Arjun During Vanvas and Subhadra Vivah Mahabharat in hindi अर्जुन, हिन्दू पौराणिक कथा महाभारत के नायक हैं, और इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के साथ भगवद्गीता में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है. ये प्रसिद्ध पांच पांडवों में तीसरे हैं, इन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी भी कहा जाता है. महाभारत की कथा के अनुसार जब अर्जुन 12 वर्ष का वनवास भोग रहे थे, उस दौरान उनके 3 विवाह होते हैं. पहला उलूपी जोकि नाग कन्या थी. दूसरा चित्रांगदा जोकि मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री थी और तीसरा एवं आखिरी सुभद्रा जोकि भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं. दरअसल अर्जुन को नियम के उलंघन करने की वजह से 12 वर्ष का वनवास हुआ था, जिस दौरान वे तीर्थ स्थलों पर जाकर रहने लगे. उसी दौरान उनके 3 विवाह हुए. इस आर्टिकल में अर्जुन के वनवास की कथा और उस दौरान उनके होने वाले विवाह की कहानी बताई गई है.
Table of Contents
अर्जुन वनवास एवं सुभद्रा विवाह Arjun Vanvas and Subhadra Mahabharat in hindi
अर्जुन का परिचय (Arjun in Mahabharat) –
अर्जुन का सम्पूर्ण परिचय निम्न तालिका में दर्शाया गया है-
क्र. म. | परिचय बिंदु | परिचय |
1. | नाम | अर्जुन |
2. | जन्म स्थान | हस्तिनापुर |
3. | पिता | पांडू |
4. | माता | कुंती |
5. | धर्म पिता | भगवान इंद्र |
6. | भाई | कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, नाकुल और सहदेव |
7. | पत्नी | द्रोपदी, उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा |
8. | पुत्र | स्रुताकर्मा, बब्रुवाहन, इरावन और अभिमन्यु |
अर्जुन का जन्म हस्तिनापुर के शाही परिवार में हुआ. इनके पिता हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के भाई पांडू थे तथा माता उनकी पहली पत्नी कुंती थीं. माता कुंती को यह वरदान था कि वे जिस भगवान की आराधना करेंगी उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी. माता कुंती ने भगवान इंद्र की आराधना की जिससे उन्हें अर्जुन की प्राप्ति हुई. इस प्रकार अर्जुन के धर्मपिता इंद्र कहे जाते हैं. इसके अलावा ये पांच पांड्वो में तीसरे हैं. अर्जुन को धनुर विद्या गुरु द्रोणाचार्य जी ने दी और उन्हीं ने अर्जुन को एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी की उपाधि दी. तभी से अर्जुन विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी कहे जाने लगे.
भगवान इंद्र से उन्हें एक शस्त्र धनुष की प्राप्ति हुई, जिसका नाम गाण्डीव था. अर्जुन ने द्रोपदी के स्वयंवर में द्रोपदी के पिता द्वारा रखी गई, मछली की आंख में निशाना लगाने की स्वयंवर की शर्त पूरी की थी, और अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त को जीतकर द्रोपदी के साथ विवाह किया. द्रौपदी के स्वयंवर के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें. इसके अलावा अर्जुन के 3 विवाह और हुए जोकि उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा के साथ हुए थे. इन सभी पत्नियों से अर्जुन को 1 – 1 पुत्रों की भी प्राप्ति हुई. अर्जुन के पुत्र स्रुताकर्मा, बब्रुवाहन, इरावन और अभिमन्यु थे. इनमें से स्रुताकर्मा और अभिमन्यु की महाभारत के युद्ध के दौरान मृत्यु हो गई. अर्जुन की श्रीकृष्ण के साथ गहरी मित्रता थी. उन्होंने अर्जुन को भगवद्गीता का भी ज्ञान दिया, एवं महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी बन कर उनका युद्ध में मार्गदर्शन भी किया और इस प्रकार अर्जुन महाभारत के युद्ध में विजयी हुए.
