तात्या टोपे का इतिहास जीवन परिचय जीवनी निबंध (Tatya Tope History, Biography, Family, Birth, Details In Hindi)
अंग्रेजों ने भारत पर बेशक ही कई सालों तक राज किया हो लेकिन हमारे देश पर कब्जा करना ब्रिटिश हुकूमत के लिए इतना आसान नहीं रहा है. ब्रिटिश हुकूमत को हमारे देश पर कब्जा करने के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. जब भारत में अंग्रेजों ने अपने पैर-पसारने की कोशिश करना शुरू किया था, तो उस वक्त भारत के कई महान राजाओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने इन्हें तगड़ी टक्कर दी थी. हालांकि इसके बावजूद भी ब्रिटिश, भारत में अपना शासन स्थापित करने में सफल रहे थे. वहीं भारत को ब्रिटिशों केचंगुल से निकालने के लिए साल 1857 में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ था. इस स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई राज्यों के राजाओं ने अंग्रेजों का सामना किया था. लेकिन अंग्रेजों के सामने ये स्वतंत्रता संग्राम ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया था. वहीं इस स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने के लिए तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे जैसे लोगों ने अपनी सारी ताकत लगा दी थी. लेकिन उस वक्त भारत के भिन्न-भिन्न भागों के राजाओं में एकता नहीं होने के कारण अंग्रेजों की जीत हुई थी.
आज भी जब इस स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र किया जाता है तो तात्या टोपे का का नाम जरूर लिया जाता है. तात्या टोपे ने ना सिर्फ अंग्रेजों की नाक में दम करके रखा हुआ था. बल्कि उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित कई राजाओं की मदद भी की थी. वहीं आज हम अपने इस लेख के जरिए स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में आपको जानकारी देने जा रहे हैं.
Table of Contents
तात्या टोपे का इतिहास
पूरा नाम | रामचंद्र पांडुरंग येवलकर |
उप नाम | तात्या टोपे |
जन्म स्थान | पटौदा जिला, महाराष्ट्र |
माता का नाम | रुक्मिणी बाई |
पिता का नाम | पाण्डुरंग त्र्यम्बक |
पत्नी का नाम | – |
जन्म तारीख | 1814ई. |
मृत्यु | 18अप्रैल, 1859 (लेकिन संदेह है) |
मृत्यु स्थान | शिवपुरी, मध्य प्रदेश |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
भाषा की जानकारी | हिंदी और मराठी |
तात्या टोपे का जन्म और परिवार (Tatya Tope’s Birth And Family Detalis)
भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव येवला में हुआ था. ये गांव नासिक के निकट पटौदा जिले में स्थित है. वहीं इनका असली नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलकर’ था और ये एक ब्राह्मण परिवार से आते थे. इनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट बताया जाता है. जो कि महान राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां पर कार्य करते थे. इतिहास के अनुसार उनके पिता बाजीराव द्वितीय के गृह-सभा के कार्यों को संभालते थे. भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के काफी खास लोगों में से एक थे. वहीं तात्या की माता का नाम रुक्मिणी बाई था और वो एक गृहणी थी. तात्या के कुल कितने भाई-बहन थे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.
अंग्रेजों ने भारत में अपना साम्राज्य फैलाने के मकसद से उस समय के कई राजाओं से उनके राज्य छीन लिए थे. अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय से भी उनका राज्य छीनने की कोशिश की. लेकिन पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने की जगह उनसे युद्ध लड़ना उचित समझा. लेकिन इस युद्ध में पेशवा की हार हुई और अंग्रेंजों ने उनसे उनका राज्य छीन लिया. इतना ही नहीं अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को उनके राज्य से निकाल दिया और उन्हें कानपुर के बिठूर गांव में भेज दिया. 1818 ई. में हुए इस युद्ध में हार का सामने करने वाले बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों द्वारा हर साल आठ लाख रुपये पेंशन के तौर पर मिला करते थे. वहीं बताया जाता है कि बिठूर में जाकर बाजीराव द्वितीय ने अपना सारा समय पूजा-पाठ में लगा दिया. वहीं तात्या के पिता भी अपने पूरे परिवार सहित बाजीराव द्वितीय के साथ बिठूर में जाकर रहने लगे. जिस वक्त तात्या के पिता उनको बिठूर लेकर गए थे उस वक्त तात्या की आयु महज चार वर्ष की थी.
बिठूर गांव में ही तात्या टोपे ने युद्ध करने का प्रशिक्षण ग्रहण किया था. तात्या के संबंध बाजीराव द्वितीय के गोद लिए पुत्र नाना साहब के साथ काफी अच्छे थे और इन दोनों ने एक साथ शिक्षा भी ग्रहण की थी.
