स्कन्दा षष्ठी और कंद षष्टी 2024 त्यौहार का इतिहास, व्रत, (Skanda Sashti or Kanda Shashti Kavasam History, Vrat in Hindi)
स्कन्दा षष्ठी यह त्यौहार दक्षिण भारत में खासतौर पर तमिल में मनाया जाता हैं .अधिकांश अन्य हिंदू त्योहारों की तरह स्कंद षष्ठी भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक हैं. स्कंद जिन्हें हम भगवान मुरूगन , सुब्रमण्य और कार्तिकेय के रूप में जानते हैं. स्कन्द पुराण में स्कन्द षष्टि का उपवास का महत्व मिलता हैं.
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स्कन्दा षष्ठी त्यौहार इतिहास (Skanda Sashti Kavasam History in Hindi)
स्कन्द पुराण सभी अठारह पुराणों की भांति ही विशाल हैं जिसमे तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा ने देवताओं को हराया और उन्हें पृथ्वी पर लाकर खड़ा कर दिया. उन राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था. उन्हें देवताओं और मनुष्यों को प्रताड़ित करने उत्साह मिलता था, उन्होंने सब कुछ नष्ट कर दिया, जो भी देवताओं का था, जो भी उन्हें पूजता था, उन्होंने उन्हें भी नष्ट कर दिया. उन्ही राक्षसों में से एक सुरपद्मा को वरदान प्राप्त था, कि उसे भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता हैं. और उस समय देवी सती के अग्नि को प्राप्त हो जाने के कारण भगवान शिव नाराज थे और घोर तप में लीन थे, यही कारण था कि वे सभी राक्षसों को किसी का भय नहीं था.
राक्षसों के आतंक से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए और इस विपदा के लिये सहायता की मांग की. तब ब्रह्मा जी ने काम देव से कहा, कि तुम्हे भगवान शिव को योग निंद्रा से जगाना होगा. इस कार्य में बहुत संकट था, क्यूंकि भगवान शिव के क्रोध से बच पाना मुश्किल था. लेकिन संकट बहुत बड़ा था, इसलिए काम देव ने इस कार्य को किया. जिसमे वे सफल हुये, लेकिन भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल जाने के कारण, उनकी क्रोधाग्नि से काम देव को भस्म कर दिया.
उस समय भगवान शिव का अंश छह भागों में बंट गया, जो कि गंगा नदी में गिरा. देवी गंगा ने उन छह अंशों को जंगल में रखा और उनसे छह पुत्रों का जन्म हुआ, जिन्हें कई वर्षों बाद देवी पार्वती ने एक कर भगवान मुरुगन को बनाया. पुराण के अनुसार भगवान मुरुगन स्वामी के कई रूप हैं, जिनमे एक चेहरा दो हाथ, एक चेहरा चार हाथ,छह चेहरे और बारह हाथ हैं.
दूसरी तरह राक्षसों का आतंक बढ़ता जा रहा था. उन्होंने कई देवताओं को बंदी बना लिया था. उनके इसी आतंक के कारण भगवान ने इनके संहार का निर्णय लिया. कई दिनों तक यह युद्ध चलता रहा. और अंतिम दिन भगवान मुरुगन ने सुरपद्मा राक्षस का वध कर दिया, साथ ही संसार का और देवताओं का उद्धार किया. और राक्षसों के आतंक से सभी को मुक्त कराया.
यह दिन था स्कंदा षष्टि जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक माना जाता हैं और उत्साह से मनाया जाता हैं आज भी इसे बड़ी श्रद्धा से दक्षिण भारत में मनाया जाता हैं.
भगवान मुरुगन को कई नामों से जाना जाता हैं जैसे कार्तिकेय, मुरुगन स्वामी उन्ही में से एक हैं स्कन्द. इसलिए इस दिवस को सक्न्दा षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं.
