जानिये रावण के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

रावण कौन था क्या है उसके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य [रावण का इतिहास, पिता, जाति, सरनेम, उम्र, पत्नी, भाई, पुत्र, शिक्षा, कूल, गोत्र] रावण वध Ravan jivni Story History Hindi

हिंदू धर्म से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को भगवान राम और उनसे जुड़े सभी किस्से जैसे राम रावण युद्ध याद ही होगा। रावण का नाम तो आपने सुना ही होगा क्योंकि प्रत्येक वर्ष दशहरे के दिन जगह-जगह पर रावण के पुतले जो जलाए जाते हैं तो उसके बारे में तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं कि वह एक दुराचारी व्यक्ति था इसलिए भगवान राम ने उसका अंत किया। परंतु रावण के जीवन की कुछ ऐसी अनकही और अनसुनी बातें हैं जिनके बारे में शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा जो आज हम आप सभी को अपनी इस पोस्ट के जरिए विस्तारपूर्वक बताने वाले हैं तो चलिए आरंभ करते हैं रावण के जीवन की छोटी सी मानसिक यात्रा को।

Ravan In Hindi

रावण का जीवन परिचय

परिचय बिंदुपरिचय
पूरा नाम (Full Name)रावण
अन्य नाम (Other Name)दशानन, दसकन्धर
निक नाम (Nick Name)रावण
जाति (Caste)ब्राह्मण
गोत्रदेवगन
जन्म (Birth)त्रेता युग में
आयु (Age)लाख वर्ष (अनगिनत)
जन्म स्थान (Birth Place)नोएडा से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित बिसरख गांव
रावण का ससुरालमंदसौर, जोधपुर
गृहनगर (Hometown)श्रीलंका
  
खाने में पसंद (Food Habit)तामसी भोजन ( मांसाहारी भोजन)
पसंद (Hobbies)वीणा बजाना, शास्त्रों का ज्ञान लेना, नृत्य देखना और संगीत गाना
शैक्षिक योग्यता (Educational Qualification)चारों वेदों का ज्ञाता
वैवाहिक स्थिति (Marital Status)मैरिड
पिता का नाम (Father’s name)विश्वश्रवा
प्रेरणा स्त्रोत (Role Model)भगवान शिव
बालों का रंग (Hair Color)सुनहरा
आँखों का रंग (Eye Color)ब्लैक

कौन था रावण?

रावण कौन था यह एक बहुत आसान सवाल है जिसका जवाब आप सब के पास होगा कि रावण लंका का राजा था। परंतु रावण कौन था इसका जवाब केवल एक वाक्य में नहीं दिया जा सकता क्योंकि रावण ज्ञान का एक अथाह भंडार था और उसके समान विद्वान पंडित इस पूरे विश्व में ना पहले कभी हुआ था और ना ही आगे कभी होगा। अब आप सोच रहे होंगे कि यदि वह पंडित था तो भगवान राम ने उसका वध क्यों किया? इसके बारे में हम आगे चर्चा और क्या करेंगे पहले रावण का पूरा परिचय जान लेते हैं।

दरअसल रावण एक बहुत बड़ा विद्वान राजनीतिज्ञ सेनापति, वास्तुकला का ज्ञाता और साथ ही बहुत सारे ज्ञान विज्ञान से जुड़े ग्रंथों का ज्ञाता रावण था। अपनी सिद्धि और तपोबल के जरिए उसने अपने जीवन में बहुत सारी मायावी शक्तियां अर्जित कर ली थी जिसकी वजह से उसे इंद्रजाल, तंत्र मंत्र, सम्मोहन और न जाने कितने प्रकार के जादू करने के लिए वह विख्यात था। यदि संक्षिप्त रूप में कहें तो रावण एक ऐसा व्यक्ति था जो भगवान की तरह ही 64 कलाओं में निपुण था।