‘तात्या टोपे’ नाम कैसे पढ़ा
तात्या जब बड़े हो गए थे तो पेशवा ने उन्हें अपने यहां पर बतौर मुंशी रख लिया था. वहीं मुंशी बनने से पहले तात्या ने और जगहों पर भी नौकरी की थी लेकिन वहां पर उनका मन नहीं लगा. जिसके बाद उन्हें पेशवा जी ने ये जिम्मेदारी सौंपी थी. वहीं इस पद को तात्या ने बखूबी से संभाला और इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपने राज्य के एक भ्रष्टाचार कर्मचारी को पकड़ा. वहीं तात्या के इस कार्य से खुश होकर पेशवा ने उन्हें अपनी एक टोपी देकर सम्मानित किया. और इस सम्मान में दी गयी टोपी के कारण उनका नाम तात्या टोपे पड़ गया. वहीं लोगों द्वारा उन्हें रामचंद्र पांडुरंग की जगह ‘तात्या टोपे’ कहा जाने लगा. कहा जाता है कि पेशवा जी द्वारा दी गई टोपी में कई तरह के हीरे जड़े हुए थे.
साल 1857 के विद्रोह में तात्या टोपे की भूमिका (Tatya Tope Role In The 1857 Rebellion)
अंग्रेजों द्वारा हर साल पेशवा को आठ लाख रुपये पेंशन के रूप में दिए जाते थे. लेकिन जब उनकी मृत्यु हो गई तो अंग्रेजों ने उनके परिवार को ये पेंशन देना बंद कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने उनके गोद लिए पुत्र नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी इंकार कर दिया. वहीं अंग्रेजों द्वारा लिए गए इस निर्णय से नाना साहब और तात्या काफी नाराज थे और यहां से ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया. वहीं साल 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने लगा तो इन दोनों ने इस संग्राम में हिस्सा लिया. नाना साहब ने तात्या टोपे को अपनी सेना की जिम्मेदारी देते हुए उनको अपनी सेना का सलाहकार मानोनित किया. वहीं अंग्रेजों ने साल 1857 में कानुपर पर हमला कर दिया और ये हमला ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की अगुवाई में किया गया था. नाना ज्यादा समय तक अंग्रेजों से सामना नहीं कर पाए और उनकी हार हो गई. हालांकि इस हमले के बाद भी नाना साहब और अंग्रेजों की बीच और कई युद्ध हुए. लेकिन उन सभी युद्ध में नाना की हार ही हुई. वहीं नाना ने कुछ समय बाद कानपुर को छोड़ दिया और वो अपने परिवार के साथ नेपाल जाकर रहने लगे. कहा जाता है कि नेपाल में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी.
वहीं अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध में पराजय मिलने के बाद भी तात्या टोपे ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी खुद की एक सेना का गठन किया. तात्या ने अपनी सेना की मदद से कानपुर को अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने के लिए रणनीति तैयार की थी. लेकिन हैवलॉक ने बिठूर पर भी अपनी सेना की मदद से धावा बोल दिया और इस जगह पर ही तात्या अपनी सेना के साथ थे. इस हमले में एक बार फिर तात्या की हार हुई थी. लेकिन तात्या अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे और वहां से भागने में कामयाब हुए.
तात्या और रानी लक्ष्मी बाई (Tatya Tope And Rani Laxmi Bai)
जिस तरह से अंग्रेजों ने नाना साहब को बाजीराव पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया था. वैसे ही अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के गोद दिए पुत्र को भी उनकी संपत्ति का वारिस नहीं माना. वहीं अंग्रेजों के इस निर्णय से तात्या काफी गुस्से में थे और उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करने का फैसला किया. कहा जाता है कि तात्या पहले से ही रानी लक्ष्मीबाई को जानते थे और ये दोनों मित्र थे.
साल 1887 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई ने भी बढ़-चढ कर हिस्सा लिया था और ब्रिटिश इस विद्रोह से जुड़े हर व्यक्ति को चुप करवाना चाहते थे.साल 1887 में सर ह्यूरोज की आगुवाई में ब्रिटिश सेना ने झांसी पर हमला कर दिया था. वहीं जब तात्या टोपे को इस बात का पता चला तो उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करने का फैसला लिया. तात्या ने अपनी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना का मुकाबला किया और लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों के शिकंजे से बचा लिया. इस युद्ध पर विजय प्राप्त करने के बाद रानी और तात्या टोपे कालपी चले गए. जहां पर जाकर इन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अपने आगे की रणनीति तैयार की. तात्या जानते थे की अंग्रेजों को हराने के लिए उनको अपनी सेना को और मजबूत करना होगा. अंग्रेजों का सामना करने के लिए तात्या ने एक नई रणनीति बनाते हुए महाराजा जयाजी राव सिंधिया के साथ हाथ मिला लिया. जिसके बाद इन दोनों ने साथ मिलकर ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर अपना आधिकार कायम कर लिया. तात्या के इस कदम से अंग्रेजों को काफी धक्का लगा और उन्होंने तात्या को पकड़ने की अपनी कोशिशों को और तेज कर दिया. वहीं 18 जून, 1858 में ग्वालियर में हुए अंग्रेजों के खिलाफ एक युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई हार गई और उन्होंने अंग्रेजों से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया.
