हैदराबाद में नगर निगम के चुनावों में बीजेपी को एक बहुत बड़ी जीत मिली है. यहां आपको बता दें कि बीजेपी ने नगर निगम चुनाव के बारे में यह कहा था कि अगर वह जीत गई तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर कर देगी. अब ऐसे में चुनाव हो चुके हैं और उनका रिजल्ट भी आ गया है. हालांकि बीजेपी को हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बहुमत तो नहीं मिला है लेकिन वहां पर बीजेपी एक बहुत शक्तिशाली पार्टी बनकर सामने आई है. यहां आपको जानकारी दे दें कि हैदराबाद नगर निगम चुनाव में टीआरएस सबसे बड़ी पार्टी रही है जबकि बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनी है. अब ऐसे में विवाद यह चल रहा है कि क्या हैदराबाद का नाम पहले भाग्यनगर था? या फिर उस समय ऐसी कोई महिला थी जिसका नाम भाग्यवती रहा हो और उसका संबंध भाग्यनगर से हो?
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हैदराबाद के नाम का इतिहास
अगर हम इतिहास की बात करें तो हमें हैदराबाद का नाम कई किताबों में भाग्यनगर देखने को मिल जाता है लेकिन उस दौरान उसे हैदराबाद ही कहा जाता था इसके भी पूरे संकेत मिले हैं. तो इसलिए यह निश्चय कर पाना बहुत मुश्किल है कि पहले इसका नाम भाग्यनगर ही था. 1816 में ब्रिटिश नागरिक एरोन एरो स्मिथ ने एक नक्शा बनाया था जिसमें उन्होंने हैदराबाद का नाम मोटे अक्षरों में हैदराबाद ही लिखा था और वही उसके साथ नीचे छोटे अक्षरों में भाग्यनगर नाम भी लिखा हुआ था तथा उसके साथ गोलकुंडा नाम भी शामिल था. इसका मतलब यह है कि उन्होंने जो नक्शा बनाया था उसमें उन्होंने हैदराबाद के लिए 3 नामों का इस्तेमाल किया था- भाग्यनगर, हैदराबाद और गोलकुंडा. तो अब सवाल यह है कि आखिर हैदराबाद के यह 3 नाम क्यों और कैसे रखे गए?
तर्क 1- भाग्यनगर का नाम भाग्यलक्ष्मी मंदिर के नाम पर रखा गया है
यह तर्क ठीक नहीं है क्योंकि बहुत से इतिहासकारों ने इस दलील को सही नहीं माना है क्योंकि इतिहासकारों के अनुसार हैदराबाद में स्थित चार मीनार के पास पहले कोई भी भाग्यलक्ष्मी मंदिर नहीं था. यहां बता दें कि एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह दावा किया है कि भाग्यलक्ष्मी को बने हुए केवल 30-40 साल ही हुए हैं और उससे पहले वहां पर कोई मंदिर बना हुआ नहीं था. वरिष्ठ अधिकारी की इस बात की पुष्टि चार मीनार की पुरानी तस्वीरों को देखने पर भी की जा सकती है. बता दें कि पुरानी तस्वीरों में चार मीनार के पास कोई मंदिर नहीं था. 1994 में प्रकाशित सोरवेनिर में भी चार मीनार की तस्वीरें देखने को मिलती है जिसमें उसके बराबर में कोई भी मंदिर दिखाई नहीं देता है.
