‘एक देश एक चुनाव’ क्या है, लाभ, नुकसान, संविधान में संशोधन, नोटिफिकेशन, चुनौती, किसे होगा फायदा (One Nation One Election) (Benefit, Effects, Notification, Challenges, advantages)
One Nation One Election पिछले कुछ समय से देश में एक देश एक इलेक्शन की काफी ज्यादा चर्चा हो रही है। कई लोगों के लिए यह एक नया शब्द है और इसलिए उन्हें इसके बारे में पता नहीं है कि, आखिर एक देश एक इलेक्शन का मतलब क्या है और क्यों सरकार के द्वारा इसे देश में लागू करवाने का प्रयास किया जा रहा है। यदि आप एक देश एक इलेक्शन के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो चलिए आर्टिकल में जानकारी प्राप्त करते हैं कि एक देश एक चुनाव क्या है और वन नेशन वन इलेक्शन से क्या फायदा होगा
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‘एक देश एक चुनाव’ क्या है (One Nation One Election)
एक देश एक इलेक्शन को लेकर के गवर्नमेंट के द्वारा एक कमेटी बना दी गई है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया है। ऐसे में क्वेश्चन यह उत्पन्न हो रहा है कि, आखिर एक देश एक चुनाव अर्थात वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब क्या है। बताना चाहेंगे कि, एक देश एक चुनाव के अंतर्गत ऐसा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है, जिसके तहत लोकसभा और सभी राज्यसभा के इलेक्शन एक साथ करवाए जाएंगे। इसका मतलब यह होगा कि, इलेक्शन पूरे देश में एक ही चरण में संपन्न होंगे। अभी के समय में हर 5 साल के पश्चात लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए हर तीन से पांच साल में इलेक्शन होता है।
वन नेशन, वन इलेक्शन कमिटी का क्या मतलब है
कमेटी का कहना है कि, वह वन नेशन वन इलेक्शन पर पॉलीटिकल पार्टी मिनिस्टर के साथ ही साथ आम लोगों से भी राय सलाह मांगेगा और उसके पश्चात एक ड्राफ्ट उनके द्वारा तैयार किया जाएगा। इसके बाद गवर्नमेंट कानून बनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाएगी और संसद में बिल को प्रस्तुत किया जाएगा और इसे पास करवाने का प्रयास किया जाएगा।
एक देश एक इलेक्शन का नोटिफिकेशन
वन नेशन वन इलेक्शन पर कमेटी का गठन कर दिया गया है और इसके बाद इस पर जल्द ही नोटिफिकेशन भी जारी किया जाएगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। कमेटी के द्वारा जो नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा, उसमें वन नेशन वन इलेक्शन की शर्त होगी और इसकी अन्य जानकारियां भी अवेलेबल होगी।
वन नेशन वन इलेक्शन से फायदा
एक देश एक चुनाव के सपोर्ट में यह बात कही जा रही है कि, इससे चुनाव में जो खर्च होते हैं, उसमें काफी कमी आएगी। जानकारी के अनुसार साल 2019 में हुए लोकसभा इलेक्शन में तकरीबन 60000 करोड रुपए सरकार के खर्च हो गए थे। यह काफी बड़ा अमाउंट है। इस पेज में पॉलीटिकल पार्टी के द्वारा खर्च किया गया पैसा और इलेक्शन कमिशन आफ इंडिया के द्वारा चुनाव कराने में खर्च किया गया पैसा शामिल है। वहीं साल 1951-1952 में हुए लोकसभा इलेक्शन में तकरीबन 11 करोड रुपए खर्च हुए थे। इस संबंध में कानून कमीशन का कहना है कि अगर साल 2024 में जो इलेक्शन होने वाले हैं उसे एक साथ करवाया जाता है तो तकरीबन 1751 करोड रुपए का खर्च बढ़ेगा। इस प्रकार से धीरे-धीरे इलेक्शन में होने वाले खर्चे में बहुत ज्यादा कमी आ जाएगी, जिसकी वजह से बचे हुए पैसा का इस्तेमाल देश के डेवलपमेंट में किया जा सकेगा।
