ऋषि पंचमी व्रत कथा पूजन महत्व एवं उद्यापन विधि 2024 (Rishi Panchami Vrat Katha, Mahtva, Udyapan Vidhi in Hindi)
ऋषि पंचमी का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता हैं. दोषों से मुक्त होने के लिए इस व्रत का पालन किया जाता हैं. यह एक त्यौहार नहीं अपितु एक व्रत हैं जिसमे सप्त ऋषि की पूजा की जाती हैं. हिन्दू धर्म में माहवारी के समय बहुत से नियम कायदों को माना जाता हैं. अगर गलती वश इस समय में कोई चूक हो जाती हैं, तो महिलाओं को दोष मुक्त करने के लिए इस व्रत का पालन किया जाता हैं.
Table of Contents
कब मनाई जाती हैं ऋषि पंचमी और मुहूर्त क्या है? (Rishi Panchami Vrat Date and Muhurat ):
यह व्रत भाद्र पद की शुक्ल पंचमी को किया जाता हैं. सामान्यतः यह व्रत अगस्त अथवा सितम्बर माह में आता हैं. यह व्रत एवं पूजा हरतालिका व्रत के दो दिन छोड़ कर एवं गणेश चतुर्थी के अगले दिन की जाती हैं. हरतालिका तीज व्रत कथा व पूजा विधि जानने के लिए पढ़े.
इस वर्ष 2024 में ऋषि पंचमी व्रत 08 सितंबर को मनाया जायेगा.
ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त –
दिनांक | समय |
07 सितंबर | 17:35 से |
08 सितंबर | 19:55 तक |
राजस्वाला दोष के निवारण हेतु प्रति वर्ष इस व्रत का पालन महिलाओं द्वारा किया जाता हैं.
ऋषि पंचमी व्रत पूजा महत्व (Rishi Panchami Vrat Mahtva):
हिन्दू धर्म में पवित्रता का बहुत अधिक महत्व होता हैं. महिलाओं के मासिक के समय वे सबसे अधिक अपवित्र मानी जाती हैं. ऐसे में उन्हें कई नियमो का पालन करने कहा जाता हैं लेकिन इसके बावजूद उनसे जाने अनजाने में चुक हो जाती हैं जिस कारण महिलायें सप्त ऋषि की पूजा कर अपने दोषों का निवारण करती हैं .
ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha):
इस व्रत के सन्दर्भ में ब्रह्मा जी ने इस व्रत को पापो से दूर करने वाला व्रत कहा हैं, इसको करने से महिलायें दोष मुक्त होती हैं : कथा कुछ इस प्रकार हैं :
एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे, वे धर्म पालन में अग्रणी थे. उनकी दो संताने थी एक पुत्र एवं दूसरी पुत्री. दोनों ब्राहमण दम्पति ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे कुल में किया लेकिन कुछ वक्त बाद ही दामाद की मृत्यु हो गई. वैधव्य व्रत का पालन करने हेतु बेटी नदी किनारे एक कुटियाँ में वास करने लगी. कुछ समय बाद बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे. उसकी ऐसी दशा देख ब्राह्मणी ने ब्राहमण से इसका कारण पूछा. ब्राहमण ने ध्यान लगा कर अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा जिसमे उसकी बेटी ने माहवारी के समय बर्तनों का स्पर्श किया और वर्तमान जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसलिए उसके जीवन में सौभाग्य नहीं हैं. कारण जानने के बाद ब्राह्मण की पुत्री ने विधि विधान के साथ व्रत किया. उसके प्रताप से उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई.
ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि (Rishi Panchami Vrat Puja Vidhi):
- इसमें औरते प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करती हैं.
- स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं.
- घर के पूजा गृह में गोबर से चौक पूरा जाता हैं एवम ऐपन से सप्त ऋषि बनाकर उनकी पूजा की जाती हैं.
- कलश की स्थापना की जाती हैं.
- दीप, दूप एवं भोग लगाकर व्रत की कथा सुनी,पढ़ी एवम सुनाई जाती हैं.
- इस दिन कई महिलायें हल का बोया अनाज नहीं खाती. इसमें पसई धान के चावल खाये जाते हैं.
- माहवारी के चले जाने पर इस व्रत का उद्यापन किया जाता हैं.
स्त्रियों में माहवारी का समय समाप्त होने पर अर्थात वृद्धावस्था में व्रत का उद्यापन किया जाता हैं.
ऋषि पंचमी उद्यापन विधि (Rishi Panchami Vrat Udyapan Vidhi) :
- विधि पूर्वक पूजा कर इस दिन ब्राहमण भोज करवाया जाता हैं.
- सात ब्रह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मान कर उन्हें दान दिया जाता हैं.
- अपनी श्रद्धानुसार दान का विधान हैं.
कहा जाता हैं महाभारत काल में उत्तरा के गर्म पर अश्व्थामा के प्रहार से उसका गर्भ नष्ट हो गया था. इस कारण उत्तरा द्वारा इस व्रत को किया गया. जिसके बाद उनका गर्भ पुनः जीवित हुआ और हस्तिनापुर को राजा परीक्षित के रूप में उत्तराधिकारी मिला. राजा परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे. पुन: जन्म मिलने के कारण इन्हें गर्भ में ही द्विज कहा गया था. इस तरह इस व्रत के पालन से उत्तरा गर्भपात के दोष से मुक्त होती हैं.
इस प्रकार दोषों की मुक्ति के साथ- साथ संतान प्राप्ति एवम सुख सुविधाओं की प्राप्ति, सौभाग्य के लिए भी इस व्रत का पालन किया जाता हैं.
इस व्रत का महत्व जानने के बाद सभी स्त्रियों को इस व्रत का पालन करना चाहिये. यह व्रत जीवन की दुर्गति को समाप्त कर पाप मुक्त जीवन देता हैं.आपको यह कैसा लगा अवश्य लिखे.
FAQ
Ans : भाद्र पद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को
Ans : 8 सितंबर
Ans : 17:35 से 19:55 तक
Ans : सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है.
Ans : महिलायें दोष मुक्त करने के लिए यह व्रत रखती है.
अन्य पढ़े :