आर्थिक महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन क्या थी (कारण, अर्थव्यवस्था, प्रभाव, इंडिया, कब कहाँ और क्यूँ हुई थी, परिणाम) (What is The Great Depression in hindi, Indian Economy, Causes, Facts, Summary 1929, Meaning, Year, Causes, Effects, Timeline)
कोरोना से प्रभावित 150 से ज्यादा देशों को पूरी तरह से बंद करने का ऐलान वहां की सरकारों ने कर दिया है. कुछ देशों में लगातार मौतें और संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती जा रही है, क्योंकि वहां पर कोरोना का संक्रमण बहुत ज्यादा तेज होता जा रहा है. कोरोना की वजह से सभी देशों की अर्थव्यवस्था ठप पड़ गई है, क्योंकि सभी जगह लॉक डाउन किया गया है. जिसकी वजह से कोई भी काम सुचारू रूप से नहीं किया जा रहा है. लॉक डाउन का सीधा प्रभाव सीधे तौर पर देश को आर्थिक मंदी की ओर धकेल रहा है. इस लोक डाउन की वजह से लाखों करोड़ों लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं क्योंकि काम ना होने की वजह से उनकी आय बंद हो गई है. ऐसे ही एक आर्थिक महामंदी लगभग 90 साल पहले पूरे विश्व में छा गई थी. उस समय भी लाखों-करोड़ों लोग ग्रेट डिप्रेशन में चले गए थे. आइए देखते हैं इतिहास की उस ग्रेट डिप्रेशन के पन्नों की कुछ हल्की सी झलकियां.
महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन की शुरुआत कहां से हुई (Where did the Great Depression Start)
अमेरिका के शेयर बाजार का कार्य 1923 के दौरान धीरे-धीरे बढ़ना आरंभ हो गया और धीरे-धीरे आसमान की बुलंदियों तक पहुंच गया. परंतु एक समय के बाद इस बाजार में अस्थिरता नजर आने लगी. जिसकी वजह से 24 अक्टूबर 1929 के उस एक दिन में ही लगभग 5 अरब डॉलर का सफाया मार्केट में से हो गया. अगले दिन भी बाजार में गिरावट जारी रही और 29 अक्टूबर 1929 को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में इतना बड़ा बदलाव देखने को मिला जिसकी वजह से लगभग 14 अरब डॉलर का नुकसान हो गया. आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो ठीक 90 साल पहले अर्थात 29 अक्टूबर 1929 के दिन इस ग्रेट डिप्रेशन का जन्म हुआ. जब अमेरिकी शेयर बाजार में करीब एक साथ 1 करोड़ 60 लाख शेयर अचानक बिक गए. उससे ठीक 5 दिन पहले उसी बाजार में 30 लाख शेयर भी बिक चुके थे जिसके बाद 29 अक्टूबर मंगलवार का दिन जिसे ब्लैक ट्यूसडे के नाम से घोषित कर दिया गया. यह महा मंदी का दौर कुछ ऐसा था जिसके चलते लगभग दो करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. यह इतिहास के एक ऐसे काले दिन के नाम से जाना जाता है जिस मंदी ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया था.
यदि आप शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं तो उससे पहले शेयर होल्डर व स्टैक होल्डर के बीच का फर्क जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन के मुख्य कारण (The Main Causes of the Great Depression)
वैसे तो महामंदी के कोई मुख्य कारण नहीं थे यह तो अर्थव्यवस्था का प्रभाव था जो धीरे-धीरे दिखने लगा था, परंतु इसके बावजूद भी कुछ कारणों को इस आर्थिक महामंदी का महत्वपूर्ण कारण माना गया जिनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैं –
- 1929 के दौरान अचानक से बैंक विफल होने लगे थे. लोगों का बैंकों से विश्वास उठ गया था, जिसके चलते वे अपना बैंकों में जमा पैसा अचानक से निकालने लगे थे.
