शिवराम राजगुरु की जीवनी | Shivaram Rajguru freedom fighter Biography In Hindi
भारत को गुलामी से मुक्त करवाने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना जीवन हमारे देश के लिए कुर्बान किया है. इन्हीं क्रांतिकारियों के बलिदान की वजह से ही हमारा देश एक आजाद मुल्क बन सका है. हमारे देश के क्रांतिकारियों के नामों की सूची में अनगिनत क्रांतिकारियों के नाम मौजूद हैं और इन्हीं क्रांतिकारियों के नामों में से एक नाम ‘राजगुरु’ जी का भी है. जिन्होंने अपने जीवन को हमारे देश के लिए समर्पित कर दिया था.
बेहद ही छोटी सी आयु में इन्होंने अपने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया था और इनकी कुर्बानी को आज भी भारत वासियों द्वारा याद किया जाता है. आज हम अपने इस लेख के जरिए आपको बताने जा रहे हैं कि राजगुरु जी ने भारत के लिए क्या-क्या त्याग किए थे और कैसे ये एक महान क्रांतिकारी बन गए थे.
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शिवराम राजगुरु की जीवनी
पूरा नाम | शिवराम हरि राजगुरु |
उप नाम | रघुनाथ, एम.महाराष्ट्र |
जन्म स्थान | पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत |
जन्म तिथि | 24 अगस्त, 1908 |
मृत्यु तिथि | 23 मार्च, 1931 |
किस आयु में हुई मृत्यु | 22 वर्ष |
मृत्यु स्थान | लाहौर, ब्रिटिश भारत, (अब पंजाब, पाकिस्तान में) |
माता का नाम | पार्वती बाई |
पिता का नाम | हरि नारायण |
कुल भाई बहन | दिनकर (भाई) और चन्द्रभागा, वारिणी और गोदावरी (बहनें |
पत्नी का नाम | – |
कुल बच्चे | – |
आंखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
लंबाई | – |
वजन | – |
कुल संपत्ति | – |
जाति (Caste) | Brahman |
राजगुरु जी का जन्म और परिवार (Rajguru Birth And Family Details)
शिवराम हरि राजगुरु का नाता भारत के महाराष्ट्र राज्य से था और इन्होंने इसी राज्य के एक साधारण से परिवार में सन् 1908 में जन्म लिया था. महाराष्ट्र के पुणे शहर के जिस गांव मे इनका जन्म हुआ था उस गांव का नाम खेड़ था. इसी गांव में राजगुरु जी का बचपन बीता था. राजगुरु जी के पिता हरि नारायण ने दो शादियां की थी. इनके पहले विवाह से इन्हें कुल 6 बच्चे थे और इन्होंने दूसरी शादी पार्वती जी से किया थी और इस विवाह से इन्हें पांच बच्चे हुए थे और राजगुरु जी इनकी पांचवीं सन्तान थे.
राजगुरु जी का ताल्लुक एक ब्राह्मण परिवार से था और इतिहास में मौजूदा जानकारी के अनुसार राजगुरु जी को इनकी मां पार्वती बाई और इनके बड़े भाई द्वारा पाला गया था. क्योंकि जब ये महज 6 वर्ष की आयु के थे तो उस वक्त इनके पिता जी हरि नारायण का देहांत हो गया था.
राजगुरु जी की शिक्षा (Rajguru’s Education)
अपने गांव के ही एक मराठी स्कूल में राजगुरु जी ने अपनी पढ़ाई की थी. कुछ सालों तक अपने गांव में रहने के बाद राजगुरू जी वाराणसी चले गए थे और वाराणसी में आकर इन्होंने विद्यानयन और संस्कृत विषय की पढ़ाई की थी. महज 15 वर्ष की आयु में राजगुरु जी को हिन्दू धर्म के ग्रंथो का अच्छी खासा ज्ञान भी हो गया था और ये एक एक ज्ञानी व्यक्ति थे. कहा जाता है कि इन्होंने सिद्धान्तकौमुदी (संस्कृत की शब्द शास्त्र) को बेहद ही कम समय में याद कर लिया था.
राजगुरु जी का क्रांतिकारी बनने का सफर (Role of Shivaram Rajguru in Indian Freedom Movement)
जिस वक्त राजगुरु जी वाराणसी में अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी इनकी मुलाकात हमारे देश के कुछ क्रांतिकारियों से हुई थी. जो हमारे देश को अंग्रेजों से आजाद करवाने की लड़ाई लड़ रहे थे. इन क्रांतिकारियों से मिलने के बाद राजगुरु जी भी हमारे देश को आजाद करवाने के संघर्ष में लग गए और इन्होंने साल 1924 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) को ज्वाइन कर लिया था. ये एसोसिएशन एक क्रांतिकारी संगठन था, जिसको चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव थापर और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा बनाया गया था. एचएसआरए का लक्ष्य केवल देश की आजादी से जुड़ा हुआ था.
