चाणक्य (Chanakya) एक महान राजनेतिज्ञ सलाहकार थे | ऐसा कहा जाता हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में राजनीति के लिए जो भी कहा वास्तव में उस नीति पर चाणक्य ने अमल किया जिसे हम चाणक्य नीति के नाम से सुनते एवम पढ़ते हैं |
एक बार की बात हैं, मगध में चाणक्य कुछ राजकीय कार्य कर रहे थे | रात्रि होने पर उन्होंने दीपक जलाया और अपना काम जारी रखा| उसी समय चाणक्य से मिलने कुछ लोग आये| उन्होंने चाणक्य से कुछ विचार विमर्श हेतु समय माँगा | चाणक्य ने उनसे पूछा- बात राजकीय विषय की हैं अथवा निजी ? उन लोगो ने कहा उन्हें कुछ निजी बात हेतु सलाह लेनी हैं | तभी चाणक्य उठे और उन्होंने दीपक बुझाकर, नया दीपक जलाया | उनका यह व्यवहार देख कर वहाँ आये लोगो से चाणक्य से सवाल किया कि जब दीपक में पर्याप्त तेल था, तब उन्होंने उसे बुझाकर अन्य दिया क्यूँ जलाया ? इस प्रश्न पर चाणक्य से सरलता से उत्तर दिया – मैं अब तक राजकीय कार्य कर रहा था पर अब आपसे कुछ निजी विषय पर वार्ता होगी इसलिए मैंने दीपक बदला क्यूंकि पहले दीपक में राजकोष के धन से लाया हुआ तेल था जिस पर राज्य का अधिकार हैं और अब इस दीपक में मेरे द्वारा कमाये हुए धन का तेल हैं जो मेरे निजी कार्यों में मेरे द्वारा उपभोग किया जायेगा |
यह सुनकर सभी लोगो ने चाणक्य के सामने हाथ जोड़ कर उनकी प्रशंसा की और कहा जहाँ चाणक्य जैसा ईमानदार राजकीय सेवक हैं वहाँ भ्रष्ट्राचार का परिंदा भी पर नहीं मार सकता |
चाणक्य कहानी की शिक्षा :
आज के समय में राजनीति एक गंदा खेल हैं बड़े- बड़े नेता चाणक्य की कूट नीति को बड़े चाँव से अपनाते हैं पर चाणक्य के देश के प्रति वफ़ादारी को नज़रन्दाज कर देते हैं |
जब तक देश के बड़े नेता भ्रष्टाचार का दामन नहीं छोड़ेंगे, तब तक देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं होगा | आज के समय में नेता देश को अपनी जागीर समझते हैं वे खुद को देश का मुलाजिम नहीं बल्कि मालिक मानते हैं और उन्हें उनकी असली जगह देश की जनता को एक जुट होकर ही दिखानी होगी |
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