- दूसरी तरफ अमेरिका में सरकार गिर जाने की वजह से बाजार में बहुत भारी गिरावट देखी गई, जिसका प्रमुख कारण बहुत सारी छोटी छोटी कंपनियों द्वारा बाजार में अपने शेयर बेच देना था. लोगों ने लालच में आकर उन छोटी-छोटी कंपनियों के शेयर खरीद लिए, जिसकी वजह से उन्हें धोखा मिला और बाद में वह अपने शेयर को बेचने के लिए बाजार में निकल पड़े.
- अचानक बाजार में गिरावट के चलते लोगों के पास पैसों की कमी हो गई, जिसकी वजह से उन्होंने अपने खर्चों में 10 फ़ीसदी तक गिरावट कर दी और सिर्फ जरूरत के हिसाब से सामान खरीदना ही जारी रखा.
- आर्थिक मंदी के चलते अमेरिका में इंटरनेशनल आयात और निर्यात पर अचानक रोक लगा दी गई, क्योंकि कंपनियां बंद हो गई जिसकी वजह से उत्पादन में गिरावट आई.
- बड़ी-बड़ी कंपनियों के संरक्षण के लिए अमेरिका में ही हॉली मूड टैरिफ लागू किया गया, जिससे आयात – निर्यात पर बहुत असर पड़ा और काफी हद तक बढ़ गया.
इन्हीं कारणों की वजह से इस आर्थिक मंडी ने धीरे – धीरे करके महामंदी का रूप ले लिया है और पूरी दुनिया में फ़ैल गई.
सन 1960 के दशक हुई हरित क्रांति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन का प्रभाव (Impact of the Great Depression)
उस मंगलवार के दिन अचानक अमेरिका की शेयर मार्केट धड़ाम से जमीन पर गिरकर मानो पाताल की ओर चली गई मानो सब की जिंदगियां रुक गई.
- इस मंदी ने पूरे विश्व को अपने आप में समेटकर लगभग 10 साल तक लोगों को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया.
- अमेरिका में हुई महामंदी के तुरंत बाद साल 1930 में घनघोर सूखा पड़ने की वजह से एक और विपदा अमेरिका पर टूट पड़ी थी, जिसकी वजह से वहां पर होने वाली पैदावार पूरी तरह से नष्ट हो गई थी.
- जिन लोगों ने बड़े-बड़े बैंक से अपने काम कराने के लिए कर्जा ले रखा था, वह कर्जा चुकाने में असमर्थ हो गए. उसके बाद बैंक में अपना पैसा निकालने के लिए लोगों के साथ हर तरह के तरीके अपनाए, परंतु जब लोगों के पास पैसा ही नहीं था तो वह बैंक का कर्जा कैसे चुका दे. जिसकी वजह से 11000 बैंक पूरी तरह से दिवालिया हो गए, जिन्हें बाद में बंद करना पड़ा.
- इस महामंदी के चलते लोगों के पास पैसे की कमी हो गई, जिसकी वजह से उन्होंने बाजार से खरीदारी बंद कर दी. उसके बाद उत्पादन की दर में लगभग 45 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई. उत्पादन दर कम होने की वजह से काम करने वाले कारीगरों को भी नौकरी छोड़नी पड़ी.
- पैसा ना होने की वजह से विश्व भर में निर्माण कार्य ठप हो गए, जिसकी वजह से 80 फ़ीसदी तक निर्माण कार्यों में कमी देखने को मिली.
- बड़ी-बड़ी कंपनियों में मौजूद शेयरधारकों ने इस बड़ी मंदी की वजह से करोड़ों डॉलर गवा दिए जिसके चलते वे पूरी तरह से बेरोजगार और कर्जदार हो गए. उन्होंने कभी ऐसी परिस्थिति के बारे में सोचा भी नहीं था, जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का शिकार होकर आत्महत्या की ओर अग्रसर हो गए. सैकड़ों लोगों ने इस महामंदी के चलते अपने प्राण गवा दिए और खुद को मृत्यु के हवाले कर दिया.
