V P Singh (Vishwanath Pratap Singh) biography history in hindi वी पी सिंह भारत के आठवे प्रधानमंत्री थे, राजीव गाँधी के बाद जनता दल को चुनाव में जीत हासिल हुई और इस तरह 1989 में वी.पी. सिंह सत्ता के उच्च पद पर आसीन हुए. इनका रुझान राजीनीति की तरफ हमेशा से ही था, जिसके लिए इन्होने कठिन परिश्रम किये. एक प्रधानमंत्री के रूप में भारत की निचली जातियों की हालत में सुधार के लिए वी पी सिंह ने कठिन परिश्रम किया था. इन्होने 1989 में भारत देश की राजनीती में अविस्मरणीय बदलाव कर दिए. वी पी सिंह ने दलित व निचली जाति के लोगों को चुनावी राजनीती में आने का मौका दिया.
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वी पी सिंह जीवन परिचय ( V P Singh biography in hindi )
वी पी सिंह प्रारंभिक जीवन व परिवार ( V P Singh history)–
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | वी पी सिंह जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | विश्वनाथ प्रताप सिंह |
2. | जन्म | 25 जून 1931 |
3. | जन्म स्थान | इलाहबाद, उत्तरप्रदेश |
4. | पिता | राजा बहादुर राय गोपाल सिंह |
5. | मृत्यु | 27 नवम्बर, 2008 |
6. | पत्नी | सीता कुमारी |
7. | बच्चे | अजय प्रताप सिंह, अभय सिंह |
8. | राजनैतिक पार्टी | जन मोर्चा |
इनका पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह था. इनका जन्म दिन 25 जून 1931 में इलाहाबाद के जमीदार परिवार में हुआ. इनके असली पिता का नाम रजा भगवती प्रसाद सिंह था. 1936 में वी पी सिंह को मांडवा के राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के द्वारा गोद ले लिया गया था. 1941 में राजा बहादुर राय की मौत के बाद वी पी सिंह को मांडवा का 41वा राजा बहादुर बना दिया गया था.
वी पी सिंह की पढाई की शुरुवात देहरादून के कैंब्रिज स्कूल से हुई थी. आगे का अध्ययन इलाहाबाद से पूरा किया, फिर इसके बाद पूना में पुणे यूनिवर्सिटी से पढाई की . पढाई के समय से ही इन्हें राजनीति में रुझान रहा, वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज के ये स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट रहे, इसके अलावा इलाहबाद यूनिवर्सिटी के ये वाईस प्रेसिडेंट थे. वी पी सिंह को कविताये लिखने का काफी शौक था, इसलिए इन्होने कई किताबे भी लिखी. वी पी सिंह ने छात्र काल में बहुत से आन्दोलन किये और उनका नेतृत्व सम्भाला, इसलिए इनका सत्ता के प्रति प्रेम बढ़ता गया. यह एक समृध्द परिवार से थे, पर इन्हें धन दौलत से इतना प्रेम ना था, देश प्रेम के चलते इन्होने भी भू दान में अपनी सारी सम्पति दान करी दी और परिवार ने इनसे नाता तौड़ दिया.
वी पी सिंह राजनैतिक सफ़र (V P Singh political career) –
वी पी सिंह ने 1969 में एक सदस्य के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी में सदस्यता ली. यह एक कुशल राजनीतिज्ञ थे ,1969 में उत्तरप्रदेश की विधानसभा के सदस्य बनाये गए, इस वक्त यह काँग्रेस के नेता थे. 1971 में निचली संसदीय लोकसभा का चुनाव जीता. 1974 में इन्दिरा गाँधी ने इन्हें केंद्रीय वाणिज्य उप मंत्री बना दिया. वी पी सिंह ने 1976-1977 तक इस पद को संभाला. 1980 में ये लोकसभा के सदस्य भी बन गए. 1980 में जनता दल की सरकार गिरने के बाद जब इन्दिरा वापस सत्ता में आई, उस वक्त वी पी सिंह को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया. 1982 तक वे इस पद पर रहे, इसके बाद वापस 1983 में इन्होने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री का पद सम्भाला. 1984 में जब राजीव गाँधी ने सत्ता सम्भाली, तब वी पी सिंह को वित्त मंत्री के पद पर आसीन किया गये. कुछ समय बाद 1987 में इन्हें रक्षा मंत्री का पद दे दिया गया .
