भगवान राम की बहन शांता के जीवन का सच

भगवान राम की बहन शांता के जीवन का सच

रामायण की कहानी कई युगों से सभी लोग सुनते, देखते एवम पढ़ते आ रहे हैं जिसमे हमने राम और उनके भाइयों के प्रेम के बारे में विस्तार से जाना लेकिन हमने राम की बहन शांता के बारे में बहुत कम सुना हैं या कहे कि सुना ही नहीं हैं | आज हम आपको शांता के बारे में बतायेंगे | इसके पहले एक कहानी में हमने आपको हनुमान के पुत्र मकर ध्वज के बारे में बताया था जिसके बारे में भी सभी को स्पष्ट रूप से कोई जानकारी नहीं हैं | और अब आप जाने राम की बहन शांता के बारे में कौन थी शांता ? और क्यूँ उनका उल्लेख्य नहीं हैं ? और किस कारण उनका त्याग किय गया ?

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भगवान राम की बहन शांता के जीवन का सच
Bhagwan Ram bahan Sister Shanta katha

महाराज दशरथ एवम रानी कौशल्या अयोध्या के राजा रानी थे | महाराज दशरथ की दो अन्य रानियाँ भी थी जिनके नाम कैकयी और सुमित्रा थे | सभी जानते हैं कि इनके चार पुत्र थे राम, भरत,लक्ष्मण, शत्रुघ्न | लेकिन यह कम लोगो को पता हैं कि इन चार पुत्रो के अलावा उनकी एक बड़ी बहन शांता भी थी | शांता कौशल्या माँ की पुत्री थी |

शांता एक बहुत होंनहार कन्या था वो हर क्षेत्र में निपूर्ण थी | उसे युद्ध कला, विज्ञान, साहित्य एवम पाक कला सभी का अनूठा ज्ञान था | अपने युद्ध कौशल से वह सदैव अपने पिता दशरथ को गौरवान्वित कर देती थी |

एक दिन रानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी अपने पति रोमपद के साथ अयोध्या आते हैं | राजा रोमपद अंग देश के राजा थे उनकी कोई संतान नहीं थी | एक समय जब सभी परिवारजन बैठ कर बाते कर रहे थे तब वर्षिणी का ध्यान राजकुमारी शांता की तरफ पड़ा और वे उनकी गतिविधी एवम शालीनता को देख कर प्रभावित हो गई और करुण शब्दों में यह कहने लगी कि अगर उनके नसीब में संतान हो तो शांता के समान सुशील हो | उनकी यह बात सुनकर राजा दशरथ उन्हें अपनी शांता गोद देने का वचन दे बैठते हैं | रघुकुल की रित प्राण जाई पर वचन न जाई के अनुसार राजा दशरथ एवम माता कौशल्या को अपनी पुत्री अंग देश के राजा रोमपद एवम रानी वर्षिणी को गोद देनी पड़ती हैं |

इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन जाती हैं | एक दिन अंगराज रोमपद अपनी गोद ली पुत्री शांता से विचार विमर्श कर रहे थे तब ही उनके दर पर एक ब्राह्मण याचक अपनी याचना लेकर आया लेकिन रोमपद अपनी वार्ता में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की याचना सुनी ही नहीं और ब्राह्मण को बिना कुछ लिए खाली हाथ जाना पड़ा | यह बात देवताओं के राजा इंद्र को बहुत बुरी लगी और उन्होंने वरुण देवता को अंगदेश में बारिश ना करने का हुक्म दिया | वरुण देवता ने यही किया और उस वर्ष अंगदेश में सुखा पड़ने से हाहाकार मच गया | इस समस्या से निजात पाने के लिये रोमपद ऋषि शृंग के पास जाते हैं | और उन से वर्षा की समस्या कहते हैं तब ऋषि श्रृंग रोमपद को यज्ञ करने को कहते हैं | ऋषि श्रृंग के कहेनुसार यज्ञ किया जाता हैं पुरे विधान से संपन्न होने के बाद अंग देश में वर्षा होती हैं और सूखे की समस्या खत्म होती हैं | ऋषि श्रृंग से प्रसन्न होकर अंगराज रोमपद ने अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया |

