कर्म करों फल की चिंता ना करों
जमीन में दो बीज बोये गए थे अब उनके अंकुरित होकर धरती के ऊपर आने का वक्त था तभी एक बीज ने सोचा कि पता करते हैं धरती के ऊपर का जीवन कैसा हैं ? उस बीज ने कई पौधों और वृक्षों से बात की और एक निष्कर्ष निकाला कि धरती के ऊपर का जीवन बहुत कष्टदायी हैं | धरती के मानव पौधों को पैरों तलें रौंध देते हैं | जीव-जन्तु पेड़, पौधों को खा जाते हैं | इस प्रकार उस बीज ने निर्णय लिया कि वह अंकुरित होकर ऊपर नहीं जाएगा और उसने यह बात अपने दोस्त दुसरे बीज को भी बताई और उसे भी अंकुरित ना होने की सलाह दी | पर उस दुसरे बीज ने उसकी बात नहीं मानी और अंकुरित होकर ऊपर जाने का फैसला किया |
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आज कई वर्षों बाद वह बीज एक वृक्ष बन गया जिसने फल, फूल दिए लोगो को छाया दी और अपने बीज से नए पौधों और वृक्षों को जीवन दिया और अपने आप में बहुत ख़ुशी पाई| और उसी जगह वह बीज जिसने अंकुरित ना होने का फैसला किया था वह धरती के नीचे ही ख़राब होकर मर गया |
Moral Of The Story:
“कर्म करों फल की चिंता ना करों |”
जीवन में अगर future से डरकर आगे बढ़ेंगे तो कभी कुछ नहीं मिलेगा | जीवन के हर कोने में डर हैं पर उसे जी कर ही जिन्दगी में आगे बढ़ सकते हैं डरकर बैठ जाने से जिन्दगी एक ठहरे हुयें पानी की तरह हो जाती हैं जिसमे कुछ दिनों बाद कीड़े पड़ जाते हैं और दुर्गन्ध फैल जाती हैं | चलता हुआ जीवन बहती हुई नदी की धारा हैं जो सदैव निर्मल और पवित्र होती हैं |
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