कहानी का शीर्षक हैं पछतावा | Inspirational Story Pachhatava in hindi

आज की कहानी का शीर्षक हैं “पछतावा” (Inspirational Story Pachhatava in hindi)

राजवीर मंदिर मे बैठे कुछ सोच रहा हैं. तब ही एक व्यक्ति आता हैं उसके हुलिये को देख कह सकते हैं वो एक मुस्लिम हैं. वो मंदिर मे आकर पुजा करता हैं. उसे देख एक ही सवाल दिमाग पर दस्तक देता हैं – एक मुस्लिम, मंदिर मे कैसे ?

पछतावा

वही एक सवाल राजवीर को उसकी सोच से बाहर निकालता हैं और वो उस शख्स की तरफ देखता ही हैं, कि वह शख्स उस अनपुछे सवाल को भाँप लेता हैं और वही मंदिर की डेल पर राजवीर के पास बैठ जाता हैं. और खुद ही कहता  हैं – मेरा नाम अशफाक़ हैं मैं मुस्लिम समाज से हूँ, रोजाना मंदिर आकर पुजा करता हूँ. राजवीर सुनकर आश्चर्य से पूछता हैं – यह अनोखा हैं ,क्या इसके पीछे कोई कारण हैं ? अशफाक़ मुस्कुराते हुये जवाब देता हैं – बरखुरदार ! हर एक बड़े काम या बदलाव के पीछे वजह जरूर होती हैं. यहाँ भी हैं. हमारी बीवी हिन्दू थी. उन्होने हमारे धर्म को दिल से अपनाया. यही एक उम्मीद उनकी आंखो मे हमारे लिए भी थी.  पर हम जानकर भी अंजान बने रहे, क्यूंकि यह हमारी शान के खिलाफ जो था. वो जीवन भर हमारे खातिर अपने भगवान से दूर रही और एक दिन वो हमसे दूर अपने भगवान के पास ही चली गई. उन्होने हमे एक खत लिखा था, जो उनके इंतकाल के बाद हमे मिला. उसमे लिखा था उन्हे अपने ईश्वर से बहुत प्रेम था, वो हमसे छिपकर, यहाँ इस मंदिर मे आ जाया करती थी. हमे बुरा ना लगे, इसलिए कभी बोल नहीं पाई, पर धोखा नहीं देना चाहती थी, इसलिए खत लिख दिया. उन्होने, हमारे प्यार के खातिर, हमारे अभिमान के खातिर, अपनी इच्छा कभी ज़ाहिर ना की. पर मरते – मरते वो हमे सच कह कर गई. तब हमे प्यार की कीमत समझ आई. इसलिए उनके जाने के बाद ही सही, पर हमने उनकी वो एक इच्छा पूरी की. अशफाक़ की बात खत्म हो जाती हैं. दोनों कुछ देर खामोश बैठ जाते हैं.

अशफाक़ की बातों से राजवीर के चेहरे पर बैचेनी सी हैं जिसे देख,अशफाक़ राजवीर से पूछता हैं – जनाब ! आप कुछ परेशान से लग रहे हो. राजवीर कुछ असहज सा हो जाता हैं और कहता हैं – नहीं ! ऐसा कुछ नहीं.  अशफाक़  कहता हैं – बरखुरदार ! आपकी बैचेनी देख, कह सकता हूँ आप किसी सच से ही भाग रहे हो. राजवीर तेजी से वहाँ से उठकर जाने लगता हैं, जैसे अशफाक़ ने उसकी कोई चौरी पकड़ ली हो. अशफाक़ उसे रोकता हैं पर राजवीर तेजी से वहाँ से निकलकर अपनी कार मे बैठकर चला जाता हैं.

राजवीर के दिमाग मे अशफाक़ की सारी बाते घूमने लगती हैं. राजवीर को रातभर नींद नहीं आती. सुबह होते ही वो फिर उसी मंदिर मे जाकर बैठ जाता हैं. फिर से उसकी मुलाक़ात अशफाक़ से होती हैं. अशफाक़ राजवीर के पास आकर बैठ जाता हैं.

