दया याचिका क्या होती है (प्रक्रिया, कैसे होती राष्ट्रपति द्वारा ख़ारिज, अर्थ) (What is Mercy Petition in hindi) (Procedure, Format, Meaning, Nirbhaya Case, Cases in India, How to file daya yachika, Curative Petition Kya hai)
भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय कानून में जहां अपराधियों को कड़ा दंड देने का प्रावधान है। वही एक लंबी अवधि की सजा के बाद भी दया याचिका दाखिल कराई जा सकती है। आखिरकार ये दया याचिका होती क्या है और किसके द्वारा पास की जाती है आज हम अपनी इस पोस्ट के जरिए आपको पूरी जानकारी प्रदान करने वाले हैं। आखिरकार भारतीय संविधान और भारतीय कानून से जुड़ी यह महत्वपूर्ण बातें आपको जानने बेहद जरूरी होती हैं।
क्या होती है दया याचिका?
दया याचिका एक ऐसा शब्द है जो उन अपराधियों के लिए बनाया गया है जिन्हें फाँसी की सजा दी जाने वाली होती है। सामान्य अर्थ की बात करें तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार जिन अपराधियों को उनके अपराध की वजह से फांसी की सजा अर्थात डेथ वारंट जारी किया गया हो उन व्यक्तियों की फाँसी की सजा माफ करने की प्रक्रिया को दया याचिका कहा जाता है। दया याचिका एक ऐसी याचिका है जिसे किसी भी अपराधी को देने से पहले राष्ट्रपति के पास अर्जी लगाई जाती है। यदि राष्ट्रपति अपने मंत्रिपरिषद से सलाह मशवरा करके अपराधियों को दया याचिका के तहत फाँसी की सजा रद्द करता है तभी उनकी फाँसी रोकी जाती है।
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दया याचिका की प्रक्रिया
- सबसे पहले नियम के अनुसार दया याचिका के मामले में राष्ट्रपति को एक अर्जी लिखी जाती है वह अर्जी गृह मंत्रालय द्वारा लिखी जाती है।
- जब वह अर्जी राष्ट्रपति तक पहुंचती है तब उसे कैबिनेट का पक्ष माना जाता है और उस पर राष्ट्रपति द्वारा सलाह मशवरा किया जाता है।
- भारतीय कानून के अनुसार यदि किसी अपराधी को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फांसी की सजा दे दी गई है चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी तो वह अपनी तरफ से भी गृह मंत्रालय के अधिकारियों या फिर सीधे ही राष्ट्रपति के ऑफिस में अपनी दया याचिका भेज सकता है।
- वह दया याचिका उस राज्यपाल को भी भेजी जा सकती है जिस राज्य में वह कैदी सजा काट रहा हो। उस राज्य का राज्यपाल सीधे ही वह दया याचिका गृह मंत्रालय तक भेज देते हैं।
- सजा काट रहे दोषी व्यक्ति बड़े अधिकारियों, वकीलों या परिवार के किसी भी सदस्य के हाथों यह दया याचिका गृह मंत्रालय या राष्ट्रपति के दफ्तर तक भेज सकते हैं वे अपराधी चाहे तो लिखित रूप में ना दे कर याचिका को मेल के द्वारा भी भेज सकते हैं।
दया याचिका कब और कैसे राष्ट्रपति के पास पहुँचती है?
