चाणक्य नीति अनमोल वचन व इतिहास | Chanakya History, Niti, Quotes in Hindi

चाणक्य नीति अनमोल वचन व इतिहास (Chanakya history niti quotes in hindi)

चाणक्य, कौटिल्य या विष्णुगुप्त. ये तीनों एक ही महापुरुष का नाम है. एक ऐसा महापुरुष जिसने सर्वप्रथम अखंड भारत का सपना देखा. एक ऐसा महापुरुष जिसकी बुद्धिमत्ता का लोहा आज भी विश्वभर में माना जाता है. विश्वभर के बड़े से बड़े स्कॉलर व्यवस्था को समझने तथा नियमिय्त करने के लिए आज भी चाणक्य नीति का सहारा लिया जाता हैं. चाणक्य ने ही सर्वप्रथम गणतंत्र की ही जैसी एक विशेष व्यवस्था का अविर्भाव किया. अखंड भारत के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए चाणक्य ने अपनी कूटनीति के सहारे सिकंदर जैसे राजा को हारने पर मजबूर किया. नन्द वंश के अंत के साथ चन्द्रगुप्त मौर्य को पाटलिपुत्र का शासक बनाया और गुप्त वंश की स्थापना की. चाणक्य ने अपनी बुद्धिमत्ता को अपने लिखे कई ग्रंथों में समाहित करके रखा है. चाणक्य ने दो महान ग्रंथों की रचना की जिनके नाम अर्थशास्त्र तथा चाणक्य नीति शास्त्र है. यहाँ पर चाणक्य नीति से उद्दत चाणक्य के विचारों का वर्णन किया जाएगा.

चाणक्य एक महान साहित्यकार, शिक्षक, दर्शनशास्त्री, अर्थशास्त्री व सलाहकार थे. चाणक्य बहुत ज्ञानी और समझदार इन्सान थे, जिन्हें अर्थशास्त्र की अच्छी समझ थी. चाणक्य ने अपनी सूझबूझ व कूटनीति से मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, उन्होंने चन्द्रगुप्त जैसे साधारण से इन्सान को भारत देश के सबसे बड़े साम्राज्य का संस्थापक बना दिया. चाणक्य एक शिक्षक थे जो अर्थशास्त्र, कॉमर्स की शिक्षा दिया करते थे, उन्हें लेखन का भी बहुत शौक था, उनकी प्रसिध्य रचना चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र व नीतिशास्त्र रही. चाणक्य की ज़िन्दगी के बारे में उनकी पुस्तक ‘कौटिल्य’ में सब कुछ लिखा हुआ है, जिसे पढ़ कर हम उन्हें और करीब से जान सकते है. चाणक्य एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, इसके बाबजूद उनमें राजा वाली गुणवत्ता थी. चाणक्य बहुत बड़े देशभक्त थे, देश के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते थे. वे हमेशा देश हित का सोचते थे, इसके लिए उन्होंने कूटनीति भी बनाई थी, इसलिए उन्हें कूटनीतिज्ञ कहा गया.

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आचार्य चाणक्य जीवन परिचय ( Chanakya Jeevan Parichay and history)–

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुचाणक्य जीवन परिचय
1पूरा नामचाणक्य ( कौटिल्य, विष्णु गुप्ता के नाम से भी जाने गए)
2जन्म350 BCE
3जन्म स्थानकोई नहीं जानता फिर भी कुछ मानते है कि उनका जन्म पातलीपुरा के पास हुआ था, जिसे आज पटना कहते है.
4माता-पिताकानेस्वरी, चणक
5मृत्यु275 BCE

चाणक्य का आरंभिक जीवन –

चाणक्य का जन्म 350 BCE में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके जन्म स्थान को लेकर कई तरह के मतभेद है. कुछ लोग का मानना है उनका जन्म पाटलिपुत्र के पास कुसुमपुर में हुआ था, जिसे आज हम पटना के नाम से जानते है. बुद्ध महावंसा टिका के हिसाब से उनका जन्म तकशिला में हुआ था. जैन धर्म के हिसाब से चाणक्य का जन्म उनके पिता के घर दक्षिण भारत में हुआ था. उनके पिता का नाम चणक था, कहते है इसी पर उनका नाम चाणक्य रखा गया. वैसे चाणक्य ब्राह्मण थे जो विष्णु के भक्त थे, लेकिन जैन धर्म के अनुसार उम्र के आखिरी पड़ाव में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के साथ जैन धर्म को अपना लिया था.

