पुरी में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास और रहस्य क्या है | Konark Surya Mandir History in hindi

पुरी में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास और रहस्य क्या है, किसने बनवाया (Konark Surya Mandir Temple History in hindi) (Magnet bermuda triangle mystery, Facts, Architecture)

भारत का इतिहास बहुत ही पुराना है और भारतवर्ष के इतिहास में न जाने कितने ऐसे रहस्य छुपे हुए हैं, जो आज तक पूरी तरह से उजागर नहीं हो सका है. भारत का इतिहास कई क्षेत्रों में फैला हुआ है और भारत का इतिहास भी बहुत ही रोचक माना जाता है, क्योंकि हमारे देश में ऐसी बहुत सी पौराणिक एवं प्राचीन कथाएं हैं, जो हमारे देश को और भी रोचक बनाती हैं. भारतीय इतिहास इतना पुराना है, कि शायद ही कोई और देश का इतिहास हमारे देश के इतना पुराना हो.

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आज हम आपको ऐसी एक रहस्यमय मंदिर के बारे में बताने वाले हैं, जो भारतीय इतिहास में बहुत ही पुराना एवं पौराणिक रूप में जाना जाता है. उड़ीसा राज्य के पुरी में जहां भगवान कृष्ण सुभद्रा और बलराम जी का भव्य मंदिर स्थित है, श्री पावन स्थान से लगभग कुछ ही किलोमीटर दूर भगवान सूर्य का कोणार्क मंदिर स्थित है. यह मंदिर पुरी में समुद्र तट से बस कुछ ही दूरी पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है, कि जब समुद्र के बीचो-बीच से कोई जहाज गुजरती है, तो इस मंदिर के गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से वह जहाज किनारे की ओर अपने आप ही खिंची चली जाती है. इसकी कलात्मकता को देख सभी लोग मंत्र मुक्त हो जाते हैं. इसकी पौराणिक बनावट को देख लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, कि आखिर इतने भव्य मंदिर का निर्माण उस समय के साधन के अभाव में किस प्रकार किया गया होगा. ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो इस मंदिर को रहस्यमई और ऐतिहासिक रूप दे देती है.

आज हम इस लेख के माध्यम से आपको इसी मंदिर के बारे में रोचक जानकारियां प्रदान करने वाले हैं. यदि आप भी इस मंदिर से जुड़ी हुई रहस्यमई और पौराणिक इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें.

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कोणार्क का रहस्यमई सूर्य मंदिर कहां पर स्थित है ?

भगवान जगन्नाथ का मंदिर उड़ीसा राज्य पूरी नामक स्थान पर स्थित है. भगवान जगन्नाथ के भाव में मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर दूर कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है. कोणार्क नामक स्थान के चंद्रभागा नदी के किनारे भगवान सूर्य का यह पौराणिक और रहस्यमई मंदिर स्थित है. इस स्थान पर देश विदेश के टूरिस्ट आते रहते हैं और यह टूरिस्ट के लिए पर्यटन का केंद्र बन चुका है. हमारे भारत देश में बहुत से पर्यटन स्थल हैं और उन्हीं पर्यटन स्थल में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर भी अपना स्थान बनाए हुए हैं. यूनेस्को ने कोड़ा के इस सूर्य मंदिर को 1984 में विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान कर दिया था. इस मंदिर की भावना को आप यहाँ निर्मित कलाकृतियों से ही समझ सकते हैं. कोड़ा के स्थानीय लोग इस मंदिर को ‘बिरंचि नारायण’ से पुकारा करते हैं. इस रहस्यमई मंदिर को देखने के लिए टूरिस्ट लोगों की बहुत बड़ी संख्या प्रतिदिन मौजूद होती है.

कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास एवं इसकी वस्तु कला किस प्रकार है ?

जब कभी भी परंपरा और रीति-रिवाज या इतिहास की बात आती है, तो भारत का हर एक धार्मिक मंदिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. सवाल यह उठता है, कि इस रहस्यमई मंदिर का नाम कोर्णाक सूर्य मंदिर क्यों पड़ा ? इसके पीछे क्या रहस्यमई कहानी हो सकती है. कोणार्क शब्द 2 शब्दों के मिलन से बना है. ‘कोण’ शब्द का यदि हम हिंदी अर्थ निकालने की कोशिश करें, तो इसका अर्थ कोना या किनारा निकलता है. वहीं अगर हम ‘अर्क’ शब्द का हिंदी अर्थ निकाले तो सूर्य शब्द की उत्पत्ति होती है. इन दोनों शब्दों को यदि हम जोड़ दे, तो हमें ‘सूर्य का कोना’ वाक्य मिल जाता है और हम इसी मंदिर को कोणार्क के नाम से जानते हैं. इससे यह साफ हो जाता है, कि इस मंदिर का नाम इसी तर्क वितर्क से रखा गया होगा.