- कोई भी अपराधी न्यायालय में सुनाई गई सजा के पक्ष में नहीं हैं वह अपना एक अलग पक्ष रखना चाहता है और अपने केस की सुनवाई दोबारा और अच्छे दर्जे पर कराना चाहता है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में जाकर अपनी अर्जी दाखिल कर सकता है।
- यदि उच्च न्यायालय में भी उस अपराधी की सजा को बरकरार रखा जाता है और तब भी दोषी के पास याचिका का विकल्प बचता है वह अपने पक्ष में राष्ट्रपति तक दया याचिका पहुंचाने के लिए भरसक प्रयास कर सकता है।
- इन सब के अलावा यदि कोई अपराधी का साथ देने वाला वकील या अधिकारी न्यायालय के निर्णय से सहमत नहीं है तो वह भी उस अपराधी के पक्ष से दया याचिका राष्ट्रपति तक या गृह मंत्रालय तक पहुंचा सकता है।
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दया याचिका से जुड़ी कुछ खास बातें
- भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद 72 के मुताबिक राष्ट्रपति को यह अधिकार होता है कि वह किसी भी अपराधी की दया याचिका प्राप्त करने के बाद उसकी सजा को माफ कर सकते हैं या फिर सब की तरफ से निर्णय लेते हुए उसे स्थगित भी कर सकते हैं साथ ही साथ वह उसकी सजा कम भी कर सकते हैं या फिर उसमें कोई नए बदलाव भी ला सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति को यह अधिकार बिल्कुल भी नहीं होता है कि वह उस दया याचिका पर अपनी मर्जी से कोई फैसला ले। संविधान में इस बात को पूरी तरह से कहा गया है कि राष्ट्रपति अपने निर्णय के साथ साथ मंत्री परिषद से उस मामले पर सलाह लेकर ही अपराधी की सजा में कोई बदलाव कर सकते हैं।
- संविधान के नियमों के अनुसार दया याचिका के मामले में गृह मंत्रालय द्वारा ही राष्ट्रपति को लिखित में पक्ष प्रस्तुत करना होता है। राष्ट्रपति द्वारा उसे ही कैबिनेट का संपूर्ण पक्ष माना जाता है और वे उस अपराधी की दया याचिका पर कार्यवाही करना आरंभ करते हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका प्राप्त करने के बाद ऐसा नहीं होता है कि उस पर तुरंत फैसला ले लिया जाता है बल्कि दया याचिका पर फैसला लेने का कोई भी सीमित समय नहीं है उस पर फैसला लेने में कई साल भी लग जाते हैं और कई महीने भी।
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दया याचिका के मुख्य मामले
दया याचिका से जुड़े कुछ मुख्य मामले ऐसे हैं जो बेहद मशहूर भी हैं आइए जानते हैं उन दया याचिकाओं के बारे में…
- संभावित आंकड़ों और ऐतिहासिक रिपोर्ट के अनुसार देखा जाए तो 26 जनवरी 1950 से लेकर साल 2015 तक देश के वर्तमान और भूतकाल राष्ट्रपतियों द्वारा कुल 437 दया याचिकाओं में से केवल 306 दया याचिका ऐसी थी जिन पर उन्होंने अपनी स्वीकृति दी। हालांकि उन मामलों में राष्ट्रपति ने उनकी फांसी तो रद्द कर दी लेकिन उनकी सजा को लंबित करते हुए आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया।
- एक आंकड़ा ऐसा भी कहता है कि उस अवधि के दौरान लगभग 131 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था जिन पर राष्ट्रपति द्वारा कोई भी फैसला नहीं सुनाया गया।
- भारत में कई सारे राष्ट्रपति रहे जिनमें से भारत के प्रथम राष्ट्रपति जिन्हें आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है, राजेंद्र प्रसाद कुमार के कार्यकाल के दौरान लगभग 181 दया याचिका उनके पास पहुँचाई गई थी। उनमें से उन्होंने 180 दया याचिकाओं पर गौर किया और उनकी सजा में परिवर्तन करते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उस समय उन्होंने मात्र एक याचिका को ही खारिज किया।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा भी अपने कार्यकाल के दौरान 57 याचिकाएं स्वीकार की गई।
- इसके बाद 1982 से लेकर 1997 के दौरान 3 राष्ट्रपतियों का कार्यकाल रहा उस दौरान लगभग 100 दया याचिकाएं कार्यान्वित की गई थी जिसके अंतर्गत 93 दया याचिकाएं पूरी तरह से खारिज कर दी गई और 7 अपराधी ऐसे थे जिनकी सजा में पूरी तरह से बदलाव कर दिया गया।