पिता का नाम (Father’s Name)विश्वश्रवा
माता का नाम (Mother’s Name)कैकेसी
पत्नी का नाम (Wife’s Name)मंदोदरी, दमयमालिनी
बच्चे (Children)7 पुत्र- मेघनाथ, अक्षय कुमार, अतिकाय, त्रिशरा, नरान्तक, परहस्त्र और देवांतक
भाई/ बहन (Brother/Sister)6 भाई- कुबेर, विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण, खर और दूषण, 2 बहने- शूर्पणखा, कुंभीनी

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रावण का जन्म एवं परिवार

यदि बात की जाए रावण के परिवार की तो रावण भगवान ब्रह्मा जी के वंशजों में से ही एक है। ब्रह्मा जी के कई सारे पुत्र थे जिनमें से उनके दसवे पुत्र का नाम अनाम प्रजापति पुलत्स्य था। रावण के पिता ऋषि विश्रवा एक बहुत महान ज्ञानी पंडित है जो सदैव धर्म के रास्ते पर ही चलते थे ब्रह्मा के वंशज होने के कारण रावण भगवान ब्रह्मा जी के पड़पोते थे। मुनि विश्रवा ने अपने जीवन काल में दो विवाह किये थे उनकी पहली पत्नी वरवणिनी और दूसरी पत्नी केकेसी थी। उनकी पहली पत्नी वरवणिनी एक पुत्र को जन्म दिया जिसे आज आप कुबेर के नाम से जानते हैं । जी हां वही जो दुनिया के सभी खजानों के राजा माने जाते हैं। और उनकी दूसरी पत्नी कैकसी ने अशुभ समय पर गर्भ धारण करके कुंभकरण, श्रुपनखा और रावण जैसे क्रूर राक्षसों को जन्म दिया। परंतु एक सकारात्मक काम भी उनके साथ हुआ जब उन्होंने विभीषण को जन्म दिया ।  विभीषण राक्षस कुल में पैदा होने के बाद भी बहुत ज्यादा सहज स्वभाव का व्यक्ति था।

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रावण का विवाह

वैसे तो रावण के महल में रानीवास में हजारों रानियां रहती थी परंतु उनका सबसे पहला विवाह  दिति के पुत्र मय जिनकी कन्या का नाम मंदोदरी था। मंदोदरी का प्राकट्य हेमा नामक एक अप्सरा के गर्भ से हुआ था। पौराणिक इतिहास में  यह भी बताया जाता है कि मंदोदरी राजस्थान के जोधपुर के पास के ही एक क्षेत्र जिसका नाम मंडोर है वहां की रहने वाली थी। उनका विवाह रावण के साथ हुआ जिसके बाद उन्होंने कई सारे पुत्रों को जन्म दिया जिनमें से मुख्य इंद्रजीत, मदोहर, प्रहस्त, विरुपाक्ष और भीकम वीर थे। इसके अलावा रावण की बहन शूर्पणखा का विवाह भीम रावण ने कराया था शूर्पणखा के पति का नाम दानव राज विधु था जो दानव राज कालका के पुत्र थे।

क्या रावण के 10 सीर  थे?

वैसे तो आप सब यही जानते हैं कि रावण जिसे दशानन भी कहा जाता है उसके 10 सिर हुआ करते थे। परंतु तकनीक लगाकर देखा जाए तो किसी भी मनुष्य के 10 सिर होना संभव तो नहीं है ऐसे में रावण भले ही ज्ञानी हो लेकिन 10 सिर होना उसके भी वश में नहीं था। हमारे शास्त्रों में बताया जाता है कि रावण के 10 सिर थे नहीं बल्कि भ्रमित रूप से दिखाई देते थे। अब आप सोचेंगे कि ऐसा कैसे तो चलिए बता दें कि दरअसल रावण अपने गले में एक नौ रत्नों से बनी सुंदर माला पहनता था जिसमें नवरत्न के बड़े-बड़े मोती लगे हुए थे उनकी चमक इतनी ज्यादा तीव्र थी कि प्रत्येक हीरे में रावण का एक अलग सिर नजर आता था। जिसमें से देखने पर एक रावण का प्रत्यक्ष सिर्फ और नौ अप्रत्यक्ष सिर भी साथ में नजर आते थे। जिसके चलते रावण खुद को दशानन कहलवाना बेहद पसंद करता था और उसके 10 सिरो का भय तीनों लोगों में छाया हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि रावण एक मायावी व्यक्ति था जिसके चलते वह अपने एक सिर के कट जाने पर दूसरा स्वतह ही प्रकट कर लिया करता था।

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रावण का जीवन नाभि में कैसे आया?

