गिरिधर की कुंडलियाँ, दोहे, हिंदी अर्थ, जीवन परिचय, कविराय की रचनाएँ Giridhar ki kundaliya dohe in Hindi

गिरिधर की कुंडलियाँ, दोहे, हिंदी अर्थ, जीवन परिचय, कविराय की रचनाएँ, कविता [Giridhar Kavirai ki Kundaliya, Arth, Rachnaye, Dohe, Bhasha Shaili in Hindi]

गिरिधर कविराय जी हिंदी के एक ऐसे बहुचर्चित कवि रहे थे, जिनके द्वारा कहीं गई कुंडलियाँ बहुत ही प्रसिद्द हैं. इनकी रचनाएँ लोगों के मुख पर आज भी रहती हैं. ये ब्राह्मण कुल के थे. आइये इस लेख में हम आपको इनके जीवन का परिचय देते हैं साथ ही इनके द्वारा लिखी गई कुंडलियाँ एवं रचनाओं के बारे में भी बताते हैं. यह जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें.

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गिरिधर कविराय जीवन परिचय (Giridhar Kavirai Biography in Hindi)

नामगिरिधर कविराय
मूल नामगिरिधर कविराय भाट
जन्म1717 मतभेद
स्थानअवध मतभेद
ख्यातिकवी
रचनाएँगिरिधर कवी ग्रंथावली
प्रकारकुंडलियाँ
विशेषताभाषा का सरलीकरण

गिरिधर कविराय जन्म (Birth)

गिरिधर कविराय के जीवन के संबंध में मतभेद हैं कई महानुभाव के अनुसार इनका जन्म 1717 माना जाता हैं| कहा जाता हैं यह अवध के किसी छोटे स्थान में जन्मे थे| यह अत्यंत दयालु व्यक्ति थे जिन्हें अपने परिवेश से बहुत प्रेम था| इनकी रचनाओं में जीवन के ज्ञान का अंश मिलता हैं जो मनुष्य को सही गलत का ज्ञान देता हैं| अच्छे बुरे में अंतर सिखाता हैं| इनकी जाति दाचित भाट कही जाती हैं, परन्तु इनके जीवन से संबंधी कोई भी तथ्य पुर्णतः प्रमाणित नहीं हैं| इनके व्यवहार एवम आचारण का पता इनकी रचनाओं से लगाया जा सकता हैं|

गिरिधर कविराय जीवन संबंधी कथा

कहते हैं इनका किसी बढ़ई से विवाद हो जाता हैं क्यूंकि इन्हें वृक्षों का दुरपयोग कतई मंजूर नहीं था उनके आँगन में एक बैर का वृक्ष था जिससे वे अत्यंत प्रेम करते थे बढ़ई ने उनके इसी प्रेम का फायदा उठाकर अपना बदला लेने की ठानी | एक दिन बढ़ई ने एक विशेष चारपाई बनाकर राजा को भेंट दी | उसकी विशेषता यह थी कि उसमे पंख लगाये गए थे उस पर बैठ कर व्यक्ति उड़ सकता था | यह देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने बढ़ई को ऐसी कई चारपाई बनाने का हुक्म दिया | तब बढ़ई ने कहा इसे बनाने के लिए जो लकड़ी लगती हैं वो गाँव के गिरिधर के आँगन में खड़े बैर के पेड़ से ही मिलती हैं और वे अपने पेड़ से बहुत प्रेम करते हैं | तब राजा ने सैनिको के जरिये जबरजस्ती गिरिधर के बैर के पेड़ को कटवाकर बढ़ई को दे दिया जिसे देख गिरिधर इतने दुखी हो गये कि सदा के लिये अपने गाँव को अलविदा कह कर चले गये |

गिरिधर कविराय की रचनाओं की विशेषता

गिरिधर कविराय मूलतः कुंडलियाँ लिखते थे जिनकी विशेषता होती हैं इनकी छह पंक्तियाँ | गिरिधर कवी अपनी दूसरी पंक्ति के अंतिम भाग का प्रयोग बड़े ही अनूठे ढंग से तीसरी पंक्ति के प्रथम भाग में करते थे जिससे कुंडली का सार अत्यंत रोचक बन जाता था | इनकी सबसे बड़ी विशेषता होती थी भाषा का सरलीकरण, जो आम व्यक्ति को सीधे पढ़कर भाव स्पष्ट कर देती थी | यह सभी कुंडलियाँ आम नागरिक को ध्यान में रखकर लिखी गई थी जो जीवन ज्ञान को दर्पण की तरह श्रोता के सामने प्रेषित कर दिया करती थी |