- इस आर्थिक महामंदी ने लाखों लोगों को राशन की दुकानों के बाहर असंख्य लोगों की कतारों के बीच लाकर खड़ा कर दिया था.
- आर्थिक महामंदी की वजह से एक आम आदमी की आय में लगभग 40 फ़ीसदी की गिरावट आई. इस महामंदी का दौर 1932 और 1933 के दौरान बहुत ज्यादा भयंकर रहा. इस महामंदी के चलते जब लोगों की मांग और उत्पादन में कमी आ गई, उसकी वजह से लगभग 3 लाख कंपनियां पूरी तरह से ठप होकर बंद कर दी गई.
- बड़े-बड़े लोग इस महामंदी के चलते रोड पर आ गए और नौकरी पाने की तलाश में मिलो इधर-उधर भटकते रहते थे. खाने-पीने के साथ-साथ उनके रहने की भी जगह उनसे छिन गई थी, जिसके बाद बहुत से लोग झोपड़पट्टी बनाकर सड़कों के किनारे ही रहने लगे थे.
इक्कीसवीं सदी में भारत में आर्थिक क्षेत्र में 7 % की दर से विकास हुआ था, इसके पीछे की कहानी जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
दुनिया के विभिन्न देशों पर महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन का प्रभाव (Impact of the Great Depression on Various Countries of The World)
अमेरिका के बाजार में घटित इस महामंदी से दुनिया के काफी सारे देश प्रभावित हुए जिसमें भारत भी शामिल था. आइए जानते हैं विभिन्न देशों पर इस महामंदी के मुख्य प्रभावों के बारे में –
- जर्मनी पर प्रभाव :- अमेरिका में हुए इस नुकसान का सबसे पहला असर जर्मनी पर हुआ इस आर्थिक संकट की वजह से जर्मनी में सबसे ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी. 1929 का वह काला दिन जर्मनी के लगभग 60 लाख लोगों की नौकरी को खा चुका था. इस महामंदी का असर जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ा, जिसके चलते जर्मनी के पारितंत्र की बाहरी शक्तियां दुर्बल हो गई और नाजी पार्टी के नेता एडोल्फ़ हिटलर ने इसका फायदा उठाया और खुद को सत्ताधारी घोषित कर दिया. जर्मनी में आई आर्थिक मंदी की वजह वह वजह थी, जब नाजीवाद ने जर्मनी पर अपना शासन जमा लिया.
- ब्रिटेन पर प्रभाव :- इस दयनीय आर्थिक मंदी के कारण दूसरे देशों में ब्रिटेन ने सोने का निर्यात बिल्कुल बंद कर दिया और ब्रिटेन की सरकार ने आर्थिक स्थिरीकरण की नीति यानि (अपने देश में बने उत्पादों की कीमत में परिवर्तन करके उनकी बिक्री को बढ़ाना) को अपनाना उचित समझा. ब्रिटेन की उचित आर्थिक नीतियों के चलते ब्रिटेन आर्थिक मंदी से जल्द ही उभर पाया. ब्रिटेन की सरकार ने समझदारी दिखाते हुए देश को आर्थिक मंदी के प्रभाव से बचाना उचित समझा, जिसके लिए उन्होंने देश के व्यापार में संतुलन और संरक्षण की नीति को अपनाया और अपने सभी व्यापारियों में अपनी मुद्रा को सस्ता कर दिया. जिससे वहां के बैंक दर में कमी आई और विभिन्न प्रकार के उद्योगों को इससे सहायता मिली और उन्हें बढ़ावा भी मिला.
- फ्रांस पर प्रभाव :- फ्रांस ने आर्थिक मंदी के दौरान अपनी क्षति पूर्ति की भरपाई काफी हद तक जर्मनी से कर ली थी, जिसके चलते फ्रांस की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत बनी हुई थी. फ्रांस की परिस्थितियों की वजह से आर्थिक मंदी का प्रभाव फ्रांस में ज्यादा देखने को नहीं मिला. जिसके फलस्वरुप फ्रांस अपनी मुद्रा फ्रैंक और अपनी साख काफी हद तक बचाए रखने में सफल रहे.
