शबरी के बेर की कहानी, जीवन परिचय, जयंती 2024 | Sabri ke Ber Story, Jayanti, Biography in Hindi

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शबरी एक भक्त के रूप में जानी जाती हैं, आज भी माता शबरी की जन्म तिथी शबरी जयंती के रूप में मनाई जाती हैं. शबरी माला मंदिर में भी इस दिन उत्सव होता हैं. पौराणिक युग में कई ऐसे भक्त थे, जिनके लिए स्वयम भगवान धरती पर उतरते थे और उन्हें अपना आशीष देकर स्वयम को गर्वान्वित मानते थे. ऐसी ही एक भक्त थी शबरी. रामायण की कथा में यह देवी शबरी के बेर से प्रसिद्द हैं.

Mata Shabari

शबरी का जीवन परिचय (Shabari Biography in Hindi)

पूरा नामशबरी
अन्य नामश्रमणा
भक्तश्री राम की
गुरुऋषि मतंग
धर्महिन्दू
जातिशबर (भील)
पिता का नामअज
माता का नामइंदुमति

शबरी कौन थी (Who is Shabari)

शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी. देखने में बहुत साधारण पर दिल से बहुत कोमल थी.

शबरी का जन्म (Shabari Birth)

शबरी का जन्म फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की दूज के दिन हुआ था.

शबरी का शुरुआती जीवन (Shabari Early Life)

इनके पिता ने इनका विवाह निश्चित किया, लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी, किसी भी अच्छे कार्य से पहले निर्दोष जानवरों की बलि दी जाती थी. इसी प्रथा को पूरा करने के लिये इनके पिता शबरी के विवाह के एक दिन पूर्व सो भेड़ बकरियाँ लेकर आये. तब शबरी ने पिता से पूछा – पिताजी इतनी सारी भेड़ बकरियाँ क्यूँ लाये ? तब पिता ने कहा – शबरी यह एक प्रथा हैं, जिसके अनुसार कल प्रातः तुम्हारी विवाह की विधी शुरू करने से पूर्व इन सभी भेड़ बकरियों की बलि दी जायेगी. यह कहकर उसके पिता वहाँ से चले जाते हैं. प्रथा के बारे में सुन शबरी को बहुत दुःख होता हैं, वो पूरी रात उन भेड़ बकरियों के पास बैठी रही और उनसे बाते करती रही. उसके मन में एक ही विचार था, कि कैसे वो इन निर्दोष जानवरों को बचा पाये. तब ही एकाएक शबरी के मन में ख्याल आता हैं और वो भौर होने से पूर्व ही अपने घर से भागकर जंगल चली गई, जिससे वो उन निर्दोष जानवरों को बचा सके. शबरी भलीभांति जानती थी, अगर एक बार वो इस तरह से घर से जायेगी, तो कभी उसे घर वापस आने का मौका नहीं मिलेगा. फिर भी शबरी ने खुद से पहले उन निर्दोषों की सोची. घर से निकल कर शबरी एक घने जंगल में जा पहुँची.

शबरी की शिक्षा एवं गुरु (Shabari Education and Guru)

अकेली शबरी जंगल में भटक रही थी, तब उसने शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से कई गुरुवरों के आश्रम में दस्तक दी, लेकिन शबरी तुच्छ जाति की थी, इसलिये उसे सभी ने धुत्कार के निकाल दिया. शबरी भटकती हुई मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची और उसने अपनी शिक्षा प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की. मतंग ऋषि ने शबरी को सहर्ष अपने गुरुकुल में स्थान दे दिया. अन्य सभी ऋषियों ने मतंग ऋषि का तिरस्कार किया, लेकिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में स्थान दिया. शबरी ने गुरुकुल के सभी आचरणों को आसानी से अपना लिया और दिन रात अपने गुरु की सेवा में लग गई. शबरी जतन से शिक्षा ग्रहण करने के साथ- साथ आश्रम की सफाई, गौ शाला की देख रेख, दूध दोहने के कार्य के साथ सभी गुरुकूल के वासियों के लिये भोजन बनाने के कार्य में लग गई .

