पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच युद्ध कारण, परिणाम व प्रभाव (Pakistan Bangladesh War Reason, Result, Effects in Hindi, 16 दिसंबर विजय दिवस)
अंग्रेजों ने भारत में 200 साल तक राज किया था, यह तो सभी जानते हैं, किन्तु आपको यह बता दें, कि अंग्रेजों ने जब भारत को आजाद किया, तब उन्होंने भारत को 2 भागों में विभाजित कर दिया था. एक पाकिस्तान एवं दूसरा हिंदुस्तान. आजादी के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए. किन्तु हिन्दू और मुसलमानों के बीच की लड़ाई के अलावा पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच में भी लड़ाई शुरू हो गई. दरअसल पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होना चाहते थे. इसके कई कारण थे. और इसी की वजह से पाकिस्तान के दोनों भागों के बीच भी युद्ध छिड़ गया, और पाकिस्तान पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में 2 हिस्सों में बंट गया. इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में उभरा. पाकिस्तान से बांग्लादेश किस तरह अलग हुआ एवं इसमें भारत की क्या भूमिका थी. और साथ ही युद्ध से क्या – क्या प्रभाव पड़े, यह सभी जानकारी आप हमारे इस लेख में देख सकते हैं.
पाकिस्तान – बांग्लादेश युद्ध के कारण (Pakistan – Bangladesh War Reason or Issue)
आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान अलग – अलग हो गए थे. पाकिस्तान में मुस्लिम लोगों ने शरण ली, जबकि भारत में अधिकतर हिन्दू लोगों ने शरण ली. पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम भारत के पूर्वी और पश्चिमी दोनों हिस्सों में फैले हुए थे. इसलिए इसे पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. दोनों ही जगह पर इस्लाम धर्म के लोग एक जुट होकर रहते थे. पश्चिमी पाकिस्तान में 97 % मुस्लिम और पूर्वी पाकिस्तानी में 85 % बंगाली थे. और यहाँ बाकि के लोग मुसलमान थे. फिर बंगाली और मुस्लिमों के बीच विरोध शुरू हुआ, इस विरोध के कई महत्वपूर्ण कारण थे, जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हो गया. इसके प्रमुख कारण इस प्रकार है –
- भाषा का विरोध :- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच समस्याओं की शुरुआत ठीक उस समय शुरू हुई, जब जिन्ना ने पूर्वी पाकिस्तान में एक भाषण में कहा, कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा (ई एंड डब्ल्यू) उर्दू होनी चाहिए, किन्तु इससे बंगाली लोगों को परेशानी होती, क्योंकि उनकी तादात वहां बहुत ज्यादा थी. अतः वहां के रहने वाले बंगालियों ने इससे परेशान होकर बड़े पैमाने पर इसका विरोध प्रदर्शन करने का प्रयास किया. इससे पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान के बीच की दूरियां बढ़ने की शुरुआत हो गई थी.
- असमानता :- इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के शासन का सामना करना पड़ा, जिसमे बंगालियों को यह महसूस कराया जाने लगा था, कि वे वहां रहने वाले दूसरे दर्जे के नागरिक हैं. दरअसल पूर्वी पाकिस्तान, मुख्य रूप से जूट और जूट से बने उत्पादों के निर्यात के माध्यम से पाकिस्तान के लिए विदेशी मुद्रा आय का सबसे बड़ा स्त्रोत था. किन्तु फिर भी इस आय से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के विकास के लिए कोई कार्य नहीं किये गये, बल्कि जो भी विकास कार्य किये जाते थे, वह सिर्फ पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों के लिए होते थे. इससे भी पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली लोग प्रभावित हुए.
- प्राकृतिक आपदा के चलते बंगालियों में असंतोष :- इसका एक पहलू ऐसा भी है, जिसे इतिहास के पन्नों में नहीं जोड़ा गया है, और न ही उसे उचित श्रेय दिया गया है. यह एक प्रमुख कारण था, जिसके कारण बंगालियों में असंतोष पैदा हो गया था. नवम्बर 1970 में पूर्वी पाकिस्तान में एक बड़ा प्राकृतिक हादसा हुआ, जिसमे लगभग 5,00,000 बंगाली मारे गये. और स्थानीय लोगों की सम्पत्ति, व्यवसायों और अन्य चीजों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ. यह एक चक्रवात था, जिसका नामा ‘भोला’ था. उस समय पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा बंगालियों की मदद के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया. 10 दिनों के बाद राष्ट्रपति याह्या खान द्वारा आपदा के पैमाने को देखने एवं उससे होने वाले नुकसान का जायजा लेने के लिए उनके द्वारा इसका सर्वेक्षण किया गया था, इसके बाद उन्होंने घोषणा की, कि जल्द ही सरकार देखेगी, कि पूर्वी पाकिस्तान के लिए क्या अच्छा किया जा सकता है. किन्तु फिर भी उनके द्वारा कोई राहत कार्य नहीं किये गये. यह चक्रवात आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा माना जाता है. इससे बंगालियों में भारी असंतोष पैदा हो गया. जिसके कारण पश्चिमी पाकिस्तान में उनके शासकों को बंगालियों ने स्वीकार करने से मना करना शुरू कर दिया.
