ओशो कौन हैं कहानी अनमोल वचन | Osho Biography Quotes In Hindi Suvichar

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ओशो का पूरा नाम रजनीश ओशो था और इन्हें भगवान श्री रजनीश भी कहा जाता था। यह एक तांत्रिक भी थे साथ ही इनके द्वारा रजनीश अभियान की शुरुआत की गई थी। अपने संपूर्ण जीवन काल के दरमियान इन्हें लाखों लोगों के द्वारा गुरु बनाया गया तो कुछ लोगों ने इन्हें आध्यात्मिक शिक्षक माना। वहीं कई लोगों ने इन्हें एक अय्याश व्यक्ति की पदवी दी। इनके द्वारा साल 1960 में पूरे भारत देश का भ्रमण किया गया। यह महात्मा गांधी के भी विरोधी थे। इनके द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर इंसानों की कामुकता पर अपने विचार प्रकट किए जाते थे।। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं रजनीश ओशो की जीवनी के बारे में।

ओशो की कहानी

Osho Quotes

ओशो के अनमोल वचन (Osho Quotes and hindi Suvichar)

Top 14 Osho Quotesओशो के अनमोल वचन और सुविचार 
Only those who are ready to become nobodies are able to love.जो कुछ बनना नहीं चाहते वही प्रेम कर सकते हैं
 Nobody is here to fulfil your dream. Everybody is here to fulfil his own destiny, his own reality.कोई भी यहाँ अपने सपने पुरे नहीं कर रहा हैं सभी अपनी तक़दीर बना रहे हैं अपनी सच्चाई जी रहे हैं.
If you wish to see the truth, then hold no opinion for or against.अगर तुम सच्चाई देखने की इच्छा रखते तो अपनी राय न तो हक़ दे दो न विपक्ष में.
Don’t choose. Accept life as it is in its totality.चुनिए मत. जिन्दगी को उसकी सम्पूर्णता के साथ स्वीकार कीजिये.
When love and hate are both absent everything becomes clear and undisguised.जब प्यार और नफ़रत दोनों ही अनुपस्थित हो जाते हैं तब सब कुछ साफ़ और स्पष्ट हो जाता हैं.
Life is a balance between rest and movement.गति और ठहराव के मध्य संतुलित अवस्था ही जिन्दगी हैं
Fools laugh at others. Wisdom laughs at itself.अज्ञानी दुसरो पर हँसते हैं और ज्ञानी स्वयं पर.
Don’t move the way fear makes you move. Move the way love makes you move. Move the way joy makes you move.उस राह पर मत जाईये जहाँ डर ले जाता हैं. उस राह पर जाइये जहाँ प्यार आपको ले जाता हैं. उस राह पर जाइये जहाँ खुशियाँ आपको ले जाती हैं.
 There is no need of any competition with anybody. You are yourself, and as you are, you are perfectly good. Accept yourself.यहाँ किसी से प्रतिस्पर्धा करने की कोई जरुरत नहीं हैं. तुम, तुम हो जैसे तुम हो. तुम पूरी तरह से अच्छे हो अपने आपको स्वीकार करो.
people as you want – that does not mean one day you will go bankrupt, and you will have to declare, ‘Now I have no love.’ You cannot go bankrupt as far as love is concerned.आप बहुत से लोगो से प्रेम कर सकते हैं जिसे भी करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं हैं आप दिवालिया हो जायेंगे और यह घोषणा करेंगे कि प्रेम नहीं हैं जब तक आपके पास प्रेम हैं आप दिवालिया नहीं हो सकते.
It’s not a question of learning much On the contrary. It’s a question of unlearning much.सवाल यह नहीं हैं कि आप कितना सीख सकते हैं. इसके विपरीत सवाल यह हैं कि आप कितना भूल सकते हैं.
Friendship is the purest love. It is the highest form of Love where nothing is asked for, no condition, where one simply enjoys giving.मित्रता निरा  प्यार है. यह प्रेम का अतिउच्च  रूप है प्यार वाही होता हैं जहाँ कोई मांग नहीं होती कोई चाह नहीं होती वहाँ बस देने में ही ख़ुशी मिलती हैं.
If you can become a mirror you have become a mediator. Meditation is nothing but skill in mirroring. And now, no word moves inside you so there is no distraction.अगर आप एक आइना बन सकते हैं तब आप एक ध्यानी हैं क्यूंकि ध्यान  कुछ नहीं हैं बस खुद को देखने अथवा जानने एक कला हैं.और इस वक्त कोई शब्द अर्थात विचार आपने अंदर प्रवेश नहीं कर सकते जो आपको विचलित करें..
The day you think you know, your death has happened – because now there will be no wonder and no joy and no surprise. Now you will live a dead life.जिस दिन आपने मान लिया आप सब कुछ जानते हो उस दिन आप मर चुके हो क्यूंकि अब ना कोई आश्चर्य ना ख़ुशी और ना ही कोई अचंभा  आपको होगा आप एक मरी हुई जिन्दगी जियेंगे|