शबरी की गुरु भक्ति एवं आश्रम (Shabari Guru Bhakti and Aashram)

कई वर्ष बीत गये मतंग ऋषि शबरी की गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे. मतंग ऋषि का शरीर दुर्बल हो चूका था, इसलिये उन्होंने एक दिन शबरी को अपने पास बुलाया और कहा- पुत्री मेरा शरीर अब दुर्बल हो चूका हैं, इसलिये मैं अपनी देह यही छोड़ना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले मैं तुम्हे आशीर्वाद देना चाहता हूँ, बोलो पुत्री तुम्हे क्या चाहिये.आँखों में आसूं भरकर शबरी मतंग ऋषि से कहती हैं – हे गुरुवर आप ही मेरे पिता हैं, मैं आपके कारण ही जीवित हूँ, आप मुझे अपने साथ ही ले जाये. तब मतंग ऋषि ने कहा- नहीं पुत्री तुम्हे मेरे बाद मेरे इस आश्रम का ध्यान रखना हैं. तुम जैसी गुरु परायण शिष्या को उसके कर्मो का उचित फल मिलेगा. एक दिन भगवान राम तुम से मिलने यहाँ आयेंगे और उस दिन तुम्हारा उद्धार होगा और तुम्हे मोक्ष की प्राप्ति होगी.  इतना कहकर मतंग ऋषि अपनी देह त्याग कर समाधि ले लेते हैं.

उसी दिन से शबरी हर रोज प्रातः उठकर बाग़ जाती हैं, ढेर सारे फल इकठ्ठा करती, सुंदर- सुंदर फूलों से अपना आश्रम सजाती, क्यूंकि उसे भगवान राम के आने का कोई निश्चित दिन नहीं पता था, उसे केवल अपने गुरुवर की बात पर यकीन था, इसलिये वो रोज राम के इंतजार में समय बिता रही थी. वो रोजाना यही कार्य करती थी.

शबरी एवं तालाब के पानी के लाल होने की कहानी (Shabari and Talaab ka Pani Story)

एक दिन शबरी आश्रम के पास के तालाब में जल लेने गई. वही पास में एक ऋषि तपस्या में लीन थे. जब उन्होंने शबरी को जल लेते देखा तो उसे अछूत कहकर उस पर एक पत्थर फेंक कर मारा और उसकी चोट से बहते रक्त की एक बूंद से तालाब का सारा पानी रक्त में बदल गया. यह देखकर संत शबरी को बुरा भला और पापी कहकर चिल्लाने लगा. शबरी रोती हुई अपने आश्रम में चली गई. उसके जाने के बाद ऋषि फिर से तप करने लगे, उसने बहुत से जतन किये लेकिन वो तालाब में भरे रक्त को जल नहीं बना पाया. उसमे गंगा, यमुना सभी पवित्र नदियों का जल डाला गया, लेकिन रक्त जल में नहीं बदला.

कई वर्षों बाद जब भगवान राम सीता हरण के बाद उनकी खोज में वहां आये, तब वहाँ के लोगो ने भगवान राम को बुलाया और आग्रह किया कि वे अपने चरणों के स्पर्श से इस तालाब के रक्त को पुनः जल में बदल दे. राम उनकी बात सुनकर तालाब के रक्त को चरणों से स्पर्श करते हैं लेकिन कुछ नहीं होता. ऋषि उन्हें जो- जो करने बोलते हैं वे सभी करते हैं लेकिन रक्त जल में नही बदला. तब राम ऋषि से पूछते हैं – हे ऋषिवर मुझे इस तालाब का इतिहास बताये. तब ऋषि उन्हें शबरी और तालाब की पूरी कथा बताते हैं और कहते हैं हे भगवान यह जल उसी शुद्र शबरी के कारण अपवित्र हुआ हैं. तब भगवान राम ने दुखी होकर कहा हे गुरुवर यह रक्त उस देवी शबरी का नही मेरे ह्रदय का जिसे तुमने अपने अपशब्दों से घायल किया. भगवान राम ऋषि से आग्रह करते हैं कि मुझे देवी शबरी से मिलना हैं. तब शबरी को बुलावा भेजा जाता हैं. राम का नाम सुनते ही शबरी दौड़ी चली आती हैं. राम मेरे प्रभु कहती हुई जब वो तालाब के समीप पहुँचती हैं, तब उसके पैर की धूल तालाब में चली जाती हैं और तालाब का सारा रक्त जल में बदल जाता हैं. तब भगवान राम कहते हैं देखिये गुरुवर आपके कहने पर मैंने सब किया, लेकिन यह रक्त भक्त शबरी के पैरों की धूल से जल में बदल गया.