शांता के बाद राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी | वो अपने वंश के लिए बहुत चिंतित थे | तब वे ऋषि श्रृंग के पास जाते हैं और उन्हें पुत्र कामाक्षी यज्ञ करने का आग्रह करते हैं | तब अयोध्या के पूर्व दिशा में एक स्थान पर राजा दशरथ के लिए पुत्र कमिक्षी यज्ञ किया जाता  हैं |( यह यज्ञ ऋषि श्रृंग के आश्रम में किया गया था | आज भी इस स्थान पर इनकी स्मृतियाँ हैं | )इस यज्ञ के बाद प्रशाद के रूप में खीर रानी कौशल्या को दी जाती हैं जिसे वे छोटी रानी कैकयी से बाँटती हैं बाद में दोनों रानी अपने हिस्से में से एक एक हिस्सा सबसे छोटी रानी सुमित्रा को देती हैं जिसके फलस्वरूप सुमित्रा को दो पुत्र लक्ष्मण एवम शत्रुघ्न होते हैं और रानी कौशल्या को दशरथ के जेष्ठ पुत्र राम की माता बनने का सौभाग्य मिलता हैं एवम रानी कैकयी को भरत की प्राप्ति होती हैं |

इस प्रकार शांता के त्याग के बाद राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त होते हैं | पुत्री वियोग के कारण रानी कौशल्या एवम राजा दशरथ के मध्य मतभेद उत्पन्न हो जाता हैं | शांता के बारे में चारों राज कुमारों को कुछ ज्ञात नहीं होता लेकिन समय के साथ वे माता कौशल्या के दुःख को महसूस करने लगते हैं तब राम कौशल्या से प्रश्न करते हैं तब राम को अपनी जेष्ठ बहन शांता के बारे में पता चलता हैं और वे अपनी माँ को बहन शांता से मिलवाते हैं इस प्रकार राम अपने माता पिता के बीच के मतभेद को दूर करते हैं |

देवी शांता के बारे में वाल्मीकि रामायण में कोई उल्लेख्य नहीं मिलता लेकिन दक्षिण के पुराणों में स्पष्ट रूप से शांता के चरित्र का वर्णन किया गया हैं |

भारत के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर हैं एवम वहां से 60 किलोमीटर की दुरी पर देवी शांता का मंदिर हैं | यह भी कहा जाता हैं कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी शांता का त्याग किया था | वैसे तो देवी शांता एक परिपूर्ण राजकुमारी थी लेकिन बेटी होने के कारण उनसे वंश वृद्धि एवम राज कार्य पूरा नहीं हो सकता था इसलिये राजा दशरथ को उनका परित्याग करना पड़ा |

इस प्रकार जब चारों भाई अपनी बहन शांता से मिलते हैं तो वे अपने भाइयों से अपने त्याग का फल मांगती हैं और उन्हें सदैव साथ रहने का वचन लेती हैं | भाई अपनी बहन के त्याग को व्यर्थ नहीं जाने देते और जीवन भर एक दुसरे की परछाई बनकर रहते हैं |

रामायण एक ऐसा ग्रन्थ हैं जिसमें सभी रिश्तों की गहराई मर्यादा एवम सबसे अधिक वचन पालन का महत्व बताया हैं | इस प्रकार रामायण से जुडी कहानियाँ हमें उचित मार्गदर्शन करती हैं हमें रिश्तों की मर्यादा का भान कराती हैं | यह कहानियाँ आज के समय में संस्कारों का महत्व बताती हैं एवम व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं | कई तरह की कहानियों का संग्रह किया गया हैं जरुर पढ़े

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