सपिंड विवाह क्या हैं? हाई कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया है?

क्या है सपिंड विवाह, सपिंड विवाह क्या है, सपिंड विवाह कैसे होता है, सपिंड विवाह के नियम क्या है, प्रतिबंध क्यों है, ताजा ख़बर, Sapinda Marriages kya hai, Sapinda relationship, sapinda marriage in hindi, sapinda marriage kya hota hai, sapinda marriage in india, latest news, new law, sapinda marriage ban, sapinda marriage rules in hindi, sapinda relationship example, what is sapinda

संविधान लागू होने के पश्चात भारतीय नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार प्राप्त हुए हैं। इनमें से एक प्रमुख अधिकार है विवाह करने की स्वतंत्रता। यहाँ हर पुरुष और महिला को अपनी इच्छानुसार जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, बिना जाति, धर्म या क्षेत्र के प्रतिबंध के। हालांकि, कुछ रिश्तेदारी में विवाह की मनाही होती है, जिन्हें ‘सपिंड विवाह’ के रूप में जाना जाता है। इसके बावजूद कि यह एक मौलिक अधिकार है, इन रिश्तों में विवाह निषिद्ध है। हाल ही में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला की याचिका खारिज की जो हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के एक खंड को असंवैधानिक बताने का प्रयास कर रही थी। यह खंड हिंदू जोड़ों के बीच सपिंड संबंध होने पर विवाह को रोकता है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि यदि विवाह साथी चयन में सभी प्रतिबंध हटा दिए जाएं, तो अवैध संबंधों को भी मान्यता मिल सकती है। यह रही अब तक की खबर की मुख्य जानकारी। ‘सपिंड’ शब्द कई लोगों के लिए नया हो सकता है, जबकि कुछ के लिए परिचित हो सकता है। हमारा विश्लेषण इसी ‘सपिंड विवाह’ पर केंद्रित है।

सपिंड विवाह क्या हैं? हाई कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया है?

क्या है सपिंड विवाह [What is Sapinda Marriage]

सपिंड विवाह वह शादी होती है जो दो ऐसे व्यक्तियों के बीच संपन्न होती है, जिनके बीच खून का गहरा संबंध होता है। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, इस प्रकार के रिश्तों को सपिंड के नाम से जाना जाता है। इसे निर्धारित करने के लिए अधिनियम की धारा 3 में विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के अनुसार, ‘यदि दो व्यक्तियों में से कोई एक दूसरे का प्रत्यक्ष पूर्वज होता है और यह संबंध सपिंड संबंध की सीमा के भीतर आता है, या फिर दोनों का साझा पूर्वज ऐसा होता है जो सपिंड संबंध की सीमा के अंदर आता है, तो ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाता है।’

अनुसार हिंदू विवाह नियम, कोई भी व्यक्ति अपनी मातृ पक्ष की तीन पीढ़ियों तक के किसी भी सदस्य से विवाह नहीं कर सकता। इसका अर्थ यह है कि आपके भाई-बहन, माता-पिता, नाना-नानी और उनके वंशज जो मातृ पक्ष से तीन पीढ़ियों के भीतर आते हैं, उनसे विवाह निषिद्ध और गैरकानूनी माना जाता है। पिता की तरफ से यह प्रतिबंध पांच पीढ़ियों तक विस्तारित होता है, अर्थात् आप अपने परदादा-प्रपितामह आदि जैसे दूर के पूर्वजों से भी विवाह नहीं कर सकते। इसका कारण यह है कि अत्यधिक निकट संबंधों में विवाह से शारीरिक और मानसिक विकार हो सकते हैं। फिर भी, कुछ विशेष समुदायों में मामा-मौसी या चाचा-चाची से विवाह की परंपरा होती है और ऐसे में उसे हिंदू विवाह एक्ट के अनुसार मान्यता प्राप्त हो सकती है।

पिता की तरफ से यह प्रतिबंध परदादा-परनाना की पीढ़ी तक लागू होता है। इसका मतलब है कि यदि आप ऐसे किसी संबंधी से विवाह करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ऐसा विवाह हिंदू विवाह एक्ट के तहत अवैध माना जाएगा। इस प्रकार के विवाह को “सपिंड विवाह” कहा जाता है और यदि यह सामने आता है और इस तरह के विवाह का कोई परंपरागत रिवाज नहीं है, तो इसे कानूनी रूप से अवैध घोषित किया जा सकता है। इसका अर्थ है कि इस प्रकार का विवाह शुरू से ही अमान्य माना जाएगा।

क्या सपिंड विवाह में किसी प्रकार का अपवाद संभव है? [Sapinda Marriage Rules]

हां, इस नियम में केवल एक अपवाद है जो इसी नियम के अंतर्गत आता है। यदि विवाह करने वाले लड़का और लड़की के समुदायों में सपिंड विवाह की प्रथा हो, तो वे इस तरह के विवाह को कर सकते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(a) में यह उल्लेखित है कि किसी परंपरा को मान्यता प्राप्त होने के लिए, उसे लंबे समय से, निरंतर और बिना किसी परिवर्तन के चलने की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, वह परंपरा उस क्षेत्र, जनजाति, समुदाय या परिवार में इतनी प्रचलित होनी चाहिए कि वहां के हिंदू निवासी उसका पालन कानून की भांति करते हों। यह महत्वपूर्ण है कि केवल पुरानी परंपरा होना पर्याप्त नहीं है। यदि कोई रीति इन मापदंडों को पूरा करती है, तब भी उसे तत्काल मान्यता नहीं मिलेगी। यह रीति “स्पष्ट, असामान्य नहीं और समाज के हित के विपरीत नहीं” होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, यदि किसी परिवार के भीतर विशेष रीति-रिवाज है, तो उसे केवल उस परिवार तक सीमित नहीं होना चाहिए, यानी उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह नहीं होने चाहिए। अर्थात, वह परंपरा वास्तव में वहां मान्य होनी चाहिए।