शबरी के बेर की कहानी (Shabri ke Jhuthe Ber Story)

शबरी जैसे ही भगवान राम को देखती हैं उनके चरणों को पकड़ लेती हैं और अपने साथ आश्रम लाती हैं. उस दिन भी शबरी रोज की तरह सुबह से अपना आश्रम फूलों से सजाती हैं और बाग़ से चख- चख कर सबसे मीठे बैर अपने प्रभु राम के लिये चुनती हैं. वो पुरे उत्साह के साथ अपने प्रभु राम का स्वागत करती हैं और बड़े प्रेम से उन्हें अपने झूठे बैर परौसती हैं. भगवान राम भी बहुत प्रेम से उसे खाने उठाते हैं तब उनके साथ गये लक्ष्मण उन्हें रोककर कहते हैं – भ्राता ये बेर झूटे हैं. तब राम कहते हैं – लक्ष्मण यह बैर झूटे नहीं सबसे मीठे हैं क्यूंकि इनमे प्रेम हैं और वे बहुत प्रेम से उस बैर को खाते हैं.

मतंग ऋषि का कथन सत्य होता हैं और देवी शबरी को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. और इस तरह भगवान राम, शबरी के राम कहलाये.

शबरी जयंती 2024 में कब है (Shabri Jayanti 2024 Date)

शबरी जयंती फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की दूज के दिन मनाई जाती हैं. शबरी अपने गुरु के आशीर्वाद से प्रभु राम से मिलती हैं और भगवान राम ने उन्हें नौ भक्ति का ज्ञान दिया. इस वर्ष शबरी जयंती 3 मार्च 2024, को मनाई जाएगी.

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FAQ

Q : शबरी कौन थी ?

Ans : आदिवासी भील की पुत्री थी.

Q : शबरी का रामायण में क्या रोल था ?

Ans : भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे.

Q : शबरी का जन्म कब हुआ ?

Ans : फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की दूज के दिन

Q : शबरी जयंती 2024 में कब है ?

Ans : 3 मार्च को

Q : शबरी ने भगवान राम को जूठे बेर क्यों खिलाये ?

Ans : वह अपने भगवान को खट्टे बेर नहीं खिलाना चाहती थी इसलिए उसने स्वाद चख कर भगवान राम को खिलाया था.

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1 thought on “शबरी के बेर की कहानी, जीवन परिचय, जयंती 2024 | Sabri ke Ber Story, Jayanti, Biography in Hindi”

  1. तुम बेवकूफ हो कुछ भी कहानी बना देते हो , शबरी ने राम का इलाज किया था न कि उनकी भक्त थी , और बैर झूठे इसलिए थे क्योकि बैर 12 प्रकार के होते है जिसमे से 6 प्रकार के जहर का इलाज करने के काम आते है और 6 खाने के काम आते है तो माता शबरी ने जो जहर के इलाज में काम आते थे वह बैर ले आयी और राम को दिए थे तब वे ठीक हुए थे क्योंकि शबरी आदिवासी थी और उन्हें जंगली जड़ीबूटियों का बहुत ज्ञान था ,इसलिये फालतू अफवाह ना फैला

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