- अमेरिका पर प्रभाव :- इस आर्थिक मंदी के चलते पूरा अमेरिका पूरी तरह से बर्बाद हो गया था, और 1932 ईस्वी में चुनावी माहौल के दौरान आर्थिक संकट की स्थिति के कारण रिपब्लिक पार्टी के जरिए हूवर को हार का मुँह देखना पड़ा. इसके बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के मजबूत उम्मीदवार रुजवेल्ट ने अमेरिकी जनता के बीच यह घोषणा की कि मैं प्रत्येक व्यक्ति को अमीर बना दूंगा. अपने बड़े-बड़े वादों के चलते रूजवेल्ट ने उस चुनाव में बहुत बड़ी जीत हासिल की. रूजवेल्ट ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति के तौर पर नई घोषणाएं और उद्देश्यों को कुछ इस प्रकार बयान किया – उन्होंने कहा कि “हम अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाकर देश के सभी उद्योगों में संतुलित करना चाहते हैं, इसलिए हम कोशिश करेंगे कि मजदूरी करने वालों को रोजगार प्रदान किया जाए, उपभोक्ताओं के बीच एक नया संतुलन कायम किया जाए, साथ ही हमारा यह भी उद्देश्य है कि आंतरिक बाजार को हम समृद्ध और विशाल बनाने का पूरा प्रयास करें, एवं अन्य देशों के साथ अपने व्यापार को दिन प्रतिदिन बढ़ाएं.”
- भारत पर प्रभाव :- आर्थिक महामंदी के प्रभाव से भारत देश भी नहीं बच पाया उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था. अंग्रेजों को इस महामंदी ने बहुत हद तक प्रभावित किया, जिसके चलते उन्होंने अपनी इस महामंदी में हुए नुकसान की भरपाई भारतीय लोगों से करना आरंभ कर दिया. इसके लिए उन्होंने भारतीय लोगों से अजीबोगरीब कर मांगने आरंभ कर दिए और साथ ही छोटी-मोटी चीजों के दाम बहुत ज्यादा हद तक बढ़ा दिए. भारत के लोग पहले से ही गरीब थे, जिसके चलते वे और ज्यादा गरीब होने लगे और उनसे उनकी भूमि भी छीनी जानी आरंभ कर दी. अंग्रेजों की व्यापारिक नीति कुछ इस प्रकार की थी, जिसने इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति को तो बचाए रखा, परंतु भारत की स्थिति को और बद से बदतर बना दिया. इस आर्थिक मंदी की वजह से भारत में विभिन्न प्रकार के विद्रोह ने जन्म लिया. अंग्रेजों ने विद्रोहकारियों की कुछ मांग मानने के लिए सरकार को राजी कर लिया, जिनमें से उनकी एक महत्वपूर्ण मांग यह थी कि देश में एक केंद्रीय बैंक खोला जाए और इस मांग के चलते देश में साल 1935 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई जो यह अब तक देश में कार्यरत है.
भारत में कौन – कौन सी मुद्रायें उपयोग की जाती थी, इसके इतिहास के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
महामंदी द ग्रेट डिप्रेशन के दौरान आए प्रमुख परिवर्तन (Major Changes came during the Great Depression)
- साम्यवाद के प्रति बड़ा रुझान :- सोवियत संघ एक साम्यवादी राष्ट्र था, जिसकी वजह से उसने खुद को पूरी तरह से पूंजीवादी व्यवस्था से काटकर अलग कर लिया था. यहां तक कि कोई भी पूंजीवादी देश उनसे किसी भी प्रकार के संबंध नहीं रखना चाहते थे. इसका बहुत बड़ा फायदा सोवियत संघ को मिला. वह उस महामंदी के दौर से खुद को बचाने में कामयाब रहा और उनके इस कदम से पूंजीवादी देशों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया, इसके विपरीत सोवियत संघ में पूरी तरह से औद्योगिक विस्तार बढ़ना आरम्भ हो गया.