आपको यह वाक्य तो पता होगा कि किस प्रकार भगवान राम ने रावण का वध किया जी हां जब युद्ध के दौरान भगवान राम रावण को नहीं मार पा रहे थे और लगातार रावण युद्ध के मैदान में अपनी माया दिखाता जा रहा था तब भगवान राम को चिंतित देख विभीषण आगे आए और उन्होंने कहा कि भगवान रावण के प्राण उसके नाभि में एक अमृत कलश में रखे हुए हैं यदि आप उसकी नाभि पर वार करेंगे तभी रावण मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। पुराना में ऐसा कहा जाता है कि रावण अमर होना चाहता था जिसके चलते उसने भगवान ब्रह्मा की वर्षों तक घोर तपस्या की जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें वरदान देते हुए उनका जीवन कलश उनकी नाभि में स्थित कर दिया। इससे रावण अपनी इच्छा अनुसार अजर अमर तो हो गया परंतु ऐसा नहीं हो पाया कि उसकी मृत्यु हुई ना हो।

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त्रिलोक विजेता रावण

आपने तो सुना ही होगा कि रामायण के मंचन के दौरान रावण को त्रिलोक विजेता कहकर संबोधित किया जाता है आखिरकार ऐसा क्यों चलिए जानते हैं। दरअसल रावण ने अपनी नीतियों के बलबूते पर अपने आसपास के मुख्य राज्य जैसे अंग द्वीप, मलय द्वीप, वराहद्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यशदीप और आंध्रालय इन सभी राज्यों पर धावा बोलकर अपने अधीन कर लिया था। उसके बाद नंबर आया लंका का उस समय लंका पर कुबेर का राज्य स्थापित था कुबेर जो रावण का सौतेला भाई भी था उसे लंका से पराजित करके रावण ने उसे वहां से भगा दिया और स्वयं लंका पर अपना आधिपत्य जमा लिया।

वहां से भागने के बाद कुबेर कैलाश पर्वत के ही आसपास के क्षेत्र जिसे आज तिब्बत के नाम से जाना जाता है वहां पर रहने लगा। उस समय कुबेर के पास एक पुष्पक विमान भी था जो मन की गति से चलता था और हवा में उड़ कर कहीं पर भी ले जाया जा सकता था जिसे रावण ने कुबेर से छीन लिया था। उसके बाद रावण ने इंद्रलोक पर भी अपना आधिपत्य जमाने के लिए धावा बोला जिसके बाद रावण के पुत्र मेघनाथ ने इंद्र को हराकर इंद्रलोक भी अपने नाम कर लिया था जिसके बाद से मेघनाथ को इंद्रजीत के नाम से भी संबोधित किया जाया करता था। तब से ही रावण को त्रिलोक विजेता के नाम से कहकर संबोधित किया जाता था।