पौराणिक इतिहास के तर्ज पर यह पता चलता है, कि कोणार्क का सूर्य मंदिर लगभग 13वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया गया होगा. इस मंदिर की कलात्मक भव्यता और इंजीनियरिंग को देख यह लगता है, कि यह अपने समय में सबसे निपुणता के ज्ञान से निर्माण किया गया होगा. पौराणिक कथाओं के अनुसार गंग वंश के एक महान शासक राजा नरसिम्हदेव प्रथम ने इस मंदिर को लगभग अपने शासनकाल के दौरान 1243 से 1255 ईस्वी के बीच में निर्माण कार्य को शुरू करवाया होगा. ऐसा कहा जाता है, कि इस मंदिर के निर्माण कार्य में लगभग 1200 कारीगर लगे हुए थे. पौराणिक इतिहास में गंग वंश के लोग भगवान सूर्य देव की आराधना किया करते थे. यही कारण है, कि इस मंदिर के निर्माण में कलिंग शैली को भी दर्शाया गया है. कलिंग शैली के कला में भगवान सूर्य को इस प्रकार से रथ में विराजमान किया गया है, जैसे मानो वह खुद-ब-खुद स्वर्ग लोक से उतरकर धरती पर आकर बैठ गए हैं.

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मंदिर की बनावट इस प्रकार की गई हैं जैसे सूर्य देवता अपने रथ पर विराजमान होकर आगे की ओर बढ़ रहे हो. इस मंदिर के निर्माण में सभी पत्थरों को उत्कृष्ट नकाशी के साथ उकेरा गया है. पैसे या मंदिर असल में चंद्रभागा नदी के मुख में बनाया गया है लेकिन अब इसकी जल रेखा दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, यह मंदिर सूरज भगवान के रथ के आकार में बनाया गया है. सुपरिस्कृत रूप से इस रथ में धातुओं बनें चक्कों की 12 जोड़ियां हैं जो 3 मीटर चौड़ी है और जिसके सामने कुल सात घोड़े चार दाएं तरफ और तीन बाई तरफ है. वर्तमान समय में सात घोड़ों में से केवल एक ही घोड़ा बचा हुआ है.

इस मंदिर की रचना भी पारंपरिक कलिंगा प्रणाली के अनुसार ही गई है और इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर इस तरह बनाया गया है, कि सूरज की पहली किरण सीधे मंदिर के प्रवेश पर ही गिरे और खोदालित पत्थरों से ही इस मंदिर का इसमें निर्माण किया गया था. वास्तविक रूप से यह एक पवित्र एवं धार्मिक स्थान है. इस मंदिर की ऊंचाई 229 फीट यानी कि 70 मीटर की है. इस मंदिर में भगवान सूर्यदेव की तीन प्रतिमाएं बनाई गई हैं, जो एक ही पत्थर द्वारा निर्मित की गई है.

कोणार्क मंदिर के बारे में पौराणिक कथाएं क्या कहती हैं ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांबा को कुष्ठ रोग से पीड़ित होने का श्राप मिला था. तब ऋषि कटक ने भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा को कुष्ठ रोग निवारण हेतु मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर भगवान सूर्य की आराधना करने का मार्ग बताया था, तब सांबा ने करीब 12 वर्षों तक चंद्रभागा नदी के तट पर सूर्य भगवान की लगातार कठिन आराधना की थी. भगवान सूर्य सांबा के तप से प्रसन्न हो जाते हैं और उनको कुष्ठ रोग से मुक्ति दे देते हैं. तभी कहा जाता है, कि सांबा ने चंद्रभागा नदी के गर्भ में कोणार्क का सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था. यह मंदिर पूरी तरह से भगवान सूर्य देव को समर्पित किया गया है.

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कोणार्क मंदिर के चुंबकीय पत्थर का राज क्या है ?

