लाल कृष्ण आडवाणी का जीवन परिचय| Lal Krishna Advani Biography In Hindi

Lal Krishna Advani Biography or life history in hindi लाल कृष्ण आडवाणी का जीवन परिचय, उम्र, बेटी का नाम, दामाद, जन्म, जाति

भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का जाना माना एवं चर्चित चेहरा है. भारतीय जनता पार्टी को हम अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी के बिना नहीं सोच सकते. सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में इन दो व्यक्तियों का विशेष योगदान रहा है. लालकृष्ण आडवाणी 1951 से अब तक भारतीय जनता पार्टी में एक सक्रिय राजनेता की भूमिका निभा रहे हैं.

L K Advani

लाल कृष्ण आडवाणी का जीवन परिचय

Lal Krishna Advani Biography in hindi

जन्म8 नवम्बर 1927
जन्म स्थानकराची
पिता का नामकिशनचंद आडवाणी
माता का नामज्ञानी देवी
पत्नी का नामकमला देवी

एल. के. आडवाणी जन्म एवं परिवार (L K Advani family) :

एल. के. आडवाणी (L K Advani) का जन्म कराची के सिंधी परिवार में 8 नवम्बर 1927 में हुआ था. उनके पिताजी एक व्यापारी थे. उनके पिता का नाम श्री किशनचंद आडवाणी तथा माता का नाम श्रीमती ज्ञानी देवी था. यह परिवार भारत के कराची प्रांत (जो कि अब पाकिस्तान में है), में हुआ. कराची में रहने के बाद भारत-पाकिस्तान बँटवारे में यह परिवार पाकिस्तान से मुंबई (भारत) आ कर बस गया.

एल. के. आडवाणी शिक्षा (L K Advani Education):

एल. के. आडवाणी की स्कूली शिक्षा संत पेटरिक्स हाइ स्कूल, कराची से हुई. फिर उन्होने हेदराबाद के के. डी. जी. कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की. पाकिस्तान से भारत आने पर उन्होने बॉम्बे यूनिवरसिटी के गवर्नमेंट लॉं कॉलेज से अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की.

एल. के. आडवाणी विवाह (L K Advani Marrige):

सन 1965 में फरवरी में एल. के. आडवाणीजी का विवाह कमला देवी से हुआ. इस दंपति की दो सन्तानें थी. उनके पुत्र का नाम जयंत आडवाणी तथा पुत्री का नाम प्रतिभा आडवाणी है. प्रतिभा आडवाणी टीवी सीरियल्स की निर्माता होने के साथ साथ अपने पिता की राजनैतिक क्रियाकलापों में सहायिका भी हैं. श्री आडवाणी की पत्नी का हृदयाघात से अचानक अप्रैल 2016 में निधन हो गया.

एल. के. आडवाणी राजनीतिक शुरुआत (L K Advani Political Career):

लालकृष्ण आडवाणी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1942में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के स्वयंसेवी के रूप में की. आर.एस.एस. एक हिन्दू संगठन है. लालकृष्ण आडवाणी सबसे पहले कराची में ही आर.एस.एस. के प्रचारक हुए और आर.एस.एस. को अपनी सेवाएँ देते हुए उन्होने आर.एस.एस. की कई शाखाएँ स्थापित की. फिर भारत पाकिस्तान के बँटवारेके बाद भारत आने परउन्हें राजस्थान के मत्स्य अलवाड़ भेजा गया. 1952 तक उन्होने अलवाड़ में काम करने के बाद राजस्थान के ही भरतपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़ जिले में काम किया.

भारतीय जनसंघ :

1951 में श्याम प्रसाद मुखेरजी ने आर.एस. एस. के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की. आर.एस.एस. के सदस्य होने के नाते एल.के.आडवाणी भी जनसंघ से जुड़ गए. उन्हें राजस्थान में जनसंघ  के श्री एस.एस.भण्डारी के सचिव के पदपर नियुक्त किया गया. एल.के.आडवाणी. बहुत ही कुशल राजनीतिक थे.उनके कुशल नेत्रत्व के डीएम पर जल्द ही उन्हें जनसंघ में जनरल सेक्रेटरी का पद भी मिल गया. फिर राजनीति में अपना कदम आगे बढाते हुए 1957 में उन्होने दिल्ली की ओर रूख किया. वहाँ उन्हे दिल्ली के जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उन्होने 1967 में दिल्ली के महानगरीय परिषद चुनाव लड़े और काउंसिल के नेता बने. राजनीतिक गुण के साथ-साथ एल.के.आडवाणी में और भी कई प्रतिभाएँ थी. 1966 में आर.एस.एस. की साप्ताहिक पत्रिका में उन्होने संपादक श्री के.आर.मलकानी की भी मदद की.

