माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय व कविता | Makhan lal Chaturvedi Biography, poems with meaning in hindi

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय व कविता | Makhan lal Chaturvedi Biography, poems with meaning in hindi

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की ख्याति एक लेखक,कवि और वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में हैं  लेकिन वो एक स्वतन्त्रता सेनानी भी थे.इसके अलावा उनकी पहचान एक जागरूक और कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार की भी थी. इस वजह से ही उनके नाम पर पत्रकारिता को समर्पित एशिया की पहली यूनिवर्सिटी “माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन” का नाम रखा गया. माखनलाल “पंडितजी” के नाम से भी विख्यात है. माखनलाल चतुर्वेदी को ब्रिटिश राज के दौरान स्वतंत्रता के लिए चलने वाले विभिन्न आंदोलनों में दिए योगदान के कारण भी याद किया जाता हैं. इसके अलावा उनकी रचनाए “पुष्प की अभिलाषा: और  “हीम-तरंगिनी” आज भी उतनी ही प्रसिद्द हैं जितनी उस समय थी, जब इसकी रचना हुई थी. वो भारत के स्वतन्त्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे,लेकिन स्वतन्त्रता के बाद उन्होंने सरकार में कोई पद लेने से मना कर दिया. वो स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी लगातार कई समय तक सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लिखते रहे,और महात्मा गाँधी के दिखाए सत्य अहिंसा और मार्ग पर चलते रहे. उनकी कविताओं में भी देश के प्रति समर्पण और प्रेम को देखा जा सकता हैं.  

माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

नाममाखनलाल चतुर्वेदी
पेशालेखक,साहित्यकार,कवि,पत्रकार
साहित्य का प्रकारनव-छायाकार
जन्मदिन4 अप्रैल 1889 को 
जन्मस्थानमध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बवाई गाँव में
लेख‘वेणु लो गूंजे धरा’,हिम कीर्तिनी,हिम तरंगिणी,युग चरण,साहित्य देवता
कविताएं
  • अमर राष्ट्र,
  •  अंजलि के फूल गिरे जाते हैं,
  •  आज नयन के बंगले में,
  •  इस तरह ढक्कन लगाया रात ने,
  •  उस प्रभात तू बात ना माने,
  •  किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप,
  •  कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे,
  •  गली में गरिमा घोल-घोल,
  •  भाई-छेड़ो नहीं मुझे,
  •  मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक,
  • संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं. 
सम्मान1955 में साहित्यिक अकादमी अवार्ड

 

1963 में पद्म भूषण सम्मान

उन्हें समर्पित सम्मानमध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा देश के श्रेष्ठ कवियों को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार”दिया जाता

 

उनके नाम पर माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय

उनके नाम पर पोस्टेज स्टाम्प ज़ारी किये गए.

मृत्यु30 जनवरी 1968


माखन लाल चतुर्वेदी : जन्म और प्रारम्भिक जीवन ( Birth and Early Life)

माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म 04/04 1889 को ब्रिटिश इंडिया मे हुआ था । तात्कालिक समय मे उनका जन्म स्थान मध्य भारत के बाबई मे हैं जो कि होशंगाबाद मे आता हैं.

माखनलाल चतुर्वेदी के जन्म के समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था एवं तब स्वाधीनता के लिए संघर्ष चल रहा था. और माखलाल ने भी यह समझ आते ही, (कि देश की प्रगति के लिए स्वतन्त्रता बहुत आवश्यक हैं,) देश-हित में कार्य करना शुरू कर दिया.

माखनलाल जब 16 वर्ष के हुए तब ही स्कूल में अध्यापक बन गए थे. उन्होंने 1906 से 1910 तक एक विद्यालय में अध्यापन का  कार्य किया. लेकिन जल्द ही माखनलाल ने अपने जीवन और लेखन कौशल का उपयोग  देश की स्वतंत्रता के लिए करने का निर्णय ले लिया.

उन्होंने असहयोग आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन जैसी कई गतिविधियों में भाग लिया. इसी क्रम में वो कई बार जेल भी गए और जेल में कई अत्याचार भी सहन किए,लेकिन अंग्रेज उन्हें कभी अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सके.

माखनलाल चतुर्वेदी का करियर (Makhanlal Chaturvedi: Carrier )

1910 में अध्यापन का कार्य छोड़ने के बाद माखन लाल राष्ट्रीय पत्रिकाओं में सम्पादक का काम देखने लगे थे. उन्होंने  प्रभा” और  “कर्मवीर” नाम की राष्ट्रीय पत्रिकाओं में सम्पादन का काम किया

 माखनलाल ने अपनी लेखन शैली से देश के एक बहुत बड़े वर्ग में देश-प्रेम भाव को जागृत किया. उनके भाषण भी उनके लेखो की तरह ही ओजस्वी और  देश-प्रेम से ओत-प्रोत होते थे. 