‘एक देश एक चुनाव’ पर प्रधानमंत्री मोदी जी का कथन
कुछ साल पहले ही प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा यह बात कही गई थी कि, वह चाहते हैं कि ग्राम पंचायत से लेकर विधानसभा और सामान्य इलेक्शन एक साथ हो। बताना चाहेंगे कि, साल 2023 में 18 से 22 सितंबर तक संसद में एक देश एक चुनाव पर चर्चा होगी और अभी काफी कुछ बातें इस पर तय होना बाकी है। जैसे की कमेटी का कार्यकाल क्या होगा, उसे कब तक रिपोर्ट देनी होगी इत्यादि।
वन नेशन वन इलेक्शन से नुकसान
जहां एक साथ चुनाव होने से कुछ फायदे हैं तो वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं। नुकसान के बारे में बात की जाए तो एक साथ चुनाव होने से नेशनल और लोकल पॉलिटिकल पार्टियों के बीच मतभेद में बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि एक साथ चुनाव होने से नेशनल पार्टी को तो फायदा होगा परंतु छोटे दलों को नुकसान होने की संभावना ज्यादा होगी। इसके अलावा एक साथ चुनाव होने से इस बात की भी प्रबल संभावना है कि चुनाव का रिजल्ट आने में पहले से ज्यादा समय लगेगा, जिसकी वजह से देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी।
वन नेशन वन इलेक्शन में चुनौती
पूरे देश में एक साथ इलेक्शन कराने को लेकर के कई चैलेंज भी है।
- इसके अंतर्गत स्टेट विधानसभा के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
- इसके साथ ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ दूसरे संसदीय प्रक्रिया में भी संशोधन करना पड़ेगा।
- एक साथ इलेक्शन को लेकर के क्षेत्रीय पॉलीटिकल पार्टी में यह डर है कि वह अपने लोकल मुद्दों को मजबूती से नहीं रख सकेंगे क्योंकि नेशनल मुद्दे सेंट्रल में है।
- इसके साथ ही वह इलेक्शन खर्च और इलेक्शन स्ट्रेटजी के मामले में नेशनल पॉलीटिकल पार्टी के साथ कंपटीशन भी नहीं कर सकेंगे।
- साल 2015 में आईडीएफसी इंस्टिट्यूट के द्वारा एक स्टडी की गई थी, जिसमें यह बात सामने निकल करके आई थी कि, अगर लोकसभा और राज्यसभा के इलेक्शन एक साथ होते हैं तो 77% यह संभावना है की वोटर किसी एक ही पॉलीटिकल पार्टी को वोट दें। हालांकि अगर इलेक्शन 6 महीने के अंतराल पर होता है तो सिर्फ 61% वोटर एक पार्टी को चुनना पसंद करेंगे।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता क्यों
विधि आयोग के द्वारा साल 1999 में ही अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई थी और उसमें उन्होंने एक देश एक चुनाव का सपोर्ट किया हुआ था। जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि, साल 2018 के अगस्त के महीने में एक देश एक इलेक्शन पर कानून कमीशन की रिपोर्ट भी प्रस्तुत हुई थी। जिसमें इस बात की चर्चा की गई थी कि, देश में दो फेज में इलेक्शन करवाए जा सकते हैं। विधि आयोग के द्वारा कहा गया है कि, एक साथ इलेक्शन कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक सिफारिश की जरूरत होगी। केंद्र के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि, यदि देश में एक साथ चुनाव करवाने की आवश्यकता होगी, तो इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन किया जाएगा।
एक देश एक इलेक्शन के लिए चुनाव आयोग तैयार है या नहीं