इस एसोसिएशन के सदस्य के रूप में राजगुरू जी ने पंजाब, आगरा, लाहौर और कानपुर जैसे शहरों में जाकर वहां के लोगों को अपनी एसोसिएशन के साथ जोड़ने का कार्य किया था. वहीं काफी कम समय के अंदर ही राजगुरु जी, भगत सिंह जी के काफी अच्छे मित्र भी बन गए थे और इन दोनों वीरों ने साथ मिलकर ब्रिटिश इंडिया के खिलाफ कई आंदोलन किए थे.
लाला लाजपत राय की हत्या का लिया बदला
राजगुरु जी ने साल 1928 में भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपत राय की हत्या का बदला अंग्रेजों से लिया था. दरअसल इसी साल ब्रिटिश इंडिया ने भारत में राजनीतिक सुधारों के मुद्दे पर गौर करने के लिए ‘साइमन कमीशन’ नियुक्त किया था. लेकिन इस आयोग में एक भी भारतीय नेता को शामिल नहीं किया गया था. जिसके चलते नाराज भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने इस आयोग का बहिष्कार किया था और इसी बहिष्कार के दौरान हुई एक लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय जी का देहांत हो गया था. लाला लाजपत राय की मृत्यु होने के बाद राजगुरु जी, भगत सिंह जी और चंद्रशेखर आजाद जी ने एक साथ मिलकर इस हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया था. अपने संकल्प में इन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने का प्लान बनाया था. क्योंकि जेम्स ए स्कॉट के आदेश पर ही लाठी चार्ज की गई था, जिसमें राय जी की मृत्यु हुई थी.
जेम्स ए स्कॉट की जगह सॉन्डर्स को मारा
राजगुरु जी और उनके साथियों द्वारा बनाई गई रणनीति के मुताबिक क्रांतिकारी जय गोपाल को स्कॉट की पहचान करनी थी. क्योंकि राजगुरु जी और उनके साथी स्कॉट को नहीं पहचानते थे. अपने इस प्लान को अंजाम दने के लिए इन्होंने 17 दिसंबर, 1928 का दिन चुना था. 17 दिसंबर के दिन राजगुरु जी और भगत सिंह जी लाहौर के जिला पुलिस मुख्यालय के बाहर स्कॉट का इंतजार कर रहे थे. इसी बीच जय गोपाल ने एक पुलिस अफसर की और इशारा करते हुए इन्हें बताया की वो स्टॉक हैं और इशारा मिलते ही इन्होंने गोलियां चलाकर उस व्यक्ति की हत्या कर दी. लेकिन जिस व्यक्ति की और जय गोपाल ने इशारा किया था, वो स्टॉक नहीं थे बल्कि जॉन पी सॉन्डर्स थे जो एक सहायक आयुक्त (assistant Commissioner) थे. जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या होने के बाद अंग्रेजों ने पूरे भारत में उनके कातिलों को पकड़ने के लिए कवायद शुरू कर दी थी. कहा जाता है कि अंग्रेजों को पता था कि पी सॉन्डर्स की हत्या के पीछे भगत सिंह थे और अपने इसी शक के आधार पर पुलिस ने भगत सिंह को पकड़ने का कार्य शुरू कर दिया था.
अंग्रेजों से बचने के लिए भगत सिंह जी और राजगुरु जी ने लाहौर को छोड़ने का फैसला किया और इस शहर से निकलने के लिए एक रणनीति तैयार की. अपनी रणनीति को सफल बनाने के लिए इन दोनों ने दुर्गा देवी वोहरा की मदद ली थी. दुर्गा जी क्रांतिकारी भगवती चरन की पत्नी थी. इनकी रणनीति के अनुसार इन्हें लाहौर से हावड़ा तक जानेवाली ट्रेन को पकड़ना था.
अंग्रेजों द्वारा भगत सिंह को पहचाना ना जाए इसलिए इन्होंने अपना वेश पूरी तरह से बदला लिया था. अपने वेश को बदलने के बाद सिंह वोहरा और उनके बच्चे के साथ ट्रेन में सवार हो गए थे. भगत जी के अलावा इस ट्रेन में राजगुरु जी भी अपना वेश बदल कर सवार हुए थे. जब ये ट्रेन लखनऊ पहुंची तो राजगुरु जी यहां पर उतर गए और बनारस के लिए रवाना हो गए. वहीं भगत सिंह जी ने वोहरा और उनके बच्चे के साथ हावड़ा की ओर रूख किया था.