कुछ दंतकथाओं के अनुसार कोरा के सूर्य मंदिर के शीर्ष पर एक चुंबकीय पत्थर रखा हुआ है. कहा जाता है कि चुंबकीय पत्थर का इतना प्रभाव है, कि समुंद्र में गुजरने वाली प्रत्येक पानी की जहाज, इस मंदिर की ओर अपने आप ही खींची चली आती थी. इस वजह से प्रत्येक पानी की जहाजों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था और वह अक्सर अपने रास्ते से भटक जाया करते थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जो भी समुंद्र नाविक अपनी जहाज को लेकर मंदिर के रास्ते से होकर गुजरते थे, उनका चुंबकीय दिशा सूचक यंत्र अपनी दिशा को सही से नहीं बताता था और वह दिशाहीन हो जाते थे. इसीलिए कहा जाता है, कि कुछ मुसलमान नाविकों ने इस पत्थर को निकाल कर अपने साथ लेकर चले गए थे.

मगर अन्य कथाओं के अनुसार कहा जाता है, कि यह पत्थर मंदिर के शीर्ष पर इसलिए रखा गया था, कि यह चारों दीवारों को सही से केंद्रित करके इनका बैलेंस बनाए रखने के लिए सहायता करता था. चुंबकीय पत्थर को निकलवाने से कहा जाता है, कि मंदिर का संतुलन खराब हो गया और वे धीरे-धीरे ध्वस्त होने लगे थे. यदि इतिहास की माने तो कभी भी चुंबकीय पत्थर का कोई भी अस्तित्व ही नहीं था और ऐसी घटनाओं का जिक्र भी इतिहास में मौजूद नहीं है.

कोर्णाक मंदिर से संबंधित कुछ रोचक बातें ?

  • कोर्णाक मंदिर पूरी तरह से सूर्य देवता को समर्पित किया गया है और यहां पर केवल सूर्य देवता की ही पूजा आराधना की जाती है.
  • इस मंदिर की एक विशेषता है, कि इसमें सूर्य भगवान को किस तरह से विराजमान किया गया है, जैसे वह अपने रथ पर विराजमान होकर कहीं को जा रहे हो.
  • कहां जाता है कि जब कोणार्क मंदिर का निर्माण किया गया था, तब यह समुंद्र तट के बिल्कुल समीप हुआ करता था. स्थानीय लोगों के कहे अनुसार यह मंदिर नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाने में भी प्रसिद्ध हुआ करता है.
  • 1984 में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा कोणार्क मंदिर को प्रदान किया था और इसे विश्व धरोहर के रूप में भी तभी से जाना गया था.
  • कोणार्क मंदिर के मूर्तियों में कामुकता को बहुत ही खूबसूरती एवं कलात्मक ढंग से दर्शाया गया है.
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कलिंग शैली के अनुसार किया गया है.
  • आज के समय में कोर्णाक मंदिर को देखने के लिए देश विदेशों से पर्यटन सेनानी आते रहते हैं और इसकी ऐतिहासिक कहानियों एवं रहस्यमई जानकारियों को समझने के लिए काफी रूचि भी दिखाते हैं.
  • कोणार्क मंदिर से सूर्य अस्त और उदय देखने का ही कुछ अलग मजा होता है और लोग यहां पर इस समय काल पर पूजा आराधना भी करने के लिए मौजूद होते हैं.

हमारा भारत देश बहुत से ऐतिहासिक और पौराणिक गाथाओं के रूप में जाना जाता है. आज हमारे देश में बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक चीजें मौजूद हैं, जो अपने आप में ही एक मिसाल पेश करती हैं. आज हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को अपने देश के ऊपर गर्व होना चाहिए कि वह उस देश में जन्मा है, जहां पर बहुत से पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएं हो चुकी है, जो अपने आप में ही प्रसिद्ध है. हमारे देश में आज भी बहुत पुरानी और ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं, जिनको देखने के लिए देश-विदेश के लोग इसकी ओर आकर्षित होते चले आते हैं. आज हमारे देश के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने पूर्वजों और ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व बचाए रखें और इसके प्रति लोगों की उत्सुकता और भी जागृत करने में एक दूसरे का सहयोग भी करें. यदि आपको हमारे द्वारा प्रस्तुत यह रोचक और रहस्यमई लेख पसंद आया हो, तो आप इसे अपने मित्र जन एवं परिजन के साथ अवश्य साझा करें.

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