चंद्र ग्रहण क्या होता है व चन्द्र ग्रहण का समय क्या है (Moon Eclipse Meaning kya hai, Eclipse time in hindi)
चांद पृथ्वी का एक अकेला प्राकृतिक उपग्रह है, जिसे आसानी से पृथ्वी से रात के समय देखा जा सकता है और ये काफी चमकदार भी होता है. हालांकि इस उपग्रह की अपनी कोई रोशनी नहीं होती है और ये उपग्रह सूरज की रोशनी के कारण ही चमकता है और जिस तरह से पृथ्वी सूरज के चक्र लगाती है ठीक उसी तरह से चांद पृथ्वी के चक्र लगता है.
Table of Contents
कब लगता है चंद्र ग्रहण और कितने प्रकार की होती है पृथ्वी की छाया
जब पृथ्वी, सूरज और चंद्रमा यानी चांद के मध्य में आ जाती है, तो ऐसी परिस्थिति में चंद्रमा पर पृथ्वी की साया पड़ती है और पृथ्वी के बीच में आने के कारण सूरज की रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती है. जिसके कारण चंद्रमा पर ग्रहण लग जाता है, हर साल कम से कम दो बार चंद्र ग्रहण होते है. वहीं पृथ्वी की छाया दो प्रकार की होती है, जिनमें से एक छाया को उम्ब्रा और दूसरे को पेनुम्ब्रा के नाम से जाना जाता है.
क्या होती है पृथ्वी की उम्ब्रा छाया (Umbra)
जब चंद्रमा पर पृथ्वी का पूरा साया पड़ जाता है तो उस प्रकार की छाया को उम्ब्रा छाया कहा जाता है. इस प्रकार की छाया चंद्रमा पर पड़ने से, चंद्रमा तक सूर्य की पूरी रोशनी सीधे तौर पर ना पहुंच कर धरती से होते हुए, इसकी सतह को छूती है.
क्या होती है पृथ्वी की पेनुम्ब्रा छाया (Penumbra)
पेनुम्ब्रा छाया पृथ्वी की उस छाया को कहा जाता है जब पृथ्वी, चंद्रमा के कुछ ही हिस्से को कवर करती है और जिस हिस्से को पृथ्वी कवर नहीं करती है उस अंश पर सूर्य का प्रकाश पहुंच जाता है.
कितने प्रकार के होते हैं चंद्र ग्रहण (Types Of Lunar Eclipse)
चंद्र ग्रहण को पृथ्वी की छाया के आधार पर बांटा गया है और चंद्र ग्रहण तीन प्रकार का होते हैं, जिन्हें पूर्ण चंद्र ग्रहण (total lunar eclipse) , आंशिक चंद्र ग्रहण (partial lunar eclipse) और खंडच्छायायुक्त या पेनुम्ब्रा चंद्र ग्रहण (Penumbral lunar eclipse) के नाम से जाना जाता है.
पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse) –
पूर्ण चंद्रमा होने के साथ साथ जब पृथ्वी, चांद और सूरज एक ही क्रम पर आ जाते हैं, तो उस समय पूर्ण चंद्र ग्रहण लग जाता है. पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी का पूरा साया (उम्ब्रा साया) चांद पर पड़ता है और चांद का रंग पूरा लाल हो जाता है. इस प्रकार के ग्रहण को ब्लड मून कहा जाता है. वहीं पूर्ण चंद्र ग्रहण सात चरणों में होते हैं और ये चरण इस प्रकार हैं-
खंडच्छायायुक्त यानी पेनुम्ब्रा चरण-
आंशिक चंद्र ग्रहण –
इस चरण में खंडच्छायायुक्त छाया से गुजरते हुए, चंद्रमा पृथ्वी की उम्ब्रा छाया में प्रवेश करने लगता है और पूर्ण चंद्र ग्रहण धीरे –धीरे लगने लग जाता है.
पूर्ण ग्रहण –
तीसरे चरण में चंद्रमा पृथ्वी की पूरी उम्ब्रा छाया में आ जाता है और चंद्रमा पर पूर्ण ग्रहण लग जाता है. साथ ही इसका रंग लाल, पीला या भूरा होने लगता है.
