पापांकुशा एकादशी व्रत पूजा विधि कथा एवं महत्त्व 2024 (Papankusha Ekadashi Vrat Puja Vidhi, Katha In Hindi)
पापांकुश एकादशी हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण एकादशी है, मुख्यरूप से वैष्णव समुदाय के लिए. इसे अश्विना शुक्ल एकादशी के नाम से भी जानते है. यह दिन ब्रह्मांड के रक्षक विष्णु जी को समर्पित है. विष्णु जी के हर रूप की पूजा अर्चना इस दिन की जाती है. इस दिन व्रत रखने से पाप से छुटकारा मिलता है, और स्वर्ग का रास्ता खुलता है. कहते है हजारों अश्व्मेव यज्ञ और सैकड़ो सूर्य यज्ञ करने के बाद भी, इस व्रत का 16 वां भाग जितना फल भी नहीं मिलता है. कहा जाये तो कोई भी व्रत इस व्रत के आगे सर्वोच्च नहीं है. जो कोई इस व्रत के दौरान रात्रि को जागरण करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं, इस व्रत का फल उस इन्सान के आने वाली 10 पीढियों को भी मिलता जाता है.
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कब मनाई जाती है पापांकुश एकादशी? (Papankusha Ekadashi date)
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष के ग्यारवें दिन पापांकुश एकादशी मनाई जाती है. ये सितम्बर-अक्टूबर के समय आती है. इस बार 2024 में यह 13 अक्टूबर को आएगी.
पापांकुश एकादशी के दौरान जरुरी समय सारणी –
एकादशी तिथि शुरू | 13 अक्टूबर, समय दोपहर 09:08 |
एकादशी तिथि ख़त्म | 14 अक्टूबर, समय शाम 06:41 |
पापांकुश एकादशी का महत्व (Significance of Papankusha Ekadashi) –
जो इस पापांकुश एकादशी का व्रत रखता है, उसे अच्छा स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य मिलता है. विष्णु जी को मानने वालों के लिए, इस एकादशी का विशेष महत्व होता है. रीती रिवाजों के अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले कृष्ण एवं राधा की पूजा अर्चना करते है. इस एकादशी के बारे में ‘ब्रह्मा वैवर्त पुराण’ में भी लिखा हुआ है, और इसे पाप से मुक्ति के लिए सबसे अधिक जरुरी माना गया है. इस पुराण के अनुसार महाराज युधिष्ठिर, भगवान् कृष्ण से इस व्रत के बारे में पूछते है, तब कृष्ण बताते है कि हजारों साल की तपस्या से जो फल नहीं मिलता, वो फल इस व्रत से मिल जाता है. इससे अनजाने में किये मनुष्य के पाप क्षमा होते है, और उसे मुक्ति मिलती है. कृष्ण जी बताते है कि इस दिन दान का विशेष महत्व होता है. मनुष्य अगर अपनी इच्छा से अनाज, जूते-चप्पल, छाता, कपड़े, पशु, सोना का दान करता है, तो इस व्रत का फल उसे पूर्णतः मिलता है. उसे सांसारिक जीवन में सुख शांति, ऐश्वर्य, धन-दौलत, अच्छा परिवार मिलता है. कृष्ण जी ये भी बोलते है कि इस व्रत से मरने के बाद नरक में जाकर यमराज का मुहं तक देखना नहीं पड़ता है, बल्कि सीधे स्वर्ग का रास्ता खुलता है.
पापांकुश एकादशी कथा (Papankusha Ekadashi Vrat katha) –
एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना, विंध्याचल पर्वत में रहा करता था. उसने अपने पुरे जीवन में सिर्फ दुष्टता से भरे कार्य किये थे. उसकी ज़िन्दगी के अंतिम दिनों में, यमराज अपने एक आदमी को उस शिकारी को लाने के लिए भेजते है. क्रोधना मौत से बहुत डरता था, वो अंगारा नाम के एक ऋषि के पास जाता है और उनसे मदद की गुहार करता है. वो ऋषिमुनि उसे पापांकुश एकादशी के बारे में बताते है, उसे बोलते है कि आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत वो रखे और उस दिन भगवान् विष्णु की आराधना करे. क्रोधना पापांकुश एकादशी व्रत को पूरी लगन, विधि विधान के साथ रखता है. इस व्रत के बाद उसके पाप क्षमा हो जाते है, और उसे मुक्ति मिल जाती है.