ओशो का जीवन परिचय (Osho Biography in hindi)

जीवन पथ में इन अनमोल वचनों का बहुत महत्व होता हैं. जब भी मन अशांत हो किसी महान व्यक्ति द्वारा दिया गया ज्ञान हमेशा मन को शांत करता हैं एक राह दिखाता हैं. कई बार दिमाग में चल रहे अनगिनत सवालो के जवाब इन अनमोल वचनों में मिल जाते हैं.

वास्तविक नाम:   चंद्र मोहन जैन
उपनाम:   आचार्य रजनीश, ओशो
जन्मतिथि:   11 दिसंबर 1931
प्रोफेशन:   सूफ़ी, आध्यात्मिक शिक्षक और रजनीश आंदोलन के नेता
जन्मस्थान;   रायसेन, मध्य प्रदेश
मृत्यु तिथि;   19 जनवरी 1990
मृत्यु स्थान:   पुणे, महाराष्ट्र, भारत
उम्र (मौत के समय):   58 वर्ष
मौत का कारण:   हृदयाघात
राशि:   धनु
राष्ट्रीयता:भारतीय
गृहनगर:    मध्य प्रदेश
महाविद्यालय:   हितकर्णी कॉलेज, जबलपुर,डी. एन. जैन. कॉलेज, जबलपुर,सागर विश्वविद्यालय, सागर (मध्य प्रदेश)
शैक्षिक योग्यता:   दर्शनशास्त्र में ग्रेजुएट
धर्म:   हिन्दू
पिता:बाबुलाल जैन
माता:सरस्वती बाई जैन

ओशो का प्रारंभिक जीवन

ओशो का पूरा नाम रजनीश ओशो था। इनका जन्म देश के मध्य प्रदेश राज्य के एक छोटे से गांव कूचवाडा में साल 1931 में 11 दिसंबर के दिन हुआ था। बचपन में ओशो को रजनीश चंद्र मोहन जैन के नाम से बुलाया जाता था और यही इनका पूरा नाम भी था। इनके पैदा होने को लेकर के एक विचित्र घटना भी घटित हुई थी।

कहा जाता है कि जब यह पैदा हुए थे तब 3 दिनों तक ना तो इनकी आंखों से आंसू गिरे थे ना हीं इन्होंने अपनी माता का दूध पिया था, जिसकी वजह से इनके परिवार वाले काफी चिंतित हो गए थे।

 इसके पश्चात ओशो के नाना ने ओशो की माता को समझाया कि तुम नहा धोकर के इसी दूसरे किसी कमरे में लेकर के जाओ और फिर दूध पिलाओ, वह तुम्हारा दूध पी लेगा और वास्तव में ऐसा ही हुआ। कहा जाता है कि ओशो के नाना और नानी को यह पहले से ही अनुमान हो गया था की ओशो कोई साधारण बच्चा नहीं है बल्कि आगे चलकर के यह कुछ अलग ही करने वाला है।

ओशो की शिक्षा

ओशो के अभिभावकों के द्वारा पास के ही एक विद्यालय में इनका एडमिशन प्रारंभिक शिक्षा देने के उद्देश्य के साथ करवाया गया परंतु विद्यालय में एडमिशन प्राप्त करने के पश्चात ओशो अपने विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों से ऐसे ऐसे सवाल पूछे लगे जिनका जवाब देना किसी भी शिक्षक के लिए काफी कठिन होता था।