पुणे से पकड़े गए थे राजगुरु जी
कुछ समय तक उत्तर प्रदेश में रहने के बाद राजगुरु जी नागपुर चले गए थे. यहां पर इन्होंने आरएसएस के एक कार्यकर्ता के घर में आश्रय लिया था. 30 सितम्बर, 1929 में जब ये नागपुर से पुणे जा रहे थे, तब इन्हें अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया था. इसके अलावा अंग्रेजों ने भगत जी, और सुखदेव थापर जी को भी गिरफ्तार कर लिया था.
राजगुरु की मौत (Death of Rajguru)
सॉन्डर्स की हत्या में दोषी पाते हुए राजगुरु जी को साल 1931 में फांसी दी गई थी. इनके साथ सुखदेव जी और भगत सिंह जी को भी ये सजा दी गई थी. इस तरह से हमारे देश ने 23 मार्च के दिन अपने देश के तीन क्रांतिकारियों को खो दिया था. जिस समय राजगुरु जी को अंग्रेजों द्वारा सूली पर चढ़ाया गया था उस समय इनकी आयु केवल 22 वर्ष की थी.
राजगुरु जी से जुड़ी अन्य बातें (Facts and Information about Shivaram Rajguru in hindi)
- राजगुरु जी और उनके साथियों को जब मौत की सजा दी गई थी तो इस सजा का विरोध हर किसी ने किया था. लोगों के इस विरोध से डर कर अंग्रेजों ने इन तीनों का अंतिम संस्कार चुपके से कर दिया था और इन तीनों वीरों की अस्थियों को सतलुज नदी में बहा दिया था.
- सॉन्डर्स की हत्याकांड को राजगुरु और भगत सिंह द्वारा अंजाम दिया गया था और सॉन्डर्स को मारने के लिए सबसे पहले गोली राजगुरु जी की बंदूक से निकली थी.
- राजगुरु जी छत्रपति शिवाजी महाराज से काफी प्रभावित थे और उनके ही नक्शे कदम पर चला करते थे. गौरतलब है कि छत्रपति शिवाजी महाराज जी भारत के एक महान योद्धा थे.
- राजगुरु जी को कुश्ती करना और शारीरिक अभ्यास करना बेहद ही पसंद था और कहा जाता है कि वो कई कुश्तियों की प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया करते थे और कुश्ती के कई तरह के संगठनों से भी जुड़े हुए थे.
- राजगुरु जी कभी भी किसी कार्य को करने से डरते नहीं थे. कहा जाता है कि नई दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल पर बम फेंकने का कार्य पहले राजगुरु जी को दी दिया गया था और इन्होंने बिना किसी डर के ये कार्य करने के लिए हां कर दी थी. हालांकि बाद में कुछ कारणों के चलते इस कार्य के लिए भगत सिंह के साथ इनकी जगह पर बटुकेश्वर दत्त को भेजा गया था. इन्हों 8 अप्रैल, 1929 को इस कार्य को अंजाम दिया था.
- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े राजगुरु जी को इनकी पार्टी के लोगों द्वारा राजगुरु की जगह रघुनाथ नाम से बुलाया जाता था.
राजगुरु को मिले सम्मान (Awards and Achievements)
- राजगुरु जी द्वारा हमारे देश के लिए दिए गए कई बलिदानों को याद रखते हुए, इनके गांव का नाम बदलकर इनके नाम पर रख दिया गया था. इनके गांव खेद को अब ‘राजगुरुणगर’ नाम के गांव से जाना जाता है.
- राजगुरु जी के सम्मान में साल 1953 में, हरियाणा राज्य के हिसार शहर की एक मार्केट का नाम ‘अजिगुरु मार्केट’ रख दिया गया था. इस वक्त ये मार्केट इस शहर की सबसे प्रसिद्ध मार्केट हैं.
राजगुरु जी के जीवन पर आधारित किताब (Rajguru books)
साल 2008 में राजगुरु जी के जीवन के ऊपर लिखी गई एक किताब को लॉन्च किया गया था. इस किताब को 24 अगस्त यानी इनकी 100 वीं वर्षगांठ के मौके पर लॉन्च किया गया था. लेखक अजय वर्मा द्वारा लिखी गई “राजगुरु इन्विंसिबल रिवोल्यूशनरी” नामक इस किताब में राजगुरु जी के जीवन और इनके द्वारा दिए गए योगदानों के बारे में जानकारी दी गई है.
इनके बलिदानों को शायद ही कभी भुला जा सकता है और हमारे देश की जनता के लिए ये एक हीरों से कम नहीं हैं. इनकी कुर्बानी के बलबूते ही आज हमको आजादी मिल सकी है.
FAQ
Ans- – शिवराम राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 में हुआ था।
Ans- – शिवराम राजगुरू की मृत्यृ 23 मार्च 1931 को हुई।
Ans- उनका एक ही नारा था इंकलाब जिंदाबाद।
Ans- – शिवराम राजगुरू के दो भाई और दो बहने थी।
Ans- – शिवराम राजगुरू की पत्नी का नाम शायद ही किसी को पता है।
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