राजनितिक संकट (V P Singh Political Crisis) –
वी पी सिंह काँग्रेस पर हो रहे, गाँधी परिवार के सत्तेबाजी से काफी निराश थे, इसलिए इन्हें राजीव गाँधी के साथ कार्य करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. राजीव गाँधी के समय हुए, बोफोर्स कांड में काँग्रेस की छवि पूरी तरह बिगड़ गई. राजीव गाँधी से मतभेद के चलते वी पी सिंह को कैबिनेट से निष्काषित कर दिया गया. जिसके बाद सिंह ने कांग्रेस और लोकसभा दोनों से रिजाइन कर लिया.
वी पी सिंह ने अरुण नेहरु व आरिफ मोह्हमद खान के साथ 1987 में जन मोर्चा पार्टी का गठन किया और काँग्रेस के विरुध्द प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया. 1988 में इन्हें इलाहबाद से लोकसभा की सीट फिर मिल गई. जिसके बाद 11 अक्टूबर 1988 को जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोक दल ने मिलकर गठबंधन किया, जिस पार्टी का नाम जनता दल रखा गया. ये सभी पार्टी मिलकर राजीव गाँधी के विरुध्य खड़ी थी. वी पी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया. अंततः 2 दिसम्बर 1989 में जनता दल को भारी बहुमत से विजय प्राप्त हुई और वी पी सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया.
प्रधानमंत्री वी पी सिंह (Prime minister V P Singh) –
वी पी सिंह की प्रधानमंत्री बनने के बाद छवि कुछ खास नहीं रही. इनमे दूरदर्शिता एवम धैर्यता की कमी थी, जिस कारण देश की कश्मीर समस्या ने और अधिक तीव्रता का रूप ले लिया. वी पी सिंह के गलत निर्णयों के कारण देश में जातिवाद और अधिक गम्भीर हो गया. एक सफल रानीतिज्ञ बनने के लिए इन्होने आरक्षण को और अधिक बढ़ावा दे दिया, जिससे देश में असंतोष उत्तपन हो गया. आरक्षण के कारण युवा वर्ग में बहुत असंतोष बढ़ गया, जिस कारण युवकों ने आत्महत्या को स्वीकार किया.
वी पी सिंह का कार्यकाल सराहनीय नहीं रहा, इनमे नेतृत्व की शक्ति की कमी थी. वी पी सिंह को एक जुटता में कार्य करना स्वीकार नहीं था, जिस कारण इन्हें स्वार्थी कहा गया. वी पी सिंह अपनी व्यक्तिगत सफलता पर अधिक जोर देते थे. इसलिए वे एक असफल लीडर साबित हुए. वी पी सिंह का कार्यकाल 2 दिसम्बर 1989 से 10 नवम्बर 1990 तक ही था, पर इतने ही दिनों में उन्होंने भारत की स्थिती को और अधिक बिगाड़ दिया था. इन दिनों, देश में बाहरी लोगो से काफी देहशत थी, आतंकी हमले बढ़ रहे थे. हमारे तीन प्रधानमंत्री मार दिए गये थे, जो की बहुत बड़ी हार थी. उस नाजुक दौर में एक सफल राजनैतिज्ञ की आवश्यकता थी, परन्तु वी.पी सिंह भारत देश को सफल राजनीती नहीं दे पाए, उनका दौर और भी कष्टप्रद रहा, इन्होने देश में और अधिक कम्पन उत्पन्न कर दिया था.
वी पी सिंह मृत्यु (V P Singh Death) –
27 November 2008 को वी पी सिंह का देहांत हो गया. वे 77 वर्ष के थे. वी पी सिंह को कई दिनों से किडनी की तकलीफ से ग्रसित थे, जिसके बाद दिल्ली में अपोलो हॉस्पिटल में इनका स्वर्गवास हो गया.
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FAQ
Ans- वी पी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को प्रयागराज में हुआ।
Ans- वी पी सिंह की मृत्यृ 27 नवंबर 2008 में हुई।
Ans- वी पी सिंह की पार्टी का नाम जन मोर्चा था।
Ans- वी पी सिंह आठवें नंबर के प्रधानमंत्री रहे।
Ans- वी पी सिंह के राजनीतिक सफर की शुरूआत साल 1969 में हुई।
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