किसान बिल (कृषि कानून) 2021 क्या है, महत्व निबंध किसान आंदोलन

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किसानों के हक के लिए लड़ने वाली हरसिमरत कौर बादल ने सितंबर 2020 की शाम मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह जानकारी अपने ट्विटर अकाउंट से दी। हरसिमरत कौर जोश शिरोमणि अकाली दल की एकमात्र केंद्रीय मंत्री है और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री का पूरा पोर्टफोलियो इनके पास था। पंजाब भटिंडा लोकसभा से एमपी की सीट पर भी हरसिमरत कौर विराजमान है। किसानों के खिलाफ पास किए गए ऑर्डिनेंस के विरोध में इन्होंने रिजाइन करने का यह निर्णय लिया यह बात उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट की पोस्ट के जरिए बताइ। 18 सितंबर 2020 की सुबह प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद जी ने हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

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किसान विरोध दिवस (काला दिवस)

पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा लोक सभा एवं राज्य सभा दोनों में कृषि किसान बिल को पेश करने के बाद यह राष्ट्रपति द्वारा भी पारित कर दिया गया. जिसके बाद यह कानून बन गया. किन्तु देश के विभिन्न राज्यों में किसान इस कानून के विरोध में हैं, और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. हालही में कोरोना महामारी के चलते यह विरोध प्रदर्शन ठंडा पड़ गया था. किन्तु कोरोना केसेस कम होने के साथ यह विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू हो गया है. एक बार फिर विपक्ष ने किसानों का साथ देना शुरू कर दिया हैं. 12 विपक्षी दलों के साथ मिलकर किसान संगठन ने 26 मई के दिन किसान विरोध दिवस मनाने का निश्चय कर लिया है. और अपने किसना भाइयों से दिनभर किसना कानून का विरोध करने का आह्वान किया है. अब देखना यह होगा कि इस कोरोना महामारी के बीच यह विरोध प्रदर्शन क्या रंग दिखाता है.   

किसान बिल (कृषि कानून) 2021

प्रधानमंत्री का बड़ा ऐलान (Latest Update) –

प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बहुत ही अहम् फैसला लिया है कि अब वे किसान बिल यानि कि कृषि कानून को वापस ले रहे हैं. मोदी ने आज देश को संबोधित कर यह ऐलान किया है कि वे नवंबर 2021 के अंत में होने वाले संसद सत्र में इस कानून को रद्द करने की अधिकारिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे. हालही मोदी जी का कहना है कि ये कानून बहुत से छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित होता है. इसके फायदे मोदी सरकार द्वारा कई बार समझाने की कोशिश की गई लेकिन कुछ किसानों द्वारा इस पर विरोध प्रदर्शन चलता ही रहा. इसलिए मोदी जी ने इसे रद्द करने का फैसला किया है.

आपको बता दने कि मोदी जी ने इसके अलावा एक और बड़ा ऐलान किया है. वह यह है कि एक कमिटी का गठन किया जायेगा. जिनका काम होगा जीरो बजट खेती यानि कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना, देश की आज के समय के अनुसार बदलती जरूरतों पर विशेष ध्यान देते हुए क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके में परिवर्तित करना और एमएसपी को और अधिक प्रभावी व पारदर्शी बनाना आदि से जुड़े जो भी निर्णय लिए जायेंगे, और यह समिति द्वारा किया जायेगा. और इस समिति में शामिल होने वाले लोग सरकार, राज्य सरकार के प्रतिनिधि, कृषि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री एवं किसान आदि से संबंधित होंगे.  

केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर से दिया इस्तीफ़ा –

मंत्री पद के पोर्टफोलियो को जो हरसिमरत कौर जी के पास था वह नरेंद्र सिंह तोमर को दे दिया गया है। हरसिमरत कौर बादल के पति सुखबीर सिंह बादल ने भी किसानों के लिए जारी किए गए बिल के विरोध में लोकसभा में बातें कहीं उन्होंने यह भी कहा कि जारी किए गए यह सभी बिल पंजाब की कृषि को बर्बाद करके रख सकते हैं।  हरसिमरत कौर ने किसानों को सहयोग देते हुए अपने 4 पन्नों के इस्तीफे में यह कहा कि हर अकाली एक किसान है और हर किसान एक अकाली।

तीन कृषि विधयेक कानून (किसान बिल) क्या है –

केंद्रीय सरकार द्वारा तीन अध्यादेश पास किए गए हैं जो कानून में बदल दिए गए, जिसके चलते हरसिमरत कौर ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया। वे तीन अध्यादेश नीचे बताए गए हैं जिन्हें हाल ही में लोकसभा के मानसून सत्र के दौरान कानून में परिवर्तित कर दिया।

  • कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020

इन तीनों बिलों के पास होने के बाद किसानों को यह डर है कि उन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की लिस्ट से बाहर निकाल दिया जाएगा जिसकी वजह से किसानों के बीच काम करने वाले दलालों (आढ़तिया) को कमीशन नहीं मिल पाएगी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनुसार लगभग 12 लाख परिवार ऐसे हैं. पंजाब में जो 28 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड आढ़तिया के रूप में काम करते हैं।

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कृषि विधेयक किसान बिल का किस पर पड़ेगा असर –

ऊपर बताए गए नियम यदि एक्ट में बदल जाते हैं तो पंजाब के 12 लाख परिवारों को एमएसपी मिलना बंद हो जाएगी जिसकी वजह से पंजाब की इकोनामी पर बहुत गहरा असर पड़ेगा क्योंकि अधिकतर परिवार एमएसपी की वजह से ही अपने परिवार का लालन पोषण कर पाते हैं। ऊपर बताए गए अध्यादेश पास हो जाते हैं तो पंजाब में रहने वाले किसान, आढ़तिया और राज्य की सरकार तीनों को बहुत ज्यादा नुकसान होने वाला है। इन्हीं कारणों के चलते सरकार द्वारा जारी किए गए नियमों का विरोध पंजाब में लगातार किया जा रहा है।

कृषि विधेयक किसान बिल का विरोध कहाँ – कहाँ हो रहा है

जब से भारत सरकार ने कृषि विधेयक किसान बिल को पास कर कानून बनाया है तब से इसके विरोध की खबर बहुत अधिक सुनाई दे रही है. आपको बता दें कि कृषि विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब एवं हरियाणा में हो रहा है. अब इससे यह सवाल उठता है कि इस विधेयक का विरोध देश के केवल इन्हीं राज्यों में सबसे ज्यादा विरोध क्यों हो रहा हैं जबकि बिहार एवं यूपी में इसका असर बहुत कम दिखाई दे रहा है. तो आपको बता दें कि ऐसा इसलिए क्योकि पंजाब एवं हरियाणा के किसानों की खुद एक पहचान हैं वहां पर उनकी जातीय पहचान सबसे ज्यादा मजबूत है. जबकि बिहार एवं यूपी में भले की 70% आबादी कृषि से जुडी हैं लेकिन किसानों को इस बिल के बारे में सही तरीके की जानकारी अभी तक नहीं है. इसके अलावा यहाँ पर पैक्स भी सक्रिय नहीं हैं.   

कृषि विधेयक किसान बिल का विरोध क्यों हो रहा है –

सभी बातों को जांच परख करने के बाद यह बात सामने आई है कि तीनों बिल में से सबसे पहले बिल (फार्मर्स प्रोड्यूसर ट्रेड एंड कमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलेशन) ऑर्डिनेंस 2020) को लेकर किसान बहुत ज्यादा नाराज हैं जिसका वह लगातार विरोध कर रहे हैं। मुख्य रूप से किसान जिस बात को लेकर परेशान है वो है ट्रेड एरिया, ट्रेडर एवं मार्किट फीस.

पहले अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान –

ट्रेड एरिया क्या है (Trade Area) –

अभी तक ज्यादातर राज्यों में एपीएमसी के तहत मार्किट बनाये जाते है. एपीएमसी एक्ट राज्य सरकार लेकर आती है, मतलब राज्य सरकार अपने प्रदेश में एपीएमसी मंडी को बनाती है. अभी तक जो भी व्यापार होता है किसान और ट्रेडर्स के बीच में वो इन्हीं एपीएमसी मंडी में होता है.  आज के समय में ट्रेड एरिया ही एपीएमसी मंडी है. अब जो नया अध्यादेश आया है उसने ट्रेड एरिया की परिभाषा को बदल दिया है.

अब किसानों का कहना है कि एपीएमसी का अभी तक जो फॉर्मेट था बहुत अच्छा था, इसके चलते हर मंदी कम से कम 200 से 300 गाँव को देख रही थी. अब जो नया अध्यादेश आया है उसमें इन मंडियों को हटा दिया गया है, जिसके चलते आगे चलके बड़े-बड़े खरीददार को ही फायदा होगा.

अभी तक किसान अपने अनाज को एपीएमसी मंडी लेकर जाता था, फिर वहां कमीशन एजेंट उसको खरीद कर आगे उसे बेचता था. अब अगर एपीएमसी मंडी के सिस्टम को पूरी तरह हटा दिया जाता है तो जो कॉर्पोरेट है वो जगह-जगह अपनी छोटी-छोटी मंडी को बनायेगें, जिससे शुरुवात में तो किसानों को लाभ होगा, लेकिन आगे जाकर उन्हें नुकसान होगा. लेकिन इस बात पर सरकार बोल रही है कि वो किसानों को स्वतंत्रता दे रही है, कि वे अपनी मर्जी इच्छा अनुसार मंडी का चयन कर वहां अनाज बेच सकता है.