राज्य सभा का सफर:

राज्य सभा तक का सफर तय करने में एल.के.आडवाणी को 19 वर्ष लग गए. सबसे पहले 1970 में राज्य सभा के सदस्य बने. फिर जनसंघ के नेता के रूप में उन्होने कई पद संभाले. फिर 1973 में कानपुर की कमेटी के अध्यक्ष रहे. अपनी पार्टी के प्रति और उनके उसूलों के प्रति वे काफी सजग थे. अध्यक्ष के तौर पर उन्हें भारतीय जनसंघ के अनुभवी नेता बलराज माधव का कार्य ठीक नहीं लगा. उन्हें लगा कि श्री बलराज माधव एक अनुभवी नेता होते हुए भी पार्टी के उसूलों के खिलाफ कार्य कर रहे हैं, जिससे पार्टी की प्रतिभा खराब हो सकती है. इसलिए उन्होने पार्टी के हित के लिए श्री बलराज को भारतीय जनसंघ से निष्कासित कर दिया.

1975  में इन्दिरा गांधी की केंद्र सरकार के दौरान आपातकालीन स्थिति में कई विरोधी दल भारतीय जन संघ के साथ जुड़ गए एवं आपात कालीन स्थिति का विरोध करने लगे तथा इसी के बाद भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ. राजनीति में यूंही आगे बढ़ते हुए श्री आडवाणी जी 1976 से 1982 तक गुजरात से राज्य सभा के सदस्य रहे. 1977 में एल. के. आडवाणी ने अटल बिहारी वजपायी जी के साथ मिलकर लोक सभा के चुनाव लड़े.

जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी तक का सफर :

1977 में समाजवादी पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, लोक दल तथा जनसंघ ने मिलकर नए संघठन का निर्माण किया. राजनीति में नेताओं का पार्टी का बदलना आम बात है. इसी क्रम में इंडियन नेशनल काँग्रेस के जगजीवन भी पार्टी बदल कर जनता पार्टी के गठबंधन में शामिल हो गए. इंदिरा गांधी का आपातकालीन शासन कई राजनीतिक पार्टियों को रास नहीं आया और जिसके कारण इन्दिरा गांधी की सरकार चुनाव हार गयी और जनता पार्टी के हाथ सत्ता आ गयी. मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री तथा एल.के.आडवाणी सूचना एवं प्रसार मंत्री एवं श्री अटल बिहारी वाजपाई विदेश मंत्री बने.

फिर जनता पार्टी में एक नया मोड आया और कई दिग्गज एवं अनुभवी नेता ने जनता पार्टी छोड़ कर एक नयी पार्टी का निर्माण किया. इस पार्टी को  “भारतीय जनता पार्टी” (भा.ज.पा.) का नाम दिया गया. आडवाणी इस नयी पार्टी के वशिष्ठ एवं महत्वपूर्ण नेता थे. इसके बाद वे 1982 में उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए पार्टी द्वारा मध्य प्रदेश से मनोनीत हुए.

बी. जे. पी. का उदय :

अटल बिहारी वाजपाई को नयी भारतीय जनता पार्टी के सबसे पहले अध्यक्ष के तौर पर चुना गया. अटलजी की अध्यक्षता में पार्टी में हिन्दुत्व की भावना और अधिक प्रज्वलित हुई. लेकिन 1984 में बी.जे.पी. सरकार को सत्ता गवानी पड़ी. 1984 के चुनाव के कुछ समय पहले इन्दिरा गांधी की अचानक हत्या के बाद सभी वोट काँग्रेस को ही मिले और बी.जे.पी. को सिर्फ दो लोक सभा सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इसके बाद अटलजी को अध्यक्ष पद से हटा कर एल.के.आडवाणी को नया अध्यक्ष घोषित किया गया. आडवाणी के नेत्रत्व में भाजपा ने “राम जन्मभूमि” का मुद्दा उठाया. आज भी भाजपा का राजनीतिक मुद्दा “राम मंदिर निर्माण” है.