अधिक्तम ग्रहण-
इस चरण में पृथ्वी की अधिकतम छाया चंद्रमा पर होती है और चांद का रंग पूरी तरह से लाल, पीला या भूरा हो जाता है.
पूर्ण ग्रहण समाप्ती –
इस चरण में पृथ्वी की छाया धीरे- धीरे चंद्रमा से हटने लगती है और चंद्रमा पृथ्वी की उम्ब्रा छाया से निकलने लगता है.
आंशिक चंद्र ग्रहण –
इस चरण में चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की उम्ब्रा छाया से निकल जाता है. चंद्रमा पृथ्वी की खंडच्छायायुक्त छाया में प्रवेश कर लेते है और ग्रहण धीरे धीरे खत्म होने लगाता है.
खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण –
ग्रहण के अंतिम चरण में चंद्रमा पृथ्वी की खंडच्छायायुक्त छाया से पूरी तरह से निकल जाता है और ग्रहण खत्म हो जाता है.
आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse) –
इस प्रकार का ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा पूर्ण रूप से न ढककर उसका आंशिक भाग पृथ्वी के साये मे होता है. यानी जब चंद्रमा का केवल कुछ ही हिस्सा पृथ्वी की छाया के अधिन आता है. वहीं आंशिक चंद्र ग्रहण के समय अगर कोई अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा से धरती को देखे तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण नजर आएगा.
खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse)
चांद पर जब पृथ्वी की खंडच्छायायुक्त छाया पड़ती है तो उस समय चांद पर खंडच्छायायुक्त ग्रहण लग जाता है. इस प्रकार के ग्रहण में चंद्रमा का कुछ ही हिस्सा पृथ्वी की छाया से गुजरता है. वहीं चांद पर जब ये ग्रहण लगता है तो उस समय अगर कोई अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा से धरती को देखेगा, तो उसे आंशिक सूर्य ग्रहण दिखेगा.
ब्लड मून क्या होता है ( What Is Blood Moon And Why does the Moon Turn Red?)
पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा का रंग संतरी या लाल हो जाता है, जिसके कारण इस प्रक्रिया को लाल चंद्रमा या ब्लड मून कहा जाता है. वहीं ग्रहण के समय चांद का रंग परिवर्तित इसलिए हो जाता है, क्योंकि पृथ्वी पूरी तरह से, सूरज और चांद के क्रम में होती है और इसके कारण पृथ्वी सूर्य की रोशनी को सीधे तौर पर चंद्रमा पर पहुंचने नहीं देती है. और ऐसा होने पर सूर्य की रोशनी अप्रत्यक्ष (indirectly) रूप से चंद्रमा की सतह पर पहुंचती है और रेलेई स्कैटरिंग फेनोमेनन के कारण चंद्रमा लाल दिखने लगाता है.
दरसल सूर्य की किरणें विभिन्न रंग की होती है और इन किरणों के रंग को प्रिज्म की मदद से और इंद्रधनुष के समय देखा जा सकता है. इंद्रधनुष के समय दिखने वाले लाल रंग के साथ मौजूदा रंगों की लंबी वेव लेंग्थ और कम फ्रीक्वेंसी होती है. वहीं बैंगनी रंग के हिस्से के साथ दिखने वालों रंगों की वेव लेंग्थ कम होती है, जबकि इसकी फ्रीक्वेंसी अधिक होती है. वहीं जब सूरज की ये किरणें धरती पर पहुंचती हैं तो कम वेव लेंग्थ वाली किरणें (बैंगनी और नीले रंग) धरती के वातावरण में मौजूदा कणों से टकरा कर बिखर जाती हैं मगर लंबी वेव लेंग्थ वाली किरणें (लाल और नारंगी) पृथ्वी के वातावरण से गुजरते हुए चंद्रमा की सतह पर पहुंच जाती है, जिसके कारण चंद्र ग्रहण के समय उसका रंग लाल दिखने लगता है.
हालांकि ये जरूरी नहीं है कि हर बार पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय इसका रंग संतरी या लाल दिखे. क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल में विभिन्न प्रकार के धूल के कण और बादलों के चलते चंद्रमा की सतह पर विभिन्न रंग भी पहुंच जाते हैं, जिसके कारण चांद का रंग पीला और भूरा भी हो सकता है.
