महाभियोग (इम्पीचमेंट) क्या हैं एवं इसके नियम | What is impeachment,its Process In Hindi

महाभियोग (इम्पीचमेंट) क्या हैं एवं इसके नियम | (What is impeachment and its Process In Hindi)

हमारे देश के संविधान में महाभियोग यानी इम्पीचमेंट का जिक्र किया गया है. महाभियोग की मदद से हमारे देश की सदन के पास भारत के राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को उनके पद से हटाने का अधिकार है.

भारत के अलावा अन्य देशों जैसे कि आयरलैंड गणराज्य, रूस, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के संविधान में भी महाभियोग का जिक्र किया गया है और इन देशों में भी जजों और राष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग का सहारा लिया जाता है.

हमारे संविधान में महाभियोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है और इसका इस्तेमाल कैसे और कब किया जा सकता है. इसके बारे में संविधान में  बताया गया है.

impeachment In Hindi

महाभियोग से जुड़े आर्टिकल (Article Related To Impeachment )

आर्टिकल नंबर 61 (Article  61)

ये आर्टिकल राष्ट्रपति के महाभियोग से जुड़ा हुआ है. इस आर्टिकल की मदद राष्ट्रपति को उनके कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उनके पद से हटाया जा सकता है. इस आर्टिकल के अंदर राष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया का जो उल्लेख किया गया है वो इस प्रकार है.

राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया (Procedure for Impeachment Of The President)

  • राष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए बस एक ही प्रक्रिया है और वो प्रक्रिया महाभियोग की है. लेकिन इस प्रक्रिया की मदद से उन्हें केवल तभी हटाया जा सकता है, जब उनके द्वारा देश के संविधान का उल्लंघन किया गया हो.
  • राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन से शुरू की जा सकती है. जिस सदन में इस प्रक्रिया को चलाया जाता है. उस सदन के कम से कम एक चौथाई सदस्यों को लिखती रूप से एक पत्र में राष्ट्रपति के खिलाफ तय किए गए आरोपों को लिखना होता है और उस पत्र पर हस्ताक्षर करना होता हैं. जिसके बाद इस पत्र को राष्ट्रपति को दिया जाता है. इस पत्र को 14 दिनों पहले सौंपना होता है.
  • राष्ट्रपति को पत्र सौंपने के ठीक 14 दिनों बाद जिस सदन (यानी लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों ने पत्र राष्ट्रपति को सौंपा होता है. उस सदन में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. जिसके बाद उस सदन के कम से कम दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से राष्ट्रपति को हटाने के प्रस्ताव को पारित किया जाता है. जिसके बाद इस प्रस्ताव को दूसरे सदन में भेजा जाता है.
  • दूसरे सदन द्वारा राष्ट्रपति पर लगाये गए आरोपों की जांच की जाती है और दूसरे सदन में जांच होने के दौरान राष्ट्रपति अपना बचाव पक्ष भी वहां रख सकते हैं या फिर अपने वकील के माध्यम से अपने ऊपर लगाये गए आरोप के खिलाफ अपनी बात रख सकते है.
  • अगर दूसरा सदन भी राष्ट्रपति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही पाता है और उस सदन के भी दो तिहाई सदस्यों का बहुमत भी राष्ट्रपति को हटाने के लिए मिल जाता है, तो राष्ट्रपति को उनके पद से हटाना पड़ता है.
  • राष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के बाद, उनका पद हमारे देश के उप राष्ट्रपति द्वारा जब तक संभाला जाता है जब तक की दोबारा से राष्ट्रपति के चुनाव ना हो जाए.
  • अगर दोनों सदन में से एक सदन के दो तिहाई सदस्य का बहुमत राष्ट्रपति को हटाने के लिए नहीं मिलता है. तो राष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया तभी समाप्त हो जाती है और राष्ट्रपति को उनके पद से नहीं हटाया जा सकता.
  • अभी तक भारत के किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग का इस्तेमाल करते हुए उनके पद से हटाया नहीं गया है, उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग की जरुरत नहीं होती है.

मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया (Process Of Impeachment)

जिस तरह से राष्ट्रपति को पद से हटाने का उल्लेख हमारे संविधान में किया गया है. ठीक उसी तरह से हमारे संविधान में मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की भी एक प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है. जो कि इस प्रकार है

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया, आर्टिकल 124 (4) –

  • आर्टिकल 124 (4) के अनुसार हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने का अधिकार हमारे देश के राष्ट्रपति के पास ही होता है और एक प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को उनके पद से हटाया जा सकता है.
  • हमारे संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जज को केवल दो आधार पर ही उनके पद से हटाया जा सकता है. जिनमें से पहला आधार दुर्व्यवहार से जुड़ा हुआ है और दूसरा आधार अक्षमता के साथ जुड़ा हुआ है. केवल इन्हीं दो आरोपों के तहत ही सुप्रीम कोर्ट के जजों से उनका पद छीना जा सकता है.
  • न्यायाधीश के खिलाफ ‘मोशन आफ इम्पीचमेंट’ राष्ट्रपति द्वारा संबोधित किया जाता है. न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव अगर लोकसभा की ओर से पेश किया जाता है तो लोकसभा के कम से कम 100 सांसदों का महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना जरूरी होता है.
  • वहीं अगर ये प्रस्ताव राज्यसभा की ओर से पेश किया जाता है तो, इस सदन के कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर महाभियोग प्रस्ताव पर होना जरूरी होते हैं.
  • ये प्रस्ताव लोकसभा के सदस्यों द्वारा अपने सदन के स्पीकर को सौंपा जाता है. ये प्रस्ताव अगर राज्यसभा के सदस्यों द्वारा दिया जाता है तो ये प्रस्ताव राज्यसभा के चेयरमैन को सौंपा जाता है.
  • स्पीकर या राज्यसभा का चेयरमैन फिर इस प्रस्ताव पर अध्ययन करते हैं और अगर उन्हें ये प्रस्ताव सही लगता है तो वो इसे अपनी मंजूरी दे देते हैं.
  • जिसके बाद न्यायाधीश के खिलाफ लगे आरोपी की जांच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाता है. इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के और एक हाई कोर्ट के जज को शामिल किया जाता है. इन दोनों के अलावा एक प्रतिष्ठित न्यायवादी (distinguished jurist) को भी इस मामले की जांच करने की जम्मेदारी दी जाती है.
  • तीन सदस्यों की ये कमेटी जांच करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार करती है और अगर कमेटी की रिपोर्ट में जज को दोषी पाया जाता है तो उस रिपोर्ट को दोनों सदनों को सौंपा दिया जाता है.
  • जिसके बाद दोनों सदनों में इस प्रस्ताव को लेकर वोटिंग कराई जाती है और अगर इन दोनों सदनों के 2/3 सदस्यों का बहुमत इस प्रस्ताव को मिल जाता है. तो इस प्रस्ताव को फिर राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है. जिसके बाद राष्ट्रपति के आदेश पर जज को हटा दिया जाता है.
  • सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया और हाई कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया एक ही होती हैं और इन प्रक्रियों का उल्लेख आर्टिकल 124 (4), (5), 217 और 218 में किया गया है.

कब भारत के जजों के खिलाफ इस्तेमाल की गई है ये प्रक्रिया (List Of Judges Who Faced Impeachment)

भारत में कई जजों को हटाने के लिए महाभियोग का सहारा लिया गया है लेकिन ये प्रक्रिया कभी भी पूरी नहीं हो सकी है. वहीं भारत में किन जजों के खिलाफ इस प्रक्रिया को अपनाया गया है. उनके बारे में नीचे जानकारी दी गई है.

