अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम या डीआरएस क्या है | What is DRS or Umpire Decision Review System in Cricket in Hindi

अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम या डीआरएस क्या है  | What is DRS or UDRS (Umpire Decision Review System) kya hai, full form Rules in Cricket in Hindi

क्रिकेट प्रेमियों ने जरूर डिसीजन रिव्यू सिस्टम या डीआरएस के बारे में सुना होगा और उन्हें पता ही होगा कि किस तरह क्रिकेट के इस नियम की मदद से कोई भी टीम अंपायर के फैसले को चुनौती दे सकती है. हाल ही में इस नियम में कुछ बदलाव भी किए गए हैं. इन बदलावों की मदद से इस नियम को और मजबूती दी गई है. वहीं इस नियम को लेकर काफी आलोचनाएं भी की गई हैं. आखिर क्या है ये नियम और किस तकनीक की मदद से इस डिसीजन रिव्यू सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है.

डीआरएस का पूरा नाम क्या है (DRS full form)

डीआरएस (DRS) का पूरा नाम  डिसीजन रिव्यू सिस्टम है, इसे यूडीआरएस भी कहा जाता है, जिसका मतलब अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम (Umpire Decision Review System) है.

DRS in cricket

क्या है डिसीजन रिव्यू सिस्टम (what is decision review system)

मैदान में खेल रहे बल्लेबाज को अगर अंपायर आउट दे देता है और उस खिलाड़ी को लगता है कि अंपायर ने जो निर्णय लिया है वो गलत है. तो ऐसी स्थिति में वो खिलाड़ी इस नियम की मदद से अंपायर के फैसले के विरुद्ध जा सकता है. खिलाड़ी तीसरे अंपायर से फैसले पर विचार करने की मांग कर सकता है. वहीं डिसीजन रिव्यू सिस्टम की मदद से तीसरा अंपायर, पहले अंपायर के फैसले की समीक्षा करता है. अगर समीक्षा के दौरान तीसरे अंपायर को लगता है कि खिलाड़ी आउट नहीं है. तो ऐसी स्थिति में तीसरा अंपायर फैसले को बदल देता है. वहीं पहले अंपायर का फैसला अगर समीक्षा के दौरान सही पाया जाता है, तो उनके फैसले को कायम रखा जाता है. ठीक इसी तरह अगर गेंदबाज को लगता है कि बल्लेबाज आउट है और अंपायर ने उसे आउट नहीं दिया है, तो वो डिसीजन रिव्यू सिस्टम की मदद से तीसरे अंपायर से रिव्यू की मांग कर सकता है.

डिसीजन रिव्यू सिस्टम प्रयोग करने कि संख्या ( How Many Times DRS Can Be Used In Cricket)

टेस्ट मैच में प्रत्येक टीम डिसीजन रिव्यू सिस्टम का इस्तेमाल दो बार कर सकती है. वहीं एक दिवसीय मैच और टी-20 मैच में डिसीजन रिव्यू सिस्टम के इस्तेमाल करने की संख्या केवल एक रखी गई है.

कब हुआ था इस रिव्यू का इस्तेमाल

इस नियम का प्रयोग सबसे पहले साल 2008 में किया गया था. भारत और श्रीलंका टीम के बीच हुए एक मुकाबले में इस नियम का पहला परीक्षण किया गया था. वहीं इस नियम के सही तरह से काम करने के बाद साल 2009 से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने इन नियमों को क्रिकेट में लागू कर दिया था. जिसके बाद से इस नियम का इस्तेमाल हर मैच में किए जाने लगा. जबकि एक दिवसीय मैच में इस नियम को साल 2011 से शुरू किया गया था.

अब टी -20 में भी होगा डीआरएस का प्रयोग (DRS in t20 cricket)

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने साल 2017 से डिसीजन रिव्यू सिस्टम का प्रयोग टी-20 में लागू कर दिया है. जिसके बाद से इस नियम का प्रयोग हर टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच में किया जाना अब अनिवार्य होगा. इतना ही नहीं टी-20 में भी बॉल में गेंद-ट्रैकिंग और अल्ट्रा एज-डिटेक्शन तकनीक का प्रयोग करना अनिवार्य हो गया है.

