कर्पूरी ठाकुर कौन थे, जीवनी, ताज़ा खबर, पत्नी का नाम, विचार, कविता, भाषण, मुख्यमंत्री कब बने, जयंती, फ़ॉर्मूला, निधन कैसे हुआ (Karpoori Thakur Biography, Latest News in Hindi) (Son, Jayanti, History, Contribution, Death)
दो बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद को संभाल चुके लोकनायक कर्पूरी ठाकुर को अब देश का सबसे बड़ा सम्मान मिलने वाला है। दरअसल भारतीय सरकार के द्वारा कर्पूरी ठाकुर को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न को देने का फैसला कर लिया गया है। यह पुरस्कार कर्पूरी ठाकुर को उनकी मृत्यु के पश्चात कई सालों के बाद दिया जा रहा है। दरअसल हर साल 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती पड़ती है और इस बार 2024 में उनकी 100वीं जयंती 24 जनवरी को मनाई जाएगी और 26 जनवरी को केंद्र सरकार उन्हें भारत रत्न पुरस्कार देंगी। चलिए इस पेज पर कर्पूरी ठाकुर की बायोग्राफी अथवा कर्पूरी ठाकुर की जीवनी हिंदी में पढ़ते हैं और उनकी अधिक जानकारी हासिल करते हैं।
Table of Contents
Karpoori Thakur Biography
पूरा नाम | कर्पूरी ठाकुर |
जन्मतिथि | 24 जनवरी 1924 |
जन्म स्थान | पितौंझिया, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश इंडिया |
मृत्यु | 17 फ़रवरी 1988 (उम्र 64) |
मृत्यु स्थान | पटना, बिहार |
व्यवसाय | स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ |
पुरस्कार/सम्मान | भारत रत्न (2024) |
पिता | गोकुल ठाकुर |
माता | राजदुलारी देवी |
पत्नी | फुल मनी |
संतान | रामनाथ ठाकुर, मनोरमा शर्मा, पुष्पा कुमारी देवी, सुशीला देवी |
धर्म | हिंदू |
जाति | नाई |
नागरिकता | भारतीय |
गृह नगर | बिहार |
कर्पूरी ठाकुर कौन थे
यह एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता है, जिन्होंने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद को संभाला हुआ है। पहली बार कर्पूरी ठाकुर 1970 में दिसंबर में बिहार के मुख्यमंत्री बने और यह 1971 के जून महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 1977 में जून के महीने में एक बार फिर से यह बिहार के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर यह 1979 तक रहे। कर्पूरी ठाकुर को देशभर में जननायक के तौर पर भी जाना जाता है, जिसका मतलब होता है लोगों का हीरो!
कर्पूरी ठाकुर जी के बारे में ताज़ा खबर (Latest News)
भारतीय सरकार के द्वारा साल 2024 में 26 जनवरी के दिन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का अवार्ड दिया जाना है। भारत रत्न हमारे देश का सर्वोच्च पुरस्कार होता है। भारत रत्न देने की घोषणा भारत की वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा साल 2024 में 23 जनवरी के दिन की गई है।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म एवं शिक्षा
बिहार के लाल कर्पूरी ठाकुर का जन्म साल 1924 में 24 जनवरी के दिन बिहार राज्य के पितौंझिया नाम के गांव में हुआ था, तब हमारा देश अंग्रेजों के अधिकार में था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई बिहार के ही एक प्राथमिक विद्यालय से की थी और मैट्रिक की पढ़ाई करने के लिए इन्होंने पटना विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया था। यहां से 1940 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा को सेकंड डिवीजन में पास कर लिया था और इसके बाद 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यह शामिल हो गए थे।
कर्पूरी ठाकुर का परिवार
कर्पूरी ठाकुर का जन्म पिता गोकुल ठाकुर तथा माता श्रीमती राज दुलारी देवी के यहां पर हुआ था। इनके पिताजी हिंदू धर्म की नई जाति से संबंध रखते थे और एक सीमांत किसान थे, जो खेती के साथ ही साथ अपना पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे। नाई लोगों के बाल काटने का काम करता है जिसे अंग्रेजी भाषा में बार्बर कहा जाता है। इनकी पत्नी का नाम फूलमानी देवी था।
कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक करियर
भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने की वजह से अंग्रेजों के द्वारा इन्हें पकड़ लिया गया और 26 महीने तक इन्हें भागलपुर के कैंप जेल में रखा गया, जहां से 1945 में यह आजाद हुए। वहीं साल 1948 में कर्पूरी ठाकुर को आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बनाया गया। वही साल 1970 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए। इसके अलावा यह 1973 से लेकर के 1977 तक लोकनायक जयप्रकाश के छात्र आंदोलन से भी लगातार जुड़े रहे और 1977 में एक बार जब फिर से बिहार में मुख्यमंत्री के पद का चुनाव हुआ तो इन्होंने बिहार के समस्तीपुर से इलेक्शन लड़ा और यहां से जीत कर यह सांसद बन गए और एक बार फिर से साल 1977 में 24 जनवरी के दिन इन्हें दूसरी बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इसके बाद जब साल 1980 में मध्यावधि इलेक्शन का आयोजन इलेक्शन कमीशन के द्वारा किया गया तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरा और उसके नेता कर्पूरी ठाकुर ही बने रहे। कर्पूरी ठाकुर के मन में हमेशा से ही पिछड़ों और दलितों के लिए काम करने का ख्याल आता था। इसलिए मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने पिछड़े समुदाय अर्थात ओबीसी समुदाय को तकरीबन 12% का आरक्षण मुंगेरीलाल आयोग के अंतर्गत दिया। यह आरक्षण साल 1978 में दिया गया था जिसमें तकरीबन 79 जातियां शामिल थीं जिनमें से पिछड़े वर्ग के 12% और अति पिछड़ा वर्ग के 8% लोगों को फायदा मिला।
कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक गुरु
कर्पूरी ठाकुर के द्वारा लोकनायक जयप्रकाश नारायण और समाजवादी चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को अपना राजनीतिक गुरु माना जाता था। इसके अलावा रामसेवक यादव जैसे लोग इनके पक्के मित्र थे। जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को गवर्नमेंट नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था 1977 में की गई थी और सत्ता पाने के लिए टोटल 4 कार्यक्रम बनाए गए थे, जो निम्न अनुसार है।
1. पिछड़ा वर्ग का ध्रुवीकरण
2. हिंदी का प्रचार प्रसार
3. समाजवादी विचारधारा
4. कृषि का सही लाभ किसानों तक पहुंचाना।
कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न पुरस्कार
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का पुरस्कार साल 2024 में 26 जनवरी अर्थात गणतंत्र दिवस के मौके पर दिया गया। कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे व्यक्ति थे जो हमेशा पिछड़े वर्ग के हितों की वकालत करने का काम करते थे। भारत रत्न का पुरस्कार पाने वाले कर्पूरी ठाकुर बिहार के तीसरे व्यक्ति होंगे। इसके पहले बिहार में जन्मे और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को यह पुरस्कार दिया जा चुका है, साथ ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण को भी भारत रत्न से नवाजा जा चुका है। हालांकि बिस्मिल्लाह खा को भी भारत रत्न से नवाजा चुका है, परंतु उनकी कर्मभूमि उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर रहा था और वहीं पर आज भी उनका परिवार निवास करता है।
कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी
दो बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के साथ ही साथ एक बार उप मुख्यमंत्री बनने के बावजूद भी कर्पूरी ठाकुर के पास अपनी कोई भी गाड़ी नहीं थी। वह हमेशा रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उन्हें सादगी काफी ज्यादा पसंद थी और वह देश का पैसा अपने निजी इस्तेमाल के लिए खराब नहीं करना चाहते थे। हालांकि वह चाहे तो गाड़ी ले सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु होने के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव पहुंचे थे, जहां पर उनका पुश्तैनी झोपड़ी का घर देखकर वह रो पड़े थे। स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर बड़े पदों पर रहे, परंतु इसके बावजूद उन्होंने अपने लिए कहीं पर भी मकान का निर्माण नहीं कराया। 1970 के आसपास में पटना में विधायको और पूर्व विधायकों के लिए आवास के लिए गवर्नमेंट के द्वारा बहुत ही कम कीमत पर जमीन दी जा रही थी तथा कर्पूरी ठाकुर के विधायक दल के कई नेताओं ने भी इनसे जमीन लेने के लिए कहा परंतु इन्होंने जमीन लेने के लिए साफ मना कर दिया।
सिर्फ एक चुनाव हारे
लोकनायक कर्पूरी ठाकुर अपनी संपूर्ण जिंदगी में सिर्फ एक ही बार इलेक्शन में हारे थे। यह इलेक्शन 1984 में लोकसभा का इलेक्शन था। हालांकि इन्होंने जिंदगी में सभी विधानसभा इलेक्शन में जीत दर्ज करने में सफलता प्राप्त की। इंदिरा गांधी की मृत्यु हो जाने के पश्चात 1984 में कर्पूरी ठाकुर अपनी इच्छा के विपरीत समस्तीपुर लोकसभा सीट से लोक दल प्रत्याशी के तौर पर मैदान में अपनी किस्मत आजमाने के लिए उतरे थे। इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से लोगों का कांग्रेस पार्टी से काफी ज्यादा मन मेल चल रहा था जिसकी वजह से कर्पूरी ठाकुर को इस चुनाव में हार का सामना देखना पड़ा।
फटा कुर्ता पहन कर पहुंचे समारोह में
कर्पूरी ठाकुर की सादगी यह थी कि, जब साल 1977 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा अपना जन्मदिन मनाया जा रहा था और बहुत से लोगों को इनविटेशन दिया गया था, तो तब के समय में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे, परंतु समारोह में शामिल होने के लिए कर्पूरी ठाकुर ने एक फटा हुआ कुर्ता पहना और समारोह में पहुंचे। वहां पर चंद्रशेखर समेत कई नेताओं ने यह देखा तो उन्होंने अन्य नेताओं से मुख्यमंत्री के कुर्ते के लिए चंदा इकट्ठा किया और चंदा कर्पूरी ठाकुर को दिया, परंतु उन्होंने चंदे के पैसे से कुर्ता नहीं खरीदा बल्कि इसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।
कर्पूरी ठाकुर का निधन
कर्पूरी ठाकुर के द्वारा गवर्नमेंट बनाने के लिए लचीला रुख भी अपना लिया जाता था। वह किसी भी पॉलीटिकल पार्टी से गठबंधन कर लेते थे और सरकार बना लेते थे और अगर उनके मन के अनुसार काम नहीं होता था, तो वह गठबंधन तोड़कर अलग भी हो जाते थे। यही वजह है कि उनके कई दोस्त भी बने और कई दुश्मन भी बने। इनकी मृत्यु 64 साल की उम्र में साल 1988 में 17 फरवरी के दिन बिहार के पटना राज्य में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।
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FAQ
Ans : नाई
Ans : 24 जनवरी 1924, पितौंझिया, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश इंडिया
Ans : फूलमनी देवी
Ans : 17 फ़रवरी 1988 (उम्र 64)
Ans : 1940
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