Matua Community: जानिए बंगाल में रहने वाले मतुआ समुदाय के लोग कौन हैं, जो CAA लागू होने पर खुशी मना रहे हैं

कौन है मतुआ समुदाय, इतिहास, नागरिकता संशोधन कानून (CAA, Matua Community, History)

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) से बंगाल में मतुआ समुदाय को सबसे ज्यादा फायदा होने वाला है। जब भारत बंटवारा हुआ, उस समय बहुत सारे हिंदू मतुआ लोग पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) से बंगाल आकर बस गए। ये लोग ऐसे शरणार्थी हैं, जिन्हें अब तक भारत की नागरिकता नहीं मिली है। वे लंबे समय से भारतीय नागरिकता के लिए मांग कर रहे थे, जो अब पूरी होने वाली है।

सोमवार को, जब केंद्र सरकार ने नागरिकता सुधार कानून (CAA) शुरू करने की घोषणा की, तब से बंगाल के मतुआ समुदाय में बहुत खुशी का माहौल है। जैसे ही शाम को इस कानून की घोषणा की खबर आई, मतुआ समुदाय के लोगों ने उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में खुशी मनाई। ठाकुरनगर वह जगह है जहाँ मतुआ महासंघ का मुख्यालय और मुख्य मंदिर है। वहाँ पर बहुत सारे लोग एक साथ आए और ढोल-नगाड़ों के साथ नाच-गाना करके खुशियाँ मनाईं।

Matua Community: जानिए बंगाल में रहने वाले मतुआ समुदाय के लोग कौन हैं, जो CAA लागू होने पर खुशी मना रहे हैं

Matua Community CAA

कानून का नामनागरिकता संशोधन अधिनियम
कब आयासाल 2019 में
कब लागू हुआ11 दिसंबर, 2019
किसने लागू कियाकेंद्र सरकार ने
लाभअफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के नॉन-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना
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भारतीय नागरिकता के लिए मतुआ समुदाय का संघर्ष

बंगाल में, मतुआ समुदाय के लोग, जो बांग्लादेश के पास के इलाकों जैसे कि उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूचबिहार, और पूर्व व पश्चिम बर्धमान जिलों में रहते हैं, उन्होंने भारतीय नागरिकता पाने के लिए लंबा संघर्ष किया है। भारत के विभाजन के बाद, हरिचंद-गुरुचंद ठाकुर के वंशज, प्रमथा रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी वीणापाणि देवी, जिन्हें बड़ो मां कहा जाता है, ने मतुआ महासंघ के अंतर्गत समुदाय को एक साथ लाया और उनके लिए भारतीय नागरिकता की मांग करते हुए कई आंदोलन किए।

 बंगाल में मतुआ समुदाय के शरणार्थी, जो मुख्यतः बांग्लादेश की सीमा से सटे उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूचबिहार, और पूर्वी तथा पश्चिमी बर्धमान जिलों में बसे हैं, ने भारतीय नागरिकता पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। देश के विभाजन के बाद, हरिचंद-गुरुचंद ठाकुर के वंशज, प्रमथा रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी वीणापाणि देवी (जिन्हें बड़ो मां के नाम से जाना जाता है), ने मतुआ महासंघ के तहत समुदाय को एक साथ लाकर, उनके लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने हेतु कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।

सीएए के लागू होने पर सुवेंदु का बयान

बंगाल में जब केंद्र सरकार ने सोमवार को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने की घोषणा की, तब विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा के विधायक, सुवेंदु अधिकारी ने इसका स्वागत किया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया।

सुवेंदु ने कहा कि यह मोदी की प्रतिबद्धता है कि सीएए अब पूरे देश में लागू होगा। उन्होंने बताया कि मतुआ समुदाय की लंबे समय से की जा रही मांग अब पूरी होगी और उन्हें नागरिकता मिलेगी। सुवेंदु ने यह भी कहा कि अब किसी की भी ताकत नहीं है कि वे मतुआ समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित कर सकें, ममता बनर्जी भी नहीं। उन्होंने मतुआ समुदाय और अखिल भारतीय मतुआ महासंघ को सीएए लागू होने पर अपनी शुभकामनाएं दी।

सीएए: महत्वपूर्ण जानकारी

दिसंबर 2019 में, सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) को संसद ने पास किया और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी। नियम के अनुसार, किसी भी कानून के लिए नियम राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के छह महीने के अंदर तैयार होने चाहिए। देश भर में हुए विरोधों के कारण, इस कानून को तुरंत लागू नहीं किया जा सका। नियमों को अंतिम रूप देने में गृह मंत्रालय ने नौ बार अधिक समय लिया।इस कानून के अनुसार, गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता पाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं दिखाना पड़ेगा।

नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को 31 दिसंबर, 2014 से कम से कम पांच साल पहले से भारत में होना चाहिए।

कौन है मतुआ समाज

मतुआ समाज, जो मूलतः पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आया है, हिंदू धर्म के एक उपेक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व करता है। इस समुदाय का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय और बाद में बांग्लादेश के निर्माण के दौरान हुआ था। विशेष रूप से, पश्चिम बंगाल के नादिया और बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले इस समुदाय के लगभग 30 लाख लोगों के घर हैं। इस समुदाय की उपस्थिति राज्य की 30 से अधिक विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण है।

मतुआ समुदाय का इतिहास

मतुआ महासंघ एक धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में 1860 के दशक में उभरा, जिसकी उत्पत्ति अविभाजित बंगाल में हुई थी। आज, मतुआ समुदाय के लोग भारत और बांग्लादेश दोनों में निवास करते हैं। हिंदू जाति प्रथा के खिलाफ उठ खड़े हुए इस समुदाय की स्थापना हरिचंद्र ठाकुर ने की थी, जिन्होंने अपने समाज में एक गहरी छाप छोड़ी। हरिचंद्र को उनके अनुयायियों द्वारा दिव्य अवतार माना जाता था, जिससे समुदाय का और विस्तार हुआ। ठाकुर परिवार बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल आ बसा और पीढ़ी दर पीढ़ी, यह परिवार समुदाय के लिए पूज्यनीय बना रहा। अंततः, हरिचंद्र ठाकुर के पड़पोते, परमार्थ रंजन ठाकुर, समुदाय के एक प्रमुख प्रतिनिधि बने।

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