तात्या टोपे का संघर्ष
अंग्रेजों ने अपने खिलाफ शुरू हुए हर विद्रोह को लगभग खत्म कर दिया था. लेकिन अंग्रेजों के हाथ तात्या टोपे अभी तक नहीं लगे थे. ब्रिटिश इंडिया तात्या को पकड़ने की काफी कोशिशें करती रही, लेकिन तात्या अपना ठिकाना समय-समय पर बदलते रहे.
तात्या टोपे की मृत्यु (Death Of Tatya Tope)
तात्या टोपे जैसे चालाक और महान व्यक्ति को पकड़ना इतना आसान नहीं था. तात्या ने लंबे समय तक अंग्रेजों को परेशान करके रखा हुआ था. वहीं तात्या की मृत्यु को लेकर दो बातें कही जाती हैं. कई इतिहासकारों का मानना है कि तात्या को फांसी दी गई थी. वहीं कई पुराने सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक तात्या को फांसी नहीं दी गई थी. वहीं तात्या की मृत्यु से जुड़ी इन दोनों कहानियों का विवरण नीचे दिया गया है.
तात्या को फांसी देने की कहानी
कहा जाता है कि तात्या जिस वक्त पाड़ौन के जंगलों में आराम कर रहे थे उस वक्त ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़ लिया था. नरवर के राजा मानसिंह द्वारा अंग्रेजों को तात्या के होने की सूचना दी गई थी. वहीं तात्या को पकड़ने के बाद उनपर एक मुकदमा चलाया गया और इस मुकदमें में उन्हें दोषी पाते हुए फांसी की सजा सुना गई थी. जिसके बाद 18 अप्रैल 1859 को उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया था.
साल 1909 में हुई थी तात्या की मौत-
वहीं ये भी कहा जाता है कि तात्या कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे थे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस गुजरात राज्य में साल 1909 में ली थी. तात्या ने राजा मानसिंह के साथ मिलकर एक रणनीति तैयार की थी जिसके चलते अंग्रेजों ने किसी दूसरे व्यक्ति को तात्या समझकर पकड़ लिया था और उसको फांसी दे दी थी. तात्या के जिंदा होने के सबूत समय-समय पर मिलते रहे हैं और तात्या टोपे के भतीजे ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि तात्या को कभी भी फांसी नहीं दी गई थी.
तात्या टोपे से जुड़ी अन्य जानकारी-
- तात्या टोपे ने अंग्रेजों के खिलाफ लगभग 150 युद्ध लड़े हैं. जिसके चलते अंग्रेजों को काफी नुकसान हुए था और उनके करीब 10 हजार सैनिकों की मृत्यु इन युद्धों के दौरान हुई थी.
- तात्या टोपे ने कानपुर को ब्रिटिश सेना से छुड़वाने के लिए कई युद्ध किए. लेकिन उनको कामयाबी मई, 1857 में मिली और उन्होंने कानपूर पर कब्जा कर लिया. हालांकि ये जीत कुछ दिनों तक ही थी और अंग्रेजों ने वापस से कानपुर पर कब्जा कर लिया था.
तात्या टोपे के जीवन पर बने नाटक और फिल्में (Manikarnika: The Queen of Jhansi film)
तात्या टोपे की जिंदगी को छोटे पर्दे पर भी दर्शाया जा चुका है और जी टीवी पर आने वाले कार्यक्रम ‘झांसी की रानी’ में अभिनेता अमित पचोरी ने तात्या टोपे की भूमिका निभाई थी. वहीं इसी साल अभिनेत्री कंगना राणावत की एक फिल्म भी बड़े पर्दे पर दस्तक देने वाली है और ये फिल्म झांसी की रानी के जीवन पर आधारित है. इस फिल्म में अभिनेता अतुल कुलकर्णी तात्या टोपे की भूमिका निभाएंगे. इस फिल्म का शीर्ष ‘मणिकर्णिका: झांसी की रानी’ रखा गया है.
भारत सरकार द्वारा दिया गया सम्मान
तात्या टोपे द्वारा किए गए संघर्ष को भारत सरकार द्वारा भी याद रखा गया और उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया था. इस डाक टिकट के ऊपर तात्या टोपे की फोटो बनाई गई थी. इसके अलावा मध्य प्रेदश में तात्या टोपे मेमोरियल पार्क भी बनवाया गया है. जहां पर इनकी एक मूर्ती लगाई गई है. ताकि हमारे देश की आने वाले पीढ़ी को इनकी कुर्बानी याद रहे.
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