सकारात्मक सोच की शक्ति की कहानी | Sakaratmak Soch Ki Shakti Story in hindi

Sakaratmak Soch Ki Shakti Story in hindi मित्रों हम एक ऐसे देश में रहते है जहाँ लोग आदर्शवाद जैसे बड़ो का आदर करना, जरुरत मंद की सहायता करना, बचे हुए भोजन को व्यर्थ न होने देना, जल और बिजली का अपव्यय न होने देना, सड़क पर गंदगी न फैलाना, अनुशासन में रहना आदि और भी बहुत से कार्य करने की बातें करते है. किन्तु आधुनिक समय की चकाचौंध ने लोगों को बहुत ही व्यस्त कर दिया है जिससे वे इन बातों का पालन करना भूल गए है. लोगों को लगता है कि उनके अकेले इन कामों को करने से क्या होगा, सिर्फ समय की बर्बादी और कुछ नही, वे सिर्फ एक ही कहावत को मानते है “अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता”. किन्तु यदि किसी एक व्यक्ति ने भी यह कोशिश की कि वह इन कामों को कर सकता है तो यह कहावत भी सच हो सकती है कि “बूँद – बूँद से घट भरता है”.

ऐसे ही इस कहावत को सच करने के लिए एक प्रेरणादायी कहानी प्रस्तुत है जोकि शायद आपने कभी सुनी हो किन्तु अपने जीवन में नहीं अपनाया होगा.

सकारात्मक सोच की शक्ति की कहानी ( Sakaratmak Soch Ki Shakti Story in hindi)

एक बार की बात है एक बहुत ही दयावान आदमी था. वह हर रोज सुबह घर से काम के लिए निकलते हुए कुछ लोगों की मदद करता था, जैसे- सबसे पहले वह एक घर की बालकनी से गिरते हुए पानी को व्यर्थ होने से बचाने के लिए वहाँ एक छोटे से पौधे वाला गमला रख देता है. जिससे पानी उस पौधे पर गिरे. इसके बाद वह थोड़ा और आगे जाता है वहाँ एक आदमी का ठेला एक गढ्ढे में फस जाता है उसकी मदद के लिए कोई आगे नही आता तब वह आदमी उसकी मदद करता है. इसके बाद थोड़ा और आगे चलने पर एक बहुत ही गरीब लड़की जो पढ़ना चाहती है, वहाँ फूटपाथ बैठ कर भीख मांगती है ताकि कुछ पैसे इकठ्ठे हो सकें और वह पढ़ाई कर सकें. वह आदमी उसे रोज कुछ पैसे देता है.

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इस तरह वह रोज कुछ लोगों की मदद करता है, ऐसा वह हर रोज करता है. एक दूसरा आदमी उस आदमी को यह सारे काम हर रोज करते देखता है.

एक दिन उस दूसरे आदमी ने उस आदमी से पूछा कि – “भाईसाब आप रोज इन लोगों की मदद करते है लेकिन इससे क्या फर्क पड़ेगा? इससे केवल समय की बर्बादी होगी”.  तब वह आदमी उस दूसरे आदमी से कहता है कि – “इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, इससे आपको भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा और इससे इस दुनिया में भी किसी को कोई फर्क नही पड़ेगा, किन्तु जो मैं करता हूँ वह मेरा फ़र्ज है, मैं सिर्फ अपना फर्ज़ निभा रहा हूँ और फ़र्ज निभाने में समय की बर्बादी नहीं होती”. ऐसा कह कर वह वहाँ से चला जाता है. ऐसा करते – करते कुछ दिन बीत जाते है. फिर एक दिन वह देखता है कि वह बालकनी के नीचे रखा हुआ पौधा बड़ा हो गया है. फिर थोड़ा आगे जाकर वह हर रोज की तरह उस ठेले वाले आदमी की मदद के लिए जाता है तो देखता है कुछ और लोग उसकी मदद कर रहे है.  फिर थोड़ा और आगे उस लड़की को पैसे देने के लिए जाता है तो देखता है की वह लड़की वहाँ नहीं है, वह उसका वहीँ इंतजार करता है थोड़ी देर बाद वह लड़की एक स्कूल की यूनिफार्म पहनकर उसके सामने आती है.

यह सब देखकर वह बहुत खुश होता है. लेकिन वह दूसरा आदमी भी यह सब  देख रहा होता है, और यह सब देख कर उसे समझ आता है कि एक आदमी ने कोशिश की तो किसी का कितना भला हो गया इसी तरह यदि और लोग भी ऐसा करने लगें तो इस देश की पूरी सूरत ही बदल सकती है.


शिक्षा (Moral of the story)

इस कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि हमें नकारात्मक सोच नहीं रखना चाहिए हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए. व्यर्थ ही पैसे खर्च करने से अच्छा है कि किसी जरुरत मंद की मदद करें, क्यूकि इससे आपको ख़ुशी मिलेगी और किसी को नया जीवन मिल जायेगा. किसी जरुरत मंद की मदद करना समय और पैसे भी बर्बादी नहीं बल्कि अपना फ़र्ज समझना चाहिए. यह कभी नही सोचना चाहिए की एक अकेले आदमी की कोशिश से क्या होगा. दोस्तों यदि एक आदमी भी कोशिश करे तो बहुत कुछ हो सकता है इसलिए हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए.

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Ankita
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