उन्होंने 1943 में “अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन” की अध्यक्षता की. उनकी कई रचनाए तब देश के युवाओं में जोश भरने और उन्हें जागृत करने के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुई.

शैली : माखनलाल की लेखन शैली नव-छायावाद का एक नया आयाम स्थापित करने वाली थी.  जिनमे भी चतुर्वेदी की कुछ रचनाए “हिम-तरंगिनी, कैसा चाँद बना देती हैं,अमर राष्ट्र और पुष्प की अभिलाषा तो हिंदी साहित्य में सदियों तक तक अमर रहने वाली रचनाएँ हैं, और कई युगों तक यह आम-जन को प्रेरित करती रहेगी.

माखनलाल चतुर्वेदी: अवार्ड्स और सम्मान (Makhanlal Chaturvedi Awards)

  1. माखनलाल 1955 में साहित्य एकेडमी का अवार्ड जीतने वाले पहले व्यक्ति हैं.
  2. हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान देने के कारण ही पंडितजी को 1959 में सागर यूनिवर्सिटी से डी.लिट् की उपाधि भी प्रदान की गयी.
  3. 1963 में माखनलाल चतुर्वेदी को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्व योगदान के कारण पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.

माखनलाल चतुर्वेदी का हिंदी साहित्य को योगदान ( Makhanlal chaturvedi Contribution To Literature)

माखनलाल की कुछ प्रमुख कालजेयी रचनाए हैं – हिम तरंगिनी,समर्पण,हिम कीर्तनी,युग चरण,साहित्य देवता दीप से दीप जले,कैसा चाँद बना देती हैं और पुष्प की अभिलाषा. जिनमें से वेणु लो गूंजे धरा’,हिम कीर्तिनी,हिम तरंगिणी,युग चरण,साहित्य देवता तो सुप्रसिद्ध लेख हैं.

इसके अलावा कुछ कविताएं जैसे  अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं.

मृत्यु  (Death)

राष्ट्र  ने साहित्य जगत का यह अनमोल हीरा 30 जनवरी 1968 को खो दिया. पंडितजी उस समय 79 वर्ष के थे,और देश को तब भी उनके लेखन से बहुत उम्मीदें थी.

धरोहर (Legacy)

माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्य की विधा में दिए योगदान के सम्मान में बहुत सी यूनिवर्सिटी ने विविध अवार्ड्स के नाम उनके नाम पर रखे.मध्य प्रदेश सांस्कृतिक कौंसिल  द्वारा नियंत्रित मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी देश की किसी भी भाषा में योग्य कवियों को “माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार” देती हैं. पंडितजी के देहांत के 19 वर्ष बाद 1987 से यह सम्मान देना शुरू किया गया.

भोपाल,मध्य प्रदेश में स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय पूरे एशिया में अपने प्रकार का पहला विश्व विद्यालय हैं. इसकी स्थापना पंडितजी के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता और लेखन के द्वारा दिए योगदान को सम्मान देते हुए 1991 में हुई.

भारत के पोस्ट और टेलीग्राफ डिपार्टमेंट ने भी पंडित माखन लाल चतुर्वेदी को सम्मान देते हुए पोस्टेज स्टाम्प की शुरुआत की. यह स्टाम्प पंडितजी के 88वें जन्मदिन 4 अप्रैल 1977 को ज़ारी हुआ.

माखनलाल चतुर्वेदी कविता अमर राष्ट्र ( Makhan lal Chaturvedi poems Amar Rastra in hindi )

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया,
यह लुटिया-डोरी ले अपनी,
फिर वह पापड़ नहीं बेलने;
फिर वह माल पडे न जपनी।

यह जागृति तेरी तू ले-ले,
मुझको मेरा दे-दे सपना,
तेरे शीतल सिंहासन से
सुखकर सौ युग ज्वाला तपना।

सूली का पथ ही सीखा हूँ,
सुविधा सदा बचाता आया,
मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ,
जीवन-ज्वाल जलाता आया।

एक फूँक, मेरा अभिमत है,
फूँक चलूँ जिससे नभ जल थल,
मैं तो हूँ बलि-धारा-पन्थी,
फेंक चुका कब का गंगाजल।

इस चढ़ाव पर चढ़ न सकोगे,
इस उतार से जा न सकोगे,
तो तुम मरने का घर ढूँढ़ो,
जीवन-पथ अपना न सकोगे।

श्वेत केश?- भाई होने को-
हैं ये श्वेत पुतलियाँ बाकी,
आया था इस घर एकाकी,
जाने दो मुझको एकाकी।