चाणक्य के जन्म के दौरान उनके दान्त थे, जो इस बात का संकेत था कि वे एक राजा या सम्राट बनेंगें. लेकिन ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की वजह से इसे अनुचित समझा गया और उनके दांत तोड़ दिए गए. लेकिन ये माना गया कि वे किसी को राजा बनायेंगे और उसके द्वारा राज्य करेंगे. बचपन से ही चाणक्य में नेतृत्व करने की क्षमता थी, उम्र के हिसाब से उन्हें कुछ ज्यादा ही ज्ञान था, जो उनके बराबरी वालों को नहीं था.

चाणक्य के पिता चणक शिक्षा की महत्ता को जानते थे, उस समय पूरी दुनिया में तकशिला शिक्षा का बहुत फेमस केंद्र था. छोटी उम्र से ही चाणक्य ने वेदों का ज्ञान पाना शुरू कर दिया था. वेदों का ज्ञान सबसे कठिन माना जाता था, जिसे चाणक्य ने बचपन में ही पूरा पढ़ लिया था और उसे कंठस्थ भी कर लिया था. चाणक्य को राजनीती के ज्ञान में बहुत रूचि थी, बचपन में ही चाणक्य की राजनीती को लेकर चतुराई व कुशाग्रता देखते ही बनती थी. राजनीती का खेल चाणक्य बचपन से ही सिखने लगे थे, जिसमें कुछ ही समय वे महान ज्ञानी हो गए थे. वे जानते थे कि कैसे अपने सहयोगी को विरोधीयों के पास भेजना चाहिए जिससे, उनकी रुपरेखा का पता चले और विरोधियों को आसानी से नष्ट किया जा सके. चाणक्य परिस्तिथि को अनुरूप करना भलीभांति जानते थे. धर्म व राजनीती का ज्ञान अर्जित करने के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र की ओर अपना ध्यान लगाया जो उनका जीवनभर का साथी बन गया. इससे प्रेरित होकर उन्होंने नीतिशास्त्र की रचना की.

तकशिला विश्वविद्यालय –

शिक्षा के लिए भारत में तकशिला को उस समय सबसे अच्छा केंद्र माना जाता था. वहां के शिक्षक भी बहुत ज्ञानी हुआ करते थे, जो सिर्फ राजकुमारों को ही शिक्षा दिया करते थे. 1 टीचर के पास 101 बच्चे होते थे और वे सारे राजाओं के बेटे हुआ करते थे. तकशिला में गुरु अपने शिष्य को सभी विषयों में ज्ञान दिया करते थे, वे उन्हें प्रैक्टिकल ज्ञान भी देते थे. वहां दाखिला लेने की उम्र 16 साल थी, वहां बहुत से विषयों में ज्ञान दिया जाता था. यहीं पर चाणक्य को कौटिल्य व विष्णु गुप्ता नाम मिला. बचपन से ही चाणक्य चतुर थे जिसे देख तकशिला के गुरु भी हैरान थे. भारतियों के लिए तकशिला एक ज्योति की तरह थी, जो ऊँचे दर्जे का ज्ञान दिया करती थी, जिस पर सभी भारतियों को गर्व था. आज के समय में तकशिला पाकिस्तान के रावलपिंडी में स्थित है. विश्वविद्यालय में एक समय में 10 हजार बच्चे रह सकते थे. यहाँ भारत के अलावा दुसरे देशों से भी लोग आकर पढ़ते थे. चाणक्य ने तकशिला से शिक्षा ग्रहण करने के बाद यहीं पर शिक्षक बन गए.