स्कंदा षष्टि 2024 में कब मनाया जायेगा (Skanda Sashti Dates 2024 and Timing)
यह त्यौहार तमिल एवम तेलुगु लोगो द्वारा मनाया जाता हैं. यह प्रति माह मनाया जाता हैं जब शुक्ल पक्ष की पंचमी और षष्ठी एक साथ आती हैं तब स्कन्दा षष्ठी या कंद षष्टी मनाई जाती हैं.
जब पंचमी तिथी खत्म होकर षष्ठी तिथी शुरू होती है, तब सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य यह स्कन्दा तिथी की शुरुवात होती हैं. यह नियम धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु से लिया गया हैं. इसे तमिल एवम तेलुगु प्रान्त में भगवान मुरुगन के मंदिर में मनाया जाता हैं. इसमें श्रद्धालु उपवास रखते हैं.
तारीख | महिना | दिन | षष्टी |
16 | जनवरी | मंगलवार | स्कन्द षष्ठी |
14 | फरवरी | बुधवार | स्कन्द षष्ठी |
15 | मार्च | शुक्रवार | स्कन्द षष्ठी |
13 | अप्रैल | शनिवार | स्कन्द षष्ठी |
13 | मई | सोमवार | स्कन्द षष्ठी |
11 | जून | मंगलवार | स्कन्द षष्ठी |
11 | जुलाई | गुरुवार | स्कन्द षष्ठी |
10 | अगस्त | शनिवार | स्कन्द षष्ठी |
09 | सितम्बर | सोमवार | स्कन्द षष्ठी |
08 | अक्टूबर | मंगलवार | स्कन्द षष्ठी |
07 | नवंबर | शुरूवार | सूरा संहरम षष्ठी |
06 | दिसम्बर | शुक्रवार | सुब्रहमन्य षष्ठी |
यह त्यौहार तमिल कैलेंडर के अनुसार ऐप्पसी माह में मनाया जाता हैं, यह त्यौहार छः दिनों तक मनाया जाता हैं इनमे कई नियमों का पालन किया जाता हैं.
कैसे मनाते हैं स्कन्दा षष्ठी, व्रत (Skanda Sashti Celebration and Vrat)
1 | इन दिनों मांसाहार का सेवन नही किया जाता |
2 | कई लोग प्याज, लहसन का प्रयोग नहीं करते |
3 | जो भी श्रद्धालु यह उपवास करते हैं वो मुरुगन का पाठ, कांता षष्ठी कवसम एवम सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ करते हैं |
4 | कई लोग सुबह से स्कन्दा मंदिर जाते हैं |
5 | कई लोग स्कन्दा उपवास के दिनों में एक वक्त का उपवास भी करते हैं जिनमे कई दोपहर में भोजन करते हैं एवम कई रात्रि में |
6 | कई श्रद्धालु पुरे छः दिनों में फलाहार करते हैं |
यह उपवास कई तरह से किया जाता हैं कई लोग इसे शरीर के शुद्धिकरण के रूप में भी करते हैं जिससे शरीर के सभी टोक्सिन शरीर से बाहर निकल जाते हैं. कई लोग नारियल पानी पीकर भी छः दिनों तक रहते हैं.
व्रत एक नियंत्रण के रूप में भी किया जाता हैं जिसमे मनुष्य स्वयं को कई व्यसनों से दूर रखता हैं. झूठ बोलने, लड़ने- झगड़ने का परहेज रखता हैं और ध्यान करके अपने आपको मजबूत बनाते हैं.
अगर श्रद्दालु को किसी भी तरह की बीमारी हैं तो उसे कभी उपवास नहीं करना चाहिए क्यूंकि ईश्वर कभी अपने बच्चो को कष्ट में नहीं देखना चाहता.
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FAQ
Ans : इसकी जानकारी ऊपर दी हुई है.
Ans : भगवान् शिव के पुत्र कार्तिकेय की
Ans : इस दिन भगवान कार्तिकेय का स्मरण किया जाता है और सदा खाना खाया जाता है.
Ans : जी हां
Ans : हर महीने अलग अलग तिथि है.
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