशेष अदालतों का भी प्रावधान है और इस वक्त हमारे देश के कई राज्यों के जिलों में ऐसी अदालतों को बनाया भी गया है, जो कि इस मामले पर जल्द से जल्द सुनवाई करती हैं.
  • अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज हुए केस की अपराध जांच केवल पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) के पद के अधिकार या फिर इससे ऊंची पोस्ट के अधिकारियों द्वारा ही की जाती है. डीएसपी पद से नीचे के अधिकारी को इस मामले की जांच करने का अधिकार नहीं हैं.
  • इस अधिनियम के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी इस जाति से ताल्लुक रखने वाले लोग पर करता है, तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है. इतना ही नहीं उस व्यक्ति को जमानत भी नहीं दी जाती है.
  • साल 2014 में इस एक्ट में कुछ संशोधन भी किए गए थे और छोटी जाति के लोगों के साथ होने वाले और तरह के अन्य अन्यायों को भी इस एक्ट में जोड़ा गया था.

इस एक्ट के जरिए तुंरत गिरफ्तार करने और जमानत नहीं दिए जानेवाले कानून को लेकर ही हाल ही में कोर्ट ने अपना फैसला दिया था और इस फैसले के कारण ही इस जाति के लोगों ने पूरे देश में हंगामा किया था. कोर्ट ने ये फैसला एक मामले की सुनवाई करते हुए दिया गया था. वहीं जिस केस की सुनवाई के दौरान ये फैसला कोर्ट द्वारा सुनाया गया था, उस मामले की जानकारी नीचे दी गई है

क्या था पूरा मामला

  • साल 2009 में इस समुदाय (छोटी जाति) से नाता रखने वाले एक आदमी ने सुभाष काशीनाथ महाजन नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी.
  • महाजन महाराष्ट्र राज्य के गवर्नमेंट फार्मेसी कॉलेज के बतौर एक प्रभारी की तरह कार्य करते हैं. और इनके खिलाफ शिकायत करवाने वाला ये व्यक्ति भी इस कॉलेज में बतौर स्टोर कीपर की तरह कार्य करता है.
  • महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने वाले इस आदमी ने अपनी शिकायत में कहा था कि उनपर दो सरकारी कार्मचारियों ने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. लेकिन इस मामले में महाजन ने, उन कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने दी.
  • इस शख्स का आरोप है कि दूसरी जाति से नाता रखने वाले इन दो कर्मचारियों ने एक रिपोर्ट में उसके खिलाफ टिप्पणी की थी. जिसके बाद पुलिस ने इस मामले की कार्रवाई करने के लिए वरिष्ठ अधिकारी से मंजूरी मांगी. लेकिन वरिष्ठ अधिकारी यानी महाजन ने पुलिस को इजाजत नहीं दी. जिसके बाद महाजन के खिलाफ भी पुलिस ने एक मामला दर्ज कर लिया.

वहीं महाजन ने अपना बचाव करने के लिए और अपने खिलाफ दर्ज हुई FIR को लेकर अपने राज्य के हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. महाजन की याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उनके खिलाफ हुई FIR को सही बताया था और इस FIR को रद्द करने से मना कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला (Supreme Court’s Verdict on SC/ST Act)

हाईकोर्ट के फैसले को महाजन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वहीं देश के उच्चतम न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट के पास जब ये मामला पहुंचा तो कोर्ट ने इसपर सुनवाई करते हुए, अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट के अनुसार एकदम होने वाली गिरफ्तारी को सही नहीं बताया. कोर्ट के आदेश के मुताबिक इस एक्ट के चलते देश की अन्य जातियों से ताल्लुक रखने वाले लोगों का बोलने का अधिकार कम हो रहा है. इसके अलावा कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए इस एक्ट के अंतर्गत दर्ज होने वाले मामलों पर एंटीसिपेटरी जमानत को भी मंजूरी दे दी थी.

इतना ही नहीं कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए कहा कि इस एक्ट के तहत अगर किसी सरकारी कर्माचारी के खिलाफ कंप्लेंट होती है तो, उस अधिकारी को एकदम से गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और इस आधिकारी को गिरफ्तार करने के लिए अथॉरिटी की मंजूरी लेनी होगी. वहीं अगर किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत की जाती है तो उस व्यक्ति की गिरफ्तारी करने के लिए SSP की मंजूरी जरुरी होगी.

कोर्ट के फैसले के बाद किया भारत बंद (Bharat Bandh on SC/ST ruling)

कोर्ट के इसी आदेश के बाद इस जाति से ताल्लुक रखने वाले लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए देश को बंद कर दिया था. जिसके कारण देश के अलग-अलग हिस्सों को हिसंक प्रदर्शन किए गए थे. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने तो कई घरों में आग भी लगा दी थी.

कोर्ट के फैसले पर सरकार ने दायर की याचिका

केंद्रीय सरकार ने भी कोर्ट के इस फैसले का समर्थन नहीं किया था और कोर्ट के फैसले को लेकर एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इस याचिका के जरिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वो अपने फैसले पर स्टे लगा दे. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले पर किसी भी तरह का स्टे लगाने से इंकार कर दिया था.

कोर्ट ने सरकार की और दायर की गई याचिका पर अपना जवाब देते हुए कहा था कि, कोर्ट ने इस एक्ट में कोई भी बदलाव नहीं किए हैं. बस इस एक्ट का कोई गलत इस्तेमाल ना हो ये सुनिश्चित किया है. इसके साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले पर 10 दिनों के अंदर ओपन कोर्ट में सुनवाई करने के आदेश भी दिए था. 

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