चाणक्य का पाटलिपुत्र जाना –

चाणक्य जब तकशिला में गुरु थे, तब भी देश के हालात से वे अछूते नहीं थे. लेकिन चाणक्य इतनी क्षमता रखते थे कि देश को चला सकें. उनके शिष्य उन्हें एक आदर्श के रूप में देखते थे , और उन्हें देख वो प्रेरित होते थे. वे चाणक्य का बहुत आदर करते थे, उनके कहने पर कुछ भी कर सकते थे. भाद्रभात्त और पुरुष्दुत्त चाणक्य के पसंदीदा शिष्य थे. चाणक्य के जीवन को बदलने में इन दोनों ने मुख्य भूमिका निभाई थी. चाणक्य के ये जासूस थे जो दुश्मनों की बातें इन्हें बताया करते थे. चाणक्य ने किसी तरह ये भी पता कर लिया था कि अंग्रेज देश में आक्रमण करने वाले है. यूरोप का महान योद्धा सलुकेस अपनी सेना के साथ भारत में आक्रमण की तैयारी में था. ऐसे समय में पाटलिपुत्र के राजा महानंद राज्य कोष में पैसे जमा करने के लिए प्रजा से जबरजस्ती पैसे लूट रहा था. चाणक्य देश के बाहरी व अंदर दोनों दुश्मन को भली भांति जानते थे. दूसरी ओर पड़ोसी देश इस बात का फायदा उठाकर देश में घुसने की तैयारी में थे, व अंग्रेजों को यह समय देश में घुसने के लिए आसान लग रहा था, जिससे उन्होंने अपने कार्य तेज कर दिए. इन सब बातों की चिंता से चाणक्य को रात को नींद नहीं आती थी, वे देश को अंदुरूनी कमजोरी के कारण हारता हुआ नहीं देखना चाहते थे, ना ही एक दास के रूप में देश को देखन चाहते थे. तब उन्होंने निर्णय लिया और कहा ‘अब वक़्त आ गया है कि मैं विश्वविद्यालय छोड़ दूँ, अब देश को मेरी जरूरत है, देश को आर्थिक व राजनीतीज्ञ मजबूती चाहिए. मेरा पहला कर्तव्य है कि मैं अपने देश की सेवा करूँ और उसे बाहरी व अंदुरूनी दोनों ही दुश्मनों से बचाऊं.’

इसके बाद चाणक्य तकशिला से पाटलिपुत्र चले गए, जो भारत व पाटलिपुत्र दोनों के लिए एक बहुत बड़ा नया मोड़ रहा.

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चाणक्य व पाटलिपुत्र –

पाटलिपुत्र जिसे आज पटना कहते है, राजनैतिक व रणनीति की द्रष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण एतिहासिक जगह है. दिल्ली की तरह पाटलिपुत्र को भी विकसित होने के लिए बहुत से उतार चड़ाव का सामना करना पड़ा था. इसका निर्माण शिशुनागवंशी ने किया था. जब चाणक्य पाटलिपुत्र में गए तब उस समय वहां धनानंदा का शासन था, वह बहुत जालिम और बेशर्म किस्म का था, जो जबरजस्ती प्रजा से पैसे लिया करता था. प्रजा उससे बहुत परेशान थी. वह किसी भी बात पर टैक्स लिया करता था, ऐसा करते करते धनानंद ने बहुत सारा पैसा इक्कठा कर लिया था.

चाणक्य पाटलिपुत्र में पहुँच कर वहां की जनता को देख बहुत दुखी हुए, वे अपने पास से गरीबो की मदद किया करते थे. तब राजा भी इस बात से प्रभावित हुआ और चाणक्य को बुलाकर कुछ लोगों की कमिटी भी बना ली थी जिसे सुंघा नाम से जानते थे जो गरीब लाचार की मदद किया करती थी व चाणक्य उसके अध्यक्ष थे. चाणक्य का इस वजह से राजा से मिलना जुलना बढ़ गया, राजा जरा भी व्यव्हार कुशल नहीं था, जिस बात को जान चाणक्य उससे उसी की तरह व्यव्हार करते थे. राजा को यह बात बुरी लगी और उसने किसी को बिना बताये चाणक्य को अध्यक्ष पद से हटा दिया. राजा ने चाणक्य को बहुत बुरा कहकर बाहर निकाल दिया, जिसके बाद चाणक्य ने निर्णय लिया कि वे अपने अपमान का बदला जरुर लेंगे.