क्या होता है सुपर मून और कब होता है (What Is a Super moon)
- चंद्रमा जिस ग्रहपथ (orbit) पर पृथ्वी के चारों और धूमता है वो ग्रहपथ एकदम गोल नहीं हैं और इसकी दूरी पृथ्वी से औसतन 382, 9 00 किमी की है.
- चंद्रमा के ग्रहपथ पर दो बिंदु होते हैं जिनमें से एक पराकाष्ठा होता है और दूसरा भू-समीपक बिंदु के नाम से जाना जाता है. जब चंद्रमा अपने ग्रहपथ के पराकाष्ठा बिंदु पर होता है तो उस समय वो धरती से सबसे अधिक दूरी पर होता है और जब चंद्रमा अपने ग्रहपथ के भू-समीपक बिंदु पर होता है तो उस समय वो धरती के सबसे करीब होता है.
- सूपर मून तभी हो सकता है जब पूर्ण चंद्रमा होता है और साथ में ही चंद्रमा अपने भू-समीपक बिंदु पर आ जाता है. वहीं जब सूपर मून होता है तो उस परिस्थिति में चंद्रमा आकार में बड़ा और उज्ज्वल दिखता है. क्योंकि वो धरती के सबसे करीब होता है. सूपर मून के समय धरती से चंद्रमा 14 प्रतिशत बड़ा दिखने लगता है साथ ही उसकी चमक भी 30 प्रतिशत और ज्यादा बढ़ जाती है.
- सुपर मून साल में केवल कुछ बार ही होता है और साल 2016 के नवंबर महीने में हुआ सुपर मून, 69 वर्षों में हुए सभी सूपर मून में से सबसे बड़ा सुपर मून था. इसके साथ ही साल 2015 के सिंतबर महीने में सुपर मून के साथ चंद्र ग्रहण भी लगा था और अब अगला चंद्र ग्रहण वाला सुपर मून साल 2033 में दिखेगा.
क्या होता है ब्लू मून (What Is Blue Moon)
- जब एक माह में दो पूर्णिमा आती हैं, तो उस मास की द्वितीय पूर्णिमा के दिन निकलने वाला चंद्रमा ब्लू मून कहलाता है.
- दूसरी पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्रमा दिखता है और इसकी निचली सतह से नीले रंग की रोशनी भी निकलती है, जिसके कारण इसका रंग नीला नजर आता है और इसके नीले रंग के कारण इसे ब्लू मून कहा जाता है.
क्या होता है सुपर ब्लू ब्लड मून (What Is Super Blue Blood Moon)
” सुपर ब्लू ब्लड मून” तब होता है, जब सुपर मून और ब्लड मून होने के साथ साथ ब्लू मून भी होता है”. सुपर ब्लू मून हाल ही में साल 2018 के जनवरी महीने में हुआ था और अब अगला सुपर ब्लू मून साल 2037 के जनवरी महीने में होने वाला है.
किन जगहों पर देखा जा सकता ग्रहण (Where we can see Lunar Eclipses)
चंद्र ग्रहण को केवल रात के समय ही देखा जा सकता है और ग्रहण लगने के समय जिन देशों में रात होती है उन देश में इसको देखा जा सकता है. हालांकि ये जरूरी नहीं है कि रात के समय देश के हर हिस्से से ग्रहण को देखा जा सके.
इस सदी में आनेवाले चद्रं ग्रहण (21st Century Lunar Eclipses)
इस सदी यानी साल 2000 से लेकर 2100 तक कुल 230 चंद्र ग्रहण होने वाले हैं, जिनमें से 87 खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण, 58 आंशिक चंद्र ग्रहण और 85 पूर्ण चंद्रमा ग्रहण होंगे. वहीं अभी तक (साल 2018) इस सदी के 34 चंद्र ग्रहण लग चुके हैं, जिनमें से पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण 21 जनवरी, साल 2000 में लगा था.