1980 में विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने राम मंदिर निर्माण की मुहिम शुरू की. बी.जे.पी. नेताओं तथा कई हिंदुओं का यह मानना है कि अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि है.  यहाँ स्थित बाबरी मस्जिद के पहले राम मंदिर ही था, परंतु मुग़ल शासक बाबर ने उस मंदिर को तुडवा कर मंदिर की जगह मस्जिद का निर्माण करवाया है. और इसी के विरोध में सभी हिन्दू तथा बी.जे.पी. नेता मस्जिद की जगह “राम मंदिर” बनवाना चाहते हैं. इसी मुद्दे को भाजपा ने चुनावी एजेंडा में भुना और इसका फाइदा उठाया. 1989 के चुनाव के दौरान काँग्रेस को बहुमत मिलने पर भी उसने केन्द्र्स में सरकार बनाने से इंकार कर दिया. इसलिए व्ही.पी. सिंह की सरकार को बी.जे.पी. ने अपना 86 सीटों का समर्थन दे कर नेशनल फ्रंट सरकार बनाने में मदद की.

एन.डी.ए. सरकार में ग्रहमन्त्री :

1996 के चुनाव के बाद बी.जे.पी. सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई और इसलिए उसे केंद्र में सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति की ओर से प्रस्ताव पेश किया गया. तब सबसे पहली बार अटल बिहारी वाजपाईजी ने मई 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करी, किन्तु यह जानना दिलचस्प होगा कि यह सरकार केवल 13 दिनों तक ही टिक पायी. फिर 1996 से 1998 तक दो अस्थिर सरकार – पहले एच.डी. देवेगौड़ा और बाद में आई.के.गुजराल की सरकार आई.

इनके शासन के बाद एन.डी.ए. सरकार में अग्रसर बी.जे.पी. फिर एक बार 1998 में लौट कर आई और वाजपाई जी ने मार्च 1998 में फिर एक बार प्रधानमंत्री की शपथ ली. लेकिन 13 महीने बाद ही एन.डी.ए. से जयललिता ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे एन.डी.ए. सरकार मात्र 13 महीने में ही गिर गयी.

लेकिन इस सरकार को वाजपाईजी ने अगले चुनाव तक संभाला और उनके साथ एल.के.आडवाणी ग्रहमन्त्री रहे. इसके बाद एन.डी.ए. सरकार ने 2004 तक अपने पूरे कार्यकाल में रही, और इस दौरान आडवाणीजी के पद में उन्नति हुई और वे “भारत के उप-प्रधानमंत्री” बने.

आडवाणी पर आरोप (L K Advani controversy) :

आडवाणी दिग्गज तथा दूरदर्शी नेता थे, फिर भी राजनीति में रहते उन पर कई आरोप भी लगे. उन पर हवाला ब्रोकर्स से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया, लेकिन सूप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में इन्हे बाइज्जत बरी कर दिया.

2004 के चुनाव के बाद बी.जे.पी. की सत्ता काफी सशक्त नजर आ रही थी. इस पर एल.के. आडवाणी ने दावा किया कि काँग्रेस पार्टी चुनाव में 100 से अधिक सीट नहीं ला पाएगी. लेकिन हुआ कुछ और ही. भाजपा की हार हुई और उसे लोक सभा में विपक्ष में बैठना पड़ा. केंद्र में काँग्रेस की सरकार आई एवं डॉ.मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करी.

2004 के बाद अटलजी ने आडवाणी को बी.जे.पी. में सक्रिय भूमिकाओं में आगे किया और 2009 तक आडवाणी विपक्ष के अध्यक्ष रहे. लेकिन इस दौरान उन्हें पार्टी का ही विरोध झेलना पड़ा. उनके करीबी माने जाने वाले पार्टी के नेता मुरली मनोहर जोशी, मदनलाल खुराना, उमा भारती ने उनका विरोध शुरू कर दिया.

एल.के. आडवाणी की आलोचनाओं का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ. एक बार जून 2005 में वे कराची के दौरे पर गए, जो कि उनका जन्मस्थान है, वहाँ उन्होने मोहम्मद अली जिन्नाह को एक धर्मनिरपेक्ष नेता बताया. यह बात आर.एस.एस. के हिन्दू नेताओं के गले नहीं उतरी और आर.एस.एस. ने इस बयान के विरोध में आडवाणी के इस्तीफे की मांग कर दी. आडवाणी जी को विपक्ष के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में उन्होने अपना इस्तीफा वापस ले लिया.