चाणक्य का चन्द्रगुप्त से मिलना –

राजा के द्वारा अपमानित होने के बाद चाणक्य पाटलिपुत्र में घूम रहे थे, और आगे की योजना बना रहे थे. तभी एक आदमी आकर मिलता है, और उनके बारे में जानने की कोशिश करता है. तब चाणक्य उस आदमी के बारे में पूछते है तो वो अपना नाम चन्द्रगुप्त मौर्य बताते है. चन्द्रगुप्त उन्हें अपनी परेशानी बताते है, वे बताते है, उनके दादा जी सर्वार्थ सिद्धि थे, उनकी दो पत्नी थी, सुनंदादेवी व मुरादेवी. सुनंदा के 9 बेटे थे, जिन्हें नंदा कहा गया व मुरा के सिर्फ एक बेटा थे जो चन्द्रगुप्त के पिता जी थे. नंदा जलन के चलते उनके पिता को मारना चाहते थे. चन्द्रगुप्त 100 भाई बहन थे, सबको नंदा ने मार डाला बस चन्द्रगुप्त किसी तरह बच के निकले. अब चन्द्रगुप्त नंदा से बदला लेना चाहते है, जो उस समय वहां राज्य कर रहा था. चाणक्य और चन्द्रगुप्त दोनों का एक ही मकसत था, दोनों नंदा का शासन ख़त्म करना चाहते थे. इसलिए दोनों ने हाथ मिला लिया. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त से वादा किया कि वे उसे इस राज्य का राजा बनायेंगें.

चन्द्रगुप्त के अंदर चाणक्य एक शासक के गुणों को देखते थे. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को कई सालों तक शिक्षा भी दी. वे उन्हें राजनीती, लॉ के नियम के बारे में बताते थे. चाणक्य व चन्द्रगुप्त का रिश्ता समय के साथ मजबूत होता गया, गुरु शिष्य का ये रिश्ता पुरे जग में फेमस हुआ. दोनों ने साथ में मिलकर बहुत से दुश्मनों को हराया. चाणक्य का दिमाग व चन्द्रगुप्त की मेहनत ने मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया, दोनों ने मिलकर एक विशाल सेना बनाई. चन्द्रगुप्त दुश्मनों से सामने से लड़ाई करते थे लेकिन उसमें दिमाग चाणक्य का होता था. चन्द्रगुप्त की पहली जीत थी अलेक्सेंडर को हराना. अलेक्सेंडर के पास विशाल सेना थी, जिसे चाणक्य व चन्द्रगुप्त ने अपनी सूझ बूझ से हराया.

राजा नंदा को हराना –

राजा नंदा पर वार करने से पहले चाणक्य ने पूरी रणनीति बनाई. उन्होंने पहले राजा की कमजोरी जानने की कोशिश की, फिर एक रणनीति बनाई. लेकिन एक के बाद एक उनकी रणनीतियां फ़ैल होती गई. फिर उसमें बदलाव करके चाणक्य व चन्द्रगुप्त ने मगध राज्य की सीमा पर धावा बोला, लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद अपनी हार से सीख लेकर चाणक्य व चन्द्रगुप्त ने दुसरे तरीके से सोचना शुरू किया. चाणक्य बहुत चतुर थे, उन्होंने राजा पर्वता से दोस्ती की, जिससे उसकी सेना चाणक्य की मदद के लिए सामने आ गई. राजा नंदा के पास बहुत बड़ी सेना थी, उनके पास बहुत अच्छा सलाहकार अमात्य रक्षसा भी था, जो उन्हें सभी सलाह दिया करता था. चाणक्य अब समझ गए थे कि राजा नंदा को हराने के लिए उसे अमात्या से अलग करना होगा. चाणक्य ने प्लान बनाया और दोनों को अलग कर दिया जिससे राजा नंदा को हार का सामना करना पड़ा, चाणक्य व चन्द्रगुप्त ने उसे व उसके खानदान को मार डाला.

