तीन तलाक पर शाह बानो का केस क्या था | Triple Talaq Shah bano case Summary in hindi

तीन तलाक पर शाह बानो का केस क्या था | Triple Talaq: Shah bano case Summary, death in hindi

भारत में लंबे समय से तीन तलाक की प्रथा का शिकार कई मुस्लिम महिलाएं हुई हैं. तीन तलाक की अड़ में ना जाने कितने पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को बिना गुजारा भत्ता दिए छोड़ दिया गया है. लेकिन भारत सरकार ने देश में कई वर्षों से चली आ रही इस प्रथा को खत्म करने के लिए अब एक कानून बना दिया है. जिसके चलते अब किसी भी मुस्लिम महिला का पति उनको बिना कोई गुजारा भत्ता दिए तलाक नहीं दे पाएगा. ऐसा पहली बार नहीं है जब देश के उच्चतम न्यायालय में किसी के द्वारा तीन तलाक को लेकर याचिका दायर की गई थी. वहीं तीन तलाक को लेकर साल 1985 में भी उच्चतम न्यायालय ने शाहबानो केस में इस प्रथा को गलत बताया था और शाहबानो की इस केस में जीत हुई थी. मगर वो इस केस को फिर भी हार गई थी. आखिर क्या था शाहबानो केस और क्या था उस समय उच्चतम न्यायालय का फैसला. इसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. 

शाह बानो केस

शाहबानो केस क्या था  (Shah Bano case Summary in hindi)

साल 1978 में शाहबानो नामक एक महिला भी तीन तलाक का शिकार हुई थी. उनको उनके पति द्वारा तीन तलाक दे दिया गया था. जिस वक्त उन्हें उनके पति मोहम्मद खान ने तलाक दिया था, उस वक्त उनकी उम्र 62 वर्ष की थी. इतना ही नहीं शाहबानो के पांच बच्चे भी थे. उनके पति ने दूसरी शादी कर ली थी और दूसरी शादी करने के कुछ सालों बाद शाहबानो को तलाक दे दिया था. मोहम्मद ने शाहबानो के साथ साथ अपने बच्चों के लिए भी किसी तरह का खर्चा देने से इंकार कर दिया था. अपने पति से तीन तलाक मिलने के बाद शाहबानो ने गुजारा भत्ते को लेकर मध्य प्रदेश की एक निचली अदालत में केस दायर किया था. जिसको वो जीत गई थी और अदालत ने उनके पति को शाहबानो को हर महीने 25 रुपए देना का आदेश दिया था. 25 रुपए के गुजारे भत्ते की राशि को बढाने के लिए शाहबानो ने ये केस फिर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दायर किया. जिसके बाद उनके गुजारे भत्ते की राशि को 25 रुपए से बढ़ाकर 179 रुपए कर दिया था.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शाहबानो के पति ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दी थी. जिसके बाद ये केस उच्चतम न्यायालय में चला गया, जहाँ पर भारत में समान नागरिक संहिता पर भी सवाल आये थे और ये केस शाहबानो के नाम से जाना जाने लगा. इस केस पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा लिए गए फैसले को उच्चतम न्यायालय ने सही करार दिया था. मगर इस केस में असली मोड़ तब आया जब उस वक्त के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कोर्ट के आदेश को पूरी तरह बदल दिया था. उन्होंने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक अधिकारों) अधिनियम संसद से पास करवा लिया था. इस अधिनियम के मुताबिक मुस्लिम महिला को अगर उसका पति तीन तलाक दे देता है. तो केवल 90 दिन यानी 3 महीनों तक ही उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ते देना होगा और इस तरह उस वक्त शाहबानो की जीत कर भी हार हो गई थी.

इस बार हुई सायरा बानो की जीत (supreme court judgment on triple talaq)

80 के दशक में बेशक शाहबानो की जीत कर भी हार हुई थी, मगर इस बार भारत सरकार ने सायरा बानो नामक महिला का साथ दिया है. जी हां उच्चतम न्यायालय में उत्‍तराखंड की निवासी सायरा बानो ने ही तीन तालक के खिलाफ अर्जी लगाई थी. जिसके बाद देश के उच्चतम कोर्ट ने सरकार से इस मसले में उनकी राय मांगी थी और सरकार ने तीन तलाक को गलत बताया था. सायरा बानो के पति ने उनको एक पत्र लिख कर तलाक दे दिया था और अपनी 15 साल की शादी को चुटकियों में तोड़ दिया था.

क्या होता है तीन तलाक (what is triple talaq )

इस्लाम में कोई भी पति अगर अपनी पत्नी को तीन बार तलाक तलाक बोल दे, तो पति-पत्नी का तलाक हो जाता है. इतना ही नहीं तलाक होने के बाद पति अपनी पत्नी और बच्चों को अगर गुजारा भत्ता नहीं देना चाहते है, तो ये उसकी मर्जी होती है. पत्नी इस में कुछ नहीं कर सकती है. वहीं देश में अब तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर लिया गया है. यानी अब कोई भी पति अपनी पत्नी को तीन तलाक नहीं दे सकता है. ऐसा करने पर अब तीन साल की सजा होने का प्रावधान भी बन गया है. इस कानून को लोकसभा से मंजूरी मिल गई है. वहीं दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिन्होंने तीन तलाक को कई सालों पहले असंवैधानिक घोषित कर दिया था और इस प्रथा को अपने देश से खत्म कर दिया था.

सरकार द्वारा तीन तलाक़ को लेकर विधेयक भी बनाया गया है.

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