मिथुन संक्रांति व रज पर्व महत्त्व व कथा (Mithuna Sankranti / Raja Sankranti festival Mahatv, story in hindi) 2024
साल में 12 संक्रांति होती है, जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि, नक्षत्र पर विराज होता है. इन सभी संक्रांति में दान-दक्षिणा, स्नान, पुन्य का बहुत महत्व रहता है. मिथुना संक्रांति उनमें से ही एक है. मिथुना संक्रांति से सौर मंडल में बहुत बड़ा बदलाव आता है, मतलब इसके बाद से वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है. इस दिन सूर्य वृषभ राशी से निकलकर मिथुन राशी में प्रवेश करता है. जिससे सभी राशियों में नक्षत्र की दिशा बदल जाती है. ज्योतिषों के अनुसार सूर्य में आये इस बदलाव को बहुत बड़ा माना जाता है, इसलिए इस दिन पूजन अर्चन का विशेष महत्व है. देश के विभिन्न क्षेत्र में इसे अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, साथ ही इसे अलग नाम से पुकारते है. मकर संक्रांति का महत्व व मकर संक्रांति स्लोगन पढ़ने के लिए क्लिक करें.
- दक्षिण में संक्रमानम (sankramanam)
- पूर्व में अषाढ़
- केरल में मिथुनम ओंठ
- उड़ीसा में राजा पर्व (Raja Parv)
Table of Contents
उड़ीसा में यह पर्व 4 दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, और पहली बारिश का स्वागत किया जाता है. उड़ीसा में अच्छी खेती व बारिश की मनोकामना के लिए राजा पर्व मनाते है, जिसमें सभी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है.
मिथुना संक्रांति 2024 में कब मनाई जाएगी? (Mithuna sankranti / Raja Parv 2024 Date)
इस वर्ष 2023 में मिथुना राजा संक्रांति 15 जून, दिन मंगलवार से मनाना शुरू होगी, तथा 15 जून, दिन शुक्रवार को समाप्त होगा. चार दिन चलने वाले इस पर्व में पहले दिन को पहिली राजा, दुसरे दिन को मिथुना संक्रांति या राजा, तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा व चौथे दिन को वसुमती स्नान कहते है.
15 जून 2024 को मिथुना संक्रांति का मुहूर्त (Mithuna Sankranti Muhurta) –
पुण्यकाल मुहूर्त | 11:52 से 18:16 |
महा पुण्यकाल मुहूर्त | 11:52 से 12:16 |
संक्राति समय | 11.52 |
मिथुना संक्रांति/ रज पर्व से जुड़ी रोचक कथा (Mithuna sankranti Katha/ Raja sankranti Story in hindi)–
माना जाता है, जैसे औरतों को हर महीने मासिक धर्म होता है, जो उनके शरीर के विकास का प्रतीक है, वैसे ही धरती माँ या भूदेवी , उन्हें शुरुवात के तीन दिनों में मासिक धर्म हुआ, जो धरती के विकास का प्रतीक है. इस पर्व में ये तीन दिन यही माना जाता है कि भूदेवी को मासिक धर्म हो रहे है. चौथे दिन भूदेवी को स्नान कराया गया, इस दिन को वासुमती गढ़ुआ कहते है. पिसने वाले पत्थर जिसे सिल बट्टा कहते है, भूदेवी का रूप माना जाता है. इस पर्व में धरती की पूजा की जाती है, ताकि अच्छी फसल मिले. विष्णु के अवतार जगतनाथ भगवान् की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा आज भी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में विराजमान है.
मिथुना संक्रांति/राजा पर्व मनाने का तरीका (Mithuna sankranti / Raja Parv Celebration) –
मिथुना संक्रांति में भगवान् सूर्य की पूजा की जाती है. उनसे आने वाले जीवन में शांति की उपासना करते है. पर्व के चार दिन शुरू होने के पहले वाले दिन को सजबजा दिन कहते है, इस दिन घर की औरतें आने वाले चार दिनों के पर्व की तैयारी करती है. सिल बट्टे को अच्छे से साफ करके रख दिया जाता है. मसाला पहले से पीस लेती है, क्यूंकि आने वाले चार दिन सिल बट्टे का प्रयोग नहीं किया जाता है.