मुख्य इलेक्शन आयुक्त सुशील कुमार चंद्रा के द्वारा साल 2022 में यह बात कही गई थी कि, देश में एक साथ इलेक्शन करवाने के लिए इलेक्शन कमीशन पूरी तरह से रेडी है। उनके द्वारा आगे कहा गया था कि, देश का इलेक्शन कमीशन एक साथ इलेक्शन कराने में पूरी तरह से सक्षम है। हालांकि उन्होंने आगे कहा था कि, इस विचार को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता होगी और यह संसद में ही तय होगा कि संविधान में बदलाव किया जाना है या नहीं। साल 2022 में दिसंबर के महीने में विधि आयोग के द्वारा देश में एक साथ इलेक्शन कराने के प्रस्ताव पर नेशनल पॉलीटिकल पार्टी, भारत के इलेक्शन कमिशन और अन्य एक्सपर्ट लोगों से राय सलाह मांगी गई थी।
एक देश एक चुनाव से किसे होगा फायदा
पत्रकार प्रदीप सिंह के द्वारा कहा गया है कि इलेक्शन आने के पहले ही बड़े पैमाने पर काली कमाई का इस्तेमाल इलेक्शन में किया जाता है, परंतु अगर एक साथ इलेक्शन होते हैं, तो इससे काली कमाई के इस्तेमाल में काफी कमी आएगी और चुनाव के खर्च का बोझ भी कम होगा साथ ही समय भी कम जाएगा और पॉलीटिकल पार्टी तथा उम्मीदवारों पर खर्च का दबाव भी कम होगा पत्रकार के द्वारा आगे कहा गया कि, एक साथ अगर इलेक्शन होते हैं, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी पार्टी और कांग्रेस पार्टी को होगा, क्योंकि यह दोनों ही नेशनल पार्टी है। वहीं दूसरी तरफ क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक साथ अलग-अलग राज्यों में लोकल और लोकसभा इलेक्शन प्रचार अभियान चलाना मुश्किल हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो बीजेपी और एनडीए को फायदा होगा और वह अधिकतर राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे।
पहले एक साथ चुनाव कब हुए
जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि देश आजाद होने के पहले एक साथ चुनाव होते थे और उसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही करवाए गए थे। साल 1983 में भारतीय इलेक्शन डिपार्टमेंट के द्वारा एक साथ इलेक्शन करवाए जाने का प्रस्ताव तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया गया था परंतु इस पर कोई खास बहस नहीं हो पाई।
कौन से देश में एक साथ चुनाव होते हैं
दुनिया में गिने-चुने ही देश है जहां पर एक साथ इलेक्शन करवाया जाता है। एक साथ इलेक्शन करने वाले दो देश यूरोप के हैं जिनके नाम बेल्जियम और स्वीडन है और तीसरा देश दक्षिण अफ्रीका है परंतु आबादी के लिहाज से यह सभी देश भारत से काफी ज्यादा छोटे हैं।
अगर भारत में एक साथ इलेक्शन करवाया जाता है तो भारत दुनिया में एक साथ इलेक्शन करवाने वाले देश में चौथे नंबर पर शामिल हो जाएगा। भारत के पड़ोसी देश नेपाल के पास भी एक साथ इलेक्शन करवाने का एक्सपीरियंस है। साल 2015 में जब नेपाल में नया संविधान एक्सेप्ट किया गया था तो इसके बाद साल 2017 में अगस्त के महीने में वहां पर एक साथ इलेक्शन करवाया गया था।
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FAQ
Ans : सभी ग्राम पंचायत, नगर पालिका, विधानसभा एवं लोकसभा के चुनाव एक साथ होना एक देश एक चुनाव कहलाता है.
Ans : संभवतः
Ans : हमारे देश में चुनाव भारतीय चुनाव आयोग के द्वारा करवाया जाता है।
Ans : भारत में पहली बार साल 1957 में चुनाव हुआ था।
Ans : चुनाव के माध्यम से भारत की सामान्य जनता अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देती है।
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