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पुष्पक विमान की विशेषताएं

  • पुष्पक निर्माण करने का पूरा कार्यक्रम ऋषि आगे द्वारा किया गया था और इसके निर्माण में विश्वकर्मा ने भी अपना सहयोग दिया था। दोनों के सहयोग से ही उस समय प्राचीन काल के दौरान ऐसे अकल्पनीय पुष्पक विमान का आविष्कार हुआ था।
  • पुष्पक विमान एक विभिन्न प्रकार का विमान था जिसे अपनी इच्छा के अनुसार छोटा वह बड़ा किया जा सकता था।
  • एक समय पर काफी सारे लोगों को पुष्पक विमान में चढ़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता था।
  • श्री रामायण रिसर्च कमेटी के सर्च विभाग द्वारा रावण के उस पुष्पक विमान के चार बड़े हवाई अड्डे पाए गए थे जिनका नाम सानवाड़ा गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा, और वारियापोला था। इन सभी हवाई अड्डों में से एक हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय ध्वस्त कर दिया था जिसका नाम उसानगोड़ा हवाई अड्डा था।
  • मन की गति से उड़ने वाले पुष्पक विमान को चंद मिनटों में ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता था।

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रावण ने की इतनी महान रचनाएं

 रावण ने अपने जीवन काल के दौरान बहुत सारी महान रचनाएं की जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं.

  • शिव तांडव स्त्रोत:- आपने कई बार शिव तांडव स्त्रोत को पढ़ा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी रचना करने वाला और कोई नहीं बल्कि रावण ही था। भगवान शिव की तपस्या के दौरान जब रावण ने अपनी शक्ति प्रदर्शन के दौरान कैलाश पर्वत अपने हाथों पर उठा लिया था और वह भगवान शिव को कैलाश पर्वत के साथ ही लंका ले जाना चाहता था जब भगवान ने अपने एक पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को हल्का सा दबाया तो रावण का हाथ पर्वत के नीचे ही दब गया तब भगवान शंकर से क्षमा मांगते हुए वह भगवान शंकर की स्तुति करने लगा और वही स्थिति बाद में चलकर शिव तांडव स्त्रोत के नाम से प्रख्यात हो गई।
  • अरुण संहिता:- अरुण संहिता को अधिकतर लाल किताब के नाम से संबोधित किया जाता है इस पुस्तक का अनुवाद कई भाषाओं में किया जा चुका है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह किताब सूर्य के सारथी अरुण द्वारा लंका पति रावण को प्रदान की गई थी जिसमें जन्मकुंडली, हस्तरेखा और सामुद्रिक शास्त्र से जुड़े कई सारे तथ्य सम्मिलित है।
  • रावण संहिता:- रावण संहिता रावण द्वारा ही लिखित एक ऐसी पुस्तक है जिसमें रावण के जीवन काल से जुड़ी प्रत्येक बातें लिखी गई हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह पुस्तक रावण द्वारा ही लिखी गई है और इसमें ज्योतिष से जुड़ी सभी जानकारियों का संपूर्ण भंडार निहित है।

इन सबके अलावा रावण पर भी कुछ ग्रंथों की रचना हुई है जिसमें से कुछ मुख्य वाल्मीकि रामायण जिसमें रावण का संपूर्ण विवरण मिलता है साथ ही आधुनिक काल में आचार्य चतुरसेन ने भी स्वयं रक्षा नामक उपन्यास लिखा जिसमें रावण के बारे में विस्तारपूर्वक व्याख्यान बताए गए हैं। इन सबके अतिरिक्त एक उपन्यास पंडित मदनमोहन शर्मा शाही द्वारा लिखा गया जिसे 3 विभागों में विभाजित किया गया उसका नाम भी लंकेश्वर रखा गया जिसमें लंकाधिपति रावण के बारे में संपूर्ण जानकारी दी हुई हैं।