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तर्क 2 – हैदराबाद में कई बाग हैं इसलिए बागनगर कहा जाए
यहां आपको बता दें कि हैदराबाद का नाम कभी भी आधिकारिक तौर पर बागनगर नहीं रखा गया था. लेकिन यहां पर यह भी बता दें कि इतिहासकार हारुन खान शेरवानी ने 1968 में पहली बार यह दलील दी थी कि हैदराबाद का नाम पहले बागनगर था और उनकी इस दलील को समझने के लिए जीन बेटिस्टो टेवरनियर के द्वारा लिखी गई किताब को पढ़ना होगा क्योंकि उन्होंने अपनी किताब में यह लिखा है कि गोलकुंडा का एक और अन्य नाम बागनगर भी था. इसके अलावा उन्होंने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि हैदराबाद कुली कुतुब शाह की एक पत्नी की इच्छा के अनुसार बनाया गया था जिनका नाम नगर था. यहां देखा जाए तो टेवरनियर ने बाग के मतलब को तो ठीक से समझा था लेकिन नगर के मतलब को समझने में उनसे गलती हुई. बता दें कि इसका जिक्र वीबल की उस किताब में भी है जो उन्होंने फ्रेंच से अंग्रेजी में अनुवाद की है. उस किताब में उन्होंने लिखा है कि टेवरनियर से नगर का मतलब समझने में चूक हो गई होगी. अब यहां बता दें कि हारून खान ने वह दलीले दी हैं जिसमें उन्होंने टेवरनियर के द्वारा लिखी गई उन दलीलों को ही लिया है जिसमें हैदराबाद के बाग बगीचों के बारे में जिक्र किया हुआ है. लेकिन एक दूसरे इतिहासकार जिनका नाम नरेंद्र लूथर है उन्होंने इस दलील को खारिज किया है.
तर्क 3 – बागों के नाम पर नहीं भाग्यवती के नाम पर शहर
इस दलील को कई इतिहासकार सही मानते हैं. बता दें कि सालार जंग म्यूजियम की तरफ से भी एक शोध आलेख प्रकाशित किया गया था जिसमें इस तर्क को सही माना गया है. 1992-93 में नरेंद्र लूथर की एक किताब on the history of Bhagyamati छपी थी जिसमें उन्होंने इस तर्क में अपनी सहमति जताई है. इसके अलावा इतिहासकार मोहम्मद कासिम फेहरिस्ता ने मुस्लिम शासन के भारत में उत्थान पर एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने यह लिखा है कि सुल्तान को अपनी रखैल भाग्यवती से प्यार हो गया था और इसीलिए उन्होंने शहर को भाग्यनगर का नाम दिया जिसका नाम उन्होंने बाद में फिर हैदराबाद कर दिया था.
वहीं दूसरी और शेख-ए-फैज़ी में यह लिखा हुआ है कि सुल्तान ने शहर का नाम किसी पुरानी डायन के नाम के ऊपर भाग्यनगर रखा था. 1687 में एक पुस्तक छपी थी जिसका नाम the travels into the levant था और उसको एक डच अधिकारी Jean de thevenot ने लिखा था. उस किताब में उन्होंने लिखा है कि सल्तनत की राजधानी भाग्यनगर थी और उसे ईरानी लोगों के द्वारा हैदराबाद कहा जाता था. 17 वीं शताब्दी में डब्ल्यूएम मलिक की एक किताब संपादित हुई थी जिसका नाम relations of Golconda है. उस किताब में यह लिखा हुआ है कि हर साल कुछ वेश्याएं अप्रैल के महीने में भाग्यनगर में जाकर राजा के समक्ष नृत्य किया करती थीं. उस किताब के अंदर फुटनोट में भाग्यनगर का मतलब गोलकुंडा की नई राजधानी हैदराबाद लिखा गया है.
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तर्क 4 – भाग्यनगर फारसी शब्द का अनुवाद है
इसके अलावा एक तर्क यह भी है कि भाग्यनगर को फारसी भाषा का अनुवाद है. यहां जानकारी के लिए बता दें कि 1591 में हैदराबाद को बनाया गया था और 1596 में इसका नाम फरखुंडा बुनियाद रखा गया था और यह एक फारसी शब्द है जिसका मतलब है lucy city और इसका अनुवाद है भाग्यनगर. इसके साथ-साथ बता दें कि कुछ लोगों ने यह दलील भी पेश की थी कि फरखुंदा बुनियाद के लिए संस्कृत शब्द का इस्तेमाल किया गया था और इसी कारण फारसी नाम से संस्कृत तेलुगु में भाग्यनगरम् प्रचलित हो गया.