और यही वजह है कि लगातार ऐसे सवाल करने की वजह से स्कूल का प्रशासन काफी परेशान हुआ और प्रशासन ने ओशो को क्लास में बैठने पर प्रतिबंध लगा दिया, साथ ही नगर पालिका से भी इस बात की शिकायत कर दी कि इसे दोबारा स्कूल नहीं आने दिया जाए।

इस पर नगर पालिका ने जवाब दिया कि यह बच्चा जिज्ञासु प्रवृत्ति का है। इसलिए इसे पढ़ने का मौका दिया जाए। इसके पश्चात फिर से ओशो स्कूल जाने लगे और उन्होंने परीक्षा में काफी अच्छे अंक प्राप्त करके सभी टीचरों को आश्चर्यचकित कर दिया।

प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के पश्चात ओशो दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए मध्यप्रदेश के जबलपुर के एक कॉलेज में एडमिशन के लिए गए। यहां पर एडमिशन प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने कड़ी मेहनत से साल 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी और गोल्ड मेडलिस्ट रह कर के एमए की डिग्री हासिल की।

दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे ओशो

डिग्री हासिल करने के बाद यह कुछ समय तक जबलपुर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र सब्जेक्ट के प्रोफेसर रहे और प्रोफेसर रहने के दरमियान विद्यार्थियों के द्वारा इन्हें आचार्य रजनीश कहा जाने लगा। इसी दरमियान इनके मन में देश को घूमने की और आध्यात्मिक जन जागरण फैलाने की सोच पैदा हुई।

कहा जाता है कि इन्होंने अपनी जिंदगी का तकरीबन 25% हिस्सा घूमने में ही गुजारा। जब यह प्रवचन देते थे तो लोगों की भारी भीड़ इनके प्रवचन को सुनने के लिए इकट्ठा होती थी,  क्योंकि इनके अंदर एक अलग ही प्रकार का आकर्षण और जादू था।

ओशो की भारत की सैर

ओशो ने साल 1966 में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पद से रिजाइन कर दिया और उसके पश्चात इन्होंने ऐसे लोगों के लिए अपनी सारी जिंदगी समर्पित कर दी जो अपने आप को जानना चाहते थे। ओशो कहते थे कि उनके ज्ञान को पाने के हकदार वह सभी लोग हैं जो मनुष्य योनि में पैदा हुए हैं।

ओशो ने अपने सन्यासियों को जोरबा द बुद्धा कहा, जिसका मतलब होता है कि एक ऐसे इंसान जो जोरबा की तरह भौतिक जिंदगी का पूरा मजा लेना चाहते हैं और वह गौतम बुद्ध की तरह भी ध्यान लगाने की मुद्रा में उतरना जानते है। ओशो के द्वारा जीवन की संपूर्णता को स्वीकार किया गया है ना कि जीवन को खंड खंड में देखा गया है।

पुणे शहर में श्री रजनीश आश्रम की स्थापना

संपूर्ण भारत को घूम लेने के बाद साल 1970 में ओशो मुंबई में निवास करने के लिए आ गए, जहां पर इनसे मिलने के लिए भारतीय लोगों की तो भारी भीड़ आ ही रही थी साथ ही विदेशी लोग भी बड़ी मात्रा में ओशो से मिलने के लिए उत्साहित हो रहे थे।

 इसी दरमियान ओशो हिमाचल प्रदेश के मनाली शहर में गए, जहां पर उन्होंने अपने ध्यान शिविर में नव संन्यास की दीक्षा देना प्रारंभ किया। इसके पश्चात इन्हें भगवान श्री रजनीश के रूप में जाना और पहचाना जाने लगा।

इसके पश्चात अपने कई शिष्यों को लेकर के साल 1974 में ओशो महाराष्ट्र के पुणे शहर में रहने के लिए चले आएं और पुणे शहर में उन्होंने अपने शिष्यों के साथ मिलकर के एक आश्रम की स्थापना की, जिसका नाम श्री रजनीश आश्रम रखा गया।