अर्जुन वनवास की कहानी (Arjun Vanvas) –
महाभारत की कथा अनुसार एक प्रसंग ऐसा आता है, जब अर्जुन को वनवास होता है. एक बार की बात है, जब पांडव द्रोपदी के साथ विवाह करके इन्द्रप्रस्थ लौट आये थे. पांडवों में एक दुसरे के प्रति आपार प्रेम था. एक दिन पाँचों पांडव महल में बैठे हुए थे, तभी नारदजी वहाँ प्रकट हुए और पांडवों ने उनका आदर सत्कार किया. वहाँ द्रोपदी भी उपस्थित थी उन्होंने भी नारदजी से आशीर्वाद लिया और वहाँ से चली गईं. उनके जाते ही नारदजी ने पांड्वो को एक कहानी सुनाई, वह यह थी कि –
“बहुत साल पहले की बात है सुन्द और असुंद नाम के 2 असुर थे, दोनों में बहुत ही प्रेम था, लोगों का कहना था कि वे दो शरीर और एक जान हैं. एक बार वे दोनों ब्रम्हा जी की तपस्या कर रहे थे. तब ब्रम्हा जी प्रकट हुए और उन दोनों से वरदान मांगने के लिए कहने लगे. उन्होंने ब्रम्हा जी से अमर होने का वरदान माँगा किन्तु ब्रम्हा जी ने कहा कि ये वरदान सिर्फ देवताओं के लिए है, तब उन दोनों ने ब्रम्हाजी से ऐसा वरदान माँगा कि उन दोनों भाइयों की मृत्यु एक दुसरे के ही हाथों हो सकती है और दूसरा कोई उन्हें नहीं मार सकता था. वे दोनों भाई यह वरदान पाकर पूरी सृष्टि में आतंक फ़ैलाने लगे, तब देवताओ ने ब्रम्हा जी से रक्षा के लिए अनुरोध किया. ब्रम्हा जी ने विश्वकर्मा जी से कहा कि आप ऐसी सुंदर स्त्री का निर्माण करें, जिससे सारी सृष्टि उस पर मोहित हो जाये. विश्वकर्मा जी ने तिलोत्मा नामक स्त्री की रचना की जोकि अत्यंत सुंदर थी. सुन्द और असुंद दोनों भाई उस पर मोहित हो गए और उन दोनों भाइयों में उस स्त्री को पाने की वजह से युद्ध शुरू हुआ और दोनों की मृत्यु हो गई”.
यह कहानी सुनाते हुए नारदजी ने युधिष्ठिर से कहा कि –“प्रिय युधिष्ठिर आप पांच भाई हैं और रानी द्रोपदी आप पांचो भाइयों की पत्नी है ऐसे में एक स्त्री भाइयों में युद्ध करा सकती है, इसलिए आप लोग रानी द्रोपदी के साथ रहने का नियम क्यों नहीं बांध लेते, और जो भी इस नियम का उलंघन करे उसे 12 वर्ष का वनवास दंड स्वरूप दे दीजियेगा, जिससे आप में एक स्त्री की वजह से कभी लड़ाई ना हो सकेगी”. ऐसा कहकर नारदजी वहाँ से प्रस्थान कर गए. उनके जाते ही पाँचों पांडवों ने उनकी राय स्वीकार की और उन्होंने द्रोपदी के साथ रहने का नियम बना लिया.
इसके पश्चात एक बार कुछ लुटेरों ने एक ब्राम्हण की गाय छीन ली और उसे लेकर वे भागने लगे, तब उस ब्राम्हण ने आकर अर्जुन के सामने अपना दुखड़ा सुना दिया और कहा आपके राज्य में एक लूट हुई है क्या आप मेरी विनती नहीं सुनेंगे. तब अर्जुन ने उस ब्राम्हण से कहा जरा ठहरों मैं आता हूँ. उस समय अर्जुन का गाण्डीव उस कमरे में रखा हुआ था, जिसमें युधिष्ठिर और द्रोपदी साथ में थे. अर्जुन के सामने एक असमंजसपूर्ण स्थिति पैदा हो गई. एक तरफ नियम का पालन करना था तो दूसरी तरफ अपना फ़र्ज पूरा करना था. तब अर्जुन ने फैसला किया कि वह अपना फ़र्ज पूरा करेगा और वह नियम तोड़ने का दंड भी स्वीकार करेगा. अर्जुन ने युधिष्ठिर के कमरे में जाकर गाण्डीव लिया और उन लुटेरों को अपने बाणों से धराशाही कर दिया, और ब्राम्हण को उसकी गाय वापस मिल गई.
अर्जुन ने वापस आकर राजा युधिष्ठिर से 12 वर्ष वनवास जाने की आज्ञा मांगी. तब युधिष्ठिर ने कहा – “छोटा भाई बड़े भाई के कमरे में आये तो वह अपराध नहीं, क्षमा योग्य होता है किन्तु बड़ा भाई छोटे भाई के कमरे में जाये तो वह अपराध है. इसलिए तुम अपराध के योग्य नहीं हो”. अर्जुन ने कहा कि –“अपराध तो अपराध है इसमें छोटे या बड़े भाई की कोई बात नहीं है आप मुझे वनवास में जाने की आज्ञा दें”. इस प्रकार अर्जुन को 12 वर्ष वनवास का दंड भोगना पड़ा.
