उत्पन्ना एकादशी व्रत 2024 महत्त्व, कथा (Utpanna Ekadashi Vrat, significance, Katha In Hindi)
एकादशी व्रत की कई कथायें आप सभी से सुनी होगी, लेकिन कैसे हुआ था इस एकादशी व्रत का जन्म? एकादशी की शुरुवात किस दिन से हुई थी ? इसके पीछे क्या उद्देश्य था ? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब मिलेगा उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा में .
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उत्पन्ना एकादशी कब मनाई जाती हैं ? (Utpanna Ekadashi Date)
यह एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष के दिन मनाई जाती हैं . इसी दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था, इसी कारण इस दिन को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता हैं . इसी दिन स्वयं भगवान विष्णु ने माता एकादशी को आशीर्वाद में इस दिन को एक महान व्रत एवम पूजा का बताया था. प्रति माह दो एकादशी का महत्व पुराणों में निकलता हैं सभी का फल एक समान एवम उत्तम होता हैं . माना जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मानव जाति के पहले और वर्तमान दोनों के पाप मिट जाते है. जो भक्तजन हर महीने आने वाली एकादशी का व्रत शुर करना चाहते है, वे लोग उत्पन्ना एकादशी से ही अपने एकादशी के व्रत शुरू करते है.
उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु भगवान् ने राक्षस मुरसुरा को मारा था, जिसके बाद से उनकी जीत की ख़ुशी में इस एकादशी को मनाया जाता है. उत्तरी भारत में यह एकादशी मार्गशीर्ष महीने में आती है, जबकि आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटका और महाराष्ट्र में उत्पन्ना एकादशी कार्तिक महीने में आती है. मलयालम कैलेंडर में वृश्चिका मासं या थुलम में आती है, तमिल कैलेंडर के अनुसार कर्थिगाई मासं या ऐप्पसी में आती है. इस एकादशी में मुख्य रूप से भगवान् विष्णु और माता एकादशी की पूजा आराधना की जाती है.
एकादशी तिथि प्रारम्भ | 26 नवंबर को 01:01 am से |
एकादशी तिथि समाप्त | 27 नवंबर को सुबह 03:47 am तक |
पारण (व्रत तोड़ने का) समय | 13:12 से 15:18 |
कुल समय | 2 घंटे 6 मिनट |
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय | 10:26 पर 27 नवंबर को |
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
स्वयं श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई : सतयुग के समय एक महा बल शाली राक्षस था, जिसका नाम मुर था . उसने अपनी शक्ति से स्वर्ग लोक को जीत लिया था . उसके पराक्रम के आगे इंद्र देव, वायु देव, अग्नि देव कोई भी नहीं टिक पाये थे, जिस कारण उन सभी को जीवन व्यापन के लिये मृत्युलोक जाना पड़ा . हताश होकर इंद्र देव कैलाश गये और भोलेनाथ के सामने अपने दुःख और तकलीफ का वर्णन किया . उसने प्रार्थना की कि वे उन्हें इस परेशानी से बाहर निकाले . भगवान शिव ने उन्हें विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी . उनकी सलाह पर सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे, जहाँ विष्णु जी निंद्रा में थे . सभी ने इंतजार किया . कुछ समय बाद विष्णु जी के नेत्र खुले तब सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की . विष्णु जी ने उनसे क्षीरसागर आने का कारण पूछा . तब इंद्र देव ने उन्हें विस्तार से बताया कि किस तरह मुर नामक राक्षस ने सभी देवताओं को मृत्यु लोक में जाने के लिये विवश कर दिया . सारा वृतांत सुन विष्णु जी ने कहा ऐसा कौन बलशाली हैं जिसके सामने देवता नही टिक पाये . तब इंद्र ने राक्षस के बारे में विस्तार से बताया कि इस राक्षस का नाम मुर हैं उसके पिता का नाम नाड़ी जंग हैं यह ब्रह्मवंशज हैं . उसकी नगरी का नाम चन्द्रावती हैं उसने अपने बल से सभी देवताओं को हरा दिया और उनका कार्य स्वयं करने लगा हैं वही सूर्य है वही मेघ और वही हवा और वर्षा का जल हैं . उसे हरा कर हमारी रक्षा करे नारायण .