अपना कृपा-दान एकत्रित
कर लो, उससे जी बहला लें,
युग की होली माँग रही है,
लाओ उसमें आग लगा दें।

मत बोलो वे रस की बातें,
रस उसका जिसकी तस्र्णाई,
रस उसका जिसने सिर सौंपा,
आगी लगा भभूत रमायी।

जिस रस में कीड़े पड़ते हों,
उस रस पर विष हँस-हँस डालो;
आओ गले लगो, ऐ साजन!
रेतो तीर, कमान सँभालो।

हाय, राष्ट्र-मन्दिर में जाकर,
तुमने पत्थर का प्रभू खोजा!
लगे माँगने जाकर रक्षा
और स्वर्ण-रूपे का बोझा?

मैं यह चला पत्थरों पर चढ़,
मेरा दिलबर वहीं मिलेगा,
फूँक जला दें सोना-चाँदी,
तभी क्रान्ति का समुन खिलेगा।

चट्टानें चिंघाड़े हँस-हँस,
सागर गरजे मस्ताना-सा,
प्रलय राग अपना भी उसमें,
गूँथ चलें ताना-बाना-सा,

बहुत हुई यह आँख-मिचौनी,
तुम्हें मुबारक यह वैतरनी,
मैं साँसों के डाँड उठाकर,
पार चला, लेकर युग-तरनी।

मेरी आँखे, मातृ-भूमि से
नक्षत्रों तक, खीचें रेखा,
मेरी पलक-पलक पर गिरता
जग के उथल-पुथल का लेखा !

मैं पहला पत्थर मन्दिर का,
अनजाना पथ जान रहा हूँ,
गूड़ँ नींव में, अपने कन्धों पर
मन्दिर अनुमान रहा हूँ।

मरण और सपनों में
होती है मेरे घर होड़ा-होड़ी,
किसकी यह मरजी-नामरजी,
किसकी यह कौड़ी-दो कौड़ी?

अमर राष्ट्र, उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र !
यह मेरी बोली
यह `सुधार’ `समझौतों’ बाली
मुझको भाती नहीं ठठोली।

मैं न सहूँगा-मुकुट और
सिंहासन ने वह मूछ मरोरी,
जाने दे, सिर, लेकर मुझको
ले सँभाल यह लोटा-डोरी !

माखनलाल चतुर्वेदी कविता अंजलि के फूल गिरे जाते हैं| Makhan lal Chaturvedi poems Anjali Ke Phool Gire Jate Hain

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।

चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं
साधें आराधनीय रही नहीं
उठने,उठ पड़ने की बात रही
साँसों से गीत बे-अनुपात रही

बागों में पंखनियाँ झूल रहीं
कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं
फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे
किसको अनुहार रही चुप साधे

दौड़ के विहार उठो अमित रंग
तू ही `श्रीरंग’ कि मत कर विलम्ब
बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं
कितना रोका कि मौन बोल उठीं
आहों का रथ माना भारी है
चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है

आओ तुम अभिनव उल्लास भरे
नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।।

पुष्प की अभिलाषा (Pushpa Kee Abhilasha)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

उठ महान (Utha Mahaan)

उठ महान ! तूने अपना स्वर
यों क्यों बेंच दिया?
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का
पट क्यों खेंच दिया?

वे गाये, अनगाये स्वर सब
वे आये, बन आये वर सब
जीत-जीत कर, हार गये से
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!

तुम बोले, युग बोला अहरह
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह
इस घुमाव पर, उस बनाव पर
कैसे क्षण थक गये, असह-सह!

पानी बरसा
बाग ऊग आये अनमोले
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने
अन्तर तर खोले;

पर बरसा पानी ही था
वह रक्त न निकला!
सिर दे पाता, क्या
कोई अनुरक्त न निकला?

प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया!
उठ महान् तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया!

कैसी है पहिचान तुम्हारी (Kaisi Hain Pahichan Tumhari)

कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो !

पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने
विविध धुनों में कितना गाया
दायें-बायें, ऊपर-नीचे
दूर-पास तुमको कब पाया

धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही
तुम खिलते हो तो खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

किरणों प्रकट हुए, सूरज के
सौ रहस्य तुम खोल उठे से
किन्तु अँतड़ियों में गरीब की
कुम्हलाये स्वर बोल उठे से !

काँच-कलेजे में भी कस्र्णा-
के डोरे ही से खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो।।

प्रणय और पुस्र्षार्थ तुम्हारा
मनमोहिनी धरा के बल हैं
दिवस-रात्रि, बीहड़-बस्ती सब
तेरी ही छाया के छल हैं।

प्राण, कौन से स्वप्न दिख गये
जो बलि के फूलों खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो।।

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