- फासीवाद को मिला बढ़ावा :- इस महामंदी के चलते बड़े-बड़े विपक्षी पार्टी के नेताओं ने सत्तारूढ़ नेताओं के खिलाफ बड़े-बड़े देशों में यह प्रचार करना शुरू कर दिया, कि उनकी इस खराब स्थिति के जिम्मेदार पूरी तरह से उनके पूंजीवादी नेता ही हैं. मुख्य रूप से फासीवाद को बढ़ावा देने का काम इस मंदी के दौरान ही किया गया. कई सारे देश के बड़े-बड़े दिग्गज नेता जो सत्तारुढ़ थे, उन्हें इस महामंदी की वजह से सत्ता से हटा दिया गया. जर्मनी में इस महामंदी की वजह से ही हिटलर ने सत्ता में अपनी बहुत अच्छी पकड़ बना ली थी. वहीं जापान में हिदेकी तोजो ने चीन में अवैध तरीके से घुसपैठ कर मंचूरिया में खदानों का विकास यह कहकर किया कि इससे आर्थिक महामंदी को काफी हद तक राहत मिल सकेगी. इस महामंदी के चलते लोग भूखे प्यासे दर बदर भटकने लगे, जिसकी वजह से लोगों के दिलों में नफरत पैदा हो गई और धीरे-धीरे यह नफरत द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में बदल गई.
- शस्त्र अर्थव्यवस्था का उदय :- आर्थिक महामंदी के दौरान लोग एक दूसरे के ही दुश्मन बन गए. धीरे-धीरे जब महामंदी के चलते द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा हुई, तब कई सारे देशों जैसे अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का सबसे अच्छा तरीका हथियार बनाना चुना. उन्होंने ऐसे ऐसे हथियार बनाए जिससे विभिन्न देशों में सैन्य बल का प्रचार और प्रसार किया. इस प्रचार और प्रसार के चलते अमेरिका के कई सारे लोगों को नौकरियां भी मिली और वहां के उत्पादन में बहुत बड़ा बदलाव आया. इस वजह से जल्द ही अमेरिका महामंदी के प्रभाव से निकलने में सक्षम रहा. अमेरिका को देखने के बाद कई सारे देशों ने इसी रास्ते से भारी मुनाफा कमाना आरंभ कर दिया.
- पूंजीवाद मजबूत हुआ :- अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मार्शल लॉ के नियम अनुसार अपने पश्चिमी देशों को मजबूत बनाने की योजना चलाई. विश्व युद्ध से प्रताड़ित देशों को पुनर्निर्माण करने के लिए अमेरिका ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया, लेकिन उनका असली मकसद साम्यवाद के संभावित विस्तार को पूरी तरह से रोक देना था. जिसके लिए यूरोपीय देशों को अमेरिका द्वारा 17 अरब डॉलर की वित्तीय व प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान की गई. इसके बाद सोवियत संघ की ताकत धीरे-धीरे बढ़ती चली गई जिसको रोक पाना असंभव था.
प्रथम विश्व युद्ध होने का कारण एवं उसका परिणाम जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
वैसे तो यह महामंदी का प्रभाव 10 साल तक चला, परंतु 1936 से 1937 के दौरान महामंदी का प्रभाव थोड़ा कम होता नजर आने लगा. जहां लोगों की आधारभूत समस्याएं सुलझनी आरंभ हो गई और धीरे-धीरे उनके रहन-सहन में भी फर्क नजर आने लगा. इस महामंदी का सबसे मुख्य कारण राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था का कमजोर होना माना गया है. इस ऐतिहासिक महामंदी के प्रभाव से पूरे विश्व में काफी लोग प्रभावित हुए थे, जिससे यह सीख मिलती है कि यदि समझदारी और योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए तो ऐसी स्थिति विश्व में दोबारा उत्पन्न नहीं होगी.
अन्य पढ़ें –