- राजनीति के कारण दूरियां :- इसके बाद सन 1970 – 71 में चुनाव हुए, बंगाली अपने स्थानीय नायक शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी आवामी लीग को चुनना चाहते थे. और पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों की संख्या ज्यादा होने के कारण आवामी लीग चुनाव जीत गई. किन्तु उस समय पश्चिमी पाकिस्तान में याह्या खान एवं जुल्फीकर अली भुट्टो सत्ता में थी. उनका आवामी लीग के प्रमुख शेख मुजीबुर रहमान को सत्ता सौंपने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने शेख मुजीबुर के ऊपर ‘अगरतला षड्यंत्र’ मामले में राजद्रोह का आरोप लगाते हुए, उन्हें जेल भेज दिया. उस दौरान पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा काफी विरोध किया गया. किन्तु पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा शासन उन पर हावी हो गया और इससे पूर्वी पाकिस्तान काफी कमजोर होने लगा था.
- धर्म एवं संस्कृति के कारण दूरियां :- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच विरोध का एक कारण बंगालियों और मुसलमानों में धर्म एवं संस्कृति को लेकर भी था. पूर्वी पाकिस्तान ने अपनी धार्मिक पहचान को लेकर अपनी बंगाली जातीयता को प्राथमिकता दी थी. किन्तु पश्चिमी पाकिस्तान यह नहीं चाहता, कि पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों का राज हो. अतः दोनों दलों के बीच एक दूसरे के प्रति इसके कारण आक्रोश पैदा हो गया.
- ऑपरेशन सर्च लाइट :- मार्च 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा की गई हडताल अर्थव्यवस्था को कमजोर करने लगी थी. जिसके चलते पश्चिमी पाकिस्तान ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्यवाही की. सेना ने ‘ऑपरेशन सर्च लाइट’ लांच किया, जोकि वहां युद्ध का प्रमुख कारण बन गया था. उस दौरान पाक सेना एवं उनके समर्थकों के कारण 3 लाख लोगों की मृत्यु हो गई थी. और वहां महिलाओं पर भी काफी अत्याचार किये गये थे, वहां की स्थिति बहुत ही घातक हो गई थी. बंगालियों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न के चलते पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली पाकिस्तान से अलग होने का विचार करने लगे. उन्होंने अपनी एक खुद की सेना का निर्माण किया जिसका नाम था “मुक्तिवाहिनी”. किन्तु उस दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया उत्पीड़न इतना अधिक था, कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा किया गया, यह विरोध भी कुछ खास असर नहीं कर पाया. और वे भारत की ओर पलायन करने लगे.
- आजादी की घोषणा :– पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली लोग भारत में बड़े पैमाने पर शरण लेने लगे थे. उस समय भारत की अर्थव्यवस्था उतनी मजबूत नहीं थी, कि वह इतनी बड़ी संख्या को संभालने में समर्थ होती. 6 महीने के अंदर भारत में 3 मिलियन से अधिक लोगों ने शरण ली. किन्तु फिर भी भारत में आने वाले लोगों को भारत ने एक पड़ोसी अतिथि की तरह उन्हें शरण दी. यह चीज पश्चिमी पाकिस्तान को अच्छी नहीं लगी, उसने भारत को धमकी देना शुरू कर दिया. हालाँकि इंदिरा गांधी ने इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बात कर इस मामले से निपटने की बहुत कोशिश की. किन्तु यह मुद्दा बहुत अधिक बढ़ चूका था. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने अपने विद्रोह बहुत अधिक बढ़ा दिया और खुद को पाकिस्तान से आजाद करने की ठान ली. पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीबुर ने घोषणा कर दी, कि पूर्वी पाकिस्तान अब पाकिस्तान से अलग हो चूका है और इसका नाम ‘बांग्लादेश’ है.
इस तरह से पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई.