आश्रम की स्थापना हो जाने के पश्चात इनकी प्रसिद्धि देश के अलावा विदेश में बड़ी तेजी के साथ होने लगी और पुणे में रह करके ही इन्होंने अपनी शिक्षा का काफी जोरों से प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।

इन्होंने अपने द्वारा दिए गए हर प्रवचन में इंसानी चेतना के विकास के सभी मुद्दों को उजागर करने का काम किया। इंसानी जिंदगी की लगभग सभी पहलुओं पर ओशो ने अपने विचार प्रकट किया। उन्होंने हिंदी समझने वाले लोगों के लिए हिंदी भाषा में भी प्रवचन दिए साथ ही अंग्रेजी का ज्ञान रखने वाले लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा में भी प्रवचन दिए।

ओशो का अमेरिका प्रवास और रजनीश पुरम की स्थापना

ओशो के द्वारा अमेरिका के ओरेगन शहर में भी रजनीशपुरम की स्थापना की गई। इसकी स्थापना साल 1980 में तब हुई जब तकरीबन 64 हजार बंजर जमीन को खरीद करके ओशो के विदेशी सन्यासियो ने एक कम्यून बनवाया।

और यहां पर रहने के लिए ओशो को नेवता भेजा गया क्योंकि ओशो के द्वारा हमेशा अपने भाषण में कहा जाता था कि वह एक ऐसे कम्यून का निर्माण करवाना चाहते हैं जहां पर इंसान के पूरे विकास की परिकल्पना हो।

इस प्रकार से अपने कई सन्यासियों के साथ साल 1980 में ओशो के द्वारा भारत देश को छोड़ा गया और वह अमेरिका प्रस्थान कर गए। अमेरिका जाने के पश्चात ओशो के सभी सन्यासी 64000 एकड़ बंजर जमीन को एक अच्छी जगह में तब्दील करने के लिए दिन-रात परिश्रम करने लगे।

जिसका नतीजा यह रहा कि देखते ही देखते उस बंजर जमीन पर एक हरा भरा इलाका बस गया और उस इलाके को रजनीश पुरम का नाम दिया गया। यह एक ऐसी जगह थी जहां पर ओशो के पास अपने खुद के कई प्राइवेट विमान उपलब्ध थे, साथ ही एयरपोर्ट भी था और यहां पर रोल्स रॉयस कंपनी के द्वारा निर्मित कई कार भी मौजूद थी।

अमेरिकी सरकार का ओशो से घबराना

अमेरिका के अधिकतर युवा ओशो से प्रभावित होने लगे थे और वह हर प्रकार से ओशो का समर्थन करने लगे थे जिसकी वजह से एक विदेशी व्यक्ति के अमेरिका में बढ़ने वाली लोकप्रियता से वहां की सरकार काफी घबरा गई थी।

ओशो की गिरफ्तारी और ओशो का अमेरिका छोड़ना

अमेरिकी सरकार के द्वारा ओशो की गिरफ्तारी करने के पश्चात धीरे-धीरे रजनीशपुरम आश्रम पर भी अमेरिकी सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगाना प्रारंभ कर दिया साथ ही अमेरिकी सरकार के द्वारा ओशो के आश्रम में आने वाले लोगों को वीजा देना भी बंद कर दिया गया। साथ ही आश्रम के अंदर गैरकानूनी प्रवृत्ति होती है, ऐसी अफवाहें भी फैलाई जाने लगी जिसकी वजह से ओशो की छवि को काफी नुकसान हुआ।

अमेरिकी सरकार की कार्रवाई पर ओशो ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि मैंने जो भी बातें कहीं उसका जवाब पश्चिम के किसी भी व्यक्ति में देने की हिम्मत नहीं है। मैंने तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को भी व्हाइट हाउस में चर्चा करने के लिए खुले मंच पर आने के लिए कहा

परंतु वह फंडामेंटलिस्ट्स क्रिस्चियन मजहब को मानते हैं और वह मानते हैं कि दुनिया में सिर्फ क्रिश्चियन ही मजहब है बाकी सब पाखंड है। इसलिए वह मुझे अपना दुश्मन मान बैठे।

