अन्नपूर्णा जयंती 2024 कथा, महत्व एवम पूजा विधि (Annapurna Jayanti Katha, Significance, Puja Vidhi in Hindi)
अन्नपूर्णा जयंती इस दिन माता पार्वती के अन्नपूर्णा रूप की पूजा की जाती हैं. अन्नपूर्णा माता भोजन एवम रसौई की देवी कही जाती हैं. जीवन में अन्न का महत्व भगवान के तुल्य माना जाता हैं. यह अन्न ही जीवन देता हैं, हम सभी को इसका आदर करना चाहिये. कहते हैं जिनके घर में अन्न का सम्मान किया जाता हैं, रसौई घर में साफ़ सफाई रखी जाती हैं, उनके घर में अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद रहता हैं. जिन घरो पर अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद रहता है, वे घर धन एवम धान्य से परिपूर्ण रहते हैं. विपत्ति के समय भी उनके घर कभी रसौई घर रिक्त नहीं रहता, अर्थात ऐसे घर के सदस्य धन की कमी के कारण कभी भूखे नहीं सोते.
Table of Contents
कब मनाई जाती हैं अन्नपूर्णा जयंती (Annapurna Jayanti 2024 Date)
माता अन्नपूर्णा का जन्म दिवस को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता हैं. यह दिन मार्गशीर्ष हिंदी मासिक की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं. इस दिन दान का महत्व होता हैं. इस वर्ष 2024 में यह दिवस 15 दिसम्बर को मनाया जायेगा.
अन्नपूर्णा जयंती पूजा विधि (Annapurna Jayanti Puja Vidhi)
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा माता की पूजा की जाती है, इस दिन घर में रसौई घर को धो कर स्वच्छ किया जाता हैं. घर के चूल्हे को धोकर उसकी पूजा की जाती हैं. घर के रसौई घर को गुलाब जल, गंगा जल से शुद्ध किया जाता हैं. इस दिन माता गौरी, पार्वती मैया एवम शिव जी की पूजा की जाती हैं.
अन्नपूर्णा देवी पूजा का महत्व एवम उद्देश्य (Annapurna Jayanti Mahatva in Hindi)
- अन्नपूर्णा देवी की पूजा में रसौई घर को साफ़ रखा जाता है, इससे सभी को यह सन्देश पहुँचता है, कि भोज्य पदार्थों वाले स्थानों को स्वच्छ रखना चाहिये.
- इसके कारण लोगो में यह संदेश भी पहुँचता है, कि अन्न का अपमान अर्थात उसे व्यर्थ फेकना नहीं चाहिये.
- इस दिन के कारण मनुष्य को अन्न के महत्व का ज्ञान होता है, जिससे उनमे आदर का भाव आता है, इसी कारण मनुष्य में अभिमान नहीं आता.
अन्नपूर्णा जयंती पौराणिक कथा (Annapurna Jayanti Story)
पुराणों के अनुसार जब पृथ्वी पर पानी एवम अन्न खत्म होने लगा, तब लोगो में हाहाकार मच गया. इस त्रासदी के कारण सभी ने ब्रह्मा एवम विष्णु भगवान की आराधना की और अपनी समस्या कही. तब दोनों भगवानो ने शिव जी को योग निन्द्रा से जगाया और सम्पूर्ण समस्या से अवगत कराया. समस्या की गंभीरता को जान इसके निवारण के लिए स्वयं शिव ने पृथ्वी का निरक्षण किया. उस समय माता पार्वती ने अन्नपूर्णा देवी का रूप लिया. इस प्रकार शिव जी ने अन्नपूर्णा देवी से चावल भिक्षा में मांगे और उन्हें भूखे पीढित लोगो के मध्य वितरित किया. इस प्रकार उस दिन से पृथ्वी पर अन्नपूर्णा जयंती का पर्व मनाया जाता हैं. इससे मनुष्य में अन्न के प्रति आदर का भाव जागृत होता हैं और वे अन्न का संरक्षण करने के लिए प्रेरित होते हैं.
इसी प्रकार एक और कथा कही जाती है, जब सीता हरण के बाद भगवान राम माता सीता की खोज में अपनी वानर सेना के लिए घूम रहे थे, तब स्वयं माता अन्नपूर्णा ने उन्हें भोजन कराया था और लम्बे समय तक सभी का साथ दिया था.
कहते हैं जब शिव भगवान काशी में मनुष्य को मोक्ष दे रहे थे, तब माता पार्वती, अन्नपूर्णा के रूप में जीवित जनों के भोजन की व्यवस्था स्वयम देखती थी.
इस प्रकार कई कारणों ने अन्नपूर्णा जयंती का महत्व मनुष्य के जीवन में बहुत अधिक हैं, इससे संरक्षण एवम सम्मान का भाव जागता हैं और मनुष्य अन्न को फ़िज़ूल नहीं फेंकता.
होमपेज | यहाँ क्लिक करें |
FAQ
Ans : अगहन माह की पूर्णिमा को
Ans : 15 दिसंबर
Ans : माता अन्नपूर्णा का जन्म दिवस पर
Ans : अपनी रसोई को साफ करके वहां स्वादिष्ट भोजन बनाते हैं.
Ans : इसकी कहानी आपको ऊपर दी हुई है.
अन्य पढ़े :