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दुसरे अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान –

ट्रेडर कौन है (Trader) –

दुसरे अध्यादेश में ट्रेडर की परिभाषा को बदल दिया गया है. अब इसमें प्रोसेसर, एक्सपोर्टर, व्होलसेलर, मिलर एवं रिटेलर को भी जोड़ दिया गया है. विरोध करने वाले किसानों का कहना है कि उन्हें अर्थियास पर भरोसा है, कमीशन एजेंट को राज्य सरकार द्वारा लाईसेंस मिलता है. सरकार उन पर भरोसा करती है तो हम भी उन पर भरोसा कर पाते है. लाईसेंस देने से पहले सरकार उन कमीशन एजेंट की पूरी जानकारी इकट्ठी कर, जांच पड़ताल के बाद ही लाईसेंस देती है. लेकिन अब जो नया रुल आया है उसके चलते कमीशन एजेंट के अलावा ये सभी लोग भी काम कर सकेगें, जिनके पास प्रॉपर लाईसेंस भी नहीं होगा. ऐसे में आगे चलकर इन किसानों को ऐसे फ्रॉड लोगों का सामना करना पड़ेगा. ये विरोध का दूसरा कारन है, जो बहुत बड़ा कारन उन सभी कमीशन एजेंट के लिए, जो इसके द्वारा कमाई करते है. क्यूंकि इस नए रूल से अर्थियास को भी काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा.

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तीसरे अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान

मार्किट फीस क्या है (Market Fee) –

नए अध्यादेश में कई तरह से लगने वाली मार्किट फीस को पूरी तरह से हटा दिया है. विरोध कर्ता को ये नया रुल बिलकुल भी एक्सेप्ट नहीं है, इसका विरोध करते हुए उन्होंने कहा है कि मान लीजिये मंडी में कोई लेन देन हुआ है, जिसमें 1 क्विंटल गेहूं में 8.5 मार्किट फीस आप लगा लेते है, तो यह 164 रूपए होता है. तो इसका मतलब मंदी के बहार जो भी लेन देन होगा उसका बड़ा फायदा बड़े कॉर्पोरेट को होगा. यहाँ हमारी बात प्रूफ होती है कि नए रुल से किसान, कमीशन एजेंट एवं राज्य सरकार तीनों प्रभावित होगी.

मार्किट फीस का प्रावधान राज्य को नुकसान पहुंचाएगा, ट्रेड एरिया वाला प्रावधान किसानों को नुकसान देगा एवं ट्रेडर वाला प्रावधान आर्थियास को नुकसान पहुंचाएगा. यह एक बड़ी परेशानी है, जिसे सभी प्रदर्शनकर्ता बोल रहे है.

इस तरह इस अध्यादेश से देश के किसान सड़क पर उतर आये है, वे चाहते है कि सरकार इस बिल को वापस ले ले. कई राज्य केंद्र सरकार के साथ खड़े है, और कई उनके खिलाफ खड़े है.

2021-2022 रबी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य लिस्ट –

आइए जानते हैं, कि रबी फसल 2020-2021 न्यूनतम समर्थन मूल्य लिस्ट क्या है और इसकी पूरी तालिका नीचे देखें।

फसल – गेहूँ

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 1925 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 1975 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 960 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 50 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 106

फसल – जौ

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 1525 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 1600 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 971प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 75 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 65

फसल – चना दाल

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4875 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 5100 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2866 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 225 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 78

फसल – मसूर दाल

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4800 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 5100 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2864 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 300 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 78

फसल – सरसों

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4425 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 4650 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2415 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 225 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 93

फसल – कुसुम खेती

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 5215 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 5327 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 3551 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 112 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 50

किसान दिल से जुड़ी अफवाह तथा सच्चाई –

न्यूनतम समर्थन मूल्य का क्या होगा ?

झूठ : नए किसान बिल के अंतर्गत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया है।
सच : जबकि किसान बिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसी भी प्रकार का ताल्लुक नहीं है और ना ही इसका कोई असर इस पर पड़ेगा। इतना ही नहीं एमएसपी दिया जा रहा है और भविष्य में किसान भाई बहनों को इसका लाभ निरंतर रूप से दिया जाता ही रहेगा।

मंडियों का क्या होगा ?

झूठ : इस बिल के आ जाने से अब मंडी में धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।
सच : इस बिल के आ जाने से मंडी के सिस्टम पर किसी भी प्रकार का असर नहीं होगा और जैसे आज कार्य हो रहा है, ठीक वैसे ही भविष्य में भी कार्य मंडी के माध्यम से होते रहेंगे।

किसान विरोधी है बिल ?