आने वाले पूर्ण चंद्र ग्रहण की जानकारी (Upcoming Total Lunar Eclipse)
किस तारीख को होगा | साल | किन जगहों पर देखा जा सकेगा | भारत के किन हिस्सों में दिखेगा |
27 – 28 जुलाई | 2018 | अधिकांश यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका के हिस्सों से | नई दिल्ली |
20 -21 जनवरी | 2019 | यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और आर्कटिक की कई जगहों से | भारत से नहीं दिखेगा |
26 मई | 2021 | दक्षिण / पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका की अधिकांश जगहों से | भारत से नहीं दिखेगा |
15-16 मई | 2022 | दक्षिण / पश्चिम यूरोप, दक्षिण / पश्चिम एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका के कई हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
8 नवंबर | 2022 | उत्तर / पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक, और अंटार्कटिका के कई हिस्सों से | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, |
आने वाले खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण ( Upcoming Penumbral Lunar Eclipse)
किस तारीख को होगा | साल | किन जगहों पर देखा जा सकेगा | भारत के किन हिस्सों में दिखेगा |
10-11 जनवरी | 2020 | यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका का अधिकांश, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक की कई जगहों से | नई दिल्ली और कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
5-6 जून | 2020 | अधिकांश यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण / पूर्वी दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों में | दिल्ली |
4-5 जुलाई | 2020 | दक्षिण / पश्चिम यूरोप, अधिकांश अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका के कई हिस्सों से | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
29 -30 नवंबर | 2020 | अधिकांश यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक के कई हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
5-6 मई | 2023 | यूरोप, दक्षिण / पश्चिम एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से देखा जा सकेगा | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, |
24-25 मार्च | 2024 | दक्षिण / पश्चिम यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक, अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | दिल्ली |
20-21 फरवरी | यूरोप, एशिया, उत्तरी / पश्चिम ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | नई दिल्ली | |
16-17 अगस्त | 2027 | यूरोप में पश्चिम, एशिया में पूर्व, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी / पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक और अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
आने वाले आंशिक चंद्र की जानकारी ( Upcoming Partial Lunar Eclipse) –
किस तारीख को होगा | साल | किन जगहों पर देखा जा सकेगा | भारत के किन हिस्सों में दिखेगा |
16-17 जुलाई | 2019 | यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण और पूर्वी उत्तरी अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर महासागर, और अंटार्कटिका के कई हिस्सों से | नई दिल्ली |
18-19 नवंबर | 2021 | अधिकांश यूरोप के देश में और एशिया के देशों में, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
28-29 अक्टूबर | 2023 | यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, उत्तर और पूर्वी दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर , हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों से | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
17-18 सितंबर | 2024 | यूरोप, दक्षिण / पश्चिम एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक, अंटार्कटिका के कई हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
27-28 अगस्त | 2026 | यूरोप, दक्षिण / पश्चिम एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, |
11-12 जनवरी | 2028 | यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और आर्कटिक के कई हिस्सों से | भारत से नहीं दिखेगा |
6-7 जुलाई | 2028 | अधिकांश यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण / पूर्वी दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों से | दिल्ली |
निष्कर्ष
चंद्रमा से किसी भी तरह की हानिकारक रोशनी नहीं निकलती है, इसलिए बिना किसी डर के पूर्ण च्रंद ग्रहण को खुली आंखो से देखा जा सकता है. इसको देखने के लिए आंखों पर किसी भी प्रकार का विशेष चश्मा लगाने की भी जरूत नहीं पड़ती है. इसलिए जब भी अगला चंद्र ग्रहण लगे तो आप जरूर इसे देंखें.
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FAQ
Ans : यह एक खगोलीय स्थिति होती है, जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे होता है.
Ans : चंद्र ग्रहण की घटना तभी होती है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में हों और ऐसा ज्यातर पूर्णिमा के दिन ही होता है।
Ans : जब सूर्य पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर डालता है.
Ans : चंद्रग्रहण के दौरान सोने से बचना चाहिए. ग्रहण के दौरान विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को सोने से बचना चाहिए. कहा जाता है इसका नकारात्मक प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क पर पड़ सकता है.
Ans : भगवान को स्पर्श नहीं करना चहिये. भगवान के पट बंद कर देना चाहिये. और पूजा पाठ करना चाहिए.
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