उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित दारुल उलूम देवबंद, जो एक मदरसा होने के साथ-साथ देश में मदरसों को संचालित करने वाली सबसे बड़ी इस्लामिक संस्था है, ने हाल ही में अपनी वेबसाइट के माध्यम से एक फतवा जारी किया जिसमें गजवा ए हिंद को इस्लामिक दृष्टिकोण से वैध करार दिया गया, जिसकी काफी आलोचना की गई।
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दारुल उलूम देवबंद क्या है
दारुल उलूम देवबंद, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के सहारनपुर जिले में स्थित एक इस्लामिक शिक्षण संस्थान है। यह 1866 में स्थापित हुआ था और इसे दुनिया भर में मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में से एक माना जाता है। देवबंदी आंदोलन, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ मुस्लिम पुनर्जागरण और स्वतंत्रता की भावना को प्रोत्साहित करता था, इसी संस्थान से उत्पन्न हुआ था।
दारुल उलूम देवबंद का शैक्षणिक कार्यक्रम कठोर और व्यापक है, जिसमें कुरान, हदीस, इस्लामिक जुरिसप्रुडेंस (फिक्ह), भाषा (अरबी और उर्दू), दर्शन, और इस्लामिक इतिहास सहित विभिन्न विषयों का अध्ययन शामिल है। इस संस्थान की विशेषता यह है कि यह इस्लामी शिक्षा को बहुत ही पारंपरिक और रूढ़िवादी तरीके से प्रस्तुत करता है, जिसमें धर्म के प्रति गहरी आस्था और संस्कृति के प्रति सम्मान को महत्व दिया जाता है।
गजवा ए हिंद क्या है?
“गजवा-ए-हिंद” एक इस्लामिक परिकल्पना है जिसका उल्लेख कुछ हदीसों (पैगंबर मुहम्मद के कथनों और कार्यों का संग्रह) में मिलता है। यह विचार विशेष रूप से कुछ इस्लामी परंपराओं में पाया जाता है, लेकिन इसकी व्याख्या और महत्व को लेकर मुस्लिम समुदाय के भीतर विभिन्न मत हैं।
इस फतवे के संबंध में NCPCR की कार्यवाही –
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और कानूनी कार्रवाई आरंभ करने का निर्देश दिया। इस निर्णय का कारण देवबंद की वेबसाइट पर प्रकाशित एक फतवा था, जिसमें ‘गजवा-ए-हिंद’ की बात कही गई, जो कथित रूप से ‘भारत पर आक्रमण के संदर्भ में शहादत’ का महिमामंडन करता है।
अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि यह फतवा किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 75 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह बच्चों में अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना को बढ़ावा देता है और उन्हें मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुंचा सकता है। इस प्रकार की सामग्री से राष्ट्र के खिलाफ नफरत भड़क सकती है।
भारत का तालिबानीकरण स्वीकार नहीं
इस फतवे पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि भारत का तालिबानीकरण कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने देवबंद द्वारा गजवा ए हिंद को वैधता देने वाले फतवे को भारतीय संविधान विरोधी और पाकिस्तान परस्त बताया और कहा कि इससे यह साफ होता है कि देवबंद भारतीय संविधान में विश्वास नहीं रखता।
इस विवादास्पद फतवे ने न केवल राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर बहस को जन्म दिया है बल्कि यह भी संकेत दिया है कि भारतीय समाज में धार्मिक और राष्ट्रीय मूल्यों के बीच संघर्ष कितना गहरा है। इस घटना ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव के संदर्भ में व्यापक चिंताओं को भी उजागर किया है। ऐसे में, यह आवश्यक हो जाता है कि समाज के सभी वर्गों द्वारा संविधान के मूल्यों को समझा जाए और उनका सम्मान किया जाए, ताकि भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति को बनाए रखते हुए एकता और सद्भाव को बढ़ावा दिया जा सके।
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