प्रधानमंत्री पद की दावेदारी :

2004 से 2009 तक विपक्ष के अध्यक्ष रहते हुए 2006 में एल.के. आडवाणी ने एक न्यूज़ चैनल को दिये, अपने इंटरव्यू में खुद को 2009 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार बताया. भाजपा में इस दावेदारी का मुख्य कारण था कि वे भाजपा के वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता थे. उनकी इस दावेदारी को मजबूती देते हुए बी.जे.पी. के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि “अटलजी के बाद, आडवाणी ही है, वे प्रधानमंत्री पद के लिए प्राकृतिक रूप से दावेदार है. इसी कड़ी में दिसम्बर 2007 में अगले चुनाव के लिए भाजपा ने एल.के. आडवाणी को प्रधानमंत्री के लिए दावेदार घोषित किया. लेकिन शायद आडवाणी जी की किस्मत में नही था प्रधानमंत्री बनना. 2009 में फिर एक बार काँग्रेस सरकार केंद्र में आई और डॉ. मनमोहन सिंह ने दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.

आडवाणी जी की रथ यात्राएं :

देश की राजनीति में सर्वाधिक यात्राएं निकालने वाले आडवाणी ही एकमात्र नेता हैं. उनके नेत्रत्व में 6 बड़ी बड़ी यात्राएं हुई, जिनहोने भाजपा को राजनीति में बहुत मदद की. यात्राओं के सफल होने का श्रेय एल.के. आडवाणी को ही जाता है. आडवाणी को रथ यात्रा का नेता भी कहा जाता है. आडवाणी जी के अनुसार रथ यात्रा एक धार्मिक यात्रा होती है, जो देश के प्रति राष्ट्रीय धर्म को जगाती है.

1. राम रथ यात्रा :

आडवाणीजी ने अपनी सबसे पहली रथ यात्रा को नाम दिया “राम रथ यात्रा”. आडवाणीजी के नेत्रत्व में यह यात्रा गुजरात के सोमनाथ मंदिर से 25 सितम्बर 1990 से प्रारम्भ हो कर 30 अक्टूम्बर को अयोध्या पहुंची. इस यात्रा का मुख्य मुद्दा “राम मंदिर निर्माण” था। कोई इस यात्रा को राजनीतिक चाल समझ रहा था, तो कोई इसे भारत के लिए राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत जुलूस मान रहा था. राजनीतिक चाल मानते हुए इस यात्रा को उत्तर प्रदेश तथा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह व लालू प्रसाद यादव ने इसे रोक दिया. उनका मानना था कि यह यात्रा भारत की सांप्रदायिकता को प्रभावित करती है. लेकिन इन सब बातों का भाजपा तथा उसकी रथ यात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और आडवाणी के नेत्रत्व में हुई इस यात्रा से भाजपा सशक्त हुई और 1991 के चुनाव के दौरान भाजपा, काँग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी रही.

2. जनादेश यात्रा :

भारत के चार कोनों से  सितंबर 1993 में यह यात्रा शुरू हुई. आडवाणी जी ने मैसूर से इस यात्रा की अगुवाई की. भारत के 14 राज्यों तथा 2 केंद्र शासित प्रदेश से होती हुई,  यह यात्रा 25 सितंबर को भोपाल में मिली.  इस यात्रा का उद्देश्य भारत के नागरिक को उसके अपने धर्म को मानने से संबन्धित दो बिलों को पारित करवाना था.

3. स्वर्ण जयंती रथ यात्रा :

 भारत की अहजादी की 5वीं सालगिरह के अवसर पर आडवाणीजी ने स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का आगाज़ किया. इस यात्रा के द्वारा पूरे भारत में आजादी का जश्न मनाया गया. इस यात्रा को आडवाणीजी ने मई 1997 से जुलाई 1997 तक पूरी की. इस यात्रा द्वारा देश की आजादी में शहीद होने वाले महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. आडवाणी जी ने इस यात्रा को  स्वर्ण जयंती रथ यात्रा –राष्ट्र भक्ति की तीर्थ यात्रा” का नाम दिया. इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य  भारतीयों के दिल में राष्ट्र भक्ति की भावना जगाना था.