झूठ : किसानों को हानि पहुंचाने के लिए ही और किसानों के खिलाफ ही किसान बिल का निर्माण किया गया है।
सच : इस बिल के आ जाने से किसान भाई बहन अब डायरेक्ट फूड प्रोसेसिंग कंपनियों से अपनी फसलों की के व्यवसाय को कर सकेंगे और इस बिल के अंतर्गत ही किसान भारत के किसी भी कोने में बिना किसी के रोक-टोक या फिर भी नियम के किसान भाई बहन अपनी फसलों को बेच सकने के लिए स्वतंत्र होंगे।

बड़ी कंपनियां शोषण करेंगी ?

झूठ : किसानों को बड़ी-बड़ी कंपनियां लालच देकर एवं उन पर प्रतिबंध लगाकर अपने अनुसार शोषण करेंगी।
सच : किसान किसी भी कंपनी के साथ फिक्स मूल्य पर व्यापार कर सकेगा और उसके खेतों के लिए उसको किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं किया जाएगा। किसान कंपनी के द्वारा किए गए स्वतंत्रता पूर्ण तरीके से अपने कॉन्ट्रैक्ट को कभी भी तोड़ सकता है और इसके लिए उसे किसी भी प्रकार की पेनाल्टी भी नहीं देनी होगी।

छिन जाएगी किसानों की जमीन ?

झूठ : लोगों का मानना है, कि किसानों की जमीन पूजी पतियों के आधिपत्य में चली जाएगी।
सच : नए किसान बिल में साफ-साफ तरीके से कहा गया है, कि किसानों की खरीद-फरोख्त, जमीन लीज पर रखना या गिरवी रखवा ने पर पूरे तरीके से बिल में किसी प्रकार की जगह नहीं है अर्थात यह प्रतिबंधित है। किसानों की जमीन हमेशा उनके लिए ही रहेगी और उनके हित पर किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी।

किसानों को नुकसान है ?

झूठ : किसान बिल के आ जाने से केवल बड़े बड़े कारपोरेट को फायदा होगा और इससे किसानों की फसलों एवं आर्थिक आय में नुकसान ही होगा।
सच : आज हमारे देश के कई राज्यों में किसान भाई बहन बड़े-बड़े कारपोरेशन के साथ मिलजुल कर गन्ना, चाय और कॉफी जैसे फसलों का उन्नत उत्पादन कर रहे हैं। इस बिल के आ जाने से अब छोटे किसान भाई बहन भी पहले से ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे और उन्हें तकनीकी और एक पक्के मुनाफे के साथ कृषि कार्य से लाभ ही प्राप्त होगा।

राकेेश टिकेट कौन है जो कि किसान आंदोलन मेंंंंं किसानों के नेता कहेे जा रहे हैं।

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FAQ

Q: कृषि बिल क्या है?

Ans: सरकार ने ऐसा कानून बनाया है जिसमें अब व्यापारी और किसान अपने अनाज को बाहर की APMC मंडी से बाहर भी बेच सकेंगें. इसमें किसनों को मंडी के बाहर जहाँ पर भी व्यापारी अच्छी कीमत देंगें वहां बेच सकेंगें, मंडी में ही अनाज बेचने की उनकी बंदिश ख़त्म हो जाएगी.

Q: एपीएमसी (APMC) मंडी क्या है?

Ans: किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिलती थी, जिस समस्या के हल के लिए 1970 में एपीएमसी एक्ट बनाया गया था, जिसमें कृषि विपरण समिति बनी थी. ये समिति किसानों से एक अच्छी और निश्चित कीमत में अनाज खरीदती है.

Q: कृषि बिल का विरोध क्यों हो रहा है?

Ans: किसानों और आर्थियास को लगता है कि मंडी में अनाज की खरीदी बंद होगी तो बाहर के व्यापारियों को अधिक लाभ मिलेगा. किसानों को शुरुवात में लाभ हो सकता है, लेकिन आगे चलकर व्यापारी अपनी मनमानी में अनाज की कीमत देंगें.

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Anubhuti
यह मध्यप्रदेश के छोटे से शहर से है. ये पोस्ट ग्रेजुएट है, जिनको डांस, कुकिंग, घुमने एवम लिखने का शौक है. लिखने की कला को इन्होने अपना प्रोफेशन बनाया और घर बैठे काम करना शुरू किया. ये ज्यादातर कुकिंग, मोटिवेशनल कहानी, करंट अफेयर्स, फेमस लोगों के बारे में लिखती है.

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1 COMMENT

  1. Kisanon ko. Samarthan mulya diya jaye, product ki bikri ka 2-5 per kisanon ko har mahine dividend k roop mein de sarkar.gujarat, rajasthan, haryana Milk cooperative bank banaker. Sare kissan ke fasalon ka IDBI, ICICI, SBI, cooperative banks dwara Bima karaya jaye.

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