चाणक्य भारत देश के सबसे बड़े मौर्य साम्राज्य के संसथापक थे, उन्होंने चन्द्रगुप्त के बाद उनके बेटे बुन्दुसार के साथ काम किया. इसके बाद बिन्दुसार के बेटे सम्राट अशोका के साथ चाणक्य ने साम्राज्य को और आगे बढ़ाया. अशोका को चाणक्य ने खुद शिक्षा दी और उसे एक महान योद्धा बनाया.

चाणक्य की म्रत्यु ( Chanakya Death )–

चाणक्य ने बहुत सी रचनाएँ लिखी जिसमें चाणक्य नीति व अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण है. अर्थशास्त्र में लिखी गई बातें आज भी लोगों को ज्ञान देती है, जो आज के समय में भी जरुरी है. चाणक्य नीति में उनके द्वारा कहे गए वचन है जो आज भी हमें सही रास्ता दिखाती है. चाणक्य 200 से ज्यादा साल तक जीवित रहे व लम्बी आयु के बाद उनकी मौत 275 BCE में हुई, उनकी मौत को लेकर बहुत सी अवधारणा है. कुछ लोग कहते है सामराज्य से रिटायर होने के बाद चाणक्य जंगल चले गए वही उनकी म्रत्यु हुई. कुछ लोग का मानना है उन्हें बिन्दुसरा के मंत्री सुबंधु ने मारा था. चाणक्य पर बहुत सी फ़िल्में व टीवी सीरियल बने. चाणक्य नीति पर बहुत सी किताबें भी लिखी गई.

हमने उनके द्वारा कहे अनमोल वचनों का हिंदी भावार्थ लिखा हैं ताकि यह हिंदी पाठको के लिए लाभकारी हो .

चाणक्य  नीति और अनमोल वचन  (Chanakya quotes and niti in hindi)