पूरा वर्णन सुनने के बाद विष्णु जी ने इंद्रा को आश्वासन दिया कि वो उन्हें इस विप्पति के निकालेंगे . इस प्रकार विष्णु जी मुर दैत्य से युद्ध करने उसकी नगरी चन्द्रावती जाते हैं . मुर और विष्णु जी के मध्य युद्ध प्रारंभ होता हैं . कई वर्षो तक युद्ध चलता हैं . कई प्रचंड अश्त्र शस्त्र का उपयोग किया जाता हैं पर दोनों का बल एक समान सा एक दुसरे से टकरा रहा था . कई दिनों बाद दोनों में मल युद्ध शुरू हो गया और दोनों लड़ते ही रहे कई वर्ष बीत गये . बीच युद्ध में भगवान विष्णु का निंद्रा आने लगी और वे बदरिकाश्रम चले गये . शयन करने के लिये भगवान हेमवती नमक एक गुफा में चले गये . मुर भी उनके पीछे घुसा और शयन करते भगवान को देख मारने को हुआ जैसे ही उसने शस्त्र उठाया भगवान के अंदर से एक सुंदर कन्या निकली और उसने मुर से युद्ध किया . दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुआ जिसमे मुर मूर्छित हो गया बाद में उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया गया . उसके मरते ही दानव भाग गये और देवता इन्द्रलोक चले गये . जब विष्णु जी की नींद टूटी तो उन्हें अचम्भा सा लगा कि यह सब कैसे हुआ तब कन्या ने उन्हें पूरा युद्ध विस्तार से बताया जिसे जानकर विष्णु जी प्रसन्न हुये और उन्होंने कन्या को वरदान मांगने कहा . तब कन्या ने भगवान से कहा मुझे ऐसा वर दे कि अगर कोई मनुष्य मेरा उपवास करे तो उसके सारे पापो का नाश हो और उसे विष्णुलोक मिले . तब भगवान विष्णु ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और कहा इस व्रत के पालन से मनुष्य जाति के लोगो के पापो का नाश होगा और उन्हें विष्णुलोक मिलेगा . उन्होंने यह भी कहा इस दिन तेरे और मेरे भक्त समान होंगे यह व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा जिससे मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होगा . इस प्रकार भगवान चले जाते हैं और एकादशी का जन्म सफल हो जाता हैं .
इस प्रकार एकादशी का जन्म उत्पन्ना एकादशी से होता हैं और तब ही से आज तक इस व्रत का पालन किया जाता हैं और इसे सर्वश्रेष्ठ व्रत कहा जाता हैं .
एकादशी व्रत विधि एवम महत्व (Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi Mahatv)
- एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से प्रारंभ हो जाता हैं, जो द्वादशी के सूर्योदय तक चलता हैं. कुछ लोग दशमी के दिन ये व्रत प्राम्भ कर देते है, और दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत रहते है.
- इस दिन चावल, दाल किसी भी तरह का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता .
- कथा सुनने एवम पढने का महत्व अधिक होता हैं .
- इस व्रत से अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य मिलता हैं .
- प्रातः जल्दी स्नान करके ब्रह्म मुहूर्त में भगवान कृष्ण का पूजन किया जाता हैं.
- इसके बाद विष्णु जी एवं एकादशी माता की आराधना करते है. उन्हें स्पेशल भोग चढ़ाया जाता है.
- दीप दान एवम अन्न दान का महत्व होता हैं. ब्राह्मणों, गरीबों और जरुरतमंद को दान देना अच्छा मानते है. लोग अपनी श्रद्धा अनुसार भोजन, पैसे, कपड़े या अन्य जरूरत का समान दान में देते है.
- इस दिन कई लोग निर्जला उपवास करते हैं .
- रात्रि में भजन गायन के साथ रतजगा किया जाता हैं .
- इस व्रत का फल कई यज्ञों के फल, एवम कई ब्राह्मण भोज के फल से भी अधिक माना जाता हैं .
सभी मनुष्य अपने रीती रिवाज के अनुसार एकादशी के व्रत का पालन करते हैं . कथा पढना एवम सुनने का भी महत्व बताया गया हैं . इस प्रकार हुआ था एकादशी माता का जन्म और उनके व्रत से मिलता हैं मनुष्य जाति को जीवनभर का पुण्य .
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FAQ
Ans : मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकदशी तिथि को
Ans : 26 नवंबर
Ans :उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु भगवान् ने राक्षस मुरसुरा को मारा था, जिसके बाद से उनकी जीत की ख़ुशी में इस एकादशी को मनाया जाता है.
Ans : 26 नवंबर को 01:01 am से 27 नवंबर को सुबह 03:47 am तक
Ans : 27 नवंबर को 13:12 से 15:18
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