4. भारत उदय यात्रा :

2004 में अटल बिहारी वाजपाई की सरकार के दौरान देश की कई क्षेत्र में उन्नति हुई. भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई. इसी कारण आडवाणी ने बहरत उदय यात्रा निकालते हुए कहा, कि भाजपा सरकार के समय भारत का उदय हुआ है और इस यात्रा द्वारा भारत की उन्नति का जश्न मनाया गया. यह यात्रा मार्च 2004 में आडवाणी के नेत्रत्व में निकाली गयी.

5. भारत सुरक्षा यात्रा :

मार्च 2006 में वाराणसी के हिन्दू तीर्थ स्थान पर बम धमाके हुए थे. इसके भाजपा सरकार ने केंद्र में बैठी काँग्रेस को गैर जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाए, कि काँग्रेस सरकार देश की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रही है. इसी के विरोध में आडवाणी ने 6 अप्रैल 2006 से 10 मई 2006 तक “भारत सुरक्षा यात्रा” निकाली. इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य देश को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यक पर राजनीति, प्रजातन्त्र की रक्षा तथा महंगाई के प्रति सजग करना था.

6. जन चेतना यात्रा :

भाजपा के नेता श्री जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थाली सिताब दायरा, बिहार से शुरू हुई जन चेतना यात्रा की अगुवाई एल.के. आडवाणी ने अक्टूबर 2011 से की. कॉंग्रेस सरकार के दौरान देश में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार के विरोध में यह यात्रा निकाली गयी. यह यात्रा बहुत ही बड़ी एवं सफल साबित हुई. इसमें दिल्ली के रामलीला मैदान पर भाजपा तथा एन.डी.ए. के कई डीजजाग नेता भी शामिल हुए. आडवाणी जी ने इस यात्रा को उनकी सबसे सफल यात्रा बताया.

राजनीति में बुरा दौर :

2009 चुनाव हारने के बाद एल.के. आडवाणी ने पार्टी के दूसरे नेताओं के लिए रास्ता साफ किया और पार्टी में ज्यादा सक्रिय नही हुए. 2009 में सुषमा स्वराज भाजपा की ओर से लोक सभा में विपक्ष के अध्यक्ष के रूप में चुनी गयी. 2014 के चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी की सभी मुहिमो में प्रबल दावेदारी एवं भागीदारी रही और इस पर आडवाणीजी ने नाराज होते हुए बी.जेआर.पी. पर आरोप लगाते हुए कहा, कि यह पार्टी श्याम प्रसाद मुखर्जी, दीनदायल उपाध्याय, ननजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपाई द्वारा बनाई गयी पहले जैसी पार्टी नहीं रही. इसके बाद 11 जून 2013 में आडवाणीजी ने भाजपा के सभी पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन भाजपा की वरिष्ठ समिति ने 11 जून 2013 को ही इस्तीफा अमान्य करते हुए बी.जे.पी.अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने आडवाणी को आश्वासन देते हुए कहा, कि पार्टी में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. पार्टी को हमेशा ही आडवाणी जैसे दिग्गज, अनुभवी नेता की आवश्यकता रहेगी.

मार्गदर्शक मण्डल :

2014 में एल.के. आडवाणी को भाजपा संसदीय बोर्ड से निकाल कर बी.जे.पी. के मार्गदर्शक मण्डल में शामिल किया गया. इस मण्डल में आडवाणी के साथ साथ पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपाई तथा मुरली मनोहर जोशी को भी शामिल किया गया.

लेखन:

एल.के. आडवाणी ने अपने जीवन की घटना तथा राजनीतिक सफर को “माइ कंट्री माइ लाइफ” (My country My Life) नामक पुस्तक के जरिये बताया है. इस किताब का विमोचन भारत के 11वें राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम द्वारा 2008 में किया गया. इस किताब में 1040 प्रष्ठ हैं, जो कि आडवाणी के जीवन की घटनाओं को चरितार्थ करते हैं. यह किताब अधिक बिकने वाली रही.

श्री एल.के.आडवाणी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं. उन्होने पार्टी के लिए हमेशा अपना अनुभव तथा योगदान दिया. उनका भाजपा के प्रति किया गया समर्पण ही भाजपा को इस मुकाम तक लाया है. आडवाणीजी एक कुशल नेता हैं. उन्हे 2015 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जब तक वे भाजपा के साथ हैं भाजपा को उनके अनुभव का लाभ मिलता रहेगा.

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