- सन 1982 से लेकर साल 1997 की अवधि के दौरान के आर नारायणन राष्ट्रपति के पद पर आसीन रहे उन्होंने किसी भी प्रकार की कोई दया याचिका पर अपना कोई निर्णय नहीं सुनाया।
- जब डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बन कर पदासीन हुए तब उन्होंने अपने कार्यकाल में एक दया याचिका को खारिज कर दिया और एक दया याचिका के तहत अपराधी को आजीवन कारावास सुनाया।
- प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति के पद को संभालते हुए याचिका की लिस्ट में से पांच दया याचिकाएं खारिज कर दी. जिनमें से 34 अपराधी ऐसे थे जिनकी दया याचिका को फांसी से बदलकर आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया।
- प्रणव मुखर्जी ने भी राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने के बाद कार्यकाल के दौरान 33 में से लगभग 31 दया याचिकाओ को पूरी तरह से खारिज कर दिया था।
- वर्तमान समय में रामनाथ कोविंद जी देश के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हैं जिन्होंने निर्भया केस के मुजरिमों की दया याचिका खारिज करते हुए उन्हें फांसी की सजा देना तय कर दिया है। उनके कार्यकाल में यह अब तक की पहली दया याचिका है।
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क्यूरेटिव पिटिशन क्या है ? (What is Curative Petition in hindi)
क्यूरेटिव पिटिशन का अर्थ सरल शब्दों में बचाव की अर्जी एक बार और लगाना है। क्यूरेटिव पिटिशन तब लगाई जा सकती है जब किसी अपराधिक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्विचार करने के बाद भी दया याचिका खारिज कर दी जाती है। ऐसे में अपराधी या अपराधी की तरफ से उसका वकील या परिवार वाले क्यूरेटिव पिटिशन लगा सकते हैं जो उस अपराधी के लिए क्षमा याचना का अंतिम रास्ता होता है। क्यूरेटिव पिटिशन पर फैसला सुनाने का अधिकार चीफ जस्टिस या फिर राष्ट्रपति के पास ही होता है। किसी भी अपराध में क्षमा याचिका प्राप्त करने का यह आखिरी और अंतिम रास्ता होता है।
क्यूरेटिव पिटिशन के नियम (Curative Petition Supreme Court Rules)
- जो अपराधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपने नाम से क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कराना चाहता है उसे अपने पिटीशन में यह बताना होगा कि आखिरकार वह इस पेटीशन को दाखिल क्यों कराना चाहता है । उस अपराधी को क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कराने से पहले किसी भी सीनियर वकील से सर्टिफाइड कराना और उस पर मोहर लगवाना अति आवश्यक होता है। यदि वह इस प्रक्रिया को पूरा कर लेता है तो वह इस पेटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जज के पास ले जा सकता है।
- यदि वह इस प्रक्रिया को पूरा कर लेता है तो वह इस पेटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जज के पास ले जा सकता है जिन्होंने उसके केस पर सुनवाई करके फैसला सुनाया हो। यदि सुप्रीम कोर्ट के सबसे ऊँचे पद पर आसीन जज को ऐसा लगता है कि क्यूरेटिव पिटिशन के तहत उस केस पर दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तो उस याचिका को दोबारा से उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है जिस सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा उस अपराधी के अपराध को लेकर फैसला सुनाया गया होता है।
भारतीय कानून के अनुसार सभी अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए लेकिन किस अपराधी को क्या सजा मिलनी चाहिए वह भारतीय संविधान ही निर्धारित कर सकता है। प्रत्येक भारतीय को अपने भारतीय संविधान पर विश्वास होना चाहिए। हमारे संविधान में बताए गए कानून के अनुसार प्रत्येक अपराधी को उसके जुर्म के अनुसार कड़ी से कड़ी और आवश्यक सजा दी जाती है और भविष्य में भी दी जाएगी।
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