इस प्रकार से सरकार के द्वारा झूठे आरोप को लगाकर के ओशो को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें अपने कुछ शिष्यों के साथ तकरीबन 12 दिनों तक कैद में रखा गया जिसकी वजह से ओशो के शिष्यों को काफी सदमा लगा और उन्होंने यह मान लिया की भगवान रजनीश अमेरिका में अब नहीं टिकेंगे।

अमेरिकी सरकार द्वारा ओशो की रिहाई

इसके पश्चात अमेरिकी गवर्नमेंट के द्वारा साल 1985 में 14 नवंबर के दिन ओशो को रिहा किया गया। रिहाई होने के बाद ओशो के द्वारा दुनिया के कई देशों का भ्रमण अलग-अलग उद्देश्यों के साथ किया गया।

 परंतु अमेरिकी गवर्नमेंट के प्रेशर की वजह से तकरीबन 21 देशों ने ओशो को अपने यहां पर आने की परमिशन नहीं दी। वह कुछ देशों ने परमिशन तो दी परंतु ओशो को अपने यहां पर अधिक दिन तक रुकने की इजाजत नहीं दी।

ओशो का फिर से भारत आना

इस प्रकार से साल 1987 में ओशो के द्वारा भारत वापसी की गई और उनका पुणे में जो आश्रम है उसे वर्तमान के समय में ओशो इंटरनेशनल कम्युन नाम से जाना जाता है। हिंदुस्तान वापस आने के पश्चात रजनीश ओशो के द्वारा फिर से प्रवचन देना प्रारंभ किया गया जिसकी वजह से पाखंड और मानवता के प्रति होने वाली साजिशों से पर्दा उठना प्रारंभ हो गया

भारत में ओशो के द्वारा दिए जाने वाले प्रवचन को समाचार पत्र और मैगजीन में भी प्रिंट करना प्रारंभ कर दिया गया जिसकी वजह से कला वर्ग से संबंधित लोग रजनीश ओशो के पुणे शहर में स्थित आश्रम में आने लगे।

भगवान शब्द का त्याग और मौत का पूर्व अनुमान

साल 1988 में 26 दिसंबर के दिन रजनीश ओशो के द्वारा अपने नाम के आगे से भगवान शब्द को हटाया गया। और आश्रम के अंदर मौजूद बुध सभागार में शाम की मीटिंग में सभी प्रेमियों ने अपने सद्गुरु को “ओशो” नाम से पुकारने का फैसला किया।

इसके बाद अचानक से ही ओशो की तबीयत खराब होने लगी और उनके शरीर में कमजोरी उत्पन्न हो गई। कुछ लोगों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि साल 1985 में जब अमेरिकी सरकार के द्वारा ओशो को गिरफ्तार किया गया था।

 तब उन्हें थेलियम नाम का एक धीमा जहर दिया गया था जिसकी वजह से ही धीरे-धीरे उनका शरीर प्राणघातक रेडिएशन से प्रभावित होने लगा। क्योंकि ओशो ने अपने प्रवचनो की संख्या काफी तेज कर दी थी और रजनीश ओशो को भी इस बात का एहसास हो चुका था कि उनके पास धरती पर रहने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा हुआ है।

ओशो की वसीयत और ट्रेडमार्क

ओशो ने अपने जीवन काल के दरमियान हजारों करोड़ों रुपए की संपत्ति बनाई थी और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी संपत्ति पर अलग-अलग लोगों ने दावा ठोका। ओशो की किताबों और दूसरी चीजों से मिला करके तकरीबन एक अरब से भी ज्यादा की रॉयल्टी प्राप्त होती है। वर्तमान के समय में ओशो इंटरनेशनल के द्वारा ओशो की विरासत पर कंट्रोल किया जा रहा है।

