महाभारत कंस वध कहानी | Mahabharat Kans vadh story in hindi

महाभारत कंस वध कहानी | Mahabharat Kans vadh story in hindi

प्राचीन  धर्म  ग्रंथों  और  वेद – पुरानों  के  अनुसार  भगवान  श्री  कृष्ण  की  अनेक  लीलाएं  प्रसिद्ध  हैं,  जिनमे  सबसे  महत्वपूर्ण  और  प्रसिद्ध  कथा  हैं – कंस  के  वध  की.  एक  व्यंगकार  के  अनुसार  मामा  दो  ही  प्रकार  के  होते  हैं -: एक  शकुनि  मामा,  जो  महाभारत  काल  में  कौरवो  और  पांडवों  के  मामा  थे  और  दूसरे  कंस  मामा,  जो  भगवान  कृष्ण  और   बलरामजी  के  मामा  थे.  कंस  के  वध  के  बारे   में  तो  जानकारी  व्यापक  रूप  से  फैली  हुई  हैं,  परन्तु  उसका  जन्म   कहाँ  और  किन  परिस्थितियों  में  हुआ,  इसका  ज़िक्र  कम  ही  होता  हैं.  अतः  कंस  के  जन्म,  जीवनकाल  और  उसके  वध  की  सम्पूर्ण  कथा  निम्नानुसार  हैं-:

महाभारत कंस वध कहानी 

Mahabharat Kans vadh story in hindi

नाम                         कंस / भोजपति
पिता                         मथुरा  के  महाराज  उग्रसेन
माता                        पवन  रेखा [ पद्मावती ]
जन्मस्थली             मथुरा
वंश                          यदुवंशी
घराना                      भोज
बहन                        देवकी
पत्नी                       महाराज  जरासंध  की  दोनों  पुत्रियाँ – अस्ति  और  प्राप्ति
मृत्यु                         भगवान  श्रीकृष्ण  द्वारा

महाभारत कंस  का  जन्म  (Mahabharat Kans janam):

माथुर  क्षेत्र  में  एक  मथुरा  नगरी  थी  और  वहाँ   के  राजा  थे – महाराज  उग्रसेन,  जो  कि  यदु  वंशी  राजा  थे  और  उसी  समय  विदर्भ  देश  के  राजा  थे – महाराज  सत्यकेतु.  उनकी  एक  पुत्री  थी,   जिसका  नाम  था – पद्मावती.  कहा  जाता  हैं  कि  पद्मावती  एक  सर्व  गुण  संपन्न  कन्या  थी.  महाराज  सत्यकेतु  ने  अपनी  पुत्री  पद्मावती  का  विवाह  मथुरा  नरेश  उग्रसेन  से  करा  दिया  और  महाराज  उग्रसेन  भी  पद्मावती  से  बहुत  प्रेम  करने  लगे,  यहाँ  तक  कि  वे  पद्मावती  के  बिना  भोजन  तक  ग्रहण  नहीं  करते  थे.

Kans vadh

कुछ  समय  पश्चात्  महाराज  सत्यकेतु  को  अपनी  बेटी  पद्मावती  की  याद  आने  लगी  और  उन्होंने  अपनी  पुत्री  को  कुछ  दिनों  के  लिए  मायके  बुलाने  हेतु  एक  दूत  को  महाराज  उग्रसेन  के  पास  भेजा.  उस  दूत  ने  महाराज  उग्रसेन  की  कुशल – क्षेम  पूछी  और  फिर  अपने  महाराज  सत्यकेतु  की  मनः स्थिति  के  बारे  में  महाराज  उग्रसेन  को  बताया  और  तब  महाराज  उग्रसेन  ने  उनकी  इस  प्रार्थना  को  स्वीकार  करते  हुए,  अपनी  प्रिय  पत्नी  को  अपने   पिता  के  पास  जाने  हेतु  सहमति  प्रदान  की  और  पद्मावती  अपने  पिता  के  घर  चली  आई.

