बतुकम्म बठुकम्मा तेलंगाना महोत्सव महत्व 2024 (Bathukamma Festival Date Mahatva Katha Telugu In Hindi)
बठुकम्मा महोत्सव फूलों का त्यौहार है, जो आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में पिछड़ी जाति की महिलाओं द्वारा मनाया जाता हैं.
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बतुकम्म बठुकम्मा तेलंगाना महोत्सव महत्व Bathukamma Festival Mahatva Katha Telugu In Hindi
भारत देश में त्यौहारों का मेला हैं. इसमें सभी जाति धर्म यहाँ तक ही राज्यों के भी अपने खास त्यौहार हैं, उन्ही में से एक हैं बठुकम्मा पर्व. यह उत्साह से मनाया जाने वाला त्यौहार हैं, इस विशेष कर तेलंगाना राज्य की महिलायें मनाती हैं. इसमें कई तरह के फूलो का उपयोग किया जाता हैं. इसलिए इसे रंगों का एक रीजनल फेस्टिवल माना जाता हैं. पुरे तेलंगाना के क्षेत्र में यह बतुकम्म फेस्टिवल पुरे नौ दिनों तक मनाया जाता हैं. बतुकम्म त्यौहार तेलांगना की संस्कृतिक एवं पारंपरिक भावना को दर्शाता है. इस फूलों के त्यौहार में बहुत सुंदर तरीके से फूलों से अलग अलग आकृति बनाई जाती है. इसमें प्रयोग किये जाने वाले ज्यादातर फूल आयुर्वेदिक द्रष्टि से भी उपयोगी होते है.
फूलों से सात लेयर से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाई जाती है. तेलगु में बठुकम्मा का मतलब होता है, देवी माँ जिन्दा है. इस दिन बठुकुम्मा को महागौरी के रूप में पूजा जाता है. यह त्यौहार स्त्री के सम्मान के रूप में मनाया जाता है.
कब मनाया जाता हैं बठुकम्मा पर्व ? (Bathukamma Festival 2024 Date)
हिन्दू पंचाग के अनुसार यह बठुकम्मा फेस्टिवल श्राद्ध पक्ष, भादों की अमावस्या जिसे महालय अमावस्या भी कहते है, के दिन शुरू होता हैं और नव रात्रि की अष्टमी के दिन खत्म होता हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार से सितम्बर-अक्टूबर में आता है. तेलंगाना में यह कहा जाता हैं कि यह मानसून के अंत में शुरू होकर शीत ऋतू के प्रारंभ तक मनाया जाता हैं.
तारीख | 1-9 अक्टूबर 2024 |
कितने साल पुराना त्यौहार है | 1000 साल |
किस देवता को पूजा जाता है | माता पार्वती |
किन फूलों का उपयोग होता है | सलोसिया, सेन्ना, मेरीगोल्ड, च्र्य्संठेमुम, कमल, ककुर्बिता पत्ती एवम फूल, कुकुमिस पत्तियाँ |
बठुकम्मा त्यौहार का इतिहास, कथा (Bathukamma Festival History and Katha)–
वेमुलावाडा चालुक्य राजा, राष्ट्रकूट राजा के उप-सामंत थे. चोला राजा और राष्ट्रकूट के बीच हुए युध्य में चालुक्य राजा ने राष्ट्रकूट का साथ दिया था. 973 AD में राष्ट्रकूट राजा के उप-सामंत थैलापुदु द्वीतीय ने आखिरी राजा कर्कुदु द्वीतीय को हरा दिया, और अपना एक आजाद कल्याणी चालुक्य सामराज्य खड़ा किया. अभी जो तेलांगना राज्य है वो यही राज्य है.
वेमुलावाडा के सामराज्य के समय राजा राजेश्वर का मंदिर बहुत प्रसिध्य था. तेलांगना के लोग इनकी बहुत पूजा आराधना करते थे. चोला के राजा परान्तका सुंदरा, राष्ट्रकूट राजा से युद्ध के समय घबरा गए थे. तब उन्हें किसी ने बोला कि राजा राजेश्वर उनकी मदद कर सकते थे, तो राजा चोला उनके भक्त बन गए. उन्होंने अपने बेटे का नाम भी राजा राजा रखा. राजा राजा चोला ने 985-1014 AD तक शासन किया. उनके बेटे राजेन्द्र चोला जो सेनापति थे, सत्यास्राया में हमला कर जीत हासिल की. अपनी जीत की निशानी के तौर पर उसने राजा राजेश्वरी मंदिर तुड़वा दिया और एक बड़ी शिवलिंग अपने पिता को उपहार के तौर पर दी.