गिरिधर की कुंडलियाँ दोहे एवं हिंदी अर्थ

कुंडली – 1

जानो नहीं जिस गाँव में, कहा बूझनो नाम ।

तिन सखान की क्या कथा, जिनसो नहिं कुछ काम ॥

जिनसो नहिं कुछ काम, करे जो उनकी चरचा ।

राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥

कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।

ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥

अर्थात :- गिरिधर कविराज कहते हैं कि जिस जगह से तुम्हे कोई लेना देना नहीं हैं उसके बारे में क्यूँ पूछते हो, ऐसे लोगों की बाते भी क्यूँ करते हो जिनसे तुम्हारा कोई संबंध नहीं | जिनसे हमें कोई लेना देना नहीं होता उनकी बाते जो लोग करते हैं उनके बीच दुश्मनी हो जाती हैं | जिनसे हमारा कोई काम हो उसी से मतलब रखो |

कुंडली – 2

लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।

गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।

तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।

दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।

कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।

सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।

अर्थात :- कविराज गिरधर कहते हैं कि हमेशा अपने पास लाठी रखे, अगर राह में गहरी नदी, नाला आ जाता हैं तो लाठी सहारा देती हैं, अगर कोई कुत्ता पीछे पड़ जाता हैं तब भी लाठी उससे बचाती हैं, अगर कोई दुश्मन हमला कर दे तो लाठी उसे भगा देती हैं इसलिए कवी बार-बार सभी से कहते हैं कि सारे हथियार छोड़ कर अपने पास बस रखो लाठी |

कुंडली – 3

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।

जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥

ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।

दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥

कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।

आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥

अर्थात :- कविराज गिरिधर कहते हैं कि जो बीत गया उसे जाने दो, बस आगे की सोच, जो हो सकता हैं उसी में अपना मन लगा अगर जिसमे मन लगता हैं वही करेगा तो सफल जरुर होगा | और ऐसे में कोई हँसेगा नहीं इसलिए कवी राज कहते हैं जो मन कहे वही करो बस आगे का देखो पीछे जो गया उसे बीत जाने दो |

कुंडली – 4

गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।

जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।

शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।

दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥

कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।

बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥

अर्थात :- जिनमे गुण होते हैं उन्ही की हजारो की भीड़ में पूछ होती हैं और जिनमे गुण नहीं होते उनको नही पूछता | जैसे कोयल और कौए दोनों की आवाज सब सुनते हैं लेकिन सभी को कोकिला की आवाज ही अच्छी लगती हैं | दोनों समान दीखते हैं एक ही रंग के हैं लेकिन कौआ सभी को अपवित्र लगता हैं इसलिए कवि गिरिधर कहते हैं कि बिना गुण को कोई नहीं लेता,गुणों के सहस्त्र ग्राहक होते हैं |

कुंडली – 5

दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।

चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥

ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।

मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥

कह ‘गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।

पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥

अर्थात :- केवल दौलत पाने के लिए ही कार्यं मत करो ना उसका कोई अभिमान करों यह उसी प्रकार हैं जैसे चंचल जल चार दिन के लिए होता हैं यह भी नहीं ठहरता | इस जीवन में जीते हुए भगवान का नाम लो, अच्छी वाणी बोलो और सभी से प्रेम करो | कवी कहते हैं कि पैसा बस चार दिन का हैं बाकि सभी के साथ व्यवहार बना रहता हैं जो सच्ची दौलत हैं |

कुंडली – 6

झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।

लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥

लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।

ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥

कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।

बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥

अर्थात :- जो व्यक्ति झूठा होता हैं वो हमेशा मीठे वचन बोलता हैं आपसे उधार ले जाता हैं उसे लेने पर अत्यंत सुख महसूस होता हैं लेकिन देने का वो नाम नही लेता | वो हमेशा अच्छे व्यक्ति को बुरा कहता हैं | उधार का लेकर जीना ही उसकी निति है जो मरते दम तक वो निभाता हैं यह अपने मन में रख लो कि बहुत दिन बीत जाने पर जब तुम उधार लेने जाओगे तो वो मुँह पर बोल देगा कि उधार नही लिया तेरा प्रमाण झूठ हैं |

गिरिधर कविराय की रचनाओ से ही उनके चरित्र को समझा जा सकता हैं उनकी कुंडलियों में प्रेम के साथ जीवन का अनुभव भलीभांति स्पष्ट होता हैं| भाषा सरल होने के कारण जन समुदाय को इससे बहुत लाभ मिला हैं|

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FAQ

Q : गिरिधर कविराय कौन थे ?

Ans : ये हिंदी के एक बहुत ही प्रसिद्द कवि थे.

Q : गिरिधर कविराय का जन्म कब हुआ था ?

Ans : सन 1717 में

Q : गिरिधर कविराय की कौन सी कुंडलियाँ जनमानस में बहुत लोकप्रिय हैं?

Ans : लाठी में गुण बहुत है नामक कुंडली उनकी बेहद लोक्प्रित कुंडलियों में से एक है.

Q : गिरिधर कविराय का जन्म कहां हुआ ?

Ans : अवध में

Q : गिरिधर कविराय का मूल नाम क्या था ?

Ans : गिरिधर कविराय भाट

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