मोहम्मद कुली और भाग्यमती के प्रेम की कहानी
अब यह सवाल भी आता है कि क्या उस समय कोई भाग्यवती नामक महिला थी. इसको लेकर बहुत ज्यादा कंफ्यूजन है क्योंकि भाग्यवती को लेकर कल्पनाएं और दावे आपस में इतने ज्यादा घुल मिल गए हैं कि उनको अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. बता दें कि भाग्यवती के होने के पर्याप्त सबूत हैं लेकिन उसके वजूद को खारिज करने वाले भी अनेकों दावे उपलब्ध हैं. यहां हम आपको उस कहानी के बारे में बताते हैं जो भाग्यमति को लेकर सबसे ज्यादा फेमस है.
कुतुब शाही वंश के पांचवे राजा जिनका नाम मोहम्मद कुली था उनको एक हिंदू लड़की भाग्यमती से प्यार हो गया था. वह चंचलम नाम के एक गांव की रहने वाली थी और उसके गांव में चार मीनार मौजूद भी है. भाग्यवती से मिलने के लिए मोहम्मद कुली गोलकुंडा से आते थे जिसके लिए उन्हें नदी को पार करना पड़ता था. जब उनके पिता इब्राहिम ने उनकी इन यात्राओं को देखा तो उन्होंने वहां पर मुसी नदी में 1578 में एक पुल बनवाया था. फिर उसके बाद 1580 में मोहम्मद कुली ने भाग्यवती से शादी कर ली थी और फिर उन्होंने भाग्यवती का नाम बदल कर हैदर महल रख दिया था. यहां सबसे अजीब बात यह है कि जिस समय इब्राहिम ने पुल बनवाया था उस समय मोहम्मद कुली सिर्फ 13 साल के थे. इसलिए यह बात सही नहीं लगती कि उस पुल का निर्माण मोहम्मद कुली के लिए किया गया था. तो ऐसा लगता है कि उनके भाग्यमती से प्रेम और पुल निर्माण के बीच में किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है. अगर इतिहासकारों की मानें तो उनके अनुसार पुल का निर्माण गोलकुंडा किले को इब्राहिम पट्टम से जोड़े जाने के लिए किया गया था.
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मोहम्मद कुली और भाग्यमती की प्रेम कहानी के कुछ अनसुलझे सवाल
तो मोहम्मद कुली और भाग्यमती की प्रेम कहानी में कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिनके जवाब कभी मिले ही नहीं जैसे कि क्या भाग्यवती एक नृतका थी? या क्या वह एक साधारण महिला थी? या फिर एक रखैल थी? या देवदासी थी? क्या मोहम्मद कुली ने भाग्यवती के साथ विवाह किया था? या फिर वो दोनों शादी के बगैर एक साथ रहते थे? ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर भाग्यवती थी ही नहीं तो क्या यह केवल एक कल्पना है. अगर सचमुच में थी तो क्या उन्होंने अपना धर्म बदल लिया था? क्या उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करके अपना नाम हैदर महल रखा था? या कुली प्यार से उन्हें हैदर महल कहा करते थे? जब उनकी मृत्यु हुई तो फिर उनकी याद में कोई मकबरा क्यों नहीं बना? यह वह सवाल हैं जिनके जवाब आज तक नहीं मिल सके हैं.
मोहम्मद कुली और भाग्यवती की प्रेम कहानी के गवाह
कुली के एक दरबारी कवि थे जिनका नाम मुल्ला वजही था उन्होंने अपनी लिखी हुई एक किताब कुतुब मुश्तरी में भाग्यवती की प्रेम कहानी के बारे में बताया है जिसके अनुसार राजकुमार कुली ने सपने में भाग्यमती को देखा था और जब उनकी नींद खुली तो वह भाग्यवती की खोज में गए और उसे ढूंढ लिया. इसके अलावा एक अन्य दलील यह भी है कि भाग्यमती ने हैदराबाद बनाने की इच्छा जाहिर की थी और फिर हैदराबाद बनाने के बाद भाग्यवती के नाम पर ही उसका नाम रखा गया. अब सवाल यह उठता है कि यह नया शहर बसाया ही क्यों गया था?