ओशो इंटरनेशनल का कहना है कि उन्हें यह विरासत वसीयत में मिली है। इसके अलावा यूरोप के दूसरे देशों में ओशो नाम का ट्रेडमार्क ओशो इंटरनेशनल के पास ही है। इनके द्वारा जो लोग ओशो के विचारों को चाहते हैं उन तक ओशो के विचारों को पहुंचाया जाता है क्योंकि ओशो ने हीं जिंदा रहते हुए कहा था कि कॉपीराइट चीजों का तो हो सकता है परंतु विचारों का नहीं।

रजनीश ओशो की किताबें

  • अकथ कहानी प्रेम की
  • अनंत की पुकार
  • अनहद में बिसराम
  • अपने माहिं टटोल
  • अमी झरत बिगसत कंवल
  • अकथ कहानी प्रेम की
  • अजहूं चेत गंवार
  • अंतर की खोज
  • अंतर्यात्रा
  • अंतर्वीणा
  • अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 1
  • अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2
  • अध्यात्म उपनिषद
  • अमृत की दिशा
  • अमृत द्वार
  • अमृत वाणी
  • अरी, मैं तो नाम के रंग छकी
  • असंभव क्रांति
  • आंखों देखी सांच
  • उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र
  • उपासना के क्षण
  • एक एक कदम
  • आपुई गई हिराय
  • ईशावास्योपनिषद
  • उड़ियो पंख पसार
  • एक ओंकार सतनाम
  • एक नया द्वार

ओशो की मृत्यु

लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे रजनीश ओशो ने इस धरती पर साल 1990 में 19 जनवरी के दिन आखरी सांस ली और इस प्रकार से वह अपने पीड़ादायक शरीर को छोड़कर के हमेशा के लिए धरती लोग से चले गए। रजनीश ओशो ने अपने जिंदा रहते हुए कहा था कि जब उनकी मौत हो तब उनके प्रेमी रोए नहीं बल्कि उनकी मृत्यु को एक महोत्सव के तौर पर सेलिब्रेट करें।

 और इसी के परिणाम स्वरूप रजनीश ओशो की बॉडी को पूणे स्थित आश्रम के गौतम दी बुद्ध ऑडिटोरियम हॉल में तकरीबन 10 मिनट के लिए रखा गया था।

ओशो की मौत के दिन क्या हुआ?

अभय वैध ने ओशो की मौत पर हु किल्ड ओशो नाम से किताब लिखी। किताब के अनुसार साल 1990 में 19 जनवरी को डॉक्टर गोकुल को ओशो आश्रम से फोन करके बुलाया गया और कहा गया कि इमरजेंसी कीट और लेटर हेड लेकर के आए।

डॉक्टर गोकुल ने हलफनामे में बताया कि मैं आश्रम 2:00 बजे पहुंचा और ओशो के शिष्यों ने कहा कि ओशो प्राण छोड़ रहे हैं, कुछ भी करके उन्हें बचाए परंतु मुझे रजनीश ओशो से मिलने नहीं दिया गया। काफी घंटे इंतजार करने के बाद मुझे ओशो के प्राण छोड़ने की इंफॉर्मेशन दी गई और मुझसे डेथ सर्टिफिकेट बनाने के लिए कहा गया।

डॉक्टर गोकुल ने ओशो की मौत के समय को लेकर के काफी सवाल खड़े किए। डॉक्टर ने कहा कि ओशो के शिष्यों ने उनसे कहा कि वह लेटर पैड में यह लिखे कि ओशो की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है।

रजनीश ओशो की मौत हो जाने के बाद काफी कम समय में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। यहां तक कि ओशो की मृत्यु की खबर उनकी माता को भी नहीं दी गई जबकि वह ओशो के आश्रम में ही रहती थी

FAQ:

Q: ओशो की पत्नी का नाम क्या था?

ANS: यह अविवाहित थे।

Q: ओशो को किसने मारा?

ANS: यह राज है।

Q: ओशो क्या भगवान है?

ANS: नही

Q: ओशो को जेल में क्यों जाना पड़ा?

ANS: अमेरिकी सरकार के द्वारा गिरफ्तार करने की वजह से।

Q: ओशो की लव स्टोरी क्या है?

ANS: शीला अंबालाल पटेल, मां योग विवेक नाम की महिलाओं के साथ इनका नाम जुड़ा हुआ था।

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