अर्जुन का उलूपी के साथ विवाह (Arjun and Ulupi story) –
अर्जुन को जब वनवास हुआ था तब वे अलग – अलग तीर्थ स्थलों में जाकर रहने लगे. एक बार जब वे वन में भ्रमण कर रहे थे, तब एक सुंदर स्त्री अर्जुन को देख कर उन पर मोहित हो गई. उसका नाम उलूपी था असल में वह एक नागिन थी, जोकि नागों के राजा कौरव्य की कन्या थी, और अपने राज्य पाताल लोक में रहती थी. दूसरे दिन जब अर्जुन गंगा नदी में स्नान कर रहे थे, तब उलूपी वहाँ अपने नाग रूप में आई और नदी के अंदर जाकर अर्जुन का पैर खींच कर पाताल लोक ले गई. वहाँ पहुँच कर अर्जुन के सामने उसने विवाह का प्रस्ताव रखा, और कहा यदि वे उससे विवाह नहीं करेंगे तो वह अपनी जान दे देगी. तब अर्जुन ने उलूपी से विवाह करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उनका विवाह हो गया. उससे उन्हें इरावन नामक पुत्र की प्राप्ति भी हुई. अर्जुन ने उलूपी से कहा कि मैं आपको अपने राज्य नहीं ले जा सकता. अर्जुन ने ऐसा इसलिए कहा था क्यूकि द्रोपदी का कहना था कि पांडव द्रोपदी के अलावा जिससे भी विवाह करेंगे, वे उसके साथ नहीं रहेंगी. उलूपी ने अर्जुन की बात मान ली और उसने अर्जुन को वरदान दिया कि पानी का कोई भी प्राणी उसे नहीं मार सकता. इसके पश्चात् अर्जुन वहाँ से प्रस्थान कर गए.
अर्जुन का चित्रांगदा के साथ विवाह (Arjun and Chitrangada Marriage story) –
अर्जुन, अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान मणिपुर पहुंचे. वहाँ उनकी मुलाकात चित्रांगदा से हुई. चित्रांगदा मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री थी, उन्होंने जब अर्जुन को देखा तो उनसे विवाह करने की इच्छा जताई, अर्जुन ने भी उनसे विवाह करना स्वीकार कर लिया. किन्तु राजा चित्रवाहन की एक शर्त थी कि उनकी पुत्री का जो पुत्र होगा, वह उनके साथ मणिपुर में ही रहेगा. चित्रवाहन ऐसा इसलिए चाहते थे क्यूकि उनका कोई पुत्र नहीं था और यदि उनकी पुत्री का विवाह होता, तो वह भी अपने ससुराल चली जाती तो, उसका वंश कभी आगे नहीं बढ़ सकता था. अर्जुन ने यह स्वीकार कर लिया. उसके बाद अर्जुन ने चित्रांगदा के साथ विवाह किया और उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम बब्रुवाहन पड़ा और वह अपने नाना के साथ मणिपुर में ही रहने लगा, और उसके बाद अर्जुन ने वहाँ से भी प्रस्थान कर लिया.
अर्जुन का सुभद्रा के साथ विवाह (Arjun and Subhadra Vivah story) –
अर्जुन अपने वनवास के दौरान तीर्थ यात्रा कर रहे थे और वे चलते – चलते द्वारका पहुँचे, जोकि अर्जुन के मित्र श्रीकृष्ण की नगरी थी. वहाँ पहुँच कर उन्हें यह समाचार प्राप्त हुआ कि बलराम अपनी बहन सुभद्रा का विवाह हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन के साथ करा रहे है. इस बात से श्रीकृष्ण सहमत नहीं थे. अर्जुन वहाँ त्रिदंडी वैष्णव का रूप धारण किये हुए पहुंचे, वे वहाँ के मंदिर के बाहर बैठे हुए थे. उस वक्त बलरामजी उन्हें भोजन कराने के लिए अपने महल ले गए और उनका बहुत आदर सत्कार किया, उस वक्त वे अर्जुन को उस वेश में नहीं पहचान पाए थे. वहाँ अर्जुन ने सुभद्रा को देखा और उनकी सुन्दरता पर मोहित हो गए. सुभद्रा भी अर्जुन से ही विवाह करना चाहती थी, वे बचपन से ही उनसे प्रेम करती थी.
श्रीकृष्ण भी यही चाहते थे उन्होंने अर्जुन को पहचान लिया था. वे अर्जुन के पास गए और उन्होंने अर्जुन को सुभद्रा को भगाने की सलाह दी. एक दिन सुभद्रा द्वारका के एक किले में अपने रथ पर सवार होकर जा रही थी, तभी अर्जुन ने उनका हरण करने का निश्चय किया और श्रीकृष्ण की आज्ञा लेकर सुभद्रा को वहाँ से भगा ले गए. जब यह जानकारी बलरामजी को मिली, तब वे इस बात से बहुत क्रोधित हुए, किन्तु श्रीकृष्ण ने उन्हें बहुत समझाया और वे अर्जुन और सुभद्रा के विवाह के लिए मान गए और बहुत सा धन, रथ, घोड़े, हाथी और दास – दासी उनको दहेज में दिए. इस प्रकार अर्जुन और सुभद्रा का विवाह सम्पन्न हो गया.
इस तरह अर्जुन को वनवास हुआ और उस दौरान उनके 3 विवाह और हुए. अगर आप हिंदी की अन्य कहानियों को पढ़ना चाहते है, तो प्रेरणादायक हिंदी कहानी का संग्रह पर क्लिक करें| महाभारत व रामायण की कहानी पढ़ना चाहते है, तो क्लिक करें|