अनंत चतुर्दशी या गणेश विसर्जन व्रत कथा एवम पूजा विधि 2024 (Anant Chaturdashi or Ganesh Visarjan date, Vrat Katha, Pooja Vidhi In Hindi)
अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं, इसे विप्पति से उभारने वाला व्रत कहा जाता हैं. इस दिन भगवान अनंत देव को सूत्र चढ़ाया जाता हैं, पूजा के बाद उस सूत्र को रक्षासूत्र अथवा अनंत देव के तुल्य मानकर हाथ में पहना जाता है. माना जाता हैं कि यह सूत्र रक्षा करता हैं.
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अनंत चतुर्दशी / गणेश विसर्जन कब मनाई जाती हैं
यह भादो मास शुक्ल पक्ष की चौदस को मनाया जाता हैं, इस दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं. अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते हैं. इस पूजा में अनंत सूत्र का महत्व होता हैं, जिसे स्त्री बायें एवम पुरुष दायें हाथ में पहनती हैं. इस सूत्र से सभी कष्टों का निवारण होता हैं.
अनंत चतुर्दशी / गणेश विसर्जन 2024 में कब है (Anant Chaturdashi/ Ganesh Visarjan Date and muhurt)
इस वर्ष में अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर को मनाई जायेगी.
अनंत चतुर्थी की तारीख | 17 सितम्बर |
अनंत चतुर्थी पूजा समय | 09:11 से 01:47 |
इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं एवम जैन धर्म ने इस दिन को पर्युषण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता है, इस दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता हैं. इसे क्षमा वाणी भी कहा जाता हैं.
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Story)
पौराणिक युग में सुमंत नाम का एक ब्राम्हण था, जो बहुत विद्वान था. उसकी पत्नी भी धार्मिक स्त्री थी, जिसका नाम दीक्षा था. सुमंत और दीक्षा की एक संस्कारी पुत्री थी, जिसका नाम सुशीला था. सुशीला के बड़े होते होते उसकी माँ दीक्षा का स्वर्गवास हो गया.
सुशीला छोटी थी, उसकी परवरिश को ध्यान में रखते हुए सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया. कर्कशा का व्यवहार सुशीला के साथ अच्छा नहीं था, लेकिन सुशीला में उसकी माँ दीक्षा के गुण थे, वो अपने नाम के समान ही सुशील और धार्मिक प्रवत्ति की थी.
कुछ समय बाद जब सुशीला विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि के साथ किया गया. कौण्डिन्य ऋषि और सुशीला अपने माता पिता के साथ उसी आश्रम में रहने लगे. माता कर्कशा का स्वभाव अच्छा ना होने के कारण सुशीला और उनके पति कौण्डिन्य को आश्रम छोड़ कर जाना पड़ा.
जीवन बहुत कष्टमयी हो गया. ना रहने को जगह थी और ना ही जीविका के लिए कोई भी जरिया. दोनों काम की तलाश में एक स्थान से दुसरे स्थान भटक रहे थे. तभी वे दोनों एक नदी तट पर पहुँचे, जहाँ रात्रि का विश्राम किया. उसी दौरान सुशीला ने देखा वहाँ कई स्त्रियाँ सुंदर सज कर पूजा कर रही थी और एक दुसरे को रक्षा सूत्र बाँध रही थी. सुशीला ने उसने उस व्रत का महत्व पूछा. वे सभी अनंत देव की पूजा कर रही थी और उनका रक्षा सूत्र जिसे अनंत सूत्र कहते हैं वो एक दुसरे को बाँध रही थी, जिसके प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती हैं. सुशीला ने व्रत का पूरा विधान सुनकर उसका पालन किया और विधि विधान से पूजन कर अपने हाथ में अनंत सूत्र धारण किया और अनंत देव से अपने पति के सभी कष्ट दूर करने की प्रार्थना की.
समय बीतने लगा ऋषि कौण्डिन्य और सुशीला का जीवन सुधरने लगा. अनंत देव की कृपा से धन धान्य की कोई कमी ना थी.
अगले वर्ष फिर से अनंत चतुर्दशी का दिन आया. सुशीला ने भगवान को धन्यवाद देने हेतु फिर से पूजा की और सूत्र धारण किया.नदी तट से वापस आई. ऋषि कौण्डिन्य ने हाथ में बने सूत्र के बारे में पूछा, तब सुशीला ने पूरी बात बताई और कहा कि यह सभी सुख भगवान अनंत के कारण मिले हैं. यह सुनकर ऋषि को क्रोध आ गया, उन्हें लगा कि उनकी मेहनत के श्रेय भगवान को दे दिया और उन्होंने धागे को तोड़ दिया. इस तरह से अपमान के कारण अनंत देव रुष्ठ हो गए और धीरे- धीरे ऋषि कौण्डिन्य के सारे सुख, दुःख में बदल गए और वो वन- वन भटकने को मजबूर हो गए. तब उन्हें एक प्रतापी ऋषि मिले, जिसने उन्हें बताया कि यह सब भगवान के अपमान के कारण हुआ हैं. तब ऋषि कौण्डिन्य को उनके पाप का आभास हुआ और उन्होंने विधि विधान से अपनी पत्नी के साथ अनंत देव का पूजन एवम व्रत किया. यह व्रत उन्होंने कई वर्षो तक किया, जिसके 14 वर्ष बाद अनंत देव प्रसन्न हुये और उन्होंने ऋषि कौण्डिन्य को क्षमा कर उन्हें दर्शन दिये. जिसके फलस्वरूप ऋषि और उनकी पत्नी के जीवन में सुखों ने पुनः स्थान बनाया.
अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी भगवान कृष्ण ने पांडवो से भी कही थी, जिसके कारण पांडवो ने अपने वनवास में प्रति वर्ष इस व्रत का पालन किया था जिसके बाद उनकी विजय हुई थी.
अनंत चतुर्दशी का पालन राजा हरिशचन्द्र ने भी किया था, जिसके बाद उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना राज पाठ वापस मिला था.
अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें (Anant Chaturdashi Vrat Puja Vidhi in Hindi)
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता हैं.
- कलश की स्थापना की जाती हैं, जिसमे कमल का पुष्प रखा जाता हैं और कुषा का सूत्र चढ़ाया जाता हैं.
- भगवान एवम कलश को कुम कुम, हल्दी का रंग चलाया जाता हैं.
- हल्दी से कुषा के सूत्र को रंगा जाता हैं.
- अनंत देव का आव्हान कर उन्हें दीप, दूप एवम भोग लगाते हैं.
- इस दिन भोजन में पूरी खीर बनाई जाती हैं.
- पूजा के बाद सभी को अनंत सूत्र बाँधा जाता हैं.
इस प्रकार अपने कष्टों को दूर करने हेतु सभी इस व्रत का पालन करते हैं. इस दिन देश के कई हिस्सों में गणेश विसर्जन किया जाता हैं. गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी को 10 दिनों तक घर में बैठाकर इस दिन उनकी विदाई की जाती हैं. खासतौर पर यह गणेश विसर्जन महाराष्ट्र में किया जाता हैं जो पुरे देश में प्रसिद्द हैं.
FAQ
Ans : 17 सितंबर
Ans : भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चौदस को
Ans : अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश विसर्जन होता है.
Ans : 09:11 से 01:47
Ans : 12 घंटे 37 मिनट
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