इस कानून का किसने विरोध किया था? [Sapinda Marriage Controversy]

2007 में, एक महिला के पति ने न्यायालय में यह प्रमाणित कर दिया था कि उनका विवाह सपिंड शैली का था, और उस महिला के समुदाय में इस प्रकार के विवाह स्वीकार्य नहीं थे। नतीजतन, उनके विवाह को निरस्त कर दिया गया। इसके विरोध में, महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में उनकी अपील खारिज कर दी गई। इसके बाद भी महिला ने हार नहीं मानी और फिर से हाई कोर्ट में इसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने तर्क दिया कि सपिंड विवाह अनेक स्थानों पर संपन्न होते हैं, चाहे वह समुदाय की परंपरा में हो या न हो। उनका कहना था कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत सपिंड विवाह को केवल इसलिए अमान्य करना कि वे परंपरा में नहीं हैं, यह असंवैधानिक है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो समानता का अधिकार प्रदान करता है। महिला ने यह भी बताया कि दोनों परिवारों ने उनके विवाह को स्वीकृति दी थी, जिससे स्पष्ट होता है कि उनका विवाह अनुचित नहीं था।

हाईकोर्ट का जवाब क्या था? [Sapinda Marriage Latest News]

दिल्ली के उच्च न्यायालय ने महिला के तर्कों को अस्वीकार किया। अदालत की एक बेंच जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा शामिल थे, ने यह निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने सपिंड विवाह को वैध ठहराने के लिए किसी भी प्रमाणित परंपरा को ठोस प्रमाण के साथ सिद्ध नहीं किया। दिल्ली के उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि विवाह के लिए जीवनसाथी चुनने के नियम भी हो सकते हैं। इस प्रकार, अदालत ने माना कि महिला इस बात को स्थापित करने में विफल रहीं कि सपिंड विवाहों पर रोक लगाना संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार के विरुद्ध है।

सपिंड विवाह के बारे में अन्य देशों में क्या स्थिति है?

विश्व के विभिन्न देशों में सपिंड विवाह के संबंध में भारत के कानून से भिन्नताएं पाई जाती हैं। यूरोप के कई देशों में ऐसे रिश्तों को लेकर नियम कम कड़े हैं। उदाहरण के लिए, फ्रांस में 1810 के पीनल कोड के अनुसार, वयस्कों के बीच सहमति से होने वाले इन संबंधों को अपराध नहीं माना जाता था, जो नेपोलियन बोनापार्ट के काल में लागू हुआ था और बेल्जियम में भी प्रचलित था। 1867 में बेल्जियम ने अपना स्वयं का पीनल कोड बनाया, फिर भी वहां ऐसे रिश्ते कानूनी तौर पर मान्य हैं। पुर्तगाल में भी इन्हें अपराध नहीं समझा जाता है। आयरलैंड ने 2015 में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी, लेकिन इसमें सपिंड संबंध शामिल नहीं किए गए। इटली में, ऐसे रिश्ते केवल तब अपराध माने जाते हैं जब वे सामाजिक उपद्रव का कारण बनते हैं। अमेरिका में स्थिति अलग है, जहां के सभी 50 राज्यों में ऐसी शादियां गैरकानूनी हैं, लेकिन न्यू जर्सी और रोड आइलैंड में वयस्कों के बीच सहमति से इन संबंधों को अपराध नहीं समझा जाता।

FAQ

प्रश्न: सपिंड विवाह क्या है?

उत्तर: सपिंड विवाह वह शादी है जो खून के करीबी रिश्तेदारों के बीच होती है, जिसे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत सपिंड संबंध के रूप में पहचाना जाता है।

प्रश्न: दिल्ली हाईकोर्ट ने सपिंड विवाह के मामले में क्या निर्णय दिया?

उत्तर: दिल्ली हाईकोर्ट ने सपिंड विवाह को सही ठहराने के लिए प्रस्तुत किए गए तर्कों और सबूतों को अस्वीकार कर दिया।

प्रश्न: क्या सपिंड विवाह पर प्रतिबंध में कोई अपवाद होता है?

उत्तर: हां, अगर दोनों पक्षों के समुदाय में सपिंड विवाह की प्रथा हो, तो यह प्रतिबंध में एक अपवाद हो सकता है।

प्रश्न: हिंदू विवाह एक्ट के अनुसार, माता और पिता की तरफ से शादी के लिए कितनी पीढ़ियों तक का प्रतिबंध है?

उत्तर: माता की तरफ से तीन पीढ़ियों और पिता की तरफ से पांच पीढ़ियों तक के रिश्तेदारों से विवाह करने पर प्रतिबंध है।

Other Links-

More on Deepawali

Similar articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here