  • मूर्खों को समझाना, चरित्रहीन स्त्रियों की चिंता करना तथा एक निराशावादी इंसान के साथ समय व्यतीत करना बेवकूफी है, क्योंकि मूर्ख ज्ञानवर्धक बातें नहीं समझ पाते, चरित्रहीन स्त्रियाँ हज़ारों पाबंदियों के बाद भी अपने मन की ही करती हैं, तथा एक निराशावादी मनुष्य अपने मित्र को किसी भी मूल्य पर खुश नहीं कर सकता है.
  • जिस घर में एक चरित्रहीन दुष्ट पत्नी, कपटी मित्र तथा कटु भाषी नौकर हो, वह घर सर्प से भरे स्थान से भी अधिक संकटप्रद होता है. ऐसे घर में न रहना ही बेहतर होता है.
  • एक व्यक्ति को अपने संकट भरे समय के लिए धन इकट्ठे कर के रखने चाहिए. यदि कभी उसकी स्त्री किसी संकट में पड़ जाती है तो इस संचित धन का मोह न करते हुए स्त्री को बचाना चाहिए.
  • मनुष्य को ऐसे देश में बिलकुल भी नहीं रहना चाहिए जहाँ पर रोज़गार की सुविधा न हो, आदर न हो, शुभचिंतक न हो तथा अंततः शिक्षा प्राप्त करने के स्त्रोत न हों.
  • मनुष्य को ऐसे स्थान पर कभी नहीं रहना चाहिए जहाँ के लोग वहाँ के क़ानून नहीं मानते, जहाँ के लोगों में लज्जा न हो, जहाँ के लोगों मे दान पुण्य के प्रति आस्था न हो तथा जहाँ पर कला न हो. ऐसे स्थानों में रहना एक निर्जन वन में रहने से भी अधिक खतरनाक होता है.
  • ऐसे स्थान पर मनुष्य को क्षण भर भी नहीं ठहरना चाहिए जहाँ व्यापारी, शिक्षित ब्राम्हण, सैनिक, नदी तथा एक सुशिक्षित वैद्य नहीं हो. क्योंकि व्यापारी से भोजन, ब्राम्हण से ज्ञान, नदी से जल, सैनिक से रक्षा तथा वैद्य से स्वास्थवर्धक औषधि मिल पाती है. जीवन के लिए ये पांच तत्व अतिआवश्यक हैं.
  • मनुष्य को विभिन्न स्वजनों की पहचान विभिन्न समय में होती है. पत्नी की परीक्षा धनाभाव में, मित्र की परीक्षा आवश्यकता के समय में, सगे सम्बंधियों की परीक्षा संकट काल में तथा नौकर की परीक्षा मालिक द्वारा दिये गये अतिआवश्यक कार्य अथवा गुप्त कार्य के समय होती है. ऐसे समय में यदि मनुष्य को इन लोगों की सहायता नहीं मिल पाती तो ये लोग उस मनुष्य के लिए व्यर्थ हैं.
  • संकटकाल में जो व्यक्ति आपकी सहृदयता से सहायता करता है, वही सच्चे अर्थों में आपका मित्र और भाई होता है. अतः संकट काल में जिन लोगो से सहायता प्राप्त हो उन्हें किसी भी मूल्य पर नहीं भूलना चाहिए.
  • कठिन परिश्रम से मनुष्य कुछ भी प्राप्त कर सकता है. परिश्रमी व्यक्ति को उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य और उसे पचाने की शक्ति प्राप्त होती है. कठिन परिश्रम से मनुष्य अधिक धन अर्जन कर पाता है तथा अपने जीवन निर्वाह के लिए उचित कर्मों में उसका प्रयोग कर पाता है.
  • उस व्यक्ति को जीवन में स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है, जिसका पुत्र आज्ञाकारी और पत्नी भरोसेमंद हो. व्यक्ति को स्वयं भी संतोषी होना आवश्यक है.
  • एक सच्चा पुत्र अपने पिता के प्रति आज्ञाकारी होता है और एक सच्चा पिता अपने पुत्र की सभी तरह से देख भाल करता है. सत्यता किसी भी सम्बन्ध को मधुर बनाता है और सम्बन्धी संबंधों से परे मित्र भी बन जाते हैं.
  • ऐसे मनुष्य से दूर रहना ही सही होता है, जो सामने मिथ्या- प्रशंसा करता हो तथा पीठ पीछे हानि पंहुचने की नियत रखता हो. ऐसे मित्र विष से भरे उस प्याले की तरह होते हैं, जिसके ऊपर दुग्ध रख दिया गया हो.
  • सभी पहाड़ियों में मणिमुक्ता नहीं होती, सभी स्थान घर नहीं होता और सभी घर आदर्श मनुष्यों के लिए उत्तम नहीं होता. सभी हाथी के पास गजमुक्ता मणि नहीं होती तथा सभी जंगलों में चन्दन का पेड़ नहीं पाया जाता है. तात्पर्य ये है कि सभी मनुष्य आदर्श मनुष्य नहीं होते हैं.