वी. रामास्वामी ,महाभियोग का सामना करने वाले पहले जज (V. Ramaswami)

हमारे देश में पहली बार महाभियोग का इस्तेमाल साल 1993 में किया गया था. जो कि सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी के खिलाफ किया गया था. लेकिन रामास्वामी को हटाने के इस प्रस्ताव को लोकसभा के 2/3 सदस्यों का बहुमत नहीं मिल सका था और इस तरह से ये प्रस्ताव खारिज हो गया था.

जज सौमित्र सेन ने भी किया था महाभियोग का सामना  (Soumitra Sen, Justice Of The Calcutta High Court)

साल 2011 में एक बार फिर से हमारे देश के जज सौमित्र सेन के खिलाफ भी महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया था. जो कि कोलकाता हाईकोर्ट के जज के तौर पर उस वक्त कार्य करती थी.

लेकिन लोकसभा में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पहुंचने के बाद उन्होंने खुद से ही अपने पद को छोड़ दिया था. जिसके चलते उनको हटाने की प्रक्रिया तभी खत्म हो गई थी.

पीडी दिनाकरन को भी हटाने की कोशिश की गई थी (P.D Dinakaran, the Chief Justice of the Sikkim High Court)

सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटाने के लिए महाभियोग का सहार लिया गया था. लेकिन उससे पहले ही जज पीडी दिनाकरन ने अपना पद छोड़ दिया था. दिनाकरन के ऊपर आय से ज्यादा संपत्ति होने का आरोप था.

जे.बी. पर्दीवाला के खिलाफ भी लाए थे ये प्रस्ताव (J.B. Pardiwala, Justice in the Gujart High Court)

जज जे.बी. पर्दीवाला को भी इम्पीचमेंट का सामना करना पड़ा था. साल 2015 में इनको इनके पद से हटाने के लिए भारत के उच्च सदन के सदस्यों ने  प्रस्ताव पेश किया था. लेकिन उन्होंने अपने खिलाफ ये प्रस्ताव आने के कुछ समय बाद अपनी उस टिप्पणी को वापस ले लिया था. जिसके कारण उन्हें हटाए जाने का ये प्रस्ताव पेश किया गया था.

दरअसल इन्होंने गुजरात हाई कोर्ट के जज के तौर पर  साल 2015 आरक्षण पर एक टिप्पणी की थी. जिसके कारण उनके खिलाफ ये कार्यवाही की जा रही थी. इसी तरह से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज एसके गंगेल और आंध्र प्रदेश/तेलंगाना के हाई कोर्ट के जज सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ भी ये  प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन प्रस्ताव को समर्थन नहीं मिल सका था.

चीफ जस्टिक दीपक मिश्रा के खिलाफ लाया गया ये प्रस्ताव (Impeachment motion against Chief Justice: Dipak Misra)

  • अभी हाल ही में भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को उनके पद से हटाने के लिए विपक्षी दलों ने महाभियोग का सहारा लिया है और उनको हटाने के लिए राज्यसभा के चैयरमैन को एक पत्र सौंपा गया है. जिस पर राज्यसभा के चैयरमैन यानी एम. वैंकेया नायडू को अपना फैसला लेना है.
  • अगर इस प्रस्ताव को वेंकैया नायडू अपनी मंजूरी दे देते हैं, तो ऊपर बताई गई प्रक्रिया के तहत दीपक मिश्रा को हटाने की प्रक्रिया सदन में शुरू हो जाएगी. अगर इस प्रस्ताव को वेंकैया नायडू खारिज कर देते हैं, तो दीपक मिश्रा को उनके पद से नहीं हटाया जा सकेगा.

क्यों लाया गया दीपक मिश्रा के खिलाफ ये प्रस्ताव

विपक्षी दलों ने मिश्रा पर कई मामलों की सही से जांच नहीं करने का आरोप लगाया है. इतना ही नहीं मिश्रा पर उनके अधिकारों का गलत इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया है और इन्हीं आरोप के आधार पर उनके खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की है. भारत के इतिहास में ये पहली बार है जब हमारे देश के मुख्य न्यायाधीश को उनके पद से हटाने के लिए इम्पीचमेंट का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव किसी सदन की ओर से पेश किया गया है.

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