एक  दिन  पद्मावती  अपने  मनोरंजन  हेतु  पर्वत  पर  घूमने  के  लिए  चली  गयी.  वहाँ  तलहटी  में  सुन्दर  सा  वन  था  और  तालाब  भी.  उस  तालाब  का  नाम  था – सर्वतोभद्रा.  पद्मावती  उस  वन  और  तालाब  की  सुन्दरता  को  देखकर   बहुत  प्रसन्न  हुई  और  तालाब  में  उतरकर  पानी  के  साथ  अठखेलियाँ  करने  लगी.  उसी  समय  आकाश  मार्ग  से  एक  गोभिल  नामक  दैत्य  निकला  और  उसकी  नज़र  अठखेलियाँ  करती  हुई  पद्मावती  पर  पड़ी  और  वो  उस  पर  मुग्ध  हो  गया.  गोभिल  दैत्य  के   पास  चमत्कारी  शक्तियां  थी,  इनकी  सहायता  से  उसने  पद्मावती  के   बारे  में  पूरी  जानकारी  प्राप्त  कर  ली  और  यह  भी  जान  लिया  कि  वह  एक  पतिव्रता  स्त्री  हैं,  इसीलिए  उसने  अपना  रूप  बदलकर  महाराज  उग्रसेन  का  वेश  धारण  कर  लिया.   अब  वह  पर्वत  पर  बैठ  कर  गीत  गाने  लगा  और  उस  मधुर  गीत  को  सुनकर  रानी   पद्मावती  मुग्ध  होकर  उसकी  दिशा  में  गयी  और  महाराज  उग्रसेन  को  देखकर  अचंभित  हो  गयी  और  उसने  पूछा  कि  आप  यहाँ  कब  आये ? तब  उस  दैत्य  गोभिल  ने  जवाब  दिया  कि  वह  अपनी  पत्नी  के  बिना  नहीं  रह  सकते.  तब  पद्मावती  उस  दैत्य   के  करीब  पहुंची  और  प्रेम  करते  समय  उसकी  नज़र  उस  दैत्य  के  शरीर  पर  बने  एक  निशान  के  ऊपर  पड़ी,  जो  महाराज  उग्रसेन  के  शरीर  पर  नहीं  था  और  तब  उसने  जब  उससे   पूछा  तो  पता  चला  कि  वह  एक  दैत्य  हैं.  तब  उस  गोभिल  दौत्य  ने  कहा  कि  उन  दोनों  के  इस  प्रकार  मिलन   से  जो  पुत्र  जन्म  लेगा,  वो  तीनों  लोकों  में  त्राहि  मचा  देगा  और  लोग  उसके  अत्याचारों  से  बहुत  दुखी  होंगे.  इस  घटना  के  बाद  जब  पद्मावती  अपने  पिता  के  घर  लौटी  तो  उन्होंने  पूरी  बात  बताई.  इसके   बाद  वे  अपने  पति  महाराज  उग्रसेन  के  पास  लौट  गयी.  धीरे – धीरे  पद्मावती  का  गर्भ  बढ़ा  और   10  वर्षों  के  लम्बे  गर्भधारण  काल  के  पश्चात्  एक  बालक   का  जन्म  हुआ  और  ये  बालक  कंस  था.

महाभारत कंस  का  वध ( Mahabharat Kans vadh story)

कंस  अपनी  बहन  देवकी  से  बहुत  प्रेम  करता  था  और  उसने  देवकी  का  विवाह  महाराज  वासुदेव  से  कराया  और  वो  स्वयं  अपनी  बहन  को  विदा  करके  ससुराल  छोड़ने  जा  रहा  था.  तभी  आकाशवाणी  हुई  कि “ देवकी  और  वासुदेव  का  आठवां  पुत्र  ही  कंस  की  मौत   का  कारण  बनेगा. ”  तब  इस  आकाशवाणी   पर  भरोसा  करके  कंस  देवकी  को  ही  मार  डालना  चाहता  था,  तब  वासुदेवजी  ने  कंस  को  वचन  दिया  कि “ वे  अपनी  हर  संतान  के  जन्म  लेते  ही  उसे  कंस  को  सौंप  देंगे,  परन्तु  वे  देवकी  की  हत्या  न  करें. ”  इस  पर  विश्वास  करके  कंस  ने  देवकी  और  वासुदेव  को  कारागार  में  डाल  दिया  और  एक – एक  करके  उनकी  6  संतानों  को  मार  डाला.

सातवी  संतान  के  जन्म  लेने  से  कुछ  समय   पूर्व  भगवान  श्री  हरि  विष्णु  ने  देवी  योगमाया  की  मदद  से  देवकी  के  गर्भ  को  वासुदेवजी  की  पहली  पत्नी  रोहिणी  के  गर्भ  में  स्थापित  कर  दिया  और  यह  पुत्र  ‘बलराम’  कहलाये  और  इसके  बाद  आठवी  संतान  के  रूप  में  भगवन  विष्णु  ने  अपने  कृष्ण  अवतार   में  जन्म  लिया.  उस  रात  अचानक  सभी  सैनिक  गहरी  नींद  में  सो  गये  और  कारागार  के  द्वार  भी  अपने – आप  खुल  गये  और  वासुदेवजी  गोकुल  में  अपने  मित्र  नन्द  के  यहाँ  अपने  पुत्र  को  छोड़  आये.