1006 AD में राजा राजा चोला इस शिवलिंग के लिए एक बड़े मंदिर का निर्माण शुरू करते है. 1010 में ब्रिहदेश्वारा नाम से मंदिर की स्थापना होती है. वेमुलावाडा से शिवलिंग को तन्जवुरु में स्थापित कर दिया गया, जिससे तेलांगना के लोग बहुत दुखी हुए. तेलांगना छोड़ने के बाद ब्रुहदाम्मा (पार्वती) के दुःख को कम करने के लिए बठुकुम्मा की शुरुवात हुई, जिसमें फूलों से एक बड़े पर्वत की आकृति बनाई जाती है. इसके सबसे उपर हल्दी से गौरम्मा बनाकर उसे रखा जाता है. इस दौरान नाच, गाने होते है. बठुकम्मा का नाम ब्रुहदाम्मा से आया है. शिव के पार्वती को खुश करने के लिए ये त्यौहार 1000 साल से तेलांगना में बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है.
बतुकम्म पर्व महत्व (Bathukamma Festival Mahatva)
इसके पीछे एक खास उद्देश्य है, वर्षा ऋतू में सभी जगह पानी आ जाता हैं जैसे नदी, तालाब एवम कुँए भर जाते हैं. धरती भी गीली महिम सी हो जाती हैं और इसके बाद फूलों के रूप में पर्यावरण में बहार आती हैं. इसी कारण पृकृति का धन्यवाद देने के लिए तरह- तरह के फूलों के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता हैं. इसमें फोक रीजनल सॉंग अर्थात क्षेत्री गीत गाये जाते हैं.
इन दिनों पुरे देश में ही उत्साह के पर्व मनाये जाते हैं इन सबका उद्देश्य पृकृति का अभिवादन करना ही होता हैं.
बतुकम्म पर्व कैसे मनाया जाता हैं ? (Bathukamma Festival Celebration)
इस त्यौहार को मानने के लिए नव विवाहिता अपने मायके आती हैं. ऐसा कहा जाता हैं उनके जीवन में परिवर्तन के लिए यह प्रथा शुरू की गई.
- पर्व के शुरुवाती पांच दिनों में महिलायें अपने घर का आँगन स्वच्छ करती हैं. गोबर से अंगना को लिपा जाता है.
- सुबह जल्दी उठकर उस आँगन में सुंदर- सुंदर रंगौली डालती हैं.
- कई जगह पर एपन से चौक बनाया जाता हैं जिसमे सुंदर कलाकृति बनाई जाती हैं. चावल के आटे से रंगोली का बहुत महत्व है.
- इस उत्सव में घर के पुरुष बाहर से नाना प्रकार के फूल एकत्र करते हैं जिसमे सलोसिया, सेन्ना, मेरीगोल्ड, च्र्य्संठेमुम, कमल, ककुर्बिता पत्ती एवम फूल, कुकुमिस पत्तियाँ आदि फूलो को एकत्र किया जाता हैं.
- फूलो के आने के बाद उनको सजाया जाता हैं तरह- तरह की लेयर बनाई जाती हैं जिसमे फूलो की पत्तियों को सजाया जाता हैं. इसे थम्बलम (Thambalam) के नाम से जाना जाता हैं.
- बठुकम्मा बनाना एक लोक कला है. महिलाएं बठुकम्मा बनाने की शुरुवात दोपहर से करती है.
बठुकम्मा सेलिब्रेशन –
- नौ दिन इस त्यौहार में शाम के समय महिलायें, लड़कियां एकत्र होकर इस त्यौहार को मनाती हैं इस समय ढोल बजाये जाते हैं.
- सब अपने अपने बठुकुम्मा को लेकर आती है.
- महिलाएं पारंपरिक साड़ी और गहने पहनती है, लड़कियां लहंगा चोली पहनती है.
- सभी महिलाएं बठुकुम्मा के चारों ओर गोला बनाकर क्षेत्रीय बोली में गाने गाती हैं. यह गीत एक सुर में गाये जाते हैं. इस प्रकार यह त्यौहार नौ दिनों तक मनाया जाता हैं. महिलाएं अपने परिवार की सुख, समृधि, खुशहाली के लिए प्राथना करती है.
- हर एक दिन का अपना एक नाम है, जो नैवैदयम (प्रसाद) के अनुसार रखा गया है.
- बहुत से नैवैदयम बनाना बहुत आसान होता है, शुरू के आठ दिन छोटी बड़ी लड़कियां इसे बनाने में मदद करती है.
- आखिरी दिन को सद्दुला बठुकुम्मा कहते है, सभी महिलाएं मिलकर नैवैदयम बनाती है. इस अंतिम दिन बठुकुम्मा को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है.
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FAQ
Ans : श्राद्ध पक्ष, भादों की अमावस्या जिसे महालय अमावस्या भी कहते है, के दिन शुरू होता हैं और नव रात्रि की अष्टमी के दिन खत्म होता हैं
Ans : 1 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक
Ans : तेलंगाना एवं उसके पड़ोसी राज्यों में
Ans : इसकी जानकारी ऊपर दी हुई है.
Ans : लगभग 1,000 सालों से
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