युद्ध में भारत की भूमिका एवं बांग्लादेश का भारत ने समर्थन क्यों किया ? (India Role in This War and Why India Support Bangladesh ?) (Indo-Pakistani War of 1971 Summary)
पूर्वी पाकिस्तान ने पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध तो छेड़ दिया था, किन्तु पूर्वी पाकिस्तान द्वारा बनाई गई ‘मुक्तिवाहिनी’ सेना उतनी मजबूत नहीं थी, कि वह पाकिस्तानी सेना का सामना कर पाए. ऐसे में उन्होंने भारत से मदद की गुहार लगाई. भारत की तत्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी यह निष्कर्ष निकाला, कि लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण देने से अच्छा पाकिस्तान के साथ युद्ध कर उसे हराकर पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करा दिया जाये. इसके परिमाणस्वरुप भारत सरकार ने ‘मुक्तिवाहिनी’ सेना का समर्थन करने का फैसला किया. इससे मुक्तिवाहिनी सेना मजबूत हो गई और पाकिस्तानी सेना को हराने में कमयाब होने लगी. इससे सन 1971 के 3 दिसम्बर को एक बड़े पैमाने पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया.
पाकिस्तान वायु सेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारतीय वायुसेना के ठिकानों पर एक प्री – एम्पटिव स्ट्राइक शुरू की. इस हमले के दौरान पाकिस्तानी सेना का उद्देश्य भारतीय वायु सेना के विमानों को बेअसर करना था. किन्तु इससे भारत भी शांत नहीं बैठा, उसने इसे भारत – पाकिस्तान युद्ध की अधिकारिक तौर पर शुरुआत के रूप में लिया. और यहीं पाकिस्तान का गृहयुद्ध भारत – पाकिस्तान युद्ध के रूप में परिविर्तित हो गया. पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेना में भारत की 3 कॉर्प्स शामिल हो गई, और उनके साथ युद्ध में लड़ी. भारत द्वारा किये गये युद्ध में प्रदर्शन से पाकिस्तान हिल गया था. वह भारत का सामना प्रभावी ढंग से करने में असमर्थ होने लगा था. फिर धीरे – धीरे पाकिस्तानी सेना युद्ध में बहुत कमजोर हो गई, जिसके चलते 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस तरह से यह युद्ध समाप्त हो गया.
पाकिस्तान – बांग्लादेश युद्ध का परिणाम (Result of The Pakistan – Bangladesh War)
पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया आत्मसमर्पण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत बड़ा आत्मसमर्पण था. इसमें पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच हुआ यह युद्ध बाद में भारत – पाकिस्तान युद्ध के रूप में परिवर्तित हो गया था. किन्तु उस दौरान भारत और पूर्वी पाकिस्तान की जीत होने के बावजूद भी पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश (बांग्लादेश) के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी. इसके लिए बांग्लादेश ने संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के लिए मांग की. किन्तु वोट के आधार पर चीन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं ऐसे कई देश पाकिस्तान के समर्थन में थे. और फिर सन 1972 में पाकिस्तान और भारत के बीच शिमला संधि करने का फैसला लिया गया. इस संधि के अनुसार यदि भारत पाकिस्तानी युद्ध कैदियों को रिहा कर दे, तो इसके बदलें में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की मान्यता दे दी जाएगी, और भारत ने इस संधि को स्वीकार कर लिया.
दरअसल उस दौरान भारत में करीब 90,000 युद्ध कैदी यानी पीओके थे, जिन पर भारत द्वारा जेनेवा समझौते सन 1925 के तहत सख्त व्यवहार किया जाता था. फिर सन 1972 में भारत ने शिमला संधि पर हस्ताक्षर कर दिए. और इस तरह से इसका परिणाम यह निकला कि –
- इस युद्ध में भारत एवं पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश की जीत हुई. पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होकर पूर्वी पाकिस्तान ‘बांग्लादेश’ के नाम से नये एवं स्वतंत्र देश के रूप में उभर गया.
- भारत ने शिमला संधि पर हस्ताक्षर किये और 5 महीने के अंदर भारत ने पाकिस्तान के 90,000 से भी अधिक युद्ध कैदियों को रिहा किया. साथ ही युद्ध के दौरान 13,000 वर्ग किमी की पाकिस्तानी जमीन भारत ने जब्त कर ली थी. किन्तु शिमला संधि होने के कारण इसे भारत को पाकिस्तान को वापस करना पड़ा. हालाँकि भारत ने कुछ रणनीतिक क्षेत्रों को अपने आधीन ही रखा था, जोकि कुछ 804 वर्ग किमी से अधिक था.
पाकिस्तान – बांग्लादेश युद्ध का प्रभाव (Effect of The Pakistan – Bangladesh War)
इस युद्ध के समाप्त होने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश पर निम्न प्रभाव पड़ा –
बंगलादेश :-
- इस युद्ध से बांग्लादेश पर सबसे अधिक प्रभाव यह पड़ा, कि वह अब पाकिस्तानी सेना एवं उनके समर्थकों द्वारा किये जा रहे अत्याचार से मुक्त हो गया था.