डीआरएस में इस्तेमाल होने वाली तकनीक (decision review system technology)

तीसरे अंपायर को किसी भी निर्णय तक पहुंचने के लिए रीप्ले का सहारा लेना पड़ता है. रीप्ले करके अंपायर ये देखता है कि मैदान में मौजूद अंपायर का फैसला सही है कि नहीं. वहीं डिसीजन रिव्यू सिस्टम में तीन तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इन तकनीकों की मदद से तीसरा अंपायर अपना फैसला लेता है. वहीं कौन सी हैं ये तकनीक इसके बारे में नीचे जानकारी दी गई है.

  • हॉक-आई तकनीक (hawkeye cricket technology)

इस तकनीक का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब किसी बल्लेबाज को अंपायर द्वारा एल बी डब्ल्यू आउट दिया जाता है. वहीं अगर बल्लेबाज को अंपायर का फैसला गलत लगता है, तो वो इस नियम का इस्तेमाल करता है. जिसके बाद हॉक-आई की मदद से तीसरा अंपायर ये देखता है कि क्या गेंद पैड से टकराने के बाद विकेट में लग सकती थी कि नहीं.

  • हॉट-स्पॉट तकनीक (hotspot technology in cricket)

इस तकनीक में इंफ्रा-रेड इमेजिंग सिस्टम के मदद का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में जिस जगह पर गेंद टकराती है वो जगह सफेद हो जाती है. जबकि बाकी तस्वीर काली रहती है. वहीं इस तकनीक का इस्तेमाल करके ये पता किया जाता है कि गेंद बल्लेबाज के पैड या बैट से लगी है की नहीं.

  • स्निकोमीटर तकनीक (snickometer in cricket)

इस तकनीक में गेंद की आवाज को सुनकर फैसला लिया जाता है कि गेंद बल्लेबाज के बैट या फिर पैड में लगी है की नहीं. अगर गेंद बल्ले या फिर पैड से लगती है तो आवाज सुनाई देती है और आवाज की मदद से फैसला लिया जाता है. इस तकनीक में माइक्रोफोन का प्रयोग किया जाता है.

डिसीजन रिव्यू सिस्टम में हुए बदलाव (New DRS Rules Cricket)

अंपायर कॉल’ नियम में हुआ बदलाव- (umpire’s call new rule)

डिसीजन रिव्यू सिस्टम में किए गए बदलाव से पहले आपका ये जानना जरूरी है कि ‘अंपायर कॉल’ किसे कहा जाता है. दरअसल जब डिसीजन रिव्यू सिस्टम के तहत तीसरे अंपायर को ये साफ नहीं हो पाता है कि खिलाड़ी आउट था की नहीं, तो ऐसी स्थिति में तीसरा अंपायर, मैदान में मौजूद अंपायर द्वारा दिए गए फैसले को सही मानता है. जिसे अंपायर कॉल कहा जाता है. वहीं पुराने नियम के अनुसार अगर अंपायर कॉल ली जाती थी, तो ऐसी स्थिति में टीम का एक रिव्यू बर्बाद चले जाता था. वहीं साल 2017 में इस नियम में बदलाव किया गया हैं. बदलाव के मुताबिक तीसरा अंपायर अगर एल बी डब्ल्यू में ‘अंपायर कॉल’ का फैसला लेता है, तो ऐसी स्थिति में रिव्यू लेने वाली टीम का रिव्यू बर्बाद नहीं जाएगा.

मिलेंगे केवल दो रिव्यू- (How many reviews do you get in a test match?)