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रावण से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • शिवभक्त:- रावण भले ही कितना बड़ा अधर्मी रहा हो परंतु वह आरंभ काल से ही भगवान शिव की भक्ति में लीन रहा करता था और भगवान शिव को ही सबसे बड़ा मानता था।
  • रावण को गीत संगीत से बहुत ज्यादा प्रेम था इसके चलते ही आपने बहुत सारे चित्र में रावण के हाथ में वीणा देखी होगी। रावण वीणा वादन किया करता था और वह इतना अच्छा वीणा बजाया करता था कि स्वर्ग लोक से देवता आकर उसके वीणा वादन को सुना करते थे।
  • अपने पुत्र को अजय और अमर बनाने के लिए रावण ने अपनी शक्ति के बल पर नव ग्रहों को आदेश दिया था कि जब मेरे पुत्रों का जन्म हो तब तुम सभी को 11 वे स्थान पर रहना है। सभी देवताओं ने रावण की बात को मान लिया परंतु शनिदेव ने रावण की बात की अवहेलना करते हुए 12वें स्थान पर जाकर बैठ गए। जिसकी वजह से रावण इतना ज्यादा क्रोधित हो गया था कि रावण ने शनिदेव को बलपूर्वक अपने महल में कई वर्षों तक बंदी बनाकर रखा।
  • उसके जीवन की सबसे रोचक बात तो यह थी कि वह जानता था कि उसका मोक्ष केवल विष्णु भगवान के अवतार के हाथों ही लिखा है। उसे सर्व ज्ञाता भी कहा जाता था जिसके चलते सब कुछ जानते हुए भी उसने भगवान से बैर लिया ताकि वह उसे अपने हाथों से ही मारकर मोक्ष प्रदान कर सकें।
  • एक कथा के अनुसार यह प्रसिद्ध है कि जब एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक रावण हवन यज्ञ करता रहा परंतु भगवान प्रसन्न नहीं हुए तब उसने अपने सिर काटकर भगवान को अर्पण करना चाहा जैसे ही वह एक सिर काटता उसका दूसरा सिर्फ प्रकट हो जाता था। इस तरह उसने नौसेर भगवान को चढ़ाए और दसवां उसके शीर्ष पर विराजमान रहा जिसके बाद से ही उसे दशानन की संज्ञा दी गई।
  • माता सीता लगभग 11 महीने तक रावण के महल में स्थित अशोक वाटिका में रहे परंतु रावण ने उन्हें एक बार भी नहीं छुआ ऐसा इसलिए क्योंकि रावण एक श्राप से श्रापित था जिसमें रावण को यह श्राप दिया गया था कि यदि वह किसी स्त्री को जबरदस्ती से प्राप्त करना चाहेगा तो उसी समय उसके सिर के 10 टुकड़े हो जाएंगे।
  • इतना महान विद्वान और बलवान होने के बावजूद भी रावण किष्किंधा नरेश बाली से हार चुका था। किष्किंधा नरेश बाली ने लगभग 6 महीने तक उसे अपनी कांख में दबाकर अपनी तपस्या में लीन रहे।
  • भारत के दक्षिणी हिस्से में रावण को भगवान के रूप में माना जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि रावण के काल में कोई भी गरीब व्यक्ति गरीब नहीं था क्योंकि सभी के घर सोने से परिपूर्ण रहा करते थे। रावण को सोने से बहुत ज्यादा लगा था जिसके चलते उसने अपने महल और पूरी लंकापुरी सोने की बनवाई हुई थी।

सोने  की लंका जल कर खाक हो गई जानना चाहते हैं लंका दहन की कहानी तो यहाँ पढ़े

ऐसा तो इतिहास ही गवाह है कि कहा जाता है कि एक इंसान में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के गुण होते हैं उसे अपने गुणों का बखान करने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि उसके कर्मों से ही उसके गुणों का बखान हो जाता है। भगवान के अनुसार इंसान को केवल अपने जीवन में प्राप्त कर्मों को करते रहना चाहिए ना ही फल की चिंता करनी चाहिए और ना ही अधर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। अधर्म के मार्ग पर चलने के बाद तो रावण ही अपने प्राण नहीं बचा पाया तो हम तो केवल एक साधारण मनुष्य हैं यदि अधर्म के रास्ते को अपनाकर हमें अपना जीवन नर्क बनाना है तो हम अधर्म का रास्ता ही अपनाएंगे अन्यथा भगवान ने हमारे लिए कई सारे रास्ते बनाए हुए हैं जिन पर चलकर हम सदगति को प्राप्त कर सकते हैं।

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