पापांकुश एकादशी पूजा विधि विधान (Papankusha Ekadashi Puja Vidhi) –
- इस पापांकुश एकादशी का व्रत दशमी के दिन से ही शूरु हो जाता है. दशमी के दिन एक समय सूर्यास्त होने से पहले सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, फिर इस व्रत को अगले दिन एकादशी समाप्त होने तक रखा जाता है. दशमी के दिन गेंहूँ, उरद, मूंग, चना, जौ, चावल एवं मसूर का सेवन नहीं करना चाहिए.
- इस एकादशी के दिन भक्त लोग कठिन उपवास रखते है, कई लोग मौन व्रत भी रखते है. जो इस व्रत को रखते है, वे जल्दी उठकर नहा धोकर साफ कपड़े पहनते है. फिर एक कलश की स्थापना कर उसके पास विष्णु की फोटो रखनी चाहिए.
- यह व्रत दशमी शाम से शुरू होकर, द्वादशी सुबह तक का होता है. इस दौरान कुछ नहीं खाया जाता है.
- इस व्रत के दौरान, जो इस व्रत को रखते है, उन्हें सांसारिक बातों से दूर रहना चाहिए. मन को शांत रखना चाइये, कोई भी पाप नहीं करना चाहिए, झूट नहीं बोलना चाहिए. इस व्रत के दौरान कम से कम बोलना चाहिए, ताकि मुंह से गलत बातें न निकलें.
- वैष्णव समुदाय इस एकादशी पर श्री हरी को पद्मनाभा के रूप में पूजता है. उन्हें बेल पत्र, धुप, दीप, अगरबत्ती, फूल, फल और अन्य पूजा का समान चढ़ाता है. कृष्ण जी के भक्त कान्हा जी की पूजा विधि विधान से करते है. अंत में आरती करके, सबको प्रसाद बांटा जाता है.
- इस व्रत के दौरान, भक्तों को दिन एवं रात में नहीं सोना चाहिए. उनको अपना समय भगवान् की भक्ति में लगाना चाहिए. दिन भर वैदिक मंत्रो, भजनों को गाते रहें, रात को जागरण कर विष्णु की भक्ति में लीन हो जाएँ. विष्णु पूराण पढ़े, या सुनें.
- इस व्रत को द्वादशी के दिन तोड़ा जाता है. द्वादशी के दिन व्रत को तोड़ने से पहले, ब्राह्मणों, गरीबों एवं जरूरतमंदों को खाना खिलाना चाहिए.
- इस व्रत को तोड़ने की रीती को ‘पराना’ कहते है. पराना को एकादशी के दुसरे दिन द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए. पराना को द्वादशी के ख़त्म होने से पहले जरुर कर लेना चाहिए. अगर पराना द्वादशी के दिन पूरा नहीं किया जाता है, तो उसे एक अपराध के रूप में देखा जाता है.
- पराना को हरी वासरा के समय नहीं करना चाहिए. हरी वासरा द्वादशी तिथि का पहला एक चौथाई भाग होता है. हरी वासरा के ख़त्म होने के बाद ही व्रत तोडना चाहिए.
- व्रत तोड़ने के लिए सबसे अच्छा समय प्रातःकाल का होता है. वैसे मध्यान्ह में व्रत नहीं तोडना चाइये, लेकिन किसी कारणवश आप प्रातःकाल में पराना नहीं कर पाते है तो मध्यान्ह में पराना किया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे द्वादशी ख़त्म होने पहले पराना कर लें.
- जो लोग इस व्रत को नहीं रख पाते, वे भी इस दौरान दान करके पुन्य प्राप्त कर सकते है. इस दौरान जरूरतमंद को भोजन खिलाना चाहिए, कपड़ा, अन्य चीज दान में देनी चाहिए. तिल, गाय, जूतों का दान भी महत्वपूर्ण माना जाता है. कुछ लोग ब्राह्मण भोज का भी आयोजन करते है. जो गरीब होते है, उन लोगों को भी अपनी इच्छा के अनुसार कुछ न कुछ दान जरुर करना चाइये.
- कई बार 2 दिन लगातार एकादशी होती है. ऐसे में एक दिन ही व्रत रहने को कहा जाता है. दुसरे दिन व्रत रहना सन्यासी, विधवा के लिए जरुरी माना जाता है. इसके अलावा जो लोग विष्णु जी के प्यार को चाहते और मोक्ष प्राप्त करना चाहते है, वो भी 2 दिन व्रत अपनी इच्छा अनुसार रख सकते है.
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FAQ
Ans : अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को
Ans : 13 अक्टूबर
Ans : विष्णु जी को मानने वालों के लिए, इस एकादशी का विशेष महत्व होता है
Ans : 13 अक्टूबर को 9:08 मिनिट पर
Ans : 14 अक्टूबर को 6:41 मिनिट पर
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