इस  प्रकार  नन्द   बाबा  और  उनकी  पत्नी   यशोदा  ने  ही  भगवान  श्रीकृष्ण  का  पालन – पोषण  किया.  इस  दौरान  कंस  ने  उन्हें  मारने  के  अनेक  प्रयास  किये,  परन्तु  सब  विफल  हो  गये.  तब  कंस  ने  अपने  मंत्री  और  रिश्तेदार  अक्रूर  को  कृष्ण  और  बलराम  को  लेने  के  लिए  भेजा.  वह  अपने  राज्य  में  उत्सव  का  आयोजन  करके  इसमें  दोनों   भाइयों  को  बुलाकर  मार  डालने  की  योजना  बनाकर  बैठा  था.  जब  अक्रूरजी  कृष्ण  और  बलराम  को  लेने  गोकुल  पहुंचे  तो  कोई  भी  गोकुलवासी  नहीं  चाहता  था  कि  वे  गोकुल  छोड़  कर  जाएँ,  तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उन्हें   समझाया  कि  यह  उनके  जीवन  का  एक  महत्वपूर्ण  चरण  हैं  और   इसी  उद्देश्य  हेतु  उन्होंने  जन्म  लिया  हैं.  इस  प्रकार  समझाने  के  बाद  अक्रूर  के  साथ  वो  दोनों  भाई  कंस  के  राज्य  में  आ  गये.

श्रीकृष्ण  और  बलरामजी  के  मथुरा  पहुँचने  पर  कंस  ने  योजनानुसार  एक  मद – मस्त  और  पागल  हाथी  को  दोनों  भाइयों  पर  छोड़  दिया.  हाथी  कृष्ण  और  बलराम  की  ओर  दौड़  पड़ा  और  मार्ग  में  आने  वाली  हर  वस्तु  को  नष्ट  कर  दिया.  तब  श्री  कृष्ण  अपने  रथ  से  उतरे  और  अपनी  तलवार  से  उस  हाथी  की  सून्ड  काट   दी  और  हाथी  की  मृत्यु   हो  गयी.  इसके  बाद  वह  उस  स्थल  पर  गया,  जहाँ  उसने  अपने  कूटनीति – पूर्ण   मल्ल – युद्ध  का  आयोजन  किया  था.   यहाँ  उसने   दोनों  भाइयों  को  मल्ल – युद्ध  हेतु  ललकारा.  इस  युद्ध  में  हार  का  अर्थ  था – मृत्यु  और  इसमें  कंस  की  ओर  से  राक्षसों  के  कुशल  योध्दा  ‘ मुश्तिक  और  चाणूर ’  मल्ल  में  हिस्सा  ले  रहे  थे.  इनमे  से   मुश्तिक  पर  बलरामजी  ने  मल्ल  प्रहार  करना  प्रारंभ  किये  और  चाणूर  पर  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  और  कुछ  ही  समय  पश्चात्  मुश्तिक  और  चाणूर  की  मृत्यु  हो  गयी.  कंस   ये  घटना  देखकर  हैरान  था,  तभी  श्रीकृष्ण  ने  कंस  को  ललकारा  कि  “ हे  कंस  मामा,  अब  आपके  पापों  घड़ा  भर  चुका  हैं  और  आपकी  मृत्यु  का  समय  आ  गया  हैं. ”  ये  सुनते  ही  वहाँ  उपस्थित  सभी  लोगों  ने  चिल्लाना  शुरू  किया  कि  कंस  को  मार  डालो,  मार  डालो  क्योंकि  वे  सब  भी  कंस  के  अत्याचारों  से  दुखी  थे.  कंस  वहाँ  से  अपनी  जान  बचाकर  भागना  चाहता  था,  परन्तु  वो  ऐसा  नही  कर  पाया.  तब  श्रीकृष्ण  ने  उस  पर  प्रहार  किये  और  उसे  अपने  अत्याचारों  की  याद  दिलाने  लगे  कि  कैसे  उसने  मासूम  बच्चों  की  हत्याएं  की,  कृष्ण  की  माता  देवकी  और  पिता  वासुदेवजी  को  बंदी  बनाकर  रखा,  उनकी  संतानों  की  हत्या  की,  अपने  स्वयं  के  पिता  महाराज  उग्रसेन  को  बंदी  बनाया  और  स्वयं  राजा  बन  बैठ,  जनता  पर  कैसे  ज़ुल्म  किये  और  उनके  साथ  अन्याय  किये.  इसके  बाद  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  सुदर्शन  चक्र  से  कंस  के  सर  को  धड़  से  अलग  कर  दिया  और  उसका  वध  कर  दिया.

इस  प्रकार  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कंस  के  अन्यायों  का  दमन  करते  हुए  उसका  वध  कर  दिया.

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