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इब्राहिम पटनम शहर का निर्माण
ऐसा कहा जाता है कि गोलकुंडा का पूरा क्षेत्र बहुत ही अधिक संकीर्ण हो चुका था तो फिर नए शहर का निर्माण बनाए जाने का निर्णय लिया गया था. इसीलिए कुली के पिता इब्राहिम ने इब्राहिम पटनम को बनाया था जो कि गोलकुंडा किले से 30 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम में था और यह शहर आज भी इसी नाम से वहां पर मौजूद है. परंतु दूसरे शहर का निर्माण किसलिए किया गया उसकी कोई भी जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है.
मोहम्मद कुली ने बसाया था एक शहर
बाद में जब मोहम्मद कुली ने सारा राजपाट संभाला तो फिर नए शहर का निर्माण कार्य शुरू किया गया और उन्होंने नए शहर के निर्माण की सारी जिम्मेदारी अपने पेशवा मीर मोमिन को सौंप दी थी. बता दें कि मीर मोमिन ईरानी थे और इस्पान शहर में पले बढ़े थे. इसीलिए मीर मोमिन ने नए शहर को अपने शहर इस्पान के जैसा बनाने के लिए ईरान से कुछ विशेषज्ञों को बुलाया और उनको सारा निर्माण कार्य दे दिया. आज के समय में जिस जगह पर चार मीनार है वहां उसके पास पहले एक चंचलम नामक गांव था जिसके आसपास ही हैदराबाद शहर बना था जो आज पुराना हैदराबाद के नाम से जाना जाता है.
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सिक्कों पर अंकित हैदराबाद का नाम
हैदराबाद के निर्माण के 12 साल बाद यानी 1603 में नए सिक्कों का चलन शुरू हुआ था जिन पर हैदराबाद का नाम साफ साफ शब्दों में अंकित है जिससे यह बात जाहिर होती है कि अगर हैदराबाद का नाम भाग्यनगर होगा भी तो वह केवल बहुत ही थोड़े समय के लिए रहा होगा.
हैदराबाद को लेकर अन्य दलीलें
यहां यह भी बता दें कि हैदराबाद के नाम को लेकर और भी बहुत सी दलीलें हैं –
- कुतुब शाही शिया मुसलमान थे और पैगंबर मोहम्मद के दामाद अली का दूसरा नाम हैदर था जिनके नाम पर शहर का नाम रखा गया था और अधिकतर इतिहासकारों का यही मानना है.
- इसके अलावा एक अन्य दलील यह भी है कि भाग्यमती ने जब इस्लाम धर्म अपनाया तो फिर अपना नाम हैदर महल रख लिया था इसलिए शहर का नाम हैदराबाद रखा गया.
- इसके साथ साथ एक अन्य दलील यह भी है कि हिंदुओं के द्वारा स्कोर भाग्यनगर कहां गया और मुसलमानों ने इसे सदा हैदराबाद के नाम से ही पुकारा.
- नानी शेट्टी शीरीष कहते हैं कि गुलकुंडा के 4 दरवाजे हैं जिनमें से एक फतेह नाम का दरवाजा है और उसे पहले भाग्यनगर कहा जाता था. शीरीष के अनुसार शहर का नाम गुलकुंडा था फिर यह भाग्यनगर बना और उसके बाद इसका नाम हैदराबाद रखा गया.
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लेकिन यहां हम यही कहेंगे कि पहले के समय चाहे इसका कुछ भी नाम रखा हो लेकिन अब इसका नाम बदलना उचित नहीं है. जिस प्रकार दिल्ली का नाम पहले शाहजहानाबाद था लेकिन मौजूदा समय में दिल्ली है और सभी लोग इसे दिल्ली ही कहते हैं. तो भाग्यनगर अगर कुछ समय के लिए जरूर एक नाम रहा होगा लेकिन सारे लोग इसको हैदराबाद के नाम से ही जानते हैं और हैदराबाद की कहते हैं.
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