  • मित्रता अपने स्तर के मनुष्य के साथ ही बेहतर होता है. किसी राजा के अंतर्गत नौकरी सबसे बेहतर होती है, तथा एक स्त्री को अपने घर में रहना चाहिए. स्त्रियाँ घर में ही सुरक्षित होती हैं.
  • चाणक्य के अनुसार, प्रलय के समय समस्त स्थल समुद्र के नीचे चला जाएगा, किन्तु आदर्श मनुष्य के चरित्र में कई समुद्र एक साथ समा सकते हैं. अतः ऐसे मनुष्य बुरे से बुरे समय में भी अडिग रहता है.
  • किसी बड़े परिवार से सम्बन्ध रखने वाला अति सुन्दर नौजवान यदि अशिक्षित रह जाए तो लोग उसे ठीक उसी तरह नज़रअंदाज़ करते हैं, जैसे एक सुगंधहीन फूल को नज़रंदाज़ किया जाता है.
  • कोयल की सौन्दर्यता उसकी आवाज़ में, स्त्री की सौन्दर्यता उसकी ईमानदारी, एक कुरूप की सौन्दर्यता उसकी शिक्षा तथा एक साधू की सौन्दर्यता उसमें निहित दयाभाव में होती है.
  • एक परिवार को बचाने के लिए एक मनुष्य, एक गाँव बचाने के लिए एक परिवार तथा संपूर्ण राज्य को बचाने के लिए यदि एक गाँव का बहिष्कार करना पड़े तो इसमें कोई ग़लत बात नहीं है.
  • चाणक्य के अनुसार एक कर्मठ व्यक्ति कभी भी दरिद्र नहीं होता, ठीक इसी तरह सदैव ईश्वर का स्मरण करने वाला कोई पाप नहीं कर सकता है, तथा शांत स्वभाव का एक व्यक्ति कभी भी झगडा नहीं कर सकता है. अतः मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में अपनी मनुष्यता नहीं भूलनी चाहिए.
  • एक शुष्क पेड़ में जब आग लग जाती है तो समस्त जंगल जल जाता है. इसी तरह से एक नालायक पुत्र समस्त खानदान को तबाह कर देता है.           
  • कोई भी काम शुरू करने से पहले अपने आपसे तीन सवाल हमेशा करना चाहिए मैं यह क्यूँ कर रहा हूँ ? इस कार्य के क्या परिणाम हो सकते हैं ? क्या मुझे सफलता प्राप्त होगी ? केवल इन सवालों के चिन्तन के बाद अगर आपको इनके सकारात्मक जवाब मिलते हैं तो आप आगे बढ़ सकते हैं.
  • एक आदमी अकेला जन्म लेता हैं अकेला मृत्यु पाता हैं अकेला ही अपने कर्मो का अच्छा बुरा फल भोगता हैं और अकेले ही स्वर्ग अथवा नरक का वासी बनता हैं .
  • भगवान प्रतिमाओं में नहीं बसते आपकी भावनाएँ ही भगवान हैं और आपकी आत्मा ही परमात्मा का मंदिर हैं .
  • आप जो करना चाहते हैं उसे जाहिर ना होने दे लेकिन जो आप करना चाहते हैं उसे बुद्धिमानी से छिपा कर रखे और अपने काम को करते रहे.
  • ज्ञान ही सबसे बड़ा साथी हैं . एक ज्ञानी व्यक्ति को सभी जगह सम्मान मिलता हैं ज्ञान ही सौन्दर्य और योवन को परास्त करता हैं .
  • जैसे ही डर निराशा आप पर हावी होने लगती हैं उस पर आक्रमण करके उसे ख़त्म  कर दीजिये.
  • मुर्ख के लिए किताबो का उतना ही मौल होता हैं जितना किसी नेत्रहीन के लिए दर्पण का .
  • मनुष्य कर्मो से महान बनता हैं जन्म से नहीं.
  • पहले पांच वर्ष अपने बच्चे को कोमलता के साथ रखे . अगले पांच वर्ष उन्हें डांट कर रखे और जब वे 16 के हो जाये उनके साथ मित्र की तरह व्यवहार करें . आपकी ढलती उम्र मे वो आपके सबसे करीब दोस्त होंगे .
  • हर एक दोस्ती के पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता हैं कोई भी दोस्ती स्वार्थ के बिना नहीं होती यह एक कड़वा सच हैं .

नोट:  चाणक्य के अनमोल वचन मे ही उनकी नीतिया है.

यहाँ लिखे हिंदी अर्थ एक तरह से भावार्थ हैं . इन्हें पढ़े | ये आपका ज्ञान बढ़ाते हैं भाषा को अधिक प्रभावशाली बनाने में इन अनमोल वचनों का योगदान होता हैं .Chanakya Niti  सामान्यत : जीवन से जुड़े ऐसे वचन हैं जो हमे कर्तव्य का बोध कराते हैं .

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