- युद्ध में जीत तो बांग्लादेश को 16 दिसंबर 1971 को मिली थी. किन्तु इसकी स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में घोषणा 26 मार्च 1971 को कर दी गई थी, इसलिए बांग्लादेश में हर साल 26 मार्च के दिन स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है.
- इसके साथ ही वह अब अपना संविधान लागू करने के लिए स्वतंत्र भी हो गया था. स्वतंत्र होने के बाद बांग्लादेश में शेख मुजीबुर ने अपनी पार्टी आवामी लीग की जीत के साथ सरकार बनाई.
- इसके अलावा बांग्लादेश में रहने वाले बंगालियों को भी इससे मुक्ति मिल गई, जोकि पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे भेदभाव एवं अन्याय से पीढित थे, और भारत में पलायन कर रहे थे. वे सभी फिर दोबारा बांग्लादेश में जाकर बस गए.
- हालाँकि इस युद्ध के दौरान हजारों नागरिकों एवं सैनिकों को अपने प्राण देने पड़े थे, जोकि काफी निराशाजनक था. किन्तु लोग खुद की स्वतंत्रता से बहुत खुश भी थे.
पाकिस्तान :-
- इस युद्ध के बाद पाकिस्तान ने भले ही हार का सामना किया हो, लेकिन पाकिस्तान अपने हजारों युद्ध कैदियों यानि जिहादियों को रिहा करवाने में सफल हो गया था. जिसे भारत द्वारा कैद किया गया था.
- इसके अलावा युद्ध में पाकिस्तान की हार से उसे यह एहसास हो गया, कि पाकिस्तान के पास युद्ध में इस्तेमाल होने वाले शस्त्र उतने मजबूत नहीं है. इसके बाद उन्होंने परमाणु बम के निर्माण की बात शुरू की. इसके लिए पाकिस्तान के तत्कालिक प्रधानमंत्री ने ईरान से बातचीत की थी, किन्तु ईरान ने इसे ख़ारिज कर दिया था.
- उस दौरान पाकिस्तानी सेना का एक बड़ा वर्ग शिमला समझौते पर बातचीत से संतुष्ट नहीं था. क्योंकि उस समय पाकिस्तान के कई सारे सैनिक मारे गए थे. इसलिए वे भारत से बदला लेना चाहते थे. फिर युद्ध में जो सैनिक बच गये थे, उन्होंने पाकिस्तान के लोगों में एवं पाकिस्तानी सेना के बीच भारत के प्रति घृणा की भावना को और अधिक बढ़ा दी. साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में जिहादी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण का निर्देश भी दे दिया.
- युद्ध में पाकिस्तान की हार होने से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर हो चुकी थी. क्योंकि युद्ध में पाकिस्तान को काफी नुकसान हुआ था. इसे सँभालने में तत्कालिक प्रधानमंत्री याह्या खान असमर्थ थी, इसलिए उन्होंने अपनी कमान राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो को सौंप दी.
इस तरह से पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही देशों में इसका अच्छा एवं बुरा दोनों ही तरह का प्रभाव पड़ा.
युद्ध का भारत में प्रभाव (Pakistan Bangladesh War Effect in India)
सन 1971 के इस भारत और पाकिस्तान युद्ध से न सिर्फ बांग्लादेश आजाद हुआ एवं पाकिस्तान पर प्रभाव पड़ा, बल्कि इससे भारत पर भी काफी प्रभाव पड़ा, जोकि इस प्रकार है –
- एक तरफ जहाँ पाकिस्तान को सैन्य एवं राजनीतिक रूप से कई सारे महत्वपूर्ण झटके लगे थे, तो वहीँ भारत की तत्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को यह एक राजनीतिक सफलता हासिल हुई. युद्ध की जीत ने इंदिरा गांधी जी के राजनीतिक दांव को बढ़ा दिया, साथ ही उनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ गई.
- किन्तु युद्ध जीतने के बाद भारत के कुछ लोगों का मानना था, कि पाकिस्तान के साथ की गई शिमला संधि भारत की दरियादिली हैं. उनका कहना था, कि अगर पाकिस्तान इस समझौते को कठोरता से लेता है, तो उसे बख्शा नहीं जायेगा. इस संधि से भारत के कई लोग इंदिरा गांधी जी से खुश नहीं थे.
- इन सभी के अलावा सन 1971 में हुए इस युद्ध में जीत हासिल करने के बाद से हर साल भारत में 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है.
अतः यहीं कारण था, कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच युद्ध हुआ और बांग्लादेश को आजादी मिली. साथ ही बांग्लादेश को आजाद होने में भारत ने अहम भूमिका निभाई.
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