टेस्ट मैच में कोई भी टीम 80 ओवर के दौरान केवल दो बार ही डिसीजन रिव्यू सिस्टम का उपयोग कर सकती है. वहीं अगर किसी टीम की रिव्यू लेने की सीमा खत्म हो जाती है, तो उस टीम को 80 ओवर के बाद फिर से दो रिव्यू दिए जाते थे. लेकिन हाल ही में 80 ओवर के बाद फिर से रिव्यू देने के इस नियम को हटा दिया गया है.

डिसीजन रिव्यू सिस्टम से जुड़े नियम (DRS or decision review system Rules in cricket in hindi)

नीचे आपको डिसीजन रिव्यू सिस्टम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण नियमों के बारे में बताया गया है. इस नियमों के अनुसार ही डिसीजन रिव्यू सिस्टम का प्रयोग किया जा सकता है और ये नियम इस प्रकार हैं-

  • अगर किसी खिलाड़ी या टीम को डिसीजन रिव्यू सिस्टम की जरूरत महसूस होती है. तो उस टीम के खिलाड़ी को ‘टी’ का निशान बनाकर तीसरे अंपायर को इशारा करना होता है. ये इशारा मिलते ही तीसरा अंपायर समझ जाता है की उस टीम ने रिव्यू लिया है.
  • कोई भी टीम टेस्ट मैच में केवल दो बार ही डिसीजन रिव्यू सिस्टम का इस्तेमाल कर सकती है. अगर किसी टीम का दो बार लिया गए रिव्यू सही साबित होते हैं. तो वो टीम जब तक रिव्यू ले सकती है, तब तक उसके दोनों रिव्यू गलत साबित ना हो जाए. वहीं अगर किसी टीम के द्वारा लिए गए दोनों रिव्यू गलत साबित होते हैं, तो वो फिर से रिव्यू नहीं ले सकती है. वहीं वन-डे मैच में रिव्यू लेने की संख्या एक है.

डिसीजन रिव्यू सिस्टम से जुड़े विवाद (decision review system controversy)

किसी अंपायर द्वारा कोई गलत फैसला नहीं दिया जाए इसलिए इस तकनीक को क्रिकेट मैच में लाया गया था. लेकिन इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर कई सारे विवाद भी हुए है. कई जाने-माने खिलाड़ियों ने इस नियम को सही नहीं माना है और उनका कहना है कि इस नियम के नुकसान हैं. वहीं भारत क्रिकेट बोर्ड ने पहले इस तकनीक के पक्ष में अपना मत जारी नहीं किया था.  

डिसीजन रिव्यू सिस्टम के नुकसान (DRS Disadvantages)

डीआरएस तकनीक किसी भी अन्य तकनीक की तरह पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं है. इस तकनीक के आने से अंपायरों के फैसलों पर भी सवाल खड़े किए जाने लगे हैं, जिनसे की उनके सम्मान में भी कमी आती है. इसके अलावा ये तकनीक काफी महंगी भी साबित होती है.

डिसीजन रिव्यू सिस्टम के फायदे (drs rule benefits)

इस तकनीक के फायदों को देखा जाए तो इसकी मदद से अगर किसी अंपायर से कोई गलत फैसला हो जाता है, तो उसे सही किया जा सकता है. इतना ही नहीं इस तकनीक की मदद अगर किसी बल्लेबाज या गेंद बाज के मन में अंपायर के फैसले के प्रति कोई संदेह होता है, तो उसे तभी दूर किया जा सकता है.

क्रिकेट में डिसीजन रिव्यू सिस्टम समय सीमा (DRS time limit)

क्रिकेट में डीआरएस के जरिए अंपायर के निर्णय खिलाफ जाने के लिए गेंद के डेड होने के बाद 15 सेकण्ड का समय मिलता है. अगर इस समय के बाद रिव्यु लेने की कोशिश की जाती है तो अंपायर इस रिव्यु को समय पर न लेने की वजह से अमान्य कर देता है. इसी दौरान 10 सेकण्ड होने के बाद अंपायर एक संकेत करता है, तो खिलाड़ी को 5 सेकण्ड का और समय मिलता है. जिसमें वो रिव्यु भी ले सकता है.

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