हिंदी कहानी -मेहनत का फल का महत्व | Mehnat ka phal mahatva story hindi

मेहनत का फल का महत्व  Mehnat ka phal mahatva story essay in hindi

एक नगर में प्रतिष्ठित व्यापारी रहते थे जिन्हें बहुत समय बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी.उसका नाम चंद्रकांत रखा गया. चंद्रकांत घर में सभी का दुलारा था. अतिकठिनाई एवं लंबे समय इंतजार के बाद संतान का सुख मिलने पर, घर के प्रत्येक व्यक्ति के मन में व्यापारी के पुत्र चंद्रकांत के प्रति विशेष लाड़ प्यार था जिसने चंद्रकांत को बहुत बिगाड़ दिया था. घर में किसी भी बात का अभाव नहीं था. चंद्रकांत की मांग से पहले ही उसकी सभी इच्छाये पूरी कर दी जाती थी. शायद इसी के कारण चंद्रकांत को ना सुनने की आदत नहीं थी और ना ही मेहनत के महत्व का आभास था . चंद्रकांत ने जीवन में कभी अभाव नहीं देखा था इसलिए उसका नजरिया जीवन के प्रति बहुत अलग था और वहीं व्यापारी ने कड़ी मेहनत से अपना व्यापार बनाया था.ढलती उम्र के साथ व्यापारी को अपने कारोबार के प्रति चिंता होने लगी थी. व्यापारी को चंद्रकांत के व्यवहार से प्रत्यक्ष था कि उसके पुत्र को मेहनत के फल का महत्व नहीं पता. उसे आभास हो चूका था कि उसके लाड प्यार ने चंद्रकांत को जीवन की वास्तविक्ता और जीवन में मेहनत के महत्व से बहुत दूर कर दिया हैं. गहन चिंतन के बाद व्यापारी ने निश्चय किया कि वो चन्द्रकांत को मेहनत के फल का महत्व, स्वयं सिखायेगा. चाहे उसके लिए उसे कठोर ही क्यूँ न बनना पड़े .

Mehnat ka phal ka mahatva

व्यापारी ने चंद्रकांत को अपने पास बुलाया और बहुत ही तीखे स्वर में उससे बात की. उसने कहा कि तुम्हारा मेरे परिवार में कोई अस्तित्व नही हैं, तुमने मेरे कारोबार में कोई योगदान नहीं दिया और इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी मेहनत से धन कमाओं, तब ही तुम्हे तुम्हारे धन के मुताबिक दो वक्त का खाना दिया जायेगा. यह सुनकर चन्द्रकांत को ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने उसे क्षण भर का गुस्सा समझ लिया लेकिन व्यापारी ने भी ठान रखी थी. उसने घर के सभी सदस्यों को आदेश दिया कि कोई चन्द्रकांत की मदद नहीं करेगा और नाही उसे बिना धन के भोजन दिया जायेगा.

चन्द्रकांत से सभी बहुत प्यार करते थे जिसका उसने बहुत फायदा उठाया. वो रोज किसी न किसी के पास जाकर धन मांग लाता और अपने पिता को दे देता. और व्यापारी उसे उन पैसो को कुँए में फेकने का बोलता जिसे चंद्रकांत बिना किसी अड़चन के फेक आता और उसे रोज भोजन मिल जाता. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा लेकिन अब घर के लोगो को रोज-रोज धन देना भारी पड़ने लगा. सभी उससे अपनी कन्नी काटने लगे, जिस कारण चंद्रकांत को मिलने वाला धन कम होने लगा और उस धन के हिसाब से उसका भोजन भी कम होने लगा.

एक दिन चन्द्रकांत को किसी ने धन नहीं दिया और उसे अपनी भूख को शांत करने के लिए गाँव में जाकर कार्य करना पड़ा. उस दिन वो बहुत देर से थका हारा व्यापारी के पास पहुँचा और धन देकर भोजन माँगा. रोज के अनुसार व्यापारी ने उसे वो धन कुँए में फेंकने का आदेश दिया जिसे इस बार चंद्रकांत सहजता से स्वीकार नहीं कर पाया और उसने पलट कर जवाब दिया – पिताजी मैं इतनी मेहनत करके, पसीना बहाकर इस धन को लाया और आपने मुझे एक क्षण में इसे कुँए में फेंकने कह दिया. यह सुनकर व्यापारी समझ गया कि आज चंद्रकांत को मेहनत के फल का महत्व समझ आ गया हैं. व्यापारी भलीभांति जानता था कि उसके परिवार वाले चन्द्रकांत की मदद कर रहे हैं, तब ही चंद्रकांत इतनी आसानी से धन कुँए में डाल आता था लेकिन उसे पता था, एक न एक दिन सभी परिवारजन चन्द्रकांत से कन्नी काट लेंगे,उस दिन चन्द्रकांत के पास कोई विकल्प शेष नहीं होगा. व्यापारी ने चन्द्रकांत को गले लगा लिया और अपना सारा कारोबार उसे सोंप दिया.

शिक्षा :

आज के समय में उच्च वर्ग के परिवारों की संतानों को मेहनत के फल का महत्व पता नहीं होता और ऐसे में यह दायित्व उनके माता पिता का होता हैं कि वो अपने बच्चो को जीवन की वास्तविक्ता से अवगत कराये. लक्ष्मी उसी घर में आती हैं जहाँ उसका सम्मान होता हैं .

मेहनत ही एक ऐसा हथियार हैं जो मनुष्य को किसी भी परिस्थिती से बाहर ला सकता हैं. व्यापारी के पास इतना धन तो था कि चंद्रकांत और उसकी आने वाली पीढ़ी बिना किसी मेहनत के जीवन आसानी से निकाल लेते लेकिन अगर आज व्यापारी अपने पुत्र को मेहनत का महत्व नहीं बताता तो एक न एक दिन व्यापारी की आने वाली पीढ़ी व्यापारी को कोसती.

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