चार दिनों के इस पर्व में शुरू के तीन दिन औरतें एक जगह इकठ्ठा होकर मौज मस्ती किया करती है. नाच, गाना, कई तरह के खेल होते है. बरगत के पेड़ में झूले लगाये जाते है, सभी इसमें झूलकर गीत गाती है. इस पर्व में अविवाहित भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है. वे ट्रेडिशनल साडी पहनती है, मेहँदी आलता लगाती है. अविवाहित अच्छे वर की चाह में ये पर्व मनाती है. कहते है जैसे धरती बारिश के लिए अपने आप को तैयार करती है, उसी तरह अविवाहित भी अपने आप को तैयार करती है, और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना करती है.
शुरू के तीन दिन औरतें बिना पका हुआ खाना खाती है, नमक नहीं लेती, साथ ही ये तीन दिन वे चप्पल भी नहीं पहनती है. ये तीन दिन औरतें न कुछ काट-छिल सकती है, न धरती पर किसी तरह की खुदाई की जाती है. पहले दिन भोर के पहले उठ कर, चन्दन हल्दी का लेप लगाकर, सर धोकर नहाया जाता है, बाकि के दो दिन इस पर्व में नहीं नहाते है. चौथे दिन की पूजा की विधि इस प्रकार है –
- सिल बट्टे में हल्दी, चन्दन, फूलों को पीस कर पेस्ट बनाया जाता है, जिसे सभी औरतें सुबह उठकर अपने शरीर में लगाकर नहाती है.
- पीसने वाले पत्थर (सिल बट्टे) की भूदेवी मानी जाती है.
- उन्हें दूध, पानी से स्नान कराया जाता है.
- उन्हें चन्दन, सिन्दूर, फूल व हल्दी से सजाया जाता है.
- इनकी पूजा करने के बाद, इस कपड़े के दान का विशेष महत्व है.
- सभी मौसमी फलों का चढ़ावा भूदेवी को चढ़ाते है, व उसके बाद पंडितों और गरीबों को दान कर देते है.
- बाकि संक्रांति की तरह इस दिन, घर के पूर्वजों को श्रधांजलि दी जाती है.
- दुसरे मंदिर में जाकर पूजा करने के बाद, गरीबों को दान दिया जाता है.
- पवित्र नदी में स्नान किया जाता है.
- इस दिन विशेष रूप से पोड़ा-पीठा नाम की मिठाई बनाई जाती है. यह गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनती है. इस दिन चावल के दाने नहीं खाए जाते है.
मिथुना संक्रांति त्यौहार का आयोजन (Mithuna sankranti / Raja Parv Arrangement)-
उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है, मंदिर को फूल, लाइट से सजाया जाता है. मेलों का आयोजन होता है. देश विदेश से लोग यहाँ पहुँचते है. इस त्यौहार के समय किसी भी तरह के कृषि कार्य नहीं किये जाते है. जैसे हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मासिक धर्म के होने पर औरतों को कुछ काम करने नहीं दिया जाता है, उन्हें आराम दिया जाता है, उसी तरह भूमि को भी पूरी तरह आराम दिया जाता है. जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की कहानी के बारे में जानने के लिए पढ़े.
इस दौरान सभी मर्द अपने आप को व्यस्त रखने के लिए तरह तरह के खेल प्रतियोगिता का आयोजन करते है. इसमें कब्बडी सबसे प्रचलित है. रात भर नाच गाने का सिलसिला चलता रहता है. शहर की व्यस्त ज़िन्दगी में ये त्यौहार कम ही मनाया जाता है, लेकिन गाँव में तो इस त्यौहार को विशेष रूप से और उत्साह से मनाते है. किसान वर्ग के लिए ये धरती माँ को धन्यवाद करने का विशेष दिन है. रात को लोक नृत्य से सबका मनोरंजन होता है. ये त्यौहार चारों और खुशियाँ व रंग बिखेर देता है, जिसका इंतजार औरतें बहुत चाव से करती है, क्यूंकि इस दौरान उन्हें घर के कामों से छुट्टी भी मिल जाती है.
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FAQ
Ans : 15 जून
Ans : जी हां
Ans : दक्षिण एवं पूर्व भारत में
Ans : इसकी जानकारी ऊपर दी हुई है.
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