अशफाक़ समझ रहा  हैं कि राजवीर उससे कुछ कहना चाहता हैं पर  अशफाक़ चाहता हैं राजवीर खुद अपने अभिमान को तोड़कर सच को उनके सामने रखे, जिससे वो भाग रहा हैं. पर वहीं राजवीर चाहता हैं अशफाक़ उससे आगे से सवाल करे. पर, राजवीर कुछ नहीं बोल पाता. दो तीन दिनों तक यही चलता रहता हैं . आखिरकार एक दिन राजवीर खामोशी तोड़कर बोलता हैं – असल मे मेरी नौकरी मे थोड़ी दिक्कत हैं, बस इसलिये परेशान हूँ. अशफाक़ ज़ोर – ज़ोर से हँसने लगता हैं – बरखुरदार ! इतने दिनों बाद, अपनी खामोशी तोड़ी भी तो झूठ बोलने के लिये.  मियां ! हमारे बाल धूप मे सफ़ेद नहीं हुये हैं. आपका चेहरा साफ कह रहा हैं आप खुद से खफा हैं. खुद की गलती मानने की हिम्मत नहीं हैं आपमे. आप इस पुरुष प्रधान समाज के वही पुरुष हैं, जो अपने मन रूपी अकड़ मे इतने जकड़ गए, कि सच को स्वीकार नहीं कर पाते. अशफाक़ राजवीर को उसके ही असली रूप  से पहचान करवाता हैं. राजवीर के दिल पर एक बोझ हैं, जिसे वो खुद से भी खुलकर नहीं कह पाया हैं और आज वो अपने जीवन के उस एक पहलू को अशफाक़ के सामने रखता हैं और कहता हैं –

मैं एक मॉडर्न लड़की से शादी करना चाहता था.  पर मेरे माता – पिता ने मेरी शादी गाँव की लड़की शिखा से करवा दी. मैं उससे ठीक से बात तक नहीं करता था. वो मेरे परिवार के साथ ऐसे घुलमिल गई थी, जैसे बरसो से उनके साथ रह रही हो . मुझे ये भी पसंद नहीं आ रहा था. फिर भी वो मेरी हर जरूरत को, बिना मेरे कहे पूरा कर देती थी. मैं तरक्की पर तरक्की कर रहा था. मुझे अपने आप पर बहुत अभिमान था.  एक दिन नशे मे धुत्त घर आकर, मैंने शिखा के साथ बल्द्सुलूकी की. मैंने कहा – तुम मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती हो. शरम आती हैं मुझे, जब तुम्हें पत्नी कहना पड़ता हैं. मैं बोलता ही गया. शिखा के लिए यह सब नया नहीं था.

पर मेरे माता –पिता के लिए ये एक कड़वे घुट के समान था. बिना मुझसे बात किए वो शिखा को अपने साथ ले गए. मैंने ऐसे बीहेव किया, जैसे मुझे  काले पानी की सजा से मुक्ति मिल गई हो.  जाते वक्त शिखा ने मेरी मेज पर एक डायरी रखी थी, जिसमे मेरी सारी जरूरतों की लिस्ट थी. यह देखकर मुझे गुस्सा आ गया – क्या समझती हैं वो खुद को ? मैं क्या उस  पर डीपेंड करता हूँ ? फिर मैंने सोचा – मैं क्यू चिड़ रहा हूँ.  वो तो थी ही गंवार अब चली गई. मैं आजाद हूँ, ऐसा सोच मैं ऑफिस चला गया. ऑफिस मे लंच ब्रेक मे जैसे ही मैंने टिफिन खोला. मैंने उस महक को मिस किया, जो रोजाना  मेरे थके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती थी. एक पल के लिये मुझे एक अजीब सी कमी महसूस हुई, पर उस वक्त मुझे अपनी आजादी का गुमान ज्यादा था.

समय गुजर रहा था मैं अपनी हर एक जरूरत के लिए डायरी पर डिपेंड करता था. कमी का कुछ अहसास तो था, पर मेरा इगो मेरे सामने आ जाता और मैं फिर अपनी अकड़ मे जीने लगता.

मै परेशान जब हो गया, जब मेरा वर्किंग परफॉर्मेंस बिगड़ने लगा. हमेशा अपनी प्रोग्रैस के लिए खुद को सारा क्रेडिट देता था. मैं ये मानना ही नहीं चाहता था, कि मेरी प्रोग्रैस मे शिखा का भी पूरा हाथ था.  उसी के कारण मैं अपने जीवन की कई छोटी बड़ी परेशानियों और जिम्मेदारियों से बहुत दूर था और केवल अपने काम पर फोकस करता था.

बेस्वाद खाने मे, मुरझाये फूलों मे, बिखरे घर मे, हर उस जगह, जहां मैं शिखा को देख चिड़ता था, उसे गंवार कहकर निकल जाता था, मुझे उसकी कमी महसूस होने लगी थी, पर मैं ये मान कैसे लेता.

एक दिन मन भारी हो गया, फिर  मैंने माँ को कॉल किया. वो मेरी आवाज से ही समझ जाती थी, कि मैं परेशान हूँ पर समझते हुये भी माँ ने मुझे इगनोर कर दिया और  कहा कि शिखा ने दूसरी शादी का फैसला कर लिया हैं. यह सुनकर मुझे और गुस्सा आ गया और मैंने कॉल कट कर दिया.

कुछ दिनों पहले ही मुझे डाक से तलाक से कागज मिले. पता नहीं क्यूँ मैं खुश नहीं हूँ. मैं चाहता तो यही था कि शिखा मेरी ज़िंदगी से दूर हो जाये पर आज मैं बैचेन हूँ.

अशफाक़ थोड़ी देर रुककर कहता हैं – अब तुम क्या सोच रहे हो ? राजवीर कहता हैं – शिखा मुझसे बहुत प्यार करती थी, फिर वो कैसे दूसरी शादी के लिये सोच भी सकती हैं ? अशफाक़ कहता हैं – वाह मियां ! क्या अभी भी वो आपसे पुछेगी कि आगे बढ़ूँ या नहीं ? आज जब आपको उसकी अहमियत पता चल गई हैं, तब भी उससे सच कहने से झिझक रहे हो. सब कुछ सामने हैं. पर फिर माफी मांगने मे खुद को छोटा महसूस कर रहे हो. मियां ! समझलों अगर अब भी अपने इगो मे रहे, तो फिर मौका नहीं मिलेगा .

दोस्तों आदमी का यह इगो ही उसे ज़िंदगी से हरा देता हैं. राजवीर सब जानता  हैं, पर उसके अहम के कारण वो शिखा से बात नहीं कह पा रहा हैं. शायद उसे डर हैं कि इस बार शिखा उसे ना न कह दे.

अशफाक़ राजवीर को झँझोड़ कर कहता हैं – जब मैं अशफाक़ होकर मरी हुई बीवी के खातिर मंदिर जा सकता हूँ, तो क्या तुम एक सच स्वीकार नहीं कर सकते ?

राजवीर को अशफाक़ की बात दिल पर लग जाती हैं, वो कॉल तो नहीं, पर शिखा को एक मैसेज करता हैं मैसेज डेलीवर होते ही, उधर से कॉल आ जाता हैं. दोनों के बीच लंबी बात होती हैं. और यह  एक लंबा कॉल दोनों को वापस मिला देता हैं.

दोस्तो एक टेक्स्ट के बाद शिखा एक पल नहीं रुकती और कॉल कर देती  हैं. यह एक औरत का दिल हैं, वो जिससे प्यार करती हैं, उसे कभी नहीं झुकाती और वहीं एक आदमी, हर उस औरत को झुकाता हैं, जो उससे प्यार करती हैं.

कहानी से शिक्षा (Moral Of The Story) :

“वक्त किसी का बंधक नहीं, वक्त रहते काम हो जाए तो वह अमूल्य है, वरना पछताने के अलावा कुछ नहीं रह जाता. ”  जीवन में जो भी मिले उसे स्वीकारने की कोशिश करे, जरुरी नहीं हर चीज जो आप चाहते है वहीँ आपको मिलेगा. लेकिन जो आपको मिला है वह आपकी किस्मत है जिसे अच्छा बुरा बनाना केवल